Psalms (140/150)  

1. दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। ऐ रब्ब, मुझे शरीरों से छुड़ा और ज़ालिमों से मह्फ़ूज़ रख।
2. दिल में वह बुरे मन्सूबे बाँधते, रोज़ाना जंग छेड़ते हैं।
3. उन की ज़बान साँप की ज़बान जैसी तेज़ है, और उन के होंटों में साँप का ज़हर है। (सिलाह)
4. ऐ रब्ब, मुझे बेदीन के हाथों से मह्फ़ूज़ रख, ज़ालिम से मुझे बचाए रख, उन से जो मेरे पाँओ को ठोकर खिलाने के मन्सूबे बाँध रहे हैं।
5. मग़रूरों ने मेरे रास्ते में फंदा और रस्से छुपाए हैं, उन्हों ने जाल बिछा कर रास्ते के किनारे किनारे मुझे पकड़ने के फंदे लगाए हैं। (सिलाह)
6. मैं रब्ब से कहता हूँ, “तू ही मेरा ख़ुदा है, मेरी इल्तिजाओं की आवाज़ सुन!”
7. ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, ऐ मेरी क़वी नजात! जंग के दिन तू अपनी ढाल से मेरे सर की हिफ़ाज़त करता है।
8. ऐ रब्ब, बेदीन का लालच पूरा न कर। उस का इरादा काम्याब होने न दे, ऐसा न हो कि यह लोग सरफ़राज़ हो जाएँ। (सिलाह)
9. उन्हों ने मुझे घेर लिया है, लेकिन जो आफ़त उन के होंट मुझ पर लाना चाहते हैं वह उन के अपने सरों पर आए!
10. दहकते कोइले उन पर बरसें, और उन्हें आग में, अथाह गढ़ों में फैंका जाए ताकि आइन्दा कभी न उठें।
11. तुहमत लगाने वाला मुल्क में क़ाइम न रहे, और बुराई ज़ालिम को मार मार कर उस का पीछा करे।
12. मैं जानता हूँ कि रब्ब अदालत में मुसीबतज़दा का दिफ़ा करेगा। वही ज़रूरतमन्द का इन्साफ़ करेगा।
13. यक़ीनन रास्तबाज़ तेरे नाम की सिताइश करेंगे, और दियानतदार तेरे हुज़ूर बसेंगे।

  Psalms (140/150)