← Psalms (22/150) → |
1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : तुलू-ए-सुब्ह की हिरनी। ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा, तू ने मुझे क्यूँ तर्क कर दिया है? मैं चीख़ रहा हूँ, लेकिन मेरी नजात नज़र नहीं आती। |
2. | ऐ मेरे ख़ुदा, दिन को मैं चिल्लाता हूँ, लेकिन तू जवाब नहीं देता। रात को पुकारता हूँ, लेकिन आराम नहीं पाता। |
3. | लेकिन तू क़ुद्दूस है, तू जो इस्राईल की मद्हसराई पर तख़्तनशीन होता है। |
4. | तुझ पर हमारे बापदादा ने भरोसा रखा, और जब भरोसा रखा तो तू ने उन्हें रिहाई दी। |
5. | जब उन्हों ने मदद के लिए तुझे पुकारा तो बचने का रास्ता खुल गया। जब उन्हों ने तुझ पर एतिमाद किया तो शर्मिन्दा न हुए। |
6. | लेकिन मैं कीड़ा हूँ, मुझे इन्सान नहीं समझा जाता। लोग मेरी बेइज़्ज़ती करते, मुझे हक़ीर जानते हैं। |
7. | सब मुझे देख कर मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं। वह मुँह बना कर तौबा तौबा करते और कहते हैं, |
8. | “उस ने अपना मुआमला रब्ब के सपुर्द किया है। अब रब्ब ही उसे बचाए। वही उसे छुटकारा दे, क्यूँकि वही उस से ख़ुश है।” |
9. | यक़ीनन तू मुझे माँ के पेट से निकाल लाया। मैं अभी माँ का दूध पीता था कि तू ने मेरे दिल में भरोसा पैदा किया। |
10. | जूँ ही मैं पैदा हुआ मुझे तुझ पर छोड़ दिया गया। माँ के पेट से ही तू मेरा ख़ुदा रहा है। |
11. | मुझ से दूर न रह। क्यूँकि मुसीबत ने मेरा दामन पकड़ लिया है, और कोई नहीं जो मेरी मदद करे। |
12. | मुतअद्दिद बैलों ने मुझे घेर लिया, बसन के ताक़तवर साँड चारों तरफ़ जमा हो गए हैं। |
13. | मेरे ख़िलाफ़ उन्हों ने अपने मुँह खोल दिए हैं, उस दहाड़ते हुए शेरबबर की तरह जो शिकार को फाड़ने के जोश में आ गया है। |
14. | मुझे पानी की तरह ज़मीन पर उंडेला गया है, मेरी तमाम हड्डियाँ अलग अलग हो गई हैं, जिस्म के अन्दर मेरा दिल मोम की तरह पिघल गया है। |
15. | मेरी ताक़त ठीकरे की तरह ख़ुश्क हो गई, मेरी ज़बान तालू से चिपक गई है। हाँ, तू ने मुझे मौत की ख़ाक में लिटा दिया है। |
16. | कुत्तों ने मुझे घेर रखा, शरीरों के जथे ने मेरा इहाता किया है। उन्हों ने मेरे हाथों और पाँओ को छेद डाला है। |
17. | मैं अपनी हड्डियों को गिन सकता हूँ। लोग घूर घूर कर मेरी मुसीबत से ख़ुश होते हैं। |
18. | वह आपस में मेरे कपड़े बाँट लेते और मेरे लिबास पर क़ुरआ डालते हैं। |
19. | लेकिन तू ऐ रब्ब, दूर न रह! ऐ मेरी क़ुव्वत, मेरी मदद करने के लिए जल्दी कर! |
20. | मेरी जान को तल्वार से बचा, मेरी ज़िन्दगी को कुत्ते के पंजे से छुड़ा। |
21. | शेर के मुँह से मुझे मख़्लसी दे, जंगली बैलों के सींगों से रिहाई अता कर। ऐ रब्ब, तू ने मेरी सुनी है! |
22. | मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का एलान करूँगा, जमाअत के दर्मियान तेरी मद्हसराई करूँगा। |
23. | तुम जो रब्ब का ख़ौफ़ मानते हो, उस की तम्जीद करो! ऐ याक़ूब की तमाम औलाद, उस का एहतिराम कर! ऐ इस्राईल के तमाम फ़र्ज़न्दो, उस से ख़ौफ़ खाओ! |
24. | क्यूँकि न उस ने मुसीबतज़दा का दुख हक़ीर जाना, न उस की तक्लीफ़ से घिन खाई। उस ने अपना मुँह उस से न छुपाया बल्कि उस की सुनी जब वह मदद के लिए चीख़ने-चिल्लाने लगा। |
25. | ऐ ख़ुदा, बड़े इजतिमा में मैं तेरी सिताइश करूँगा, ख़ुदातरसों के सामने अपनी मन्नत पूरी करूँगा। |
26. | नाचार जी भर कर खाएँगे, रब्ब के तालिब उस की हम्द-ओ-सना करेंगे। तुम्हारे दिल अबद तक ज़िन्दा रहें! |
27. | लोग दुनिया की इन्तिहा तक रब्ब को याद करके उस की तरफ़ रुजू करेंगे। ग़ैरअक़्वाम के तमाम ख़ान्दान उसे सिज्दा करेंगे। |
28. | क्यूँकि रब्ब को ही बादशाही का इख़तियार हासिल है, वही अक़्वाम पर हुकूमत करता है। |
29. | दुनिया के तमाम बड़े लोग उस के हुज़ूर खाएँगे और सिज्दा करेंगे। ख़ाक में उतरने वाले सब उस के सामने झुक जाएँगे, वह सब जो अपनी ज़िन्दगी को ख़ुद क़ाइम नहीं रख सकते। |
30. | उस के फ़र्ज़न्द उस की ख़िदमत करेंगे। एक आने वाली नसल को रब्ब के बारे में सुनाया जाएगा। |
31. | हाँ, वह आ कर उस की रास्ती एक क़ौम को सुनाएँगे जो अभी पैदा नहीं हुई, क्यूँकि उस ने यह कुछ किया है। |
← Psalms (22/150) → |