Nahum (3/3)    

1. उस क़ातिल शहर पर अफ़्सोस जो झूट और लूटे हुए माल से भरा हुआ है। वह लूट-मार से कभी बाज़ नहीं आता।
2. सुनो! चाबुक की आवाज़, चलते हुए रथों का शोर! घोड़े सरपट दौड़ रहे, रथ भाग भाग कर उछल रहे हैं।
3. घुड़सवार आगे बढ़ रहे, शोलाज़न तल्वारें और चमकते नेज़े नज़र आ रहे हैं। हर तरफ़ मक़्तूल ही मक़्तूल, बेशुमार लाशों के ढेर पड़े हैं। इतनी हैं कि लोग ठोकर खा खा कर उन पर से गुज़रते हैं।
4. यह होगा नीनवा का अन्जाम, उस दिलफ़रेब कस्बी और जादूगरनी का जिस ने अपनी जादूगरी और इस्मतफ़रोशी से अक़्वाम और उम्मतों को ग़ुलामी में बेच डाला।
5. रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है, “ऐ नीनवा बेटी, अब मैं तुझ से निपट लेता हूँ। मैं तेरा लिबास तेरे सर के ऊपर उठाऊँगा कि तेरा नंगापन अक़्वाम को नज़र आए और तेरा मुँह दीगर ममालिक के सामने काला हो जाए।
6. मैं तुझ पर कूड़ा-कर्कट फैंक कर तेरी तह्क़ीर करूँगा। तू दूसरों के लिए तमाशा बन जाएगी।
7. तब सब तुझे देख कर भाग जाएँगे। वह कहेंगे, ‘नीनवा तबाह हो गई है!’ अब उस पर अफ़्सोस करने वाला कौन रहा? अब मुझे कहाँ से लोग मिलेंगे जो तुझे तसल्ली दें?”
8. क्या तू थीबस शहर से बेहतर है, जो दरया-ए-नील पर वाक़े था? वह तो पानी से घिरा हुआ था, और पानी ही उसे हम्लों से मह्फ़ूज़ रखता था।
9. एथोपिया और मिस्र के फ़ौजी उस के लिए ला-मह्दूद ताक़त का बाइस थे, फ़ूत और लिबिया उस के इत्तिहादी थे।
10. तो भी वह क़ैदी बन कर जिलावतन हुआ। हर गली के कोने में उस के शीरख़्वार बच्चों को ज़मीन पर पटख़ दिया गया। उस के शुरफ़ा क़ुरआ-अन्दाज़ी के ज़रीए तक़्सीम हुए, उस के तमाम बुज़ुर्ग ज़न्जीरों में जकड़े गए।
11. ऐ नीनवा बेटी, तू भी नशे में धुत हो जाएगी। तू भी हवासबाख़्ता हो कर दुश्मन से पनाह लेने की कोशिश करेगी।
12. तेरे तमाम क़िलए पके फल से लदे हुए अन्जीर के दरख़्त हैं। जब उन्हें हिलाया जाए तो अन्जीर फ़ौरन खाने वाले के मुँह में गिर जाते हैं।
13. लो, तेरे तमाम दस्ते औरतें बन गए हैं। तेरे मुल्क के दरवाज़े दुश्मन के लिए पूरे तौर पर खोले गए, तेरे कुंडे नज़र-ए-आतिश हो गए हैं।
14. ख़ूब पानी जमा कर ताकि मुहासरे के दौरान काफ़ी हो। अपनी क़िलआबन्दी मज़ीद मज़्बूत कर! गारे को पाँओ से लताड़ लताड़ कर ईंटें बना ले!
15. ताहम आग तुझे भस्म करेगी, तल्वार तुझे मार डालेगी, हाँ वह तुझे टिड्डियों की तरह खा जाएगी। बचने का कोई इम्कान नहीं होगा, ख़्वाह तू टिड्डियों की तरह बेशुमार क्यूँ न हो जाए।
16. बेशक तेरे ताजिर सितारों जितने लातादाद हो गए हैं, लेकिन अचानक वह टिड्डियों के बच्चों की तरह अपनी केंचली को उतार लेंगे और उड़ कर ग़ाइब हो जाएँगे।
17. तेरे दरबारी टिड्डियों जैसे और तेरे अफ़्सर टिड्डी दलों की मानिन्द हैं जो सर्दियों के मौसम में दीवारों के साथ चिपक जाती लेकिन धूप निकलते ही उड़ कर ओझल हो जाती हैं। किसी को भी पता नहीं कि वह कहाँ चली गई हैं।
18. ऐ असूर के बादशाह, तेरे चरवाहे गहरी नींद सो रहे, तेरे शुरफ़ा आराम कर रहे हैं। तेरी क़ौम पहाड़ों पर मुन्तशिर हो गई है, और कोई नहीं जो उन्हें दुबारा जमा करे।
19. तेरी चोट भर ही नहीं सकती, तेरा ज़ख़्म लाइलाज है। जिसे भी तेरे अन्जाम की ख़बर मिले वह ताली बजायगा। क्यूँकि सब को तेरा मुसल्सल ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद बर्दाश्त करना पड़ा।

  Nahum (3/3)