Psalms (12/150)  

1. दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : शमीनीत। ऐ रब्ब, मदद फ़रमा! क्यूँकि ईमानदार ख़त्म हो गए हैं। दियानतदार इन्सानों में से मिट गए हैं।
2. आपस में सब झूट बोलते हैं। उन की ज़बान पर चिकनी-चुपड़ी बातें होती हैं जबकि दिल में कुछ और ही होता है।
3. रब्ब तमाम चिकनी-चुपड़ी और शेख़ीबाज़ ज़बानों को काट डाले!
4. वह उन सब को मिटा दे जो कहते हैं, “हम अपनी लाइक़ ज़बान के बाइस ताक़तवर हैं। हमारे होंट हमें सहारा देते हैं तो कौन हमारा मालिक होगा? कोई नहीं!”
5. लेकिन रब्ब फ़रमाता है, “नाचारों पर तुम्हारे ज़ुल्म की ख़बर और ज़रूरतमन्दों की कराहती आवाज़ें मेरे सामने आई हैं। अब मैं उठ कर उन्हें उन से छुटकारा दूँगा जो उन के ख़िलाफ़ फुंकारते हैं।”
6. रब्ब के फ़रमान पाक हैं, वह भट्टी में सात बार साफ़ की गई चाँदी की मानिन्द ख़ालिस हैं।
7. ऐ रब्ब, तू ही उन्हें मह्फ़ूज़ रखेगा, तू ही उन्हें अबद तक इस नसल से बचाए रखेगा,
8. गो बेदीन आज़ादी से इधर उधर फिरते हैं, और इन्सानों के दर्मियान कमीनापन का राज है।

  Psalms (12/150)