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1. | दाऊद का ज़बूर। ऐ रब्ब, मैं तुझे पुकार रहा हूँ, मेरे पास आने में जल्दी कर! जब मैं तुझे आवाज़ देता हूँ तो मेरी फ़र्याद पर ध्यान दे! |
2. | मेरी दुआ तेरे हुज़ूर बख़ूर की क़ुर्बानी की तरह क़बूल हो, मेरे तेरी तरफ़ उठाए हुए हाथ शाम की ग़ल्ला की नज़र की तरह मन्ज़ूर हों। |
3. | ऐ रब्ब, मेरे मुँह पर पहरा बिठा, मेरे होंटों के दरवाज़े की निगहबानी कर। |
4. | मेरे दिल को ग़लत बात की तरफ़ माइल न होने दे, ऐसा न हो कि मैं बदकारों के साथ मिल कर बुरे काम में मुलव्वस हो जाऊँ और उन के लज़ीज़ खानों में शिर्कत करूँ। |
5. | रास्तबाज़ शफ़्क़त से मुझे मारे और मुझे तम्बीह करे। मेरा सर इस से इन्कार नहीं करेगा, क्यूँकि यह उस के लिए शिफ़ाबख़्श तेल की मानिन्द होगा। लेकिन मैं हर वक़्त शरीरों की हर्कतों के ख़िलाफ़ दुआ करता हूँ। |
6. | जब वह गिर कर उस चटान के हाथ में आएँगे जो उन का मुन्सिफ़ है तो वह मेरी बातों पर ध्यान देंगे, और उन्हें समझ आएगी कि वह कितनी पियारी हैं। |
7. | ऐ अल्लाह, हमारी हड्डियाँ उस ज़मीन की मानिन्द हैं जिस पर किसी ने इतने ज़ोर से हल चलाया है कि ढेले उड़ कर इधर उधर बिखर गए हैं। हमारी हड्डियाँ पाताल के मुँह तक बिखर गई हैं। |
8. | ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, मेरी आँखें तुझ पर लगी रहती हैं, और मैं तुझ में पनाह लेता हूँ। मुझे मौत के हवाले न कर। |
9. | मुझे उस जाल से मह्फ़ूज़ रख जो उन्हों ने मुझे पकड़ने के लिए बिछाया है। मुझे बदकारों के फंदों से बचाए रख। |
10. | बेदीन मिल कर उन के अपने जालों में उलझ जाएँ जबकि मैं बच कर आगे निकलूँ। |
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