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1. | मुबारक हैं वह जिन का चाल-चलन बेइल्ज़ाम है, जो रब्ब की शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं। |
2. | मुबारक हैं वह जो उस के अह्काम पर अमल करते और पूरे दिल से उस के तालिब रहते हैं, |
3. | जो बदी नहीं करते बल्कि उस की राहों पर चलते हैं। |
4. | तू ने हमें अपने अह्काम दिए हैं, और तू चाहता है कि हम हर लिहाज़ से उन के ताबे रहें। |
5. | काश मेरी राहें इतनी पुख़्ता हों कि मैं साबितक़दमी से तेरे अह्काम पर अमल करूँ! |
6. | तब मैं शर्मिन्दा नहीं हूँगा, क्यूँकि मेरी आँखें तेरे तमाम अह्काम पर लगी रहेंगी। |
7. | जितना मैं तेरे बा-इन्साफ़ फ़ैसलों के बारे में सीखूँगा उतना ही दियानतदार दिल से तेरी सिताइश करूँगा। |
8. | तेरे अह्काम पर मैं हर वक़्त अमल करूँगा। मुझे पूरी तरह तर्क न कर! |
9. | नौजवान अपनी राह को किस तरह पाक रखे? इस तरह कि तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारे। |
10. | मैं पूरे दिल से तेरा तालिब रहा हूँ। मुझे अपने अह्काम से भटकने न दे। |
11. | मैं ने तेरा कलाम अपने दिल में मह्फ़ूज़ रखा है ताकि तेरा गुनाह न करूँ। |
12. | ऐ रब्ब, तेरी हम्द हो! मुझे अपने अह्काम सिखा। |
13. | अपने होंटों से मैं दूसरों को तेरे मुँह की तमाम हिदायात सुनाता हूँ। |
14. | मैं तेरे अह्काम की राह से उतना लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ जितना कि हर तरह की दौलत से। |
15. | मैं तेरी हिदायात में महव-ए-ख़याल रहूँगा और तेरी राहों को तकता रहूँगा। |
16. | मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ और तेरा कलाम नहीं भूलता। |
17. | अपने ख़ादिम से भलाई कर ताकि मैं ज़िन्दा रहूँ और तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँ। |
18. | मेरी आँखों को खोल ताकि तेरी शरीअत के अजाइब देखूँ। |
19. | दुनिया में मैं परदेसी ही हूँ। अपने अह्काम मुझ से छुपाए न रख! |
20. | मेरी जान हर वक़्त तेरी हिदायात की आर्ज़ू करते करते निढाल हो रही है। |
21. | तू मग़रूरों को डाँटता है। उन पर लानत जो तेरे अह्काम से भटक जाते हैं! |
22. | मुझे लोगों की तौहीन और तह्क़ीर से रिहाई दे, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम के ताबे रहा हूँ। |
23. | गो बुज़ुर्ग मेरे ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधने के लिए बैठ गए हैं, तेरा ख़ादिम तेरे अह्काम में महव-ए-ख़याल रहता है। |
24. | तेरे अह्काम से ही मैं लुत्फ़ उठाता हूँ, वही मेरे मुशीर हैं। |
25. | मेरी जान ख़ाक में दब गई है। अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। |
26. | मैं ने अपनी राहें बयान कीं तो तू ने मेरी सुनी। मुझे अपने अह्काम सिखा। |
27. | मुझे अपने अह्काम की राह समझने के क़ाबिल बना ताकि तेरे अजाइब में महव-ए-ख़याल रहूँ। |
28. | मेरी जान दुख के मारे निढाल हो गई है। मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ तक़वियत दे। |
29. | फ़रेब की राह मुझ से दूर रख और मुझे अपनी शरीअत से नवाज़। |
30. | मैं ने वफ़ा की राह इख़तियार करके तेरे आईन अपने सामने रखे हैं। |
31. | मैं तेरे अह्काम से लिपटा रहता हूँ। ऐ रब्ब, मुझे शर्मिन्दा न होने दे। |
32. | मैं तेरे फ़रमानों की राह पर दौड़ता हूँ, क्यूँकि तू ने मेरे दिल को कुशादगी बख़्शी है। |
33. | ऐ रब्ब, मुझे अपने आईन की राह सिखा तो मैं उम्र भर उन पर अमल करूँगा। |
34. | मुझे समझ अता कर ताकि तेरी शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँ और पूरे दिल से उस के ताबे रहूँ। |
35. | अपने अह्काम की राह पर मेरी राहनुमाई कर, क्यूँकि यही मैं पसन्द करता हूँ। |
36. | मेरे दिल को लालच में आने न दे बल्कि उसे अपने फ़रमानों की तरफ़ माइल कर। |
37. | मेरी आँखों को बातिल चीज़ों से फेर ले, और मुझे अपनी राहों पर सँभाल कर मेरी जान को ताज़ादम कर। |
38. | जो वादा तू ने अपने ख़ादिम से किया वह पूरा कर ताकि लोग तेरा ख़ौफ़ मानें। |
39. | जिस रुस्वाई से मुझे ख़ौफ़ है उस का ख़त्रा दूर कर, क्यूँकि तेरे अह्काम अच्छे हैं। |
40. | मैं तेरी हिदायात का शदीद आर्ज़ूमन्द हूँ, अपनी रास्ती से मेरी जान को ताज़ादम कर। |
41. | ऐ रब्ब, तेरी शफ़्क़त और वह नजात जिस का वादा तू ने किया है मुझ तक पहुँचे |
42. | ताकि मैं बेइज़्ज़ती करने वाले को जवाब दे सकूँ। क्यूँकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ। |
43. | मेरे मुँह से सच्चाई का कलाम न छीन, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमानों के इन्तिज़ार में हूँ। |
44. | मैं हर वक़्त तेरी शरीअत की पैरवी करूँगा, अब से अबद तक उस में क़ाइम रहूँगा। |
45. | मैं खुले मैदान में चलता फिरूँगा, क्यूँकि तेरे आईन का तालिब रहता हूँ। |
46. | मैं शर्म किए बग़ैर बादशाहों के सामने तेरे अह्काम बयान करूँगा। |
47. | मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ, वह मुझे पियारे हैं। |
48. | मैं अपने हाथ तेरे फ़रमानों की तरफ़ उठाऊँगा, क्यूँकि वह मुझे पियारे हैं। मैं तेरी हिदायात में महव-ए-ख़याल रहूँगा। |
49. | उस बात का ख़याल रख जो तू ने अपने ख़ादिम से की और जिस से तू ने मुझे उम्मीद दिलाई है। |
50. | मुसीबत में यही तसल्ली का बाइस रहा है कि तेरा कलाम मेरी जान को ताज़ादम करता है। |
51. | मग़रूर मेरा हद्द से ज़ियादा मज़ाक़ उड़ाते हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से दूर नहीं होता। |
52. | ऐ रब्ब, मैं तेरे क़दीम फ़रमान याद करता हूँ तो मुझे तसल्ली मिलती है। |
53. | बेदीनों को देख कर मैं आग-बगूला हो जाता हूँ, क्यूँकि उन्हों ने तेरी शरीअत को तर्क किया है। |
54. | जिस घर में मैं परदेसी हूँ उस में मैं तेरे अह्काम के गीत गाता रहता हूँ। |
55. | ऐ रब्ब, रात को मैं तेरा नाम याद करता हूँ, तेरी शरीअत पर अमल करता रहता हूँ। |
56. | यह तेरी बख़्शिश है कि मैं तेरे आईन की पैरवी करता हूँ। |
57. | रब्ब मेरी मीरास है। मैं ने तेरे फ़रमानों पर अमल करने का वादा किया है। |
58. | मैं पूरे दिल से तेरी शफ़्क़त का तालिब रहा हूँ। अपने वादे के मुताबिक़ मुझ पर मेहरबानी कर। |
59. | मैं ने अपनी राहों पर ध्यान दे कर तेरे अह्काम की तरफ़ क़दम बढ़ाए हैं। |
60. | मैं नहीं झिजकता बल्कि भाग कर तेरे अह्काम पर अमल करने की कोशिश करता हूँ। |
61. | बेदीनों के रस्सों ने मुझे जकड़ लिया है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता। |
62. | आधी रात को मैं जाग उठता हूँ ताकि तेरे रास्त फ़रमानों के लिए तेरा शुक्र करूँ। |
63. | मैं उन सब का साथी हूँ जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं, उन सब का दोस्त जो तेरी हिदायात पर अमल करते हैं। |
64. | ऐ रब्ब, दुनिया तेरी शफ़्क़त से मामूर है। मुझे अपने अह्काम सिखा! |
65. | ऐ रब्ब, तू ने अपने कलाम के मुताबिक़ अपने ख़ादिम से भलाई की है। |
66. | मुझे सहीह इमतियाज़ और इर्फ़ान सिखा, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम पर ईमान रखता हूँ। |
67. | इस से पहले कि मुझे पस्त किया गया मैं आवारा फिरता था, लेकिन अब मैं तेरे कलाम के ताबे रहता हूँ। |
68. | तू भला है और भलाई करता है। मुझे अपने आईन सिखा! |
69. | मग़रूरों ने झूट बोल कर मुझ पर कीचड़ उछाली है, लेकिन मैं पूरे दिल से तेरी हिदायात की फ़रमाँबरदारी करता हूँ। |
70. | उन के दिल अकड़ कर बेहिस्स हो गए हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ। |
71. | मेरे लिए अच्छा था कि मुझे पस्त किया गया, क्यूँकि इस तरह मैं ने तेरे अह्काम सीख लिए। |
72. | जो शरीअत तेरे मुँह से सादिर हुई है वह मुझे सोने-चाँदी के हज़ारों सिक्कों से ज़ियादा पसन्द है। |
73. | तेरे हाथों ने मुझे बना कर मज़्बूत बुन्याद पर रख दिया है। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि तेरे अह्काम सीख लूँ। |
74. | जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं वह मुझे देख कर ख़ुश हो जाएँ, क्यूँकि मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में रहता हूँ। |
75. | ऐ रब्ब, मैं ने जान लिया है कि तेरे फ़ैसले रास्त हैं। यह भी तेरी वफ़ादारी का इज़्हार है कि तू ने मुझे पस्त किया है। |
76. | तेरी शफ़्क़त मुझे तसल्ली दे, जिस तरह तू ने अपने ख़ादिम से वादा किया है। |
77. | मुझ पर अपने रहम का इज़्हार कर ताकि मेरी जान में जान आए, क्यूँकि मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ। |
78. | जो मग़रूर मुझे झूट से पस्त कर रहे हैं वह शर्मिन्दा हो जाएँ। लेकिन मैं तेरे फ़रमानों में महव-ए-ख़याल रहूँगा। |
79. | काश जो तेरा ख़ौफ़ मानते और तेरे अह्काम जानते हैं वह मेरे पास वापस आएँ! |
80. | मेरा दिल तेरे आईन की पैरवी करने में बेइल्ज़ाम रहे ताकि मेरी रुस्वाई न हो जाए। |
81. | मेरी जान तेरी नजात की आर्ज़ू करते करते निढाल हो रही है, मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में हूँ। |
82. | मेरी आँखें तेरे वादे की राह देखते देखते धुन्दला रही हैं। तू मुझे कब तसल्ली देगा? |
83. | मैं धुएँ में सुकड़ी हुई मश्क की मानिन्द हूँ लेकिन तेरे फ़रमानों को नहीं भूलता। |
84. | तेरे ख़ादिम को मज़ीद कितनी देर इन्तिज़ार करना पड़ेगा? तू मेरा ताक़्क़ुब करने वालों की अदालत कब करेगा? |
85. | जो मग़रूर तेरी शरीअत के ताबे नहीं होते उन्हों ने मुझे फंसाने के लिए गढ़े खोद लिए हैं। |
86. | तेरे तमाम अह्काम पुरवफ़ा हैं। मेरी मदद कर, क्यूँकि वह झूट का सहारा ले कर मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं। |
87. | वह मुझे रू-ए-ज़मीन पर से मिटाने के क़रीब ही हैं, लेकिन मैं ने तेरे आईन को तर्क नहीं किया। |
88. | अपनी शफ़्क़त का इज़्हार करके मेरी जान को ताज़ादम कर ताकि तेरे मुँह के फ़रमानों पर अमल करूँ। |
89. | ऐ रब्ब, तेरा कलाम अबद तक आस्मान पर क़ाइम-ओ-दाइम है। |
90. | तेरी वफ़ादारी पुश्त-दर-पुश्त रहती है। तू ने ज़मीन की बुन्याद रखी, और वह वहीं की वहीं बरक़रार रहती है। |
91. | आज तक आस्मान-ओ-ज़मीन तेरे फ़रमानों को पूरा करने के लिए हाज़िर रहते हैं, क्यूँकि तमाम चीज़ें तेरी ख़िदमत करने के लिए बनाई गई हैं। |
92. | अगर तेरी शरीअत मेरी ख़ुशी न होती तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो गया होता। |
93. | मैं तेरी हिदायात कभी नहीं भूलूँगा, क्यूँकि उन ही के ज़रीए तू मेरी जान को ताज़ादम करता है। |
94. | मैं तेरा ही हूँ, मुझे बचा! क्यूँकि मैं तेरे अह्काम का तालिब रहा हूँ। |
95. | बेदीन मेरी ताक में बैठ गए हैं ताकि मुझे मार डालें, लेकिन मैं तेरे आईन पर ध्यान देता रहूँगा। |
96. | मैं ने देखा है कि हर कामिल चीज़ की हद्द होती है, लेकिन तेरे फ़रमान की कोई हद्द नहीं होती। |
97. | तेरी शरीअत मुझे कितनी पियारी है! दिन भर मैं उस में महव-ए-ख़याल रहता हूँ। |
98. | तेरा फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़ियादा दानिशमन्द बना देता है, क्यूँकि वह हमेशा तक मेरा ख़ज़ाना है। |
99. | मुझे अपने तमाम उस्तादों से ज़ियादा समझ हासिल है, क्यूँकि मैं तेरे आईन में महव-ए-ख़याल रहता हूँ। |
100. | मुझे बुज़ुर्गों से ज़ियादा समझ हासिल है, क्यूँकि मैं वफ़ादारी से तेरे अह्काम की पैरवी करता हूँ। |
101. | मैं ने हर बुरी राह पर क़दम रखने से गुरेज़ किया है ताकि तेरे कलाम से लिपटा रहूँ। |
102. | मैं तेरे फ़रमानों से दूर नहीं हुआ, क्यूँकि तू ही ने मुझे तालीम दी है। |
103. | तेरा कलाम कितना लज़ीज़ है, वह मेरे मुँह में शहद से ज़ियादा मीठा है। |
104. | तेरे अह्काम से मुझे समझ हासिल होती है, इस लिए मैं झूट की हर राह से नफ़रत करता हूँ। |
105. | तेरा कलाम मेरे पाँओ के लिए चराग़ है जो मेरी राह को रौशन करता है। |
106. | मैं ने क़सम खाई है कि तेरे रास्त फ़रमानों की पैरवी करूँगा, और मैं यह वादा पूरा भी करूँगा। |
107. | मुझे बहुत पस्त किया गया है। ऐ रब्ब, अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। |
108. | ऐ रब्ब, मेरे मुँह की रज़ाकाराना क़ुर्बानियों को पसन्द कर और मुझे अपने आईन सिखा! |
109. | मेरी जान हमेशा ख़त्रे में है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता। |
110. | बेदीनों ने मेरे लिए फंदा तय्यार कर रखा है, लेकिन मैं तेरे फ़रमानों से नहीं भटका। |
111. | तेरे अह्काम मेरी अबदी मीरास बन गए हैं, क्यूँकि उन से मेरा दिल ख़ुशी से उछलता है। |
112. | मैं ने अपना दिल तेरे अह्काम पर अमल करने की तरफ़ माइल किया है, क्यूँकि इस का अज्र अबदी है। |
113. | मैं दोदिलों से नफ़रत लेकिन तेरी शरीअत से मुहब्बत करता हूँ। |
114. | तू मेरी पनाहगाह और मेरी ढाल है, मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में रहता हूँ। |
115. | ऐ बदकारो, मुझ से दूर हो जाओ, क्यूँकि मैं अपने ख़ुदा के अह्काम से लिपटा रहूँगा। |
116. | अपने फ़रमान के मुताबिक़ मुझे सँभाल ताकि ज़िन्दा रहूँ। मेरी आस टूटने न दे ताकि शर्मिन्दा न हो जाऊँ। |
117. | मेरा सहारा बन ताकि बच कर हर वक़्त तेरे आईन का लिहाज़ रखूँ। |
118. | तू उन सब को रद्द करता है जो तेरे अह्काम से भटके फिरते हैं, क्यूँकि उन की धोकेबाज़ी फ़रेब ही है। |
119. | तू ज़मीन के तमाम बेदीनों को नापाक चाँदी से ख़ारिज की हुई मैल की तरह फैंक कर नेस्त कर देता है, इस लिए तेरे फ़रमान मुझे पियारे हैं। |
120. | मेरा जिस्म तुझ से दह्शत खा कर थरथराता है, और मैं तेरे फ़ैसलों से डरता हूँ। |
121. | मैं ने रास्त और बा-इन्साफ़ काम किया है, चुनाँचे मुझे उन के हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं। |
122. | अपने ख़ादिम की ख़ुशहाली का ज़ामिन बन कर मग़रूरों को मुझ पर ज़ुल्म करने न दे। |
123. | मेरी आँखें तेरी नजात और तेरे रास्त वादे की राह देखते देखते रह गई हैं। |
124. | अपने ख़ादिम से तेरा सुलूक तेरी शफ़्क़त के मुताबिक़ हो। मुझे अपने अह्काम सिखा। |
125. | मैं तेरा ही ख़ादिम हूँ। मुझे फ़हम अता फ़रमा ताकि तेरे आईन की पूरी समझ आए। |
126. | अब वक़्त आ गया है कि रब्ब क़दम उठाए, क्यूँकि लोगों ने तेरी शरीअत को तोड़ डाला है। |
127. | इस लिए मैं तेरे अह्काम को सोने बल्कि ख़ालिस सोने से ज़ियादा पियार करता हूँ। |
128. | इस लिए मैं एहतियात से तेरे तमाम आईन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता हूँ। मैं हर फ़रेबदिह राह से नफ़रत करता हूँ। |
129. | तेरे अह्काम ताज्जुबअंगेज़ हैं, इस लिए मेरी जान उन पर अमल करती है। |
130. | तेरे कलाम का इन्किशाफ़ रौशनी बख़्शता और सादालौह को समझ अता करता है। |
131. | मैं तेरे फ़रमानों के लिए इतना पियासा हूँ कि मुँह खोल कर हाँप रहा हूँ। |
132. | मेरी तरफ़ रुजू फ़रमा और मुझ पर वही मेहरबानी कर जो तू उन सब पर करता है जो तेरे नाम से पियार करते हैं। |
133. | अपने कलाम से मेरे क़दम मज़्बूत कर, किसी भी गुनाह को मुझ पर हुकूमत न करने दे। |
134. | फ़िद्या दे कर मुझे इन्सान के ज़ुल्म से छुटकारा दे ताकि मैं तेरे अह्काम के ताबे रहूँ। |
135. | अपने चिहरे का नूर अपने ख़ादिम पर चमका और मुझे अपने अह्काम सिखा। |
136. | मेरी आँखों से आँसूओं की नदियाँ बह रही हैं, क्यूँकि लोग तेरी शरीअत के ताबे नहीं रहते। |
137. | ऐ रब्ब, तू रास्त है, और तेरे फ़ैसले दुरुस्त हैं। |
138. | तू ने रास्ती और बड़ी वफ़ादारी के साथ अपने फ़रमान जारी किए हैं। |
139. | मेरी जान ग़ैरत के बाइस तबाह हो गई है, क्यूँकि मेरे दुश्मन तेरे फ़रमान भूल गए हैं। |
140. | तेरा कलाम आज़्मा कर पाक-साफ़ साबित हुआ है, तेरा ख़ादिम उसे पियार करता है। |
141. | मुझे ज़लील और हक़ीर जाना जाता है, लेकिन मैं तेरे आईन नहीं भूलता। |
142. | तेरी रास्ती अबदी है, और तेरी शरीअत सच्चाई है। |
143. | मुसीबत और परेशानी मुझ पर ग़ालिब आ गई हैं, लेकिन मैं तेरे अह्काम से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ। |
144. | तेरे अह्काम अबद तक रास्त हैं। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि मैं जीता रहूँ। |
145. | मैं पूरे दिल से पुकारता हूँ, “ऐ रब्ब, मेरी सुन! मैं तेरे आईन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँगा।” |
146. | मैं पुकारता हूँ, “मुझे बचा! मैं तेरे अह्काम की पैरवी करूँगा।” |
147. | पौ फटने से पहले पहले मैं उठ कर मदद के लिए पुकारता हूँ। मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में हूँ। |
148. | रात के वक़्त ही मेरी आँखें खुल जाती हैं ताकि तेरे कलाम पर ग़ौर-ओ-ख़ौज़ करूँ। |
149. | अपनी शफ़्क़त के मुताबिक़ मेरी आवाज़ सुन! ऐ रब्ब, अपने फ़रमानों के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। |
150. | जो चालाकी से मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं वह क़रीब पहुँच गए हैं। लेकिन वह तेरी शरीअत से इन्तिहाई दूर हैं। |
151. | ऐ रब्ब, तू क़रीब ही है, और तेरे अह्काम सच्चाई हैं। |
152. | बड़ी देर पहले मुझे तेरे फ़रमानों से मालूम हुआ है कि तू ने उन्हें हमेशा के लिए क़ाइम रखा है। |
153. | मेरी मुसीबत का ख़याल करके मुझे बचा! क्यूँकि मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता। |
154. | अदालत में मेरे हक़ में लड़ कर मेरा इवज़ाना दे ताकि मेरी जान छूट जाए। अपने वादे के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। |
155. | नजात बेदीनों से बहुत दूर है, क्यूँकि वह तेरे अह्काम के तालिब नहीं होते। |
156. | ऐ रब्ब, तू मुतअद्दिद तरीक़ों से अपने रहम का इज़्हार करता है। अपने आईन के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। |
157. | मेरा ताक़्क़ुब करने वालों और मेरे दुश्मनों की बड़ी तादाद है, लेकिन मैं तेरे अह्काम से दूर नहीं हुआ। |
158. | बेवफ़ाओं को देख कर मुझे घिन आती है, क्यूँकि वह तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी नहीं गुज़ारते। |
159. | देख, मुझे तेरे अह्काम से पियार है। ऐ रब्ब, अपनी शफ़्क़त के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर। |
160. | तेरे कलाम का लुब्ब-ए-लुबाब सच्चाई है, तेरे तमाम रास्त फ़रमान अबद तक क़ाइम हैं। |
161. | सरदार बिलावजह मेरा पीछा करते हैं, लेकिन मेरा दिल तेरे कलाम से ही डरता है। |
162. | मैं तेरे कलाम की ख़ुशी उस की तरह मनाता हूँ जिसे कस्रत का माल-ए-ग़नीमत मिल गया हो। |
163. | मैं झूट से नफ़रत करता बल्कि घिन खाता हूँ, लेकिन तेरी शरीअत मुझे पियारी है। |
164. | मैं दिन में सात बार तेरी सिताइश करता हूँ, क्यूँकि तेरे अह्काम रास्त हैं। |
165. | जिन्हें शरीअत पियारी है उन्हें बड़ा सुकून हासिल है, वह किसी भी चीज़ से ठोकर खा कर नहीं गिरेंगे। |
166. | ऐ रब्ब, मैं तेरी नजात के इन्तिज़ार में रहते हुए तेरे अह्काम की पैरवी करता हूँ। |
167. | मेरी जान तेरे फ़रमानों से लिपटी रहती है, वह उसे निहायत पियारे हैं। |
168. | मैं तेरे आईन और हिदायात की पैरवी करता हूँ, क्यूँकि मेरी तमाम राहें तेरे सामने हैं। |
169. | ऐ रब्ब, मेरी आहें तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ समझ अता फ़रमा। |
170. | मेरी इल्तिजाएँ तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ छुड़ा! |
171. | मेरे होंटों से हम्द-ओ-सना फूट निकले, क्यूँकि तू मुझे अपने अह्काम सिखाता है। |
172. | मेरी ज़बान तेरे कलाम की मद्हसराई करे, क्यूँकि तेरे तमाम फ़रमान रास्त हैं। |
173. | तेरा हाथ मेरी मदद करने के लिए तय्यार रहे, क्यूँकि मैं ने तेरे अह्काम इख़तियार किए हैं। |
174. | ऐ रब्ब, मैं तेरी नजात का आर्ज़ूमन्द हूँ, तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ। |
175. | मेरी जान ज़िन्दा रहे ताकि तेरी सिताइश कर सके। तेरे आईन मेरी मदद करें। |
176. | मैं भटकी हुई भेड़ की तरह आवारा फिर रहा हूँ। अपने ख़ादिम को तलाश कर, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम नहीं भूलता। |
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