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1. | दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। ऐ अल्लाह मेरे फ़ख़र, ख़ामोश न रह! |
2. | क्यूँकि उन्हों ने अपना बेदीन और फ़रेबदिह मुँह मेरे ख़िलाफ़ खोल कर झूटी ज़बान से मेरे साथ बात की है। |
3. | वह मुझे नफ़रत के अल्फ़ाज़ से घेर कर बिलावजह मुझ से लड़े हैं। |
4. | मेरी मुहब्बत के जवाब में वह मुझ पर अपनी दुश्मनी का इज़्हार करते हैं। लेकिन दुआ ही मेरा सहारा है। |
5. | मेरी नेकी के इवज़ वह मुझे नुक़्सान पहुँचाते और मेरे पियार के बदले मुझ से नफ़रत करते हैं। |
6. | ऐ अल्लाह, किसी बेदीन को मुक़र्रर कर जो मेरे दुश्मन के ख़िलाफ़ गवाही दे, कोई मुख़ालिफ़ उस के दहने हाथ खड़ा हो जाए जो उस पर इल्ज़ाम लगाए। |
7. | मुक़द्दमे में उसे मुज्रिम ठहराया जाए। उस की दुआएँ भी उस के गुनाहों में शुमार की जाएँ। |
8. | उस की ज़िन्दगी मुख़्तसर हो, कोई और उस की ज़िम्मादारी उठाए। |
9. | उस की औलाद यतीम और उस की बीवी बेवा बन जाए। |
10. | उस के बच्चे आवारा फिरें और भीक माँगने पर मज्बूर हो जाएँ। उन्हें उन के तबाहशुदा घरों से निकल कर इधर उधर रोटी ढूँडनी पड़े। |
11. | जिस से उस ने क़र्ज़ा लिया था वह उस के तमाम माल पर क़ब्ज़ा करे, और अजनबी उस की मेहनत का फल लूट लें। |
12. | कोई न हो जो उस पर मेहरबानी करे या उस के यतीमों पर रहम करे। |
13. | उस की औलाद को मिटाया जाए, अगली पुश्त में उन का नाम-ओ-निशान तक न रहे। |
14. | रब्ब उस के बापदादा की नाइन्साफ़ी का लिहाज़ करे, और वह उस की माँ की ख़ता भी दरगुज़र न करे। |
15. | उन का बुरा किरदार रब्ब के सामने रहे, और वह उन की याद रू-ए-ज़मीन पर से मिटा डाले। |
16. | क्यूँकि उस को कभी मेहरबानी करने का ख़याल न आया बल्कि वह मुसीबतज़दा, मुह्ताज और शिकस्तादिल का ताक़्क़ुब करता रहा ताकि उसे मार डाले। |
17. | उसे लानत करने का शौक़ था, चुनाँचे लानत उसी पर आए! उसे बर्कत देना पसन्द नहीं था, चुनाँचे बर्कत उस से दूर रहे। |
18. | उस ने लानत चादर की तरह ओढ़ ली, चुनाँचे लानत पानी की तरह उस के जिस्म में और तेल की तरह उस की हड्डियों में सिरायत कर जाए। |
19. | वह कपड़े की तरह उस से लिपटी रहे, पटके की तरह हमेशा उस से कमरबस्ता रहे। |
20. | रब्ब मेरे मुख़ालिफ़ों को और उन्हें जो मेरे ख़िलाफ़ बुरी बातें करते हैं यही सज़ा दे। |
21. | लेकिन तू ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, अपने नाम की ख़ातिर मेरे साथ मेहरबानी का सुलूक कर। मुझे बचा, क्यूँकि तेरी ही शफ़्क़त तसल्लीबख़्श है। |
22. | क्यूँकि मैं मुसीबतज़दा और ज़रूरतमन्द हूँ। मेरा दिल मेरे अन्दर मजरूह है। |
23. | शाम के ढलते साय की तरह मैं ख़त्म होने वाला हूँ। मुझे टिड्डी की तरह झाड़ कर दूर कर दिया गया है। |
24. | रोज़ा रखते रखते मेरे घुटने डगमगाने लगे और मेरा जिस्म सूख गया है। |
25. | मैं अपने दुश्मनों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गया हूँ। मुझे देख कर वह सर हिला कर “तौबा तौबा” कहते हैं। |
26. | ऐ रब्ब मेरे ख़ुदा, मेरी मदद कर! अपनी शफ़्क़त का इज़्हार करके मुझे छुड़ा! |
27. | उन्हें पता चले कि यह तेरे हाथ से पेश आया है, कि तू रब्ब ही ने यह सब कुछ किया है। |
28. | जब वह लानत करें तो मुझे बर्कत दे! जब वह मेरे ख़िलाफ़ उठें तो बख़्श दे कि शर्मिन्दा हो जाएँ जबकि तेरा ख़ादिम ख़ुश हो। |
29. | मेरे मुख़ालिफ़ रुस्वाई से मुलब्बस हो जाएँ, उन्हें शर्मिन्दगी की चादर ओढ़नी पड़े। |
30. | मैं ज़ोर से रब्ब की सिताइश करूँगा, बहुतों के दर्मियान उस की हम्द करूँगा। |
31. | क्यूँकि वह मुह्ताज के दहने हाथ खड़ा रहता है ताकि उसे उन से बचाए जो उसे मुज्रिम ठहराते हैं। |
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