Numbers (20/36)  

1. पहले महीने में इस्राईल की पूरी जमाअत दश्त-ए-सीन में पहुँच कर क़ादिस में रहने लगी। वहाँ मरियम ने वफ़ात पाई और वहीं उसे दफ़नाया गया।
2. क़ादिस में पानी दस्तयाब नहीं था, इस लिए लोग मूसा और हारून के मुक़ाबले में जमा हुए।
3. वह मूसा से यह कह कर झगड़ने लगे, “काश हम अपने भाइयों के साथ रब्ब के सामने मर गए होते!
4. आप रब्ब की जमाअत को क्यूँ इस रेगिस्तान में ले आए? क्या इस लिए कि हम यहाँ अपने मवेशियों समेत मर जाएँ?
5. आप हमें मिस्र से निकाल कर उस नाख़ुशगवार जगह पर क्यूँ ले आए हैं? यहाँ न तो अनाज, न अन्जीर, अंगूर या अनार दस्तयाब हैं। पानी भी नहीं है!”
6. मूसा और हारून लोगों को छोड़ कर मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर गए और मुँह के बल गिरे। तब रब्ब का जलाल उन पर ज़ाहिर हुआ।
7. रब्ब ने मूसा से कहा,
8. “अह्द के सन्दूक़ के सामने पड़ी लाठी पकड़ कर हारून के साथ जमाअत को इकट्ठा कर। उन के सामने चटान से बात करो तो वह अपना पानी देगी। यूँ तू चटान में से जमाअत के लिए पानी निकाल कर उन्हें उन के मवेशियों समेत पानी पिलाएगा।”
9. मूसा ने ऐसा ही किया। उस ने अह्द के सन्दूक़ के सामने पड़ी लाठी उठाई
10. और हारून के साथ जमाअत को चटान के सामने इकट्ठा किया। मूसा ने उन से कहा, “ऐ बग़ावत करने वालो, सुनो! क्या हम इस चटान में से तुम्हारे लिए पानी निकालें?”
11. उस ने लाठी को उठा कर चटान को दो मर्तबा मारा तो बहुत सा पानी फूट निकला। जमाअत और उन के मवेशियों ने ख़ूब पानी पिया।
12. लेकिन रब्ब ने मूसा और हारून से कहा, “तुम्हारा मुझ पर इतना ईमान नहीं था कि मेरी क़ुद्दूसियत को इस्राईलियों के सामने क़ाइम रखते। इस लिए तुम उस जमाअत को उस मुल्क में नहीं ले जाओगे जो मैं उन्हें दूँगा।”
13. यह वाक़िआ मरीबा यानी ‘झगड़ना’ के पानी पर हुआ। वहाँ इस्राईलियों ने रब्ब से झगड़ा किया, और वहाँ उस ने उन पर ज़ाहिर किया कि वह क़ुद्दूस है।
14. क़ादिस से मूसा ने अदोम के बादशाह को इत्तिला भेजी, “आप के भाई इस्राईल की तरफ़ से एक गुज़ारिश है। आप को उन तमाम मुसीबतों के बारे में इल्म है जो हम पर आन पड़ी हैं।
15. हमारे बापदादा मिस्र गए थे और वहाँ हम बहुत अर्से तक रहे। मिस्रियों ने हमारे बापदादा और हम से बुरा सुलूक किया।
16. लेकिन जब हम ने चिल्ला कर रब्ब से मिन्नत की तो उस ने हमारी सुनी और फ़रिश्ता भेज कर हमें मिस्र से निकाल लाया। अब हम यहाँ क़ादिस शहर में हैं जो आप की सरहद्द पर है।
17. मेहरबानी करके हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें। हम किसी खेत या अंगूर के बाग़ में नहीं जाएँगे, न किसी कुएँ का पानी पिएँगे। हम शाहराह पर ही रहेंगे। आप के मुल्क में से गुज़रते हुए हम उस से न दाईं और न बाईं तरफ़ हटेंगे।”
18. लेकिन अदोमियों ने जवाब दिया, “यहाँ से न गुज़रना, वर्ना हम निकल कर आप से लड़ेंगे।”
19. इस्राईल ने दुबारा ख़बर भेजी, “हम शाहराह पर रहते हुए गुज़रेंगे। अगर हमें या हमारे जानवरों को पानी की ज़रूरत हुई तो पैसे दे कर ख़रीद लेंगे। हम पैदल ही गुज़रना चाहते हैं, और कुछ नहीं चाहते।”
20. लेकिन अदोमियों ने दुबारा इन्कार किया। साथ ही उन्हों ने उन के साथ लड़ने के लिए एक बड़ी और ताक़तवर फ़ौज भेजी।
21. चूँकि अदोम ने उन्हें गुज़रने की इजाज़त न दी इस लिए इस्राईली मुड़ कर दूसरे रास्ते से चले गए।
22. इस्राईल की पूरी जमाअत क़ादिस से रवाना हो कर होर पहाड़ के पास पहुँची।
23. यह पहाड़ अदोम की सरहद्द पर वाक़े था। वहाँ रब्ब ने मूसा और हारून से कहा,
24. “हारून अब कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा। वह उस मुल्क में दाख़िल नहीं होगा जो मैं इस्राईलियों को दूँगा, क्यूँकि तुम दोनों ने मरीबा के पानी पर मेरे हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी की।
25. हारून और उस के बेटे इलीअज़र को ले कर होर पहाड़ पर चढ़ जा।
26. हारून के कपड़े उतार कर उस के बेटे इलीअज़र को पहना देना। फिर हारून कूच करके अपने बापदादा से जा मिलेगा।”
27. मूसा ने ऐसा ही किया जैसा रब्ब ने कहा। तीनों पूरी जमाअत के देखते देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए।
28. मूसा ने हारून के कपड़े उतरवा कर उस के बेटे इलीअज़र को पहना दिए। फिर हारून वहाँ पहाड़ की चोटी पर फ़ौत हुआ, और मूसा और इलीअज़र नीचे उतर गए।
29. जब पूरी जमाअत को मालूम हुआ कि हारून इन्तिक़ाल कर गया है तो सब ने 30 दिन तक उस के लिए मातम किया।

  Numbers (20/36)