Proverbs (6/31)  

1. मेरे बेटे, क्या तू अपने पड़ोसी का ज़ामिन बना है? क्या तू ने हाथ मिला कर वादा किया है कि मैं किसी दूसरे का ज़िम्मादार ठहरूँगा?
2. क्या तू अपने वादे से बंधा हुआ, अपने मुँह के अल्फ़ाज़ से फंसा हुआ है?
3. ऐसा करने से तू अपने पड़ोसी के हाथ में आ गया है, इस लिए अपनी जान को छुड़ाने के लिए उस के सामने औंधे मुँह हो कर उसे अपनी मिन्नत-समाजत से तंग कर।
4. अपनी आँखों को सोने न दे, अपने पपोटों को ऊँघने न दे जब तक तू इस ज़िम्मादारी से फ़ारिग़ न हो जाए।
5. जिस तरह ग़ज़ाल शिकारी के हाथ से और परिन्दा चिड़ीमार के हाथ से छूट जाता है उसी तरह सिरतोड़ कोशिश कर ताकि तेरी जान छूट जाए।
6. ऐ काहिल, चियूँटी के पास जा कर उस की राहों पर ग़ौर कर! उस के नमूने से हिक्मत सीख ले।
7. उस पर न सरदार, न अफ़्सर या हुक्मरान मुक़र्रर है,
8. तो भी वह गर्मियों में सर्दियों के लिए खाने का ज़ख़ीरा कर रखती, फ़सल के दिनों में ख़ूब ख़ुराक इकट्ठी करती है।
9. ऐ काहिल, तू मज़ीद कब तक सोया रहेगा, कब जाग उठेगा?
10. तू कहता है, “मुझे थोड़ी देर सोने दे, थोड़ी देर ऊँघने दे, थोड़ी देर हाथ पर हाथ धरे बैठने दे ताकि आराम कर सकूँ।”
11. लेकिन ख़बरदार, जल्द ही ग़ुर्बत राहज़न की तरह तुझ पर आएगी, मुफ़लिसी हथियार से लेस डाकू की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी।
12. बदमआश और कमीना किस तरह पहचाना जाता है? वह मुँह में झूट लिए फिरता है,
13. अपनी आँखों, पाँओ और उंगलियों से इशारा करके तुझे फ़रेब के जाल में फंसाने की कोशिश करता है।
14. उस के दिल में कजी है, और वह हर वक़्त बुरे मन्सूबे बाँधने में लगा रहता है। जहाँ भी जाए वहाँ झगड़े छिड़ जाते हैं।
15. लेकिन ऐसे शख़्स पर अचानक ही आफ़त आएगी। एक ही लम्हे में वह पाश पाश हो जाएगा। तब उस का इलाज नामुम्किन होगा।
16. रब्ब छः चीज़ों से नफ़रत बल्कि सात चीज़ों से घिन खाता है,
17. वह आँखें जो ग़रूर से देखती हैं, वह ज़बान जो झूट बोलती है, वह हाथ जो बेगुनाहों को क़त्ल करते हैं,
18. वह दिल जो बुरे मन्सूबे बाँधता है, वह पाँओ जो दूसरों को नुक़्सान पहुँचाने के लिए भागते हैं,
19. वह गवाह जो अदालत में झूट बोलता और वह जो भाइयों में झगड़ा पैदा करता है।
20. मेरे बेटे, अपने बाप के हुक्म से लिपटा रह, और अपनी माँ की हिदायत नज़रअन्दाज़ न कर।
21. उन्हें यूँ अपने दिल के साथ बाँधे रख कि कभी दूर न हो जाएँ। उन्हें हार की तरह अपने गले में डाल ले।
22. चलते वक़्त वह तेरी राहनुमाई करें, आराम करते वक़्त तेरी पहरादारी करें, जागते वक़्त तुझ से हमकलाम हों।
23. क्यूँकि बाप का हुक्म चराग़ और माँ की हिदायत रौशनी है, तर्बियत की डाँट-डपट ज़िन्दगीबख़्श राह है।
24. यूँ तू बदकार औरत और दूसरे की ज़िनाकार बीवी की चिकनी-चुपड़ी बातों से मह्फ़ूज़ रहेगा।
25. दिल में उस के हुस्न का लालच न कर, ऐसा न हो कि वह पलक मार मार कर तुझे पकड़ ले।
26. क्यूँकि गो कस्बी आदमी को उस के पैसे से महरूम करती है, लेकिन दूसरे की ज़िनाकार बीवी उस की क़ीमती जान का शिकार करती है।
27. क्या इन्सान अपनी झोली में भड़कती आग यूँ उठा कर फिर सकता है कि उस के कपड़े न जलें?
28. या क्या कोई दहकते कोइलों पर यूँ फिर सकता है कि उस के पाँओ झुलस न जाएँ?
29. इसी तरह जो किसी दूसरे की बीवी से हमबिसतर हो जाए उस का अन्जाम बुरा है, जो भी दूसरे की बीवी को छेड़े उसे सज़ा मिलेगी।
30. जो भूक के मारे अपना पेट भरने के लिए चोरी करे उसे लोग हद्द से ज़ियादा हक़ीर नहीं जानते,
31. हालाँकि उसे चोरी किए हुए माल को सात गुना वापस करना है और उस के घर की दौलत जाती रहेगी।
32. लेकिन जो किसी दूसरे की बीवी के साथ ज़िना करे वह बेअक़ल है। जो अपनी जान को तबाह करना चाहे वही ऐसा करता है।
33. उस की पिटाई और बेइज़्ज़ती की जाएगी, और उस की शर्मिन्दगी कभी नहीं मिटेगी।
34. क्यूँकि शौहर ग़ैरत खा कर और तैश में आ कर बेरहमी से बदला लेगा।
35. न वह कोई मुआवज़ा क़बूल करेगा, न रिश्वत लेगा, ख़्वाह कितनी ज़ियादा क्यूँ न हो।

  Proverbs (6/31)