Philippians (1/4) → |
1. | यह ख़त मसीह ईसा के ग़ुलामों पौलुस और तीमुथियुस की तरफ़ से है। मैं फ़िलिप्पी में मौजूद उन तमाम लोगों को लिख रहा हूँ जिन्हें अल्लाह ने मसीह ईसा के ज़रीए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस किया है। मैं उन के बुज़ुर्गों और ख़ादिमों को भी लिख रहा हूँ। |
2. | ख़ुदा हमारा बाप और ख़ुदावन्द ईसा मसीह आप को फ़ज़्ल और सलामती अता करें। |
3. | जब भी मैं आप को याद करता हूँ तो अपने ख़ुदा का शुक्र करता हूँ। |
4. | आप के लिए तमाम दुआओं में मैं हमेशा ख़ुशी से दुआ करता हूँ, |
5. | इस लिए कि आप पहले दिन से ले कर आज तक अल्लाह की ख़ुशख़बरी फैलाने में मेरे शरीक रहे हैं। |
6. | और मुझे यक़ीन है कि अल्लाह जिस ने आप में यह अच्छा काम शुरू किया है इसे उस दिन तक्मील तक पहुँचाएगा जब मसीह ईसा वापस आएगा। |
7. | और मुनासिब है कि आप सब के बारे में मेरा यही ख़याल हो, क्यूँकि आप मुझे अज़ीज़ रखते हैं। हाँ, जब मुझे जेल में डाला गया या मैं अल्लाह की ख़ुशख़बरी का दिफ़ा या उस की तस्दीक़ कर रहा था तो आप भी मेरे इस ख़ास फ़ज़्ल में शरीक हुए। |
8. | अल्लाह मेरा गवाह है कि मैं कितनी शिद्दत से आप सब का आर्ज़ूमन्द हूँ। हाँ, मैं मसीह की सी दिली शफ़्क़त के साथ आप का ख़्वाहिशमन्द हूँ। |
9. | और मेरी दुआ है कि आप की मुहब्बत में इल्म-ओ-इर्फ़ान और हर तरह की रुहानी बसीरत का यहाँ तक इज़ाफ़ा हो जाए कि वह बढ़ती बढ़ती दिल से छलक उठे। |
10. | क्यूँकि यह ज़रूरी है ताकि आप वह बातें क़बूल करें जो बुन्यादी अहमियत की हामिल हैं और आप मसीह की आमद तक बेलौस और बेइल्ज़ाम ज़िन्दगी गुज़ारें। |
11. | और यूँ आप उस रास्तबाज़ी के फल से भरे रहेंगे जो आप को ईसा मसीह के वसीले से हासिल होती है। फिर आप अपनी ज़िन्दगी से अल्लाह को जलाल देंगे और उस की तम्जीद करेंगे। |
12. | भाइयो, मैं चाहता हूँ कि यह बात आप के इल्म में हो कि जो कुछ भी मुझ पर गुज़रा है वह हक़ीक़त में अल्लाह की ख़ुशख़बरी के फैलाओ का बाइस बन गया है। |
13. | क्यूँकि प्रैटोरियुम के तमाम अफ़राद और बाक़ी सब को मालूम हो गया है कि मैं मसीह की ख़ातिर क़ैदी हूँ। |
14. | और मेरे क़ैद में होने की वजह से ख़ुदावन्द में ज़ियादातर भाइयों का एतिमाद इतना बढ़ गया है कि वह मज़ीद दिलेरी के साथ बिलाख़ौफ़ अल्लाह का कलाम सुनाते हैं। |
15. | बेशक बाज़ तो हसद और मुख़ालफ़त के बाइस मसीह की मुनादी कर रहे हैं, लेकिन बाक़ियों की नीयत अच्छी है, |
16. | क्यूँकि वह जानते हैं कि मैं अल्लाह की ख़ुशख़बरी के दिफ़ा की वजह से यहाँ पड़ा हूँ। इस लिए वह मुहब्बत की रूह में तब्लीग़ करते हैं। |
17. | इस के मुक़ाबले में दूसरे ख़ुलूसदिली से मसीह के बारे में पैग़ाम नहीं सुनाते बल्कि ख़ुदग़रज़ी से। यह समझते हैं कि हम इस तरह पौलुस की गिरिफ़्तारी को मज़ीद तक्लीफ़दिह बना सकते हैं। |
18. | लेकिन इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है! अहम बात तो यह है कि मसीह की मुनादी हर तरह से की जा रही है, ख़्वाह मुनाद की नीयत पुरख़ुलूस हो या न। और इस वजह से मैं ख़ुश हूँ। और ख़ुश रहूँगा भी, |
19. | क्यूँकि मैं जानता हूँ कि यह मेरे लिए रिहाई का बाइस बनेगा, इस लिए कि आप मेरे लिए दुआ कर रहे हैं और ईसा मसीह का रूह मेरी हिमायत कर रहा है। |
20. | हाँ, यह मेरी पूरी तवक़्क़ो और उम्मीद है। मैं यह भी जानता हूँ कि मुझे किसी भी बात में शर्मिन्दा नहीं किया जाएगा बल्कि जैसा माज़ी में हमेशा हुआ अब भी मुझे बड़ी दिलेरी से मसीह को जलाल देने का फ़ज़्ल मिलेगा, ख़्वाह मैं ज़िन्दा रहूँ या मर जाऊँ। |
21. | क्यूँकि मेरे लिए मसीह ज़िन्दगी है और मौत नफ़ा का बाइस। |
22. | अगर मैं ज़िन्दा रहूँ तो इस का फ़ाइदा यह होगा कि मैं मेहनत करके मज़ीद फल ला सकूँगा। चुनाँचे मैं नहीं कह सकता कि क्या बेहतर है। |
23. | मैं बड़ी कश-म-कश में रहता हूँ। एक तरफ़ मैं कूच करके मसीह के पास होने की आर्ज़ू रखता हूँ, क्यूँकि यह मेरे लिए सब से बेहतर होता। |
24. | लेकिन दूसरी तरफ़ ज़ियादा ज़रूरी यह है कि मैं आप की ख़ातिर ज़िन्दा रहूँ। |
25. | और चूँकि मुझे इस ज़रूरत का यक़ीन है, इस लिए मैं जानता हूँ कि मैं ज़िन्दा रह कर दुबारा आप सब के साथ रहूँगा ताकि आप तरक़्क़ी करें और ईमान में ख़ुश रहें। |
26. | हाँ, मेरे आप के पास वापस आने से आप मेरे सबब से मसीह ईसा पर हद्द से ज़ियादा फ़ख़र करेंगे। |
27. | लेकिन आप हर सूरत में मसीह की ख़ुशख़बरी और आस्मान के शहरियों के लाइक़ ज़िन्दगी गुज़ारें। फिर ख़्वाह मैं आ कर आप को देखूँ, ख़्वाह ग़ैरमौजूदगी में आप के बारे में सुनूँ, मुझे मालूम होगा कि आप एक रूह में क़ाइम हैं, आप मिल कर यकदिली से उस ईमान के लिए जाँफ़िशानी कर रहे हैं जो अल्लाह की ख़ुशख़बरी से पैदा हुआ है, |
28. | और आप किसी सूरत में अपने मुख़ालिफ़ों से दह्शत नहीं खाते। यह उन के लिए एक निशान होगा कि वह हलाक हो जाएँगे जबकि आप को नजात हासिल होगी, और वह भी अल्लाह से। |
29. | क्यूँकि आप को न सिर्फ़ मसीह पर ईमान लाने का फ़ज़्ल हासिल हुआ है बल्कि उस की ख़ातिर दुख उठाने का भी। |
30. | आप भी उस मुक़ाबले में जाँफ़िशानी कर रहे हैं जिस में आप ने मुझे देखा है और जिस के बारे में आप ने अब सुन लिया है कि मैं अब तक उस में मसरूफ़ हूँ। |
Philippians (1/4) → |