Numbers (35/36)  

1. इस्राईली अब तक मोआब के मैदानी इलाक़े में दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू के सामने थे। वहाँ रब्ब ने मूसा से कहा,
2. “इस्राईलियों को बता दे कि वह लावियों को अपनी मिली हुई ज़मीनों में से रहने के लिए शहर दें। उन्हें शहरों के इर्दगिर्द मवेशी चराने की ज़मीन भी मिले।
3. फिर लावियों के पास रहने के लिए शहर और अपने जानवर चराने के लिए ज़मीन होगी।
4. चराने के लिए ज़मीन शहर के इर्दगिर्द होगी, और चारों तरफ़ का फ़ासिला फ़सीलों से 1,500 फ़ुट हो।
5. चराने की यह ज़मीन मुरब्बा शक्ल की होगी जिस के हर पहलू का फ़ासिला 3,000 फ़ुट हो। शहर इस मुरब्बा शक्ल के बीच में हो। यह रक़बा शहर के बाशिन्दों के लिए हो ताकि वह अपने मवेशी चरा सकें।
6. “लावियों को कुल 48 शहर देना। इन में से छः पनाह के शहर मुक़र्रर करना। उन में ऐसे लोग पनाह ले सकेंगे जिन के हाथों ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो।
7. “लावियों को कुल 48 शहर देना। इन में से छः पनाह के शहर मुक़र्रर करना। उन में ऐसे लोग पनाह ले सकेंगे जिन के हाथों ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो।
8. हर क़बीला लावियों को अपने इलाक़े के रक़बे के मुताबिक़ शहर दे। जिस क़बीले का इलाक़ा बड़ा है उसे लावियों को ज़ियादा शहर देने हैं जबकि जिस क़बीले का इलाक़ा छोटा है वह लावियों को कम शहर दे।”
9. फिर रब्ब ने मूसा से कहा,
10. “इस्राईलियों को बताना कि दरया-ए-यर्दन को पार करने के बाद
11. कुछ पनाह के शहर मुक़र्रर करना। उन में वह शख़्स पनाह ले सकेगा जिस के हाथों ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो।
12. वहाँ वह इन्तिक़ाम लेने वाले से पनाह ले सकेगा और जमाअत की अदालत के सामने खड़े होने से पहले मारा नहीं जा सकेगा।
13. इस के लिए छः शहर चुन लो।
14. तीन दरया-ए-यर्दन के मशरिक़ में और तीन मुल्क-ए-कनआन में हों।
15. यह छः शहर हर किसी को पनाह देंगे, चाहे वह इस्राईली, परदेसी या उन के दर्मियान रहने वाला ग़ैरशहरी हो। जिस से भी ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो वह वहाँ पनाह ले सकता है।
16. अगर किसी ने किसी को जान-बूझ कर लोहे, पत्थर या लकड़ी की किसी चीज़ से मार डाला हो वह क़ातिल है और उसे सज़ा-ए-मौत देनी है।
17. अगर किसी ने किसी को जान-बूझ कर लोहे, पत्थर या लकड़ी की किसी चीज़ से मार डाला हो वह क़ातिल है और उसे सज़ा-ए-मौत देनी है।
18. अगर किसी ने किसी को जान-बूझ कर लोहे, पत्थर या लकड़ी की किसी चीज़ से मार डाला हो वह क़ातिल है और उसे सज़ा-ए-मौत देनी है।
19. मक़्तूल का सब से क़रीबी रिश्तेदार उसे तलाश करके मार दे।
20. क्यूँकि जो नफ़रत या दुश्मनी के बाइस जान-बूझ कर किसी को यूँ धक्का दे, उस पर कोई चीज़ फैंक दे या उसे मुक्का मारे कि वह मर जाए वह क़ातिल है और उसे सज़ा-ए-मौत देनी है।
21. क्यूँकि जो नफ़रत या दुश्मनी के बाइस जान-बूझ कर किसी को यूँ धक्का दे, उस पर कोई चीज़ फैंक दे या उसे मुक्का मारे कि वह मर जाए वह क़ातिल है और उसे सज़ा-ए-मौत देनी है।
22. लेकिन वह क़ातिल नहीं है जिस से दुश्मनी के बाइस नहीं बल्कि इत्तिफ़ाक़ से और ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो, चाहे उस ने उसे धक्का दिया, कोई चीज़ उस पर फैंक दी
23. या कोई पत्थर उस पर गिरने दिया।
24. अगर ऐसा हुआ तो लाज़िम है कि जमाअत इन हिदायात के मुताबिक़ उस के और इन्तिक़ाम लेने वाले के दर्मियान फ़ैसला करे।
25. अगर मुल्ज़िम बेक़ुसूर है तो जमाअत उस की हिफ़ाज़त करके उसे पनाह के उस शहर में वापस ले जाए जिस में उस ने पनाह ली है। वहाँ वह मुक़द्दस तेल से मसह किए गए इमाम-ए-आज़म की मौत तक रहे।
26. लेकिन अगर यह शख़्स इस से पहले पनाह के शहर से निकले तो वह मह्फ़ूज़ नहीं होगा।
27. अगर उस का इन्तिक़ाम लेने वाले से सामना हो जाए तो इन्तिक़ाम लेने वाले को उसे मार डालने की इजाज़त होगी। अगर वह ऐसा करे तो बेक़ुसूर रहेगा।
28. पनाह लेने वाला इमाम-ए-आज़म की वफ़ात तक पनाह के शहर में रहे। इस के बाद ही वह अपने घर वापस जा सकता है।
29. यह उसूल दाइमी हैं। जहाँ भी तुम रहते हो तुम्हें हमेशा इन पर अमल करना है।
30. जिस पर क़त्ल का इल्ज़ाम लगाया गया हो उसे सिर्फ़ इस सूरत में सज़ा-ए-मौत दी जा सकती है कि कम अज़ कम दो गवाह हों। एक गवाह काफ़ी नहीं है।
31. क़ातिल को ज़रूर सज़ा-ए-मौत देना। ख़्वाह वह इस से बचने के लिए कोई भी मुआवज़ा दे उसे आज़ाद न छोड़ना बल्कि सज़ा-ए-मौत देना।
32. उस शख़्स से भी पैसे क़बूल न करना जिस से ग़ैरइरादी तौर पर कोई हलाक हुआ हो और जो इस सबब से पनाह के शहर में रह रहा है। उसे इजाज़त नहीं कि वह पैसे दे कर पनाह का शहर छोड़े और अपने घर वापस चला जाए। लाज़िम है कि वह इस के लिए इमाम-ए-आज़म की वफ़ात का इन्तिज़ार करे।
33. जिस मुल्क में तुम रहते हो उस की मुक़द्दस हालत को नापाक न करना। जब किसी को उस में क़त्ल किया जाए तो वह नापाक हो जाता है। जब इस तरह ख़ून बहता है तो मुल्क की मुक़द्दस हालत सिर्फ़ उस शख़्स के ख़ून बहने से बहाल हो जाती है जिस ने यह ख़ून बहाया है। यानी मुल्क का सिर्फ़ क़ातिल की मौत से ही कफ़्फ़ारा दिया जा सकता है।
34. उस मुल्क को नापाक न करना जिस में तुम आबाद हो और मैं सुकूनत करता हूँ। क्यूँकि मैं रब्ब हूँ जो इस्राईलियों के दर्मियान सुकूनत करता हूँ।”

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