| ← Micah (5/7) → | 
| 1. | ऐ शहर जिस पर हम्ला हो रहा है, अब अपने आप को छुरी से ज़ख़्मी कर, क्यूँकि हमारा मुहासरा हो रहा है। दुश्मन लाठी से इस्राईल के हुक्मरान के गाल पर मारेगा। | 
| 2. | लेकिन तू, ऐ बैत-लहम इफ़्राता, जो यहूदाह के दीगर ख़ान्दानों की निस्बत छोटा है, तुझ में से वह निकलेगा जो इस्राईल का हुक्मरान होगा और जो क़दीम ज़माने बल्कि अज़ल से सादिर हुआ है। | 
| 3. | लेकिन जब तक हामिला औरत उसे जन्म न दे, उस वक़्त तक रब्ब अपनी क़ौम को दुश्मन के हवाले छोड़ेगा। लेकिन फिर उस के भाइयों का बचा हुआ हिस्सा इस्राईलियों के पास वापस आएगा। | 
| 4. | यह हुक्मरान खड़े हो कर रब्ब की क़ुव्वत के साथ अपने रेवड़ की गल्लाबानी करेगा। उसे रब्ब अपने ख़ुदा के नाम का अज़ीम इख़तियार हासिल होगा। तब क़ौम सलामती से बसेगी, क्यूँकि उस की अज़्मत दुनिया की इन्तिहा तक फैलेगी। | 
| 5. | वही सलामती का मम्बा होगा। जब असूर की फ़ौज हमारे मुल्क में दाख़िल हो कर हमारे महलों में घुस आए तो हम उस के ख़िलाफ़ सात चरवाहे और आठ रईस खड़े करेंगे | 
| 6. | जो तल्वार से मुल्क-ए-असूर की गल्लाबानी करेंगे, हाँ तल्वार को मियान से खैंच कर नमरूद के मुल्क पर हुकूमत करेंगे। यूँ हुक्मरान हमें असूर से बचाएगा जब यह हमारे मुल्क और हमारी सरहद्द में घुस आएगा। | 
| 7. | तब याक़ूब के जितने लोग बच कर मुतअद्दिद अक़्वाम के बीच में रहेंगे वह रब्ब की भेजी हुई ओस या हरियाली पर पड़ने वाली बारिश की मानिन्द होंगे यानी ऐसी चीज़ों की मानिन्द जो न किसी इन्सान के इन्तिज़ार में रहती, न किसी इन्सान के हुक्म पर पड़ती हैं। | 
| 8. | याक़ूब के जितने लोग बच कर मुतअद्दिद अक़्वाम के बीच में रहेंगे वह जंगली जानवरों के दर्मियान शेरबबर और भेड़-बक्रियों के बीच में जवान शेर की मानिन्द होंगे यानी ऐसे जानवर की मानिन्द जो जहाँ से भी गुज़रे जानवरों को रौंद कर फाड़ लेता है। उस के हाथ से कोई बचा नहीं सकता। | 
| 9. | तेरा हाथ तेरे तमाम मुख़ालिफ़ों पर फ़त्ह पाएगा, तेरे तमाम दुश्मन नेस्त-ओ-नाबूद हो जाएँगे। | 
| 10. | रब्ब फ़रमाता है, “उस दिन मैं तेरे घोड़ों को नेस्त और तेरे रथों को नाबूद करूँगा। | 
| 11. | मैं तेरे मुल्क के शहरों को ख़ाक में मिला कर तेरे तमाम क़िलओं को गिरा दूँगा। | 
| 12. | तेरी जादूगरी को मैं मिटा डालूँगा, क़िस्मत का हाल बताने वाले तेरे बीच में नहीं रहेंगे। | 
| 13. | तेरे बुत और तेरे मख़्सूस सतूनों को मैं यूँ तबाह करूँगा कि तू आइन्दा अपने हाथ की बनाई हुई चीज़ों की पूजा नहीं करेगा। | 
| 14. | तेरे असीरत देवी के खम्बे मैं उखाड़ कर तेरे शहरों को मिस्मार करूँगा। | 
| 15. | उस वक़्त मैं बड़े ग़ुस्से से उन क़ौमों से इन्तिक़ाम लूँगा जिन्हों ने मेरी नहीं सुनी।” | 
| ← Micah (5/7) → |