Nahum (2/3)  

1. ऐ नीनवा, सब कुछ मुन्तशिर करने वाला तुझ पर हम्ला करने आ रहा है, चुनाँचे क़िलए की पहरादारी कर! रास्ते पर ध्यान दे, कमरबस्ता हो जा, जहाँ तक मुम्किन है दिफ़ा की तय्यारियाँ कर!
2. गो याक़ूब तबाह और उस के अंगूरों के बाग़ नाबूद हो गए हैं, लेकिन अब रब्ब इस्राईल की शान-ओ-शौकत बहाल करेगा।
3. वह देखो, नीनवा पर हम्ला करने वाले सूर्माओं की ढालें सुर्ख़ हैं, फ़ौजी क़िर्मिज़ी रंग की वर्दियाँ पहने हुए हैं। दुश्मन ने अपने रथों को तय्यार कर रखा है, और वह भड़कती मशअलों की तरह चमक रहे हैं। साथ साथ सिपाही अपने नेज़े लहरा रहे हैं।
4. अब रथ गलियों में से अंधा-धुन्द गुज़र रहे हैं। चौकों में वह इधर उधर भाग रहे हैं। यूँ लग रहा है कि भड़कती मशअलें या बादल की बिजलियाँ इधर उधर चमक रही हैं।
5. हुक्मरान अपने चीदा अफ़्सरों को बुला लेता है, और वह ठोकर खा खा कर आगे बढ़ते हैं। वह दौड़ कर फ़सील के पास पहुँच जाते, जल्दी से हिफ़ाज़ती ढाल खड़ी करते हैं।
6. फिर दरया के दरवाज़े खुल जाते और शाही महल लड़खड़ाने लगता है।
7. तब दुश्मन मलिका के कपड़े उतार कर उसे ले जाते हैं। उस की लौंडियाँ छाती पीट पीट कर कबूतरों की तरह ग़ूँ ग़ूँ करती हैं।
8. नीनवा बड़ी देर से अच्छे-ख़ासे तालाब की मानिन्द था, लेकिन अब लोग उस से भाग रहे हैं। लोगों को कहा जाता है, “रुक जाओ, रुको तो सही!” लेकिन कोई नहीं रुकता। सब सर पर पाँओ रख कर शहर से भाग रहे हैं, और कोई नहीं मुड़ता।
9. आओ, नीनवा की चाँदी लूट लो, उस का सोना छीन लो! क्यूँकि ज़ख़ीरे की इन्तिहा नहीं, उस के ख़ज़ानों की दौलत ला-मह्दूद है।
10. लूटने वाले कुछ नहीं छोड़ते। जल्द ही शहर ख़ाली और वीरान-ओ-सुन्सान हो जाता है। हर दिल हौसला हार जाता, हर घुटना काँप उठता, हर कमर थरथराने लगती और हर चिहरे का रंग माँद पड़ जाता है।
11. अब नीनवा बेटी की क्या हैसियत रही? पहले वह शेरबबर की मान्द थी, ऐसी जगह जहाँ जवान शेरों को गोश्त खिलाया जाता, जहाँ शेर और शेरनी अपने बच्चों समेत टहलते थे। कोई उन्हें डरा कर भगा नहीं सकता था।
12. उस वक़्त शेर अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ फाड़ लेता और अपनी शेरनियों के लिए भी गला घूँट कर मार डालता था। उस की मान्दें और छुपने की जगहें फाड़े हुए शिकार से भरी रहती थीं।
13. रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है, “ऐ नीनवा, अब मैं तुझ से निपट लेता हूँ। मैं तेरे रथों को नज़र-ए-आतिश कर दूँगा, और तेरे जवान शेर तल्वार की ज़द में आ कर मर जाएँगे। मैं होने दूँगा कि आइन्दा तुझे ज़मीन पर कुछ न मिले जिसे फाड़ कर खा सके। आइन्दा तेरे क़ासिदों की आवाज़ कभी सुनाई नहीं देगी।”

  Nahum (2/3)