Psalms (146/150)  

1. रब्ब की हम्द हो! ऐ मेरी जान, रब्ब की हम्द कर।
2. जीते जी मैं रब्ब की सिताइश करूँगा, उम्र भर अपने ख़ुदा की मद्हसराई करूँगा।
3. शुरफ़ा पर भरोसा न रखो, न आदमज़ाद पर जो नजात नहीं दे सकता।
4. जब उस की रूह निकल जाए तो वह दुबारा ख़ाक में मिल जाता है, उसी वक़्त उस के मन्सूबे अधूरे रह जाते हैं।
5. मुबारक है वह जिस का सहारा याक़ूब का ख़ुदा है, जो रब्ब अपने ख़ुदा के इन्तिज़ार में रहता है।
6. क्यूँकि उस ने आस्मान-ओ-ज़मीन, समुन्दर और जो कुछ उन में है बनाया है। वह हमेशा तक वफ़ादार है।
7. वह मज़्लूमों का इन्साफ़ करता और भूकों को रोटी खिलाता है। रब्ब क़ैदियों को आज़ाद करता है।
8. रब्ब अंधों की आँखें बहाल करता और ख़ाक में दबे हुओं को उठा खड़ा करता है, रब्ब रास्तबाज़ को पियार करता है।
9. रब्ब परदेसियों की देख-भाल करता, यतीमों और बेवाओं को क़ाइम रखता है। लेकिन वह बेदीनों की राह को टेढ़ा बना कर काम्याब होने नहीं देता।
10. रब्ब अबद तक हुकूमत करेगा। ऐ सिय्यून, तेरा ख़ुदा पुश्त-दर-पुश्त बादशाह रहेगा। रब्ब की हम्द हो।

  Psalms (146/150)