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1. | ज़ियारत का गीत। जब रब्ब ने सिय्यून को बहाल किया तो ऐसा लग रहा था कि हम ख़वाब देख रहे हैं। |
2. | तब हमारा मुँह हंसी-ख़ुशी से भर गया, और हमारी ज़बान शादमानी के नारे लगाने से रुक न सकी। तब दीगर क़ौमों में कहा गया, “रब्ब ने उन के लिए ज़बरदस्त काम किया है।” |
3. | रब्ब ने वाक़ई हमारे लिए ज़बरदस्त काम किया है। हम कितने ख़ुश थे, कितने ख़ुश! |
4. | ऐ रब्ब, हमें बहाल कर। जिस तरह मौसम-ए-बरसात में दश्त-ए-नजब के ख़ुश्क नाले पानी से भर जाते हैं उसी तरह हमें बहाल कर। |
5. | जो आँसू बहा बहा कर बीज बोएँ वह ख़ुशी के नारे लगा कर फ़सल काटेंगे। |
6. | वह रोते हुए बीज बोने के लिए निकलेंगे, लेकिन जब फ़सल पक जाए तो ख़ुशी के नारे लगा कर पूले उठाए अपने घर लौटेंगे। |
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