Philippians (3/4)  

1. मेरे भाइयो, जो कुछ भी हो, ख़ुदावन्द में ख़ुश रहें। मैं आप को यह बात बताते रहने से कभी थकता नहीं, क्यूँकि ऐसा करने से आप मह्फ़ूज़ रहते हैं।
2. कुत्तों से ख़बरदार! उन शरीर मज़्दूरों से होश्यार रहना जो जिस्म की काँट-छाँट यानी ख़तना करवाते हैं।
3. क्यूँकि हम ही हक़ीक़ी ख़तना के पैरोकार हैं, हम ही हैं जो अल्लाह के रूह में परस्तिश करते, मसीह ईसा पर फ़ख़र करते और इन्सानी ख़ूबियों पर भरोसा नहीं करते।
4. बात यह नहीं कि मेरा अपनी इन्सानी ख़ूबियों पर भरोसा करने का कोई जवाज़ न होता। जब दूसरे अपनी इन्सानी ख़ूबियों पर फ़ख़र करते हैं तो मैं उन की निस्बत ज़ियादा कर सकता हूँ।
5. मेरा ख़तना हुआ जब मैं अभी आठ दिन का बच्चा था। मैं इस्राईल क़ौम के क़बीले बिन्यमीन का हूँ, ऐसा इब्रानी जिस के वालिदैन भी इब्रानी थे। मैं फ़रीसियों का मैम्बर था जो यहूदी शरीअत के कट्टर पैरोकार हैं।
6. मैं इतना सरगर्म था कि मसीह की जमाअतों को ईज़ा पहुँचाई। हाँ, मैं शरीअत पर अमल करने में रास्तबाज़ और बेइल्ज़ाम था।
7. उस वक़्त यह सब कुछ मेरे नज़्दीक नफ़ा का बाइस था, लेकिन अब मैं इसे मसीह में होने के बाइस नुक़्सान ही समझता हूँ।
8. हाँ, बल्कि मैं सब कुछ इस अज़ीमतरीन बात के सबब से नुक़्सान समझता हूँ कि मैं अपने ख़ुदावन्द मसीह ईसा को जानता हूँ। उसी की ख़ातिर मुझे तमाम चीज़ों का नुक़्सान पहुँचा है। मैं उन्हें कूड़ा ही समझता हूँ ताकि मसीह को हासिल करूँ
9. और उस में पाया जाऊँ। लेकिन मैं इस नौबत तक अपनी उस रास्तबाज़ी के ज़रीए नहीं पहुँच सकता जो शरीअत के ताबे रहने से हासिल होती है। इस के लिए वह रास्तबाज़ी ज़रूरी है जो मसीह पर ईमान लाने से मिलती है, जो अल्लाह की तरफ़ से है और जो ईमान पर मब्नी होती है।
10. हाँ, मैं सब कुछ कूड़ा ही समझता हूँ ताकि मसीह को, उस के जी उठने की क़ुद्रत और उस के दुखों में शरीक होने का फ़ज़्ल जान लूँ। यूँ मैं उस की मौत का हमशक्ल बनता जा रहा हूँ,
11. इस उम्मीद में कि मैं किसी न किसी तरह मुर्दों में से जी उठने की नौबत तक पहुँचूँगा।
12. मतलब यह नहीं कि मैं यह सब कुछ हासिल कर चुका या कामिल हो चुका हूँ। लेकिन मैं मन्ज़िल-ए-मक़सूद की तरफ़ दौड़ा हुआ जाता हूँ ताकि वह कुछ पकड़ लूँ जिस के लिए मसीह ईसा ने मुझे पकड़ लिया है।
13. भाइयो, में अपने बारे में यह ख़याल नहीं करता कि मैं इसे हासिल कर चुका हूँ। लेकिन मैं इस एक ही बात पर ध्यान देता हूँ, जो कुछ मेरे पीछे है वह मैं भूल कर सख़्त तग-ओ-दौ के साथ उस तरफ़ बढ़ता हूँ जो आगे पड़ा है।
14. मैं सीधा मन्ज़िल-ए-मक़सूद की तरफ़ दौड़ा हुआ जाता हूँ ताकि वह इनआम हासिल करूँ जिस के लिए अल्लाह ने मुझे मसीह ईसा में आस्मान पर बुलाया है।
15. चुनाँचे हम में से जितने कामिल हैं आएँ, हम ऐसी सोच रखें। और अगर आप किसी बात में फ़र्क़ सोचते हैं तो अल्लाह आप पर यह भी ज़ाहिर करेगा।
16. जो भी हो, जिस मर्हले तक हम पहुँच गए हैं आएँ, हम उस के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारें।
17. भाइयो, मिल कर मेरे नक़्श-ए-क़दम पर चलें। और उन पर ख़ूब ध्यान दें जो हमारे नमूने पर चलते हैं।
18. क्यूँकि जिस तरह मैं ने आप को कई बार बताया है और अब रो रो कर बता रहा हूँ, बहुत से लोग अपने चाल-चलन से ज़ाहिर करते हैं कि वह मसीह की सलीब के दुश्मन हैं।
19. ऐसे लोगों का अन्जाम हलाकत है। खाने-पीने की पाबन्दियाँ और ख़तने पर फ़ख़र उन का ख़ुदा बन गया है । हाँ, वह सिर्फ़ दुनियावी सोच रखते हैं।
20. लेकिन हम आस्मान के शहरी हैं, और हम शिद्दत से इस इन्तिज़ार में हैं कि हमारा नजातदिहन्दा और ख़ुदावन्द ईसा मसीह वहीं से आए।
21. उस वक़्त वह हमारे पस्तहाल बदनों को बदल कर अपने जलाली बदन के हमशक्ल बना देगा। और यह वह उस क़ुव्वत के ज़रीए करेगा जिस से वह तमाम चीज़ें अपने ताबे कर सकता है।

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