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1. | मैं रब्ब से मुहब्बत रखता हूँ, क्यूँकि उस ने मेरी आवाज़ और मेरी इल्तिजा सुनी है। |
2. | उस ने अपना कान मेरी तरफ़ झुकाया है, इस लिए मैं उम्र भर उसे पुकारूँगा। |
3. | मौत ने मुझे अपनी ज़न्जीरों में जकड़ लिया, और पाताल की परेशानियाँ मुझ पर ग़ालिब आईं। मैं मुसीबत और दुख में फंस गया। |
4. | तब मैं ने रब्ब का नाम पुकारा, “ऐ रब्ब, मेहरबानी करके मुझे बचा!” |
5. | रब्ब मेहरबान और रास्त है, हमारा ख़ुदा रहीम है। |
6. | रब्ब सादा लोगों की हिफ़ाज़त करता है। जब मैं पस्तहाल था तो उस ने मुझे बचाया। |
7. | ऐ मेरी जान, अपनी आरामगाह के पास वापस आ, क्यूँकि रब्ब ने तेरे साथ भलाई की है। |
8. | क्यूँकि ऐ रब्ब, तू ने मेरी जान को मौत से, मेरी आँखों को आँसू बहाने से और मेरे पाँओ को फिसलने से बचाया है। |
9. | अब मैं ज़िन्दों की ज़मीन में रह कर रब्ब के हुज़ूर चलूँगा। |
10. | मैं ईमान लाया और इस लिए बोला, “मैं शदीद मुसीबत में फंस गया हूँ।” |
11. | मैं सख़्त घबरा गया और बोला, “तमाम इन्सान दरोग़गो हैं।” |
12. | जो भलाइयाँ रब्ब ने मेरे साथ की हैं उन सब के इवज़ मैं क्या दूँ? |
13. | मैं नजात का पियाला उठा कर रब्ब का नाम पुकारूँगा। |
14. | मैं रब्ब के हुज़ूर उस की सारी क़ौम के सामने ही अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। |
15. | रब्ब की निगाह में उस के ईमानदारों की मौत गिराँक़दर है। |
16. | ऐ रब्ब, यक़ीनन मैं तेरा ख़ादिम, हाँ तेरा ख़ादिम और तेरी ख़ादिमा का बेटा हूँ। तू ने मेरी ज़न्जीरों को तोड़ डाला है। |
17. | मैं तुझे शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानी पेश करके तेरा नाम पुकारूँगा। |
18. | मैं रब्ब के हुज़ूर उस की सारी क़ौम के सामने ही अपनी मन्नतें पूरी करूँगा। |
19. | मैं रब्ब के घर की बारगाहों में, ऐ यरूशलम तेरे बीच में ही उन्हें पूरा करूँगा। रब्ब की हम्द हो। |
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