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1. | दाऊद की दुआ। ऐ रब्ब, इन्साफ़ के लिए मेरी फ़र्याद सुन, मेरी आह-ओ-ज़ारी पर ध्यान दे। मेरी दुआ पर ग़ौर कर, क्यूँकि वह फ़रेबदिह होंटों से नहीं निकलती। |
2. | तेरे हुज़ूर मेरा इन्साफ़ किया जाए, तेरी आँखें उन बातों का मुशाहदा करें जो सच्च हैं। |
3. | तू ने मेरे दिल को जाँच लिया, रात को मेरा मुआइना किया है। तू ने मुझे भट्टी में डाल दिया ताकि नापाक चीज़ें दूर करे, गो ऐसी कोई चीज़ नहीं मिली। क्यूँकि मैं ने पूरा इरादा कर लिया है कि मेरे मुँह से बुरी बात नहीं निकलेगी। |
4. | जो कुछ भी दूसरे करते हैं मैं ने ख़ुद तेरे मुँह के फ़रमान के ताबे रह कर अपने आप को ज़ालिमों की राहों से दूर रखा है। |
5. | मैं क़दम-ब-क़दम तेरी राहों में रहा, मेरे पाँओ कभी न डगमगाए। |
6. | ऐ अल्लाह, मैं तुझे पुकारता हूँ, क्यूँकि तू मेरी सुनेगा। कान लगा कर मेरी दुआ को सुन। |
7. | तू जो अपने दहने हाथ से उन्हें रिहाई देता है जो अपने मुख़ालिफ़ों से तुझ में पनाह लेते हैं, मोजिज़ाना तौर पर अपनी शफ़्क़त का इज़्हार कर। |
8. | आँख की पुतली की तरह मेरी हिफ़ाज़त कर, अपने परों के साय में मुझे छुपा ले। |
9. | उन बेदीनों से मुझे मह्फ़ूज़ रख जो मुझ पर तबाहकुन हम्ले कर रहे हैं, उन दुश्मनों से जो मुझे घेर कर मार डालने की कोशिश कर रहे हैं। |
10. | वह सरकश हो गए हैं, उन के मुँह घमंड की बातें करते हैं। |
11. | जिधर भी हम क़दम उठाएँ वहाँ वह भी पहुँच जाते हैं। अब उन्हों ने हमें घेर लिया है, वह घूर घूर कर हमें ज़मीन पर पटख़ने का मौक़ा ढूँड रहे हैं। |
12. | वह उस शेरबबर की मानिन्द हैं जो शिकार को फाड़ने के लिए तड़पता है, उस जवान शेर की मानिन्द जो ताक में बैठा है। |
13. | ऐ रब्ब, उठ और उन का सामना कर, उन्हें ज़मीन पर पटख़ दे! अपनी तल्वार से मेरी जान को बेदीनों से बचा। |
14. | ऐ रब्ब, अपने हाथ से मुझे इन से छुटकारा दे। उन्हें तो इस दुनिया में अपना हिस्सा मिल चुका है। क्यूँकि तू ने उन के पेट को अपने माल से भर दिया, बल्कि उन के बेटे भी सेर हो गए हैं और इतना बाक़ी है कि वह अपनी औलाद के लिए भी काफ़ी कुछ छोड़ जाएँगे। |
15. | लेकिन मैं ख़ुद रास्तबाज़ साबित हो कर तेरे चिहरे का मुशाहदा करूँगा, मैं जाग कर तेरी सूरत से सेर हो जाऊँगा। |
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