Psalms (109/150)  

1. दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। ऐ अल्लाह मेरे फ़ख़र, ख़ामोश न रह!
2. क्यूँकि उन्हों ने अपना बेदीन और फ़रेबदिह मुँह मेरे ख़िलाफ़ खोल कर झूटी ज़बान से मेरे साथ बात की है।
3. वह मुझे नफ़रत के अल्फ़ाज़ से घेर कर बिलावजह मुझ से लड़े हैं।
4. मेरी मुहब्बत के जवाब में वह मुझ पर अपनी दुश्मनी का इज़्हार करते हैं। लेकिन दुआ ही मेरा सहारा है।
5. मेरी नेकी के इवज़ वह मुझे नुक़्सान पहुँचाते और मेरे पियार के बदले मुझ से नफ़रत करते हैं।
6. ऐ अल्लाह, किसी बेदीन को मुक़र्रर कर जो मेरे दुश्मन के ख़िलाफ़ गवाही दे, कोई मुख़ालिफ़ उस के दहने हाथ खड़ा हो जाए जो उस पर इल्ज़ाम लगाए।
7. मुक़द्दमे में उसे मुज्रिम ठहराया जाए। उस की दुआएँ भी उस के गुनाहों में शुमार की जाएँ।
8. उस की ज़िन्दगी मुख़्तसर हो, कोई और उस की ज़िम्मादारी उठाए।
9. उस की औलाद यतीम और उस की बीवी बेवा बन जाए।
10. उस के बच्चे आवारा फिरें और भीक माँगने पर मज्बूर हो जाएँ। उन्हें उन के तबाहशुदा घरों से निकल कर इधर उधर रोटी ढूँडनी पड़े।
11. जिस से उस ने क़र्ज़ा लिया था वह उस के तमाम माल पर क़ब्ज़ा करे, और अजनबी उस की मेहनत का फल लूट लें।
12. कोई न हो जो उस पर मेहरबानी करे या उस के यतीमों पर रहम करे।
13. उस की औलाद को मिटाया जाए, अगली पुश्त में उन का नाम-ओ-निशान तक न रहे।
14. रब्ब उस के बापदादा की नाइन्साफ़ी का लिहाज़ करे, और वह उस की माँ की ख़ता भी दरगुज़र न करे।
15. उन का बुरा किरदार रब्ब के सामने रहे, और वह उन की याद रू-ए-ज़मीन पर से मिटा डाले।
16. क्यूँकि उस को कभी मेहरबानी करने का ख़याल न आया बल्कि वह मुसीबतज़दा, मुह्ताज और शिकस्तादिल का ताक़्क़ुब करता रहा ताकि उसे मार डाले।
17. उसे लानत करने का शौक़ था, चुनाँचे लानत उसी पर आए! उसे बर्कत देना पसन्द नहीं था, चुनाँचे बर्कत उस से दूर रहे।
18. उस ने लानत चादर की तरह ओढ़ ली, चुनाँचे लानत पानी की तरह उस के जिस्म में और तेल की तरह उस की हड्डियों में सिरायत कर जाए।
19. वह कपड़े की तरह उस से लिपटी रहे, पटके की तरह हमेशा उस से कमरबस्ता रहे।
20. रब्ब मेरे मुख़ालिफ़ों को और उन्हें जो मेरे ख़िलाफ़ बुरी बातें करते हैं यही सज़ा दे।
21. लेकिन तू ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, अपने नाम की ख़ातिर मेरे साथ मेहरबानी का सुलूक कर। मुझे बचा, क्यूँकि तेरी ही शफ़्क़त तसल्लीबख़्श है।
22. क्यूँकि मैं मुसीबतज़दा और ज़रूरतमन्द हूँ। मेरा दिल मेरे अन्दर मजरूह है।
23. शाम के ढलते साय की तरह मैं ख़त्म होने वाला हूँ। मुझे टिड्डी की तरह झाड़ कर दूर कर दिया गया है।
24. रोज़ा रखते रखते मेरे घुटने डगमगाने लगे और मेरा जिस्म सूख गया है।
25. मैं अपने दुश्मनों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गया हूँ। मुझे देख कर वह सर हिला कर “तौबा तौबा” कहते हैं।
26. ऐ रब्ब मेरे ख़ुदा, मेरी मदद कर! अपनी शफ़्क़त का इज़्हार करके मुझे छुड़ा!
27. उन्हें पता चले कि यह तेरे हाथ से पेश आया है, कि तू रब्ब ही ने यह सब कुछ किया है।
28. जब वह लानत करें तो मुझे बर्कत दे! जब वह मेरे ख़िलाफ़ उठें तो बख़्श दे कि शर्मिन्दा हो जाएँ जबकि तेरा ख़ादिम ख़ुश हो।
29. मेरे मुख़ालिफ़ रुस्वाई से मुलब्बस हो जाएँ, उन्हें शर्मिन्दगी की चादर ओढ़नी पड़े।
30. मैं ज़ोर से रब्ब की सिताइश करूँगा, बहुतों के दर्मियान उस की हम्द करूँगा।
31. क्यूँकि वह मुह्ताज के दहने हाथ खड़ा रहता है ताकि उसे उन से बचाए जो उसे मुज्रिम ठहराते हैं।

  Psalms (109/150)