Matthew (9/28)  

1. कश्ती में बैठ कर ईसा ने झील को पार किया और अपने शहर पहुँच गया।
2. वहाँ एक मफ़्लूज आदमी को चारपाई पर डाल कर उस के पास लाया गया। उन का ईमान देख कर ईसा ने कहा, “बेटा, हौसला रख। तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं।”
3. यह सुन कर शरीअत के कुछ उलमा दिल में कहने लगे, “यह कुफ़्र बक रहा है!”
4. ईसा ने जान लिया कि यह क्या सोच रहे हैं, इस लिए उस ने उन से पूछा,
5. “तुम दिल में बरी बातें क्यूँ सोच रहे हो? क्या मफ़्लूज से यह कहना ज़ियादा आसान है कि ‘तेरे गुनाह मुआफ़ कर दिए गए हैं’ या यह कि ‘उठ और चल फिर?’
6. लेकिन मैं तुम को दिखाता हूँ कि इब्न-ए-आदम को वाक़ई दुनिया में गुनाह मुआफ़ करने का इख़तियार है।” यह कह कर वह मफ़्लूज से मुख़ातिब हुआ, “उठ, अपनी चारपाई उठा कर घर चला जा।”
7. वह आदमी खड़ा हुआ और अपने घर चला गया।
8. यह देख कर हुजूम पर अल्लाह का ख़ौफ़ तारी हो गया और वह अल्लाह की तम्जीद करने लगे कि उस ने इन्सान को इस क़िस्म का इख़तियार दिया है।
9. आगे जा कर ईसा ने एक आदमी को देखा जो टैक्स लेने वालों की चौकी पर बैठा था। उस का नाम मत्ती था। ईसा ने उस से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” और मत्ती उठ कर उस के पीछे हो लिया।
10. बाद में ईसा मत्ती के घर में खाना खा रहा था। बहुत से टैक्स लेने वाले और गुनाहगार भी आ कर ईसा और उस के शागिर्दों के साथ खाने में शरीक हुए।
11. यह देख कर फ़रीसियों ने उस के शागिर्दों से पूछा, “आप का उस्ताद टैक्स लेने वालों और गुनाहगारों के साथ क्यूँ खाता है?”
12. यह सुन कर ईसा ने कहा, “सेहतमन्दों को डाक्टर की ज़रूरत नहीं होती बल्कि मरीज़ों को।
13. पहले जाओ और कलाम-ए-मुक़द्दस की इस बात का मतलब जान लो कि ‘मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि रहम पसन्द करता हूँ।’ क्यूँकि मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ।”
14. फिर यहया के शागिर्द उस के पास आए और पूछा, “आप के शागिर्द रोज़ा क्यूँ नहीं रखते जबकि हम और फ़रीसी रोज़ा रखते हैं?”
15. ईसा ने जवाब दिया, “शादी के मेहमान किस तरह मातम कर सकते हैं जब तक दूल्हा उन के दर्मियान है? लेकिन एक दिन आएगा जब दूल्हा उन से ले लिया जाएगा। उस वक़्त वह ज़रूर रोज़ा रखेंगे।
16. कोई भी नए कपड़े का टुकड़ा किसी पुराने लिबास में नहीं लगाता। अगर वह ऐसा करे तो नया टुकड़ा बाद में सुकड़ कर पुराने लिबास से अलग हो जाएगा। यूँ पुराने लिबास की फटी हुई जगह पहले की निस्बत ज़ियादा ख़राब हो जाएगी।
17. इसी तरह अंगूर का ताज़ा रस पुरानी और बेलचक मश्कों में नहीं डाला जाता। अगर ऐसा किया जाए तो पुरानी मश्कें पैदा होने वाली गैस के बाइस फट जाएँगी। नतीजे में मै और मश्कें दोनों ज़ाए हो जाएँगी। इस लिए अंगूर का ताज़ा रस नई मश्कों में डाला जाता है जो लचकदार होती हैं। यूँ रस और मश्कें दोनों ही मह्फ़ूज़ रहते हैं।”
18. ईसा अभी यह बयान कर रहा था कि एक यहूदी राहनुमा ने गिर कर उसे सिज्दा किया और कहा, “मेरी बेटी अभी अभी मरी है। लेकिन आ कर अपना हाथ उस पर रखें तो वह दुबारा ज़िन्दा हो जाएगी।”
19. ईसा उठ कर अपने शागिर्दों समेत उस के साथ हो लिया।
20. चलते चलते एक औरत ने पीछे से आ कर ईसा के लिबास का किनारा छुआ। यह औरत बारह साल से ख़ून बहने की मरीज़ा थी
21. और वह सोच रही थी, “अगर मैं सिर्फ़ उस के लिबास को ही छू लूँ तो शिफ़ा पा लूँगी।”
22. ईसा ने मुड़ कर उसे देखा और कहा, “बेटी, हौसला रख! तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है।” और औरत को उसी वक़्त शिफ़ा मिल गई।
23. फिर ईसा राहनुमा के घर में दाख़िल हुआ। बाँसरी बजाने वाले और बहुत से लोग पहुँच चुके थे और बहुत शोर-शराबा था। यह देख कर
24. ईसा ने कहा, “निकल जाओ! लड़की मर नहीं गई बल्कि सो रही है।” लोग हंस कर उस का मज़ाक़ उड़ाने लगे।
25. लेकिन जब सब को निकाल दिया गया तो वह अन्दर गया। उस ने लड़की का हाथ पकड़ा तो वह उठ खड़ी हुई।
26. इस मोजिज़े की ख़बर उस पूरे इलाक़े में फैल गई।
27. जब ईसा वहाँ से रवाना हुआ तो दो अंधे उस के पीछे चल कर चिल्लाने लगे, “इब्न-ए-दाऊद, हम पर रहम करें।”
28. जब ईसा किसी के घर में दाख़िल हुआ तो वह उस के पास आए। ईसा ने उन से पूछा, “क्या तुम्हारा ईमान है कि मैं यह कर सकता हूँ?” उन्हों ने जवाब दिया, “जी, ख़ुदावन्द।”
29. फिर उस ने उन की आँखें छू कर कहा, “तुम्हारे साथ तुम्हारे ईमान के मुताबिक़ हो जाए।”
30. उन की आँखें बहाल हो गईं और ईसा ने सख़्ती से उन्हें कहा, “ख़बरदार, किसी को भी इस का पता न चले!”
31. लेकिन वह निकल कर पूरे इलाक़े में उस की ख़बर फैलाने लगे।
32. जब वह निकल रहे थे तो एक गूँगा आदमी ईसा के पास लाया गया जो किसी बदरुह के क़ब्ज़े में था।
33. जब बदरुह को निकाला गया तो गूँगा बोलने लगा। हुजूम हैरान रह गया। उन्हों ने कहा, “ऐसा काम इस्राईल में कभी नहीं देखा गया।”
34. लेकिन फ़रीसियों ने कहा, “वह बदरूहों के सरदार ही की मदद से बदरूहों को निकालता है।”
35. और ईसा सफ़र करते करते तमाम शहरों और गाँओ में से गुज़रा। जहाँ भी वह पहुँचा वहाँ उस ने उन के इबादतख़ानों में तालीम दी, बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाई और हर क़िस्म के मर्ज़ और अलालत से शिफ़ा दी।
36. हुजूम को देख कर उसे उन पर बड़ा तरस आया, क्यूँकि वह पिसे हुए और बेबस थे, ऐसी भेड़ों की तरह जिन का चरवाहा न हो।
37. उस ने अपने शागिर्दों से कहा, “फ़सल बहुत है, लेकिन मज़्दूर कम।
38. इस लिए फ़सल के मालिक से गुज़ारिश करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़ीद मज़्दूर भेज दे।”

  Matthew (9/28)