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1. | एक दिन क़ोरह बिन इज़्हार मूसा के ख़िलाफ़ उठा। वह लावी के क़बीले का क़िहाती था। उस के साथ रूबिन के क़बीले के तीन आदमी थे, इलियाब के बेटे दातन और अबीराम और ओन बिन पलत। उन के साथ 250 और आदमी भी थे जो जमाअत के सरदार और असर-ओ-रसूख़ वाले थे, और जो कौंसल के लिए चुने गए थे। |
2. | एक दिन क़ोरह बिन इज़्हार मूसा के ख़िलाफ़ उठा। वह लावी के क़बीले का क़िहाती था। उस के साथ रूबिन के क़बीले के तीन आदमी थे, इलियाब के बेटे दातन और अबीराम और ओन बिन पलत। उन के साथ 250 और आदमी भी थे जो जमाअत के सरदार और असर-ओ-रसूख़ वाले थे, और जो कौंसल के लिए चुने गए थे। |
3. | वह मिल कर मूसा और हारून के पास आ कर कहने लगे, “आप हम से ज़ियादती कर रहे हैं। पूरी जमाअत मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस है, और रब्ब उस के दर्मियान है। तो फिर आप अपने आप को क्यूँ रब्ब की जमाअत से बढ़ कर समझते हैं?” |
4. | यह सुन कर मूसा मुँह के बल गिरा। |
5. | फिर उस ने क़ोरह और उस के तमाम साथियों से कहा, “कल सुब्ह रब्ब ज़ाहिर करेगा कि कौन उस का बन्दा और कौन मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस है। उसी को वह अपने पास आने देगा। |
6. | ऐ क़ोरह, कल अपने तमाम साथियों के साथ बख़ूरदान ले कर |
7. | रब्ब के सामने उन में अंगारे और बख़ूर डालो। जिस आदमी को रब्ब चुनेगा वह मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस होगा। अब तुम लावी ख़ुद ज़ियादती कर रहे हो।” |
8. | मूसा ने क़ोरह से बात जारी रखी, “ऐ लावी की औलाद, सुनो! |
9. | क्या तुम्हारी नज़र में यह कोई छोटी बात है कि रब्ब तुम्हें इस्राईली जमाअत के बाक़ी लोगों से अलग करके अपने क़रीब ले आया ताकि तुम रब्ब के मक़्दिस में और जमाअत के सामने खड़े हो कर उन की ख़िदमत करो? |
10. | वह तुझे और तेरे साथी लावियों को अपने क़रीब लाया है। लेकिन अब तुम इमाम का उह्दा भी अपनाना चाहते हो। |
11. | अपने साथियों से मिल कर तू ने हारून की नहीं बल्कि रब्ब की मुख़ालफ़त की है। क्यूँकि हारून कौन है कि तुम उस के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाओ?” |
12. | फिर मूसा ने इलियाब के बेटों दातन और अबीराम को बुलाया। लेकिन उन्हों ने कहा, “हम नहीं आएँगे। |
13. | आप हमें एक ऐसे मुल्क से निकाल लाए हैं जहाँ दूध और शहद की कस्रत है ताकि हम रेगिस्तान में हलाक हो जाएँ। क्या यह काफ़ी नहीं है? क्या अब आप हम पर हुकूमत भी करना चाहते हैं? |
14. | न आप ने हमें ऐसे मुल्क में पहुँचाया जिस में दूध और शहद की कस्रत है, न हमें खेतों और अंगूर के बाग़ों के वारिस बनाया है। क्या आप इन आदमियों की आँखें निकाल डालेंगे? नहीं, हम हरगिज़ नहीं आएँगे।” |
15. | तब मूसा निहायत ग़ुस्से हुआ। उस ने रब्ब से कहा, “उन की क़ुर्बानी को क़बूल न कर। मैं ने एक गधा तक उन से नहीं लिया, न मैं ने उन में से किसी से बुरा सुलूक किया है।” |
16. | क़ोरह से उस ने कहा, “कल तुम और तुम्हारे साथी रब्ब के सामने हाज़िर हो जाओ। हारून भी आएगा। |
17. | हर एक अपना बख़ूरदान ले कर उसे रब्ब को पेश करे।” |
18. | चुनाँचे हर आदमी ने अपना बख़ूरदान ले कर उस में अंगारे और बख़ूर डाल दिया। फिर सब मूसा और हारून के साथ मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर खड़े हुए। |
19. | क़ोरह ने पूरी जमाअत को दरवाज़े पर मूसा और हारून के मुक़ाबले में जमा किया था। अचानक पूरी जमाअत पर रब्ब का जलाल ज़ाहिर हुआ। |
20. | रब्ब ने मूसा और हारून से कहा, |
21. | “इस जमाअत से अलग हो जाओ ताकि मैं इसे फ़ौरन हलाक कर दूँ।” |
22. | मूसा और हारून मुँह के बल गिरे और बोल उठे, “ऐ अल्लाह, तू तमाम जानों का ख़ुदा है। क्या तेरा ग़ज़ब एक ही आदमी के गुनाह के सबब से पूरी जमाअत पर आन पड़ेगा?” |
23. | तब रब्ब ने मूसा से कहा, |
24. | “जमाअत को बता दे कि क़ोरह, दातन और अबीराम के डेरों से दूर हो जाओ।” |
25. | मूसा उठ कर दातन और अबीराम के पास गया, और इस्राईल के बुज़ुर्ग उस के पीछे चले। |
26. | उस ने जमाअत को आगाह किया, “इन शरीरों के ख़ैमों से दूर हो जाओ! जो कुछ भी उन के पास है उसे न छुओ, वर्ना तुम भी उन के साथ तबाह हो जाओगे जब वह अपने गुनाहों के बाइस हलाक होंगे।” |
27. | तब बाक़ी लोग क़ोरह, दातन और अबीराम के डेरों से दूर हो गए। दातन और अबीराम अपने बाल-बच्चों समेत अपने ख़ैमों से निकल कर बाहर खड़े थे। |
28. | मूसा ने कहा, “अब तुम्हें पता चलेगा कि रब्ब ने मुझे यह सब कुछ करने के लिए भेजा है। मैं अपनी नहीं बल्कि उस की मर्ज़ी पूरी कर रहा हूँ। |
29. | अगर यह लोग दूसरों की तरह तबई मौत मरें तो फिर रब्ब ने मुझे नहीं भेजा। |
30. | लेकिन अगर रब्ब ऐसा काम करे जो पहले कभी नहीं हुआ और ज़मीन अपना मुँह खोल कर उन्हें और उन का पूरा माल हड़प कर ले और उन्हें जीते जी दफ़ना दे तो इस का मतलब होगा कि इन आदमियों ने रब्ब को हक़ीर जाना है।” |
31. | यह बात कहते ही उन के नीचे की ज़मीन फट गई। |
32. | उस ने अपना मुँह खोल कर उन्हें, उन के ख़ान्दानों को, क़ोरह के तमाम लोगों को और उन का सारा सामान हड़प कर लिया। |
33. | वह अपनी पूरी मिल्कियत समेत जीते जी दफ़न हो गए। ज़मीन उन के ऊपर वापस आ गई। यूँ उन्हें जमाअत से निकाला गया और वह हलाक हो गए। |
34. | उन की चीख़ें सुन कर उन के इर्दगिर्द खड़े तमाम इस्राईली भाग उठे, क्यूँकि उन्हों ने सोचा, “ऐसा न हो कि ज़मीन हमें भी निगल ले।” |
35. | उसी लम्हे रब्ब की तरफ़ से आग उतर आई और उन 250 आदमियों को भस्म कर दिया जो बख़ूर पेश कर रहे थे। |
36. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
37. | “हारून इमाम के बेटे इलीअज़र को इत्तिला दे कि वह बख़ूरदानों को राख में से निकाल कर रखे। उन के अंगारे वह दूर फैंके। बख़ूरदानों को रखने का सबब यह है कि अब वह मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हैं। |
38. | लोग उन आदमियों के यह बख़ूरदान ले लें जो अपने गुनाह के बाइस जाँ-ब-हक़ हो गए। वह उन्हें कूट कर उन से चादरें बनाएँ और उन्हें जलने वाली क़ुर्बानियों की क़ुर्बानगाह पर चढ़ाएँ। क्यूँकि वह रब्ब को पेश किए गए हैं, इस लिए वह मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हैं। यूँ वह इस्राईलियों के लिए एक निशान रहेंगे।” |
39. | चुनाँचे इलीअज़र इमाम ने पीतल के यह बख़ूरदान जमा किए जो भस्म किए हुए आदमियों ने रब्ब को पेश किए थे। फिर लोगों ने उन्हें कूट कर उन से चादरें बनाईं और उन्हें क़ुर्बानगाह पर चढ़ा दिया। |
40. | हारून ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब्ब ने मूसा की मारिफ़त बताया था। मक़्सद यह था कि बख़ूरदान इस्राईलियों को याद दिलाते रहें कि सिर्फ़ हारून की औलाद ही को रब्ब के सामने आ कर बख़ूर जलाने की इजाज़त है। अगर कोई और ऐसा करे तो उस का हाल क़ोरह और उस के साथियों का सा होगा। |
41. | अगले दिन इस्राईल की पूरी जमाअत मूसा और हारून के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाने लगी। उन्हों ने कहा, “आप ने रब्ब की क़ौम को मार डाला है।” |
42. | लेकिन जब वह मूसा और हारून के मुक़ाबले में जमा हुए और मुलाक़ात के ख़ैमे का रुख़ किया तो अचानक उस पर बादल छा गया और रब्ब का जलाल ज़ाहिर हुआ। |
43. | फिर मूसा और हारून मुलाक़ात के ख़ैमे के सामने आए, |
44. | और रब्ब ने मूसा से कहा, |
45. | “इस जमाअत से निकल जाओ ताकि मैं इसे फ़ौरन हलाक कर दूँ।” यह सुन कर दोनों मुँह के बल गिरे। |
46. | मूसा ने हारून से कहा, “अपना बख़ूरदान ले कर उस में क़ुर्बानगाह के अंगारे और बख़ूर डालें। फिर भाग कर जमाअत के पास चले जाएँ ताकि उन का कफ़्फ़ारा दें। जल्दी करें, क्यूँकि रब्ब का ग़ज़ब उन पर टूट पड़ा है। वबा फैलने लगी है।” |
47. | हारून ने ऐसा ही किया। वह दौड़ कर जमाअत के बीच में गया। लोगों में वबा शुरू हो चुकी थी, लेकिन हारून ने रब्ब को बख़ूर पेश करके उन का कफ़्फ़ारा दिया। |
48. | वह ज़िन्दों और मुर्दों के बीच में खड़ा हुआ तो वबा रुक गई। |
49. | तो भी 14,700 अफ़राद वबा से मर गए। इस में वह शामिल नहीं हैं जो क़ोरह के सबब से मर गए थे। |
50. | जब वबा रुक गई तो हारून मूसा के पास वापस आया जो अब तक मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर खड़ा था। |
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