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1. | मेरे बेटे, क्या तू अपने पड़ोसी का ज़ामिन बना है? क्या तू ने हाथ मिला कर वादा किया है कि मैं किसी दूसरे का ज़िम्मादार ठहरूँगा? |
2. | क्या तू अपने वादे से बंधा हुआ, अपने मुँह के अल्फ़ाज़ से फंसा हुआ है? |
3. | ऐसा करने से तू अपने पड़ोसी के हाथ में आ गया है, इस लिए अपनी जान को छुड़ाने के लिए उस के सामने औंधे मुँह हो कर उसे अपनी मिन्नत-समाजत से तंग कर। |
4. | अपनी आँखों को सोने न दे, अपने पपोटों को ऊँघने न दे जब तक तू इस ज़िम्मादारी से फ़ारिग़ न हो जाए। |
5. | जिस तरह ग़ज़ाल शिकारी के हाथ से और परिन्दा चिड़ीमार के हाथ से छूट जाता है उसी तरह सिरतोड़ कोशिश कर ताकि तेरी जान छूट जाए। |
6. | ऐ काहिल, चियूँटी के पास जा कर उस की राहों पर ग़ौर कर! उस के नमूने से हिक्मत सीख ले। |
7. | उस पर न सरदार, न अफ़्सर या हुक्मरान मुक़र्रर है, |
8. | तो भी वह गर्मियों में सर्दियों के लिए खाने का ज़ख़ीरा कर रखती, फ़सल के दिनों में ख़ूब ख़ुराक इकट्ठी करती है। |
9. | ऐ काहिल, तू मज़ीद कब तक सोया रहेगा, कब जाग उठेगा? |
10. | तू कहता है, “मुझे थोड़ी देर सोने दे, थोड़ी देर ऊँघने दे, थोड़ी देर हाथ पर हाथ धरे बैठने दे ताकि आराम कर सकूँ।” |
11. | लेकिन ख़बरदार, जल्द ही ग़ुर्बत राहज़न की तरह तुझ पर आएगी, मुफ़लिसी हथियार से लेस डाकू की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी। |
12. | बदमआश और कमीना किस तरह पहचाना जाता है? वह मुँह में झूट लिए फिरता है, |
13. | अपनी आँखों, पाँओ और उंगलियों से इशारा करके तुझे फ़रेब के जाल में फंसाने की कोशिश करता है। |
14. | उस के दिल में कजी है, और वह हर वक़्त बुरे मन्सूबे बाँधने में लगा रहता है। जहाँ भी जाए वहाँ झगड़े छिड़ जाते हैं। |
15. | लेकिन ऐसे शख़्स पर अचानक ही आफ़त आएगी। एक ही लम्हे में वह पाश पाश हो जाएगा। तब उस का इलाज नामुम्किन होगा। |
16. | रब्ब छः चीज़ों से नफ़रत बल्कि सात चीज़ों से घिन खाता है, |
17. | वह आँखें जो ग़रूर से देखती हैं, वह ज़बान जो झूट बोलती है, वह हाथ जो बेगुनाहों को क़त्ल करते हैं, |
18. | वह दिल जो बुरे मन्सूबे बाँधता है, वह पाँओ जो दूसरों को नुक़्सान पहुँचाने के लिए भागते हैं, |
19. | वह गवाह जो अदालत में झूट बोलता और वह जो भाइयों में झगड़ा पैदा करता है। |
20. | मेरे बेटे, अपने बाप के हुक्म से लिपटा रह, और अपनी माँ की हिदायत नज़रअन्दाज़ न कर। |
21. | उन्हें यूँ अपने दिल के साथ बाँधे रख कि कभी दूर न हो जाएँ। उन्हें हार की तरह अपने गले में डाल ले। |
22. | चलते वक़्त वह तेरी राहनुमाई करें, आराम करते वक़्त तेरी पहरादारी करें, जागते वक़्त तुझ से हमकलाम हों। |
23. | क्यूँकि बाप का हुक्म चराग़ और माँ की हिदायत रौशनी है, तर्बियत की डाँट-डपट ज़िन्दगीबख़्श राह है। |
24. | यूँ तू बदकार औरत और दूसरे की ज़िनाकार बीवी की चिकनी-चुपड़ी बातों से मह्फ़ूज़ रहेगा। |
25. | दिल में उस के हुस्न का लालच न कर, ऐसा न हो कि वह पलक मार मार कर तुझे पकड़ ले। |
26. | क्यूँकि गो कस्बी आदमी को उस के पैसे से महरूम करती है, लेकिन दूसरे की ज़िनाकार बीवी उस की क़ीमती जान का शिकार करती है। |
27. | क्या इन्सान अपनी झोली में भड़कती आग यूँ उठा कर फिर सकता है कि उस के कपड़े न जलें? |
28. | या क्या कोई दहकते कोइलों पर यूँ फिर सकता है कि उस के पाँओ झुलस न जाएँ? |
29. | इसी तरह जो किसी दूसरे की बीवी से हमबिसतर हो जाए उस का अन्जाम बुरा है, जो भी दूसरे की बीवी को छेड़े उसे सज़ा मिलेगी। |
30. | जो भूक के मारे अपना पेट भरने के लिए चोरी करे उसे लोग हद्द से ज़ियादा हक़ीर नहीं जानते, |
31. | हालाँकि उसे चोरी किए हुए माल को सात गुना वापस करना है और उस के घर की दौलत जाती रहेगी। |
32. | लेकिन जो किसी दूसरे की बीवी के साथ ज़िना करे वह बेअक़ल है। जो अपनी जान को तबाह करना चाहे वही ऐसा करता है। |
33. | उस की पिटाई और बेइज़्ज़ती की जाएगी, और उस की शर्मिन्दगी कभी नहीं मिटेगी। |
34. | क्यूँकि शौहर ग़ैरत खा कर और तैश में आ कर बेरहमी से बदला लेगा। |
35. | न वह कोई मुआवज़ा क़बूल करेगा, न रिश्वत लेगा, ख़्वाह कितनी ज़ियादा क्यूँ न हो। |
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