← Psalms (106/150) → |
1. | रब्ब की हम्द हो! रब्ब का शुक्र करो, क्यूँकि वह भला है, और उस की शफ़्क़त अबदी है। |
2. | कौन रब्ब के तमाम अज़ीम काम सुना सकता, कौन उस की मुनासिब तम्जीद कर सकता है? |
3. | मुबारक हैं वह जो इन्साफ़ क़ाइम रखते, जो हर वक़्त रास्त काम करते हैं। |
4. | ऐ रब्ब, अपनी क़ौम पर मेहरबानी करते वक़्त मेरा ख़याल रख, नजात देते वक़्त मेरी भी मदद कर |
5. | ताकि मैं तेरे चुने हुए लोगों की ख़ुशहाली देख सकूँ और तेरी क़ौम की ख़ुशी में शरीक हो कर तेरी मीरास के साथ सिताइश कर सकूँ। |
6. | हम ने अपने बापदादा की तरह गुनाह किया है, हम से नाइन्साफ़ी और बेदीनी सरज़द हुई है। |
7. | जब हमारे बापदादा मिस्र में थे तो उन्हें तेरे मोजिज़ों की समझ न आई और तेरी मुतअद्दिद मेहरबानियाँ याद न रहीं बल्कि वह समुन्दर यानी बहर-ए-क़ुल्ज़ुम पर सरकश हुए। |
8. | तो भी उस ने उन्हें अपने नाम की ख़ातिर बचाया, क्यूँकि वह अपनी क़ुद्रत का इज़्हार करना चाहता था। |
9. | उस ने बहर-ए-क़ुल्ज़ुम को झिड़का तो वह ख़ुश्क हो गया। उस ने उन्हें समुन्दर की गहराइयों में से यूँ गुज़रने दिया जिस तरह रेगिस्तान में से। |
10. | उस ने उन्हें नफ़रत करने वाले के हाथ से छुड़ाया और इवज़ाना दे कर दुश्मन के हाथ से रिहा किया। |
11. | उन के मुख़ालिफ़ पानी में डूब गए। एक भी न बचा। |
12. | तब उन्हों ने अल्लाह के फ़रमानों पर ईमान ला कर उस की मद्हसराई की। |
13. | लेकिन जल्द ही वह उस के काम भूल गए। वह उस की मर्ज़ी का इन्तिज़ार करने के लिए तय्यार न थे। |
14. | रेगिस्तान में शदीद लालच में आ कर उन्हों ने वहीं बियाबान में अल्लाह को आज़्माया। |
15. | तब उस ने उन की दरख़्वास्त पूरी की, लेकिन साथ साथ मुहलक वबा भी उन में फैला दी। |
16. | ख़ैमागाह में वह मूसा और रब्ब के मुक़द्दस इमाम हारून से हसद करने लगे। |
17. | तब ज़मीन खुल गई, और उस ने दातन को हड़प कर लिया, अबीराम के जथे को अपने अन्दर दफ़न कर लिया। |
18. | आग उन के जथे में भड़क उठी, और बेदीन नज़र-ए-आतिश हुए। |
19. | वह कोह-ए-होरिब यानी सीना के दामन में बछड़े का बुत ढाल कर उस के सामने औंधे मुँह हो गए। |
20. | उन्हों ने अल्लाह को जलाल देने के बजाय घास खाने वाले बैल की पूजा की। |
21. | वह अल्लाह को भूल गए, हालाँकि उसी ने उन्हें छुड़ाया था, उसी ने मिस्र में अज़ीम काम किए थे। |
22. | जो मोजिज़े हाम के मुल्क में हुए और जो जलाली वाक़िआत बहर-ए-क़ुल्ज़ुम पर पेश आए थे वह सब अल्लाह के हाथ से हुए थे। |
23. | चुनाँचे अल्लाह ने फ़रमाया कि मैं उन्हें नेस्त-ओ-नाबूद करूँगा। लेकिन उस का चुना हुआ ख़ादिम मूसा रख़ने में खड़ा हो गया ताकि उस के ग़ज़ब को इस्राईलियों को मिटाने से रोके। सिर्फ़ इस वजह से अल्लाह अपने इरादे से बाज़ आया। |
24. | फिर उन्हों ने कनआन के ख़ुशगवार मुल्क को हक़ीर जाना। उन्हें यक़ीन नहीं था कि अल्लाह अपना वादा पूरा करेगा। |
25. | वह अपने ख़ैमों में बुड़बुड़ाने लगे और रब्ब की आवाज़ सुनने के लिए तय्यार न हुए। |
26. | तब उस ने अपना हाथ उन के ख़िलाफ़ उठाया ताकि उन्हें वहीं रेगिस्तान में हलाक करे |
27. | और उन की औलाद को दीगर अक़्वाम में फैंक कर मुख़्तलिफ़ ममालिक में मुन्तशिर कर दे। |
28. | वह बाल-फ़ग़ूर देवता से लिपट गए और मुर्दों के लिए पेश की गई क़ुर्बानियों का गोश्त खाने लगे। |
29. | उन्हों ने अपनी हर्कतों से रब्ब को तैश दिलाया तो उन में मुहलक बीमारी फैल गई। |
30. | लेकिन फ़ीन्हास ने उठ कर उन की अदालत की। तब वबा रुक गई। |
31. | इसी बिना पर अल्लाह ने उसे पुश्त-दर-पुश्त और अबद तक रास्तबाज़ क़रार दिया। |
32. | मरीबा के चश्मे पर भी उन्हों ने रब्ब को ग़ुस्सा दिलाया। उन ही के बाइस मूसा का बुरा हाल हुआ। |
33. | क्यूँकि उन्हों ने उस के दिल में इतनी तल्ख़ी पैदा की कि उस के मुँह से बेजा बातें निकलीं। |
34. | जो दीगर क़ौमें मुल्क में थीं उन्हें उन्हों ने नेस्त न किया, हालाँकि रब्ब ने उन्हें यह करने को कहा था। |
35. | न सिर्फ़ यह बल्कि वह ग़ैरक़ौमों से रिश्ता बाँध कर उन में घुल मिल गए और उन के रस्म-ओ-रिवाज अपना लिए। |
36. | वह उन के बुतों की पूजा करने में लग गए, और यह उन के लिए फंदे का बाइस बन गए। |
37. | वह अपने बेटे-बेटियों को बदरूहों के हुज़ूर क़ुर्बान करने से भी न कतराए। |
38. | हाँ, उन्हों ने अपने बेटे-बेटियों को कनआन के देवताओं के हुज़ूर पेश करके उन का मासूम ख़ून बहाया। इस से मुल्क की बेहुरमती हुई। |
39. | वह अपनी ग़लत हर्कतों से नापाक और अपने ज़िनाकाराना कामों से अल्लाह से बेवफ़ा हुए। |
40. | तब अल्लाह अपनी क़ौम से सख़्त नाराज़ हुआ, और उसे अपनी मौरूसी मिल्कियत से घिन आने लगी। |
41. | उस ने उन्हें दीगर क़ौमों के हवाले किया, और जो उन से नफ़रत करते थे वह उन पर हुकूमत करने लगे। |
42. | उन के दुश्मनों ने उन पर ज़ुल्म करके उन को अपना मुती बना लिया। |
43. | अल्लाह बार बार उन्हें छुड़ाता रहा, हालाँकि वह अपने सरकश मन्सूबों पर तुले रहे और अपने क़ुसूर में डूबते गए। |
44. | लेकिन उस ने मदद के लिए उन की आहें सुन कर उन की मुसीबत पर ध्यान दिया। |
45. | उस ने उन के साथ अपना अह्द याद किया, और वह अपनी बड़ी शफ़्क़त के बाइस पछताया। |
46. | उस ने होने दिया कि जिस ने भी उन्हें गिरिफ़्तार किया उस ने उन पर तरस खाया। |
47. | ऐ रब्ब हमारे ख़ुदा, हमें बचा! हमें दीगर क़ौमों से निकाल कर जमा कर। तब ही हम तेरे मुक़द्दस नाम की सिताइश करेंगे और तेरे क़ाबिल-ए-तारीफ़ कामों पर फ़ख़र करेंगे। |
48. | अज़ल से अबद तक रब्ब, इस्राईल के ख़ुदा की हम्द हो। तमाम क़ौम कहे, “आमीन! रब्ब की हम्द हो!” |
← Psalms (106/150) → |