Psalms (119/150)  

1. मुबारक हैं वह जिन का चाल-चलन बेइल्ज़ाम है, जो रब्ब की शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं।
2. मुबारक हैं वह जो उस के अह्काम पर अमल करते और पूरे दिल से उस के तालिब रहते हैं,
3. जो बदी नहीं करते बल्कि उस की राहों पर चलते हैं।
4. तू ने हमें अपने अह्काम दिए हैं, और तू चाहता है कि हम हर लिहाज़ से उन के ताबे रहें।
5. काश मेरी राहें इतनी पुख़्ता हों कि मैं साबितक़दमी से तेरे अह्काम पर अमल करूँ!
6. तब मैं शर्मिन्दा नहीं हूँगा, क्यूँकि मेरी आँखें तेरे तमाम अह्काम पर लगी रहेंगी।
7. जितना मैं तेरे बा-इन्साफ़ फ़ैसलों के बारे में सीखूँगा उतना ही दियानतदार दिल से तेरी सिताइश करूँगा।
8. तेरे अह्काम पर मैं हर वक़्त अमल करूँगा। मुझे पूरी तरह तर्क न कर!
9. नौजवान अपनी राह को किस तरह पाक रखे? इस तरह कि तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारे।
10. मैं पूरे दिल से तेरा तालिब रहा हूँ। मुझे अपने अह्काम से भटकने न दे।
11. मैं ने तेरा कलाम अपने दिल में मह्फ़ूज़ रखा है ताकि तेरा गुनाह न करूँ।
12. ऐ रब्ब, तेरी हम्द हो! मुझे अपने अह्काम सिखा।
13. अपने होंटों से मैं दूसरों को तेरे मुँह की तमाम हिदायात सुनाता हूँ।
14. मैं तेरे अह्काम की राह से उतना लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ जितना कि हर तरह की दौलत से।
15. मैं तेरी हिदायात में महव-ए-ख़याल रहूँगा और तेरी राहों को तकता रहूँगा।
16. मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ और तेरा कलाम नहीं भूलता।
17. अपने ख़ादिम से भलाई कर ताकि मैं ज़िन्दा रहूँ और तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँ।
18. मेरी आँखों को खोल ताकि तेरी शरीअत के अजाइब देखूँ।
19. दुनिया में मैं परदेसी ही हूँ। अपने अह्काम मुझ से छुपाए न रख!
20. मेरी जान हर वक़्त तेरी हिदायात की आर्ज़ू करते करते निढाल हो रही है।
21. तू मग़रूरों को डाँटता है। उन पर लानत जो तेरे अह्काम से भटक जाते हैं!
22. मुझे लोगों की तौहीन और तह्क़ीर से रिहाई दे, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम के ताबे रहा हूँ।
23. गो बुज़ुर्ग मेरे ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधने के लिए बैठ गए हैं, तेरा ख़ादिम तेरे अह्काम में महव-ए-ख़याल रहता है।
24. तेरे अह्काम से ही मैं लुत्फ़ उठाता हूँ, वही मेरे मुशीर हैं।
25. मेरी जान ख़ाक में दब गई है। अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।
26. मैं ने अपनी राहें बयान कीं तो तू ने मेरी सुनी। मुझे अपने अह्काम सिखा।
27. मुझे अपने अह्काम की राह समझने के क़ाबिल बना ताकि तेरे अजाइब में महव-ए-ख़याल रहूँ।
28. मेरी जान दुख के मारे निढाल हो गई है। मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ तक़वियत दे।
29. फ़रेब की राह मुझ से दूर रख और मुझे अपनी शरीअत से नवाज़।
30. मैं ने वफ़ा की राह इख़तियार करके तेरे आईन अपने सामने रखे हैं।
31. मैं तेरे अह्काम से लिपटा रहता हूँ। ऐ रब्ब, मुझे शर्मिन्दा न होने दे।
32. मैं तेरे फ़रमानों की राह पर दौड़ता हूँ, क्यूँकि तू ने मेरे दिल को कुशादगी बख़्शी है।
33. ऐ रब्ब, मुझे अपने आईन की राह सिखा तो मैं उम्र भर उन पर अमल करूँगा।
34. मुझे समझ अता कर ताकि तेरी शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँ और पूरे दिल से उस के ताबे रहूँ।
35. अपने अह्काम की राह पर मेरी राहनुमाई कर, क्यूँकि यही मैं पसन्द करता हूँ।
36. मेरे दिल को लालच में आने न दे बल्कि उसे अपने फ़रमानों की तरफ़ माइल कर।
37. मेरी आँखों को बातिल चीज़ों से फेर ले, और मुझे अपनी राहों पर सँभाल कर मेरी जान को ताज़ादम कर।
38. जो वादा तू ने अपने ख़ादिम से किया वह पूरा कर ताकि लोग तेरा ख़ौफ़ मानें।
39. जिस रुस्वाई से मुझे ख़ौफ़ है उस का ख़त्रा दूर कर, क्यूँकि तेरे अह्काम अच्छे हैं।
40. मैं तेरी हिदायात का शदीद आर्ज़ूमन्द हूँ, अपनी रास्ती से मेरी जान को ताज़ादम कर।
41. ऐ रब्ब, तेरी शफ़्क़त और वह नजात जिस का वादा तू ने किया है मुझ तक पहुँचे
42. ताकि मैं बेइज़्ज़ती करने वाले को जवाब दे सकूँ। क्यूँकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ।
43. मेरे मुँह से सच्चाई का कलाम न छीन, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमानों के इन्तिज़ार में हूँ।
44. मैं हर वक़्त तेरी शरीअत की पैरवी करूँगा, अब से अबद तक उस में क़ाइम रहूँगा।
45. मैं खुले मैदान में चलता फिरूँगा, क्यूँकि तेरे आईन का तालिब रहता हूँ।
46. मैं शर्म किए बग़ैर बादशाहों के सामने तेरे अह्काम बयान करूँगा।
47. मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ, वह मुझे पियारे हैं।
48. मैं अपने हाथ तेरे फ़रमानों की तरफ़ उठाऊँगा, क्यूँकि वह मुझे पियारे हैं। मैं तेरी हिदायात में महव-ए-ख़याल रहूँगा।
49. उस बात का ख़याल रख जो तू ने अपने ख़ादिम से की और जिस से तू ने मुझे उम्मीद दिलाई है।
50. मुसीबत में यही तसल्ली का बाइस रहा है कि तेरा कलाम मेरी जान को ताज़ादम करता है।
51. मग़रूर मेरा हद्द से ज़ियादा मज़ाक़ उड़ाते हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से दूर नहीं होता।
52. ऐ रब्ब, मैं तेरे क़दीम फ़रमान याद करता हूँ तो मुझे तसल्ली मिलती है।
53. बेदीनों को देख कर मैं आग-बगूला हो जाता हूँ, क्यूँकि उन्हों ने तेरी शरीअत को तर्क किया है।
54. जिस घर में मैं परदेसी हूँ उस में मैं तेरे अह्काम के गीत गाता रहता हूँ।
55. ऐ रब्ब, रात को मैं तेरा नाम याद करता हूँ, तेरी शरीअत पर अमल करता रहता हूँ।
56. यह तेरी बख़्शिश है कि मैं तेरे आईन की पैरवी करता हूँ।
57. रब्ब मेरी मीरास है। मैं ने तेरे फ़रमानों पर अमल करने का वादा किया है।
58. मैं पूरे दिल से तेरी शफ़्क़त का तालिब रहा हूँ। अपने वादे के मुताबिक़ मुझ पर मेहरबानी कर।
59. मैं ने अपनी राहों पर ध्यान दे कर तेरे अह्काम की तरफ़ क़दम बढ़ाए हैं।
60. मैं नहीं झिजकता बल्कि भाग कर तेरे अह्काम पर अमल करने की कोशिश करता हूँ।
61. बेदीनों के रस्सों ने मुझे जकड़ लिया है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता।
62. आधी रात को मैं जाग उठता हूँ ताकि तेरे रास्त फ़रमानों के लिए तेरा शुक्र करूँ।
63. मैं उन सब का साथी हूँ जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं, उन सब का दोस्त जो तेरी हिदायात पर अमल करते हैं।
64. ऐ रब्ब, दुनिया तेरी शफ़्क़त से मामूर है। मुझे अपने अह्काम सिखा!
65. ऐ रब्ब, तू ने अपने कलाम के मुताबिक़ अपने ख़ादिम से भलाई की है।
66. मुझे सहीह इमतियाज़ और इर्फ़ान सिखा, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम पर ईमान रखता हूँ।
67. इस से पहले कि मुझे पस्त किया गया मैं आवारा फिरता था, लेकिन अब मैं तेरे कलाम के ताबे रहता हूँ।
68. तू भला है और भलाई करता है। मुझे अपने आईन सिखा!
69. मग़रूरों ने झूट बोल कर मुझ पर कीचड़ उछाली है, लेकिन मैं पूरे दिल से तेरी हिदायात की फ़रमाँबरदारी करता हूँ।
70. उन के दिल अकड़ कर बेहिस्स हो गए हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।
71. मेरे लिए अच्छा था कि मुझे पस्त किया गया, क्यूँकि इस तरह मैं ने तेरे अह्काम सीख लिए।
72. जो शरीअत तेरे मुँह से सादिर हुई है वह मुझे सोने-चाँदी के हज़ारों सिक्कों से ज़ियादा पसन्द है।
73. तेरे हाथों ने मुझे बना कर मज़्बूत बुन्याद पर रख दिया है। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि तेरे अह्काम सीख लूँ।
74. जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं वह मुझे देख कर ख़ुश हो जाएँ, क्यूँकि मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में रहता हूँ।
75. ऐ रब्ब, मैं ने जान लिया है कि तेरे फ़ैसले रास्त हैं। यह भी तेरी वफ़ादारी का इज़्हार है कि तू ने मुझे पस्त किया है।
76. तेरी शफ़्क़त मुझे तसल्ली दे, जिस तरह तू ने अपने ख़ादिम से वादा किया है।
77. मुझ पर अपने रहम का इज़्हार कर ताकि मेरी जान में जान आए, क्यूँकि मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।
78. जो मग़रूर मुझे झूट से पस्त कर रहे हैं वह शर्मिन्दा हो जाएँ। लेकिन मैं तेरे फ़रमानों में महव-ए-ख़याल रहूँगा।
79. काश जो तेरा ख़ौफ़ मानते और तेरे अह्काम जानते हैं वह मेरे पास वापस आएँ!
80. मेरा दिल तेरे आईन की पैरवी करने में बेइल्ज़ाम रहे ताकि मेरी रुस्वाई न हो जाए।
81. मेरी जान तेरी नजात की आर्ज़ू करते करते निढाल हो रही है, मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में हूँ।
82. मेरी आँखें तेरे वादे की राह देखते देखते धुन्दला रही हैं। तू मुझे कब तसल्ली देगा?
83. मैं धुएँ में सुकड़ी हुई मश्क की मानिन्द हूँ लेकिन तेरे फ़रमानों को नहीं भूलता।
84. तेरे ख़ादिम को मज़ीद कितनी देर इन्तिज़ार करना पड़ेगा? तू मेरा ताक़्क़ुब करने वालों की अदालत कब करेगा?
85. जो मग़रूर तेरी शरीअत के ताबे नहीं होते उन्हों ने मुझे फंसाने के लिए गढ़े खोद लिए हैं।
86. तेरे तमाम अह्काम पुरवफ़ा हैं। मेरी मदद कर, क्यूँकि वह झूट का सहारा ले कर मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं।
87. वह मुझे रू-ए-ज़मीन पर से मिटाने के क़रीब ही हैं, लेकिन मैं ने तेरे आईन को तर्क नहीं किया।
88. अपनी शफ़्क़त का इज़्हार करके मेरी जान को ताज़ादम कर ताकि तेरे मुँह के फ़रमानों पर अमल करूँ।
89. ऐ रब्ब, तेरा कलाम अबद तक आस्मान पर क़ाइम-ओ-दाइम है।
90. तेरी वफ़ादारी पुश्त-दर-पुश्त रहती है। तू ने ज़मीन की बुन्याद रखी, और वह वहीं की वहीं बरक़रार रहती है।
91. आज तक आस्मान-ओ-ज़मीन तेरे फ़रमानों को पूरा करने के लिए हाज़िर रहते हैं, क्यूँकि तमाम चीज़ें तेरी ख़िदमत करने के लिए बनाई गई हैं।
92. अगर तेरी शरीअत मेरी ख़ुशी न होती तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो गया होता।
93. मैं तेरी हिदायात कभी नहीं भूलूँगा, क्यूँकि उन ही के ज़रीए तू मेरी जान को ताज़ादम करता है।
94. मैं तेरा ही हूँ, मुझे बचा! क्यूँकि मैं तेरे अह्काम का तालिब रहा हूँ।
95. बेदीन मेरी ताक में बैठ गए हैं ताकि मुझे मार डालें, लेकिन मैं तेरे आईन पर ध्यान देता रहूँगा।
96. मैं ने देखा है कि हर कामिल चीज़ की हद्द होती है, लेकिन तेरे फ़रमान की कोई हद्द नहीं होती।
97. तेरी शरीअत मुझे कितनी पियारी है! दिन भर मैं उस में महव-ए-ख़याल रहता हूँ।
98. तेरा फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़ियादा दानिशमन्द बना देता है, क्यूँकि वह हमेशा तक मेरा ख़ज़ाना है।
99. मुझे अपने तमाम उस्तादों से ज़ियादा समझ हासिल है, क्यूँकि मैं तेरे आईन में महव-ए-ख़याल रहता हूँ।
100. मुझे बुज़ुर्गों से ज़ियादा समझ हासिल है, क्यूँकि मैं वफ़ादारी से तेरे अह्काम की पैरवी करता हूँ।
101. मैं ने हर बुरी राह पर क़दम रखने से गुरेज़ किया है ताकि तेरे कलाम से लिपटा रहूँ।
102. मैं तेरे फ़रमानों से दूर नहीं हुआ, क्यूँकि तू ही ने मुझे तालीम दी है।
103. तेरा कलाम कितना लज़ीज़ है, वह मेरे मुँह में शहद से ज़ियादा मीठा है।
104. तेरे अह्काम से मुझे समझ हासिल होती है, इस लिए मैं झूट की हर राह से नफ़रत करता हूँ।
105. तेरा कलाम मेरे पाँओ के लिए चराग़ है जो मेरी राह को रौशन करता है।
106. मैं ने क़सम खाई है कि तेरे रास्त फ़रमानों की पैरवी करूँगा, और मैं यह वादा पूरा भी करूँगा।
107. मुझे बहुत पस्त किया गया है। ऐ रब्ब, अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।
108. ऐ रब्ब, मेरे मुँह की रज़ाकाराना क़ुर्बानियों को पसन्द कर और मुझे अपने आईन सिखा!
109. मेरी जान हमेशा ख़त्रे में है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता।
110. बेदीनों ने मेरे लिए फंदा तय्यार कर रखा है, लेकिन मैं तेरे फ़रमानों से नहीं भटका।
111. तेरे अह्काम मेरी अबदी मीरास बन गए हैं, क्यूँकि उन से मेरा दिल ख़ुशी से उछलता है।
112. मैं ने अपना दिल तेरे अह्काम पर अमल करने की तरफ़ माइल किया है, क्यूँकि इस का अज्र अबदी है।
113. मैं दोदिलों से नफ़रत लेकिन तेरी शरीअत से मुहब्बत करता हूँ।
114. तू मेरी पनाहगाह और मेरी ढाल है, मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में रहता हूँ।
115. ऐ बदकारो, मुझ से दूर हो जाओ, क्यूँकि मैं अपने ख़ुदा के अह्काम से लिपटा रहूँगा।
116. अपने फ़रमान के मुताबिक़ मुझे सँभाल ताकि ज़िन्दा रहूँ। मेरी आस टूटने न दे ताकि शर्मिन्दा न हो जाऊँ।
117. मेरा सहारा बन ताकि बच कर हर वक़्त तेरे आईन का लिहाज़ रखूँ।
118. तू उन सब को रद्द करता है जो तेरे अह्काम से भटके फिरते हैं, क्यूँकि उन की धोकेबाज़ी फ़रेब ही है।
119. तू ज़मीन के तमाम बेदीनों को नापाक चाँदी से ख़ारिज की हुई मैल की तरह फैंक कर नेस्त कर देता है, इस लिए तेरे फ़रमान मुझे पियारे हैं।
120. मेरा जिस्म तुझ से दह्शत खा कर थरथराता है, और मैं तेरे फ़ैसलों से डरता हूँ।
121. मैं ने रास्त और बा-इन्साफ़ काम किया है, चुनाँचे मुझे उन के हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं।
122. अपने ख़ादिम की ख़ुशहाली का ज़ामिन बन कर मग़रूरों को मुझ पर ज़ुल्म करने न दे।
123. मेरी आँखें तेरी नजात और तेरे रास्त वादे की राह देखते देखते रह गई हैं।
124. अपने ख़ादिम से तेरा सुलूक तेरी शफ़्क़त के मुताबिक़ हो। मुझे अपने अह्काम सिखा।
125. मैं तेरा ही ख़ादिम हूँ। मुझे फ़हम अता फ़रमा ताकि तेरे आईन की पूरी समझ आए।
126. अब वक़्त आ गया है कि रब्ब क़दम उठाए, क्यूँकि लोगों ने तेरी शरीअत को तोड़ डाला है।
127. इस लिए मैं तेरे अह्काम को सोने बल्कि ख़ालिस सोने से ज़ियादा पियार करता हूँ।
128. इस लिए मैं एहतियात से तेरे तमाम आईन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता हूँ। मैं हर फ़रेबदिह राह से नफ़रत करता हूँ।
129. तेरे अह्काम ताज्जुबअंगेज़ हैं, इस लिए मेरी जान उन पर अमल करती है।
130. तेरे कलाम का इन्किशाफ़ रौशनी बख़्शता और सादालौह को समझ अता करता है।
131. मैं तेरे फ़रमानों के लिए इतना पियासा हूँ कि मुँह खोल कर हाँप रहा हूँ।
132. मेरी तरफ़ रुजू फ़रमा और मुझ पर वही मेहरबानी कर जो तू उन सब पर करता है जो तेरे नाम से पियार करते हैं।
133. अपने कलाम से मेरे क़दम मज़्बूत कर, किसी भी गुनाह को मुझ पर हुकूमत न करने दे।
134. फ़िद्या दे कर मुझे इन्सान के ज़ुल्म से छुटकारा दे ताकि मैं तेरे अह्काम के ताबे रहूँ।
135. अपने चिहरे का नूर अपने ख़ादिम पर चमका और मुझे अपने अह्काम सिखा।
136. मेरी आँखों से आँसूओं की नदियाँ बह रही हैं, क्यूँकि लोग तेरी शरीअत के ताबे नहीं रहते।
137. ऐ रब्ब, तू रास्त है, और तेरे फ़ैसले दुरुस्त हैं।
138. तू ने रास्ती और बड़ी वफ़ादारी के साथ अपने फ़रमान जारी किए हैं।
139. मेरी जान ग़ैरत के बाइस तबाह हो गई है, क्यूँकि मेरे दुश्मन तेरे फ़रमान भूल गए हैं।
140. तेरा कलाम आज़्मा कर पाक-साफ़ साबित हुआ है, तेरा ख़ादिम उसे पियार करता है।
141. मुझे ज़लील और हक़ीर जाना जाता है, लेकिन मैं तेरे आईन नहीं भूलता।
142. तेरी रास्ती अबदी है, और तेरी शरीअत सच्चाई है।
143. मुसीबत और परेशानी मुझ पर ग़ालिब आ गई हैं, लेकिन मैं तेरे अह्काम से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।
144. तेरे अह्काम अबद तक रास्त हैं। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि मैं जीता रहूँ।
145. मैं पूरे दिल से पुकारता हूँ, “ऐ रब्ब, मेरी सुन! मैं तेरे आईन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँगा।”
146. मैं पुकारता हूँ, “मुझे बचा! मैं तेरे अह्काम की पैरवी करूँगा।”
147. पौ फटने से पहले पहले मैं उठ कर मदद के लिए पुकारता हूँ। मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में हूँ।
148. रात के वक़्त ही मेरी आँखें खुल जाती हैं ताकि तेरे कलाम पर ग़ौर-ओ-ख़ौज़ करूँ।
149. अपनी शफ़्क़त के मुताबिक़ मेरी आवाज़ सुन! ऐ रब्ब, अपने फ़रमानों के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।
150. जो चालाकी से मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं वह क़रीब पहुँच गए हैं। लेकिन वह तेरी शरीअत से इन्तिहाई दूर हैं।
151. ऐ रब्ब, तू क़रीब ही है, और तेरे अह्काम सच्चाई हैं।
152. बड़ी देर पहले मुझे तेरे फ़रमानों से मालूम हुआ है कि तू ने उन्हें हमेशा के लिए क़ाइम रखा है।
153. मेरी मुसीबत का ख़याल करके मुझे बचा! क्यूँकि मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता।
154. अदालत में मेरे हक़ में लड़ कर मेरा इवज़ाना दे ताकि मेरी जान छूट जाए। अपने वादे के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।
155. नजात बेदीनों से बहुत दूर है, क्यूँकि वह तेरे अह्काम के तालिब नहीं होते।
156. ऐ रब्ब, तू मुतअद्दिद तरीक़ों से अपने रहम का इज़्हार करता है। अपने आईन के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।
157. मेरा ताक़्क़ुब करने वालों और मेरे दुश्मनों की बड़ी तादाद है, लेकिन मैं तेरे अह्काम से दूर नहीं हुआ।
158. बेवफ़ाओं को देख कर मुझे घिन आती है, क्यूँकि वह तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी नहीं गुज़ारते।
159. देख, मुझे तेरे अह्काम से पियार है। ऐ रब्ब, अपनी शफ़्क़त के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।
160. तेरे कलाम का लुब्ब-ए-लुबाब सच्चाई है, तेरे तमाम रास्त फ़रमान अबद तक क़ाइम हैं।
161. सरदार बिलावजह मेरा पीछा करते हैं, लेकिन मेरा दिल तेरे कलाम से ही डरता है।
162. मैं तेरे कलाम की ख़ुशी उस की तरह मनाता हूँ जिसे कस्रत का माल-ए-ग़नीमत मिल गया हो।
163. मैं झूट से नफ़रत करता बल्कि घिन खाता हूँ, लेकिन तेरी शरीअत मुझे पियारी है।
164. मैं दिन में सात बार तेरी सिताइश करता हूँ, क्यूँकि तेरे अह्काम रास्त हैं।
165. जिन्हें शरीअत पियारी है उन्हें बड़ा सुकून हासिल है, वह किसी भी चीज़ से ठोकर खा कर नहीं गिरेंगे।
166. ऐ रब्ब, मैं तेरी नजात के इन्तिज़ार में रहते हुए तेरे अह्काम की पैरवी करता हूँ।
167. मेरी जान तेरे फ़रमानों से लिपटी रहती है, वह उसे निहायत पियारे हैं।
168. मैं तेरे आईन और हिदायात की पैरवी करता हूँ, क्यूँकि मेरी तमाम राहें तेरे सामने हैं।
169. ऐ रब्ब, मेरी आहें तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ समझ अता फ़रमा।
170. मेरी इल्तिजाएँ तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ छुड़ा!
171. मेरे होंटों से हम्द-ओ-सना फूट निकले, क्यूँकि तू मुझे अपने अह्काम सिखाता है।
172. मेरी ज़बान तेरे कलाम की मद्हसराई करे, क्यूँकि तेरे तमाम फ़रमान रास्त हैं।
173. तेरा हाथ मेरी मदद करने के लिए तय्यार रहे, क्यूँकि मैं ने तेरे अह्काम इख़तियार किए हैं।
174. ऐ रब्ब, मैं तेरी नजात का आर्ज़ूमन्द हूँ, तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।
175. मेरी जान ज़िन्दा रहे ताकि तेरी सिताइश कर सके। तेरे आईन मेरी मदद करें।
176. मैं भटकी हुई भेड़ की तरह आवारा फिर रहा हूँ। अपने ख़ादिम को तलाश कर, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम नहीं भूलता।

  Psalms (119/150)