← Psalms (121/150) → |
1. | ज़ियारत का गीत। मैं अपनी आँखों को पहाड़ों की तरफ़ उठाता हूँ। मेरी मदद कहाँ से आती है? |
2. | मेरी मदद रब्ब से आती है, जो आस्मान-ओ-ज़मीन का ख़ालिक़ है। |
3. | वह तेरा पाँओ फिसलने नहीं देगा। तेरा मुहाफ़िज़ ऊँघने का नहीं। |
4. | यक़ीनन इस्राईल का मुहाफ़िज़ न ऊँघता है, न सोता है। |
5. | रब्ब तेरा मुहाफ़िज़ है, रब्ब तेरे दहने हाथ पर सायबान है। |
6. | न दिन को सूरज, न रात को चाँद तुझे ज़रर पहुँचाएगा। |
7. | रब्ब तुझे हर नुक़्सान से बचाएगा, वह तेरी जान को मह्फ़ूज़ रखेगा। |
8. | रब्ब अब से अबद तक तेरे आने जाने की पहरादारी करेगा। |
← Psalms (121/150) → |