Matthew (27/28)  

1. सुब्ह-सवेरे तमाम राहनुमा इमाम और क़ौम के तमाम बुज़ुर्ग इस फ़ैसले तक पहुँच गए कि ईसा को सज़ा-ए-मौत दी जाए।
2. वह उसे बाँध कर वहाँ से ले गए और रोमी गवर्नर पीलातुस के हवाले कर दिया।
3. जब यहूदा ने जिस ने उसे दुश्मन के हवाले कर दिया था देखा कि उस पर सज़ा-ए-मौत का फ़त्वा दे दिया गया है तो उस ने पछता कर चाँदी के 30 सिक्के राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों को वापस कर दिए।
4. उस ने कहा, “मैं ने गुनाह किया है, क्यूँकि एक बेक़ुसूर आदमी को सज़ा-ए-मौत दी गई है और मैं ही ने उसे आप के हवाले किया है।” उन्हों ने जवाब दिया, “हमें क्या! यह तेरा मसला है।”
5. यहूदा चाँदी के सिक्के बैत-उल-मुक़द्दस में फैंक कर चला गया। फिर उस ने जा कर फाँसी ले ली।
6. राहनुमा इमामों ने सिक्कों को जमा करके कहा, “शरीअत यह पैसे बैत-उल-मुक़द्दस के ख़ज़ाने में डालने की इजाज़त नहीं देती, क्यूँकि यह ख़ूँरेज़ी का मुआवज़ा है।”
7. आपस में मश्वरा करने के बाद उन्हों ने कुम्हार का खेत ख़रीदने का फ़ैसला किया ताकि परदेसियों को दफ़नाने के लिए जगह हो।
8. इस लिए यह खेत आज तक ख़ून का खेत कहलाता है।
9. यूँ यरमियाह नबी की यह पेशगोई पूरी हुई कि “उन्हों ने चाँदी के 30 सिक्के लिए यानी वह रक़म जो इस्राईलियों ने उस के लिए लगाई थी।
10. इन से उन्हों ने कुम्हार का खेत ख़रीद लिया, बिलकुल ऐसा जिस तरह रब्ब ने मुझे हुक्म दिया था।”
11. इतने में ईसा को रोमी गवर्नर पीलातुस के सामने पेश किया गया। उस ने उस से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?” ईसा ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।”
12. लेकिन जब राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने उस पर इल्ज़ाम लगाए तो ईसा ख़ामोश रहा।
13. चुनाँचे पीलातुस ने दुबारा उस से सवाल किया, “क्या तुम यह तमाम इल्ज़ामात नहीं सुन रहे जो तुम पर लगाए जा रहे हैं?”
14. लेकिन ईसा ने एक इल्ज़ाम का भी जवाब न दिया, इस लिए गवर्नर निहायत हैरान हुआ।
15. उन दिनों यह रिवाज था कि गवर्नर हर साल फ़सह की ईद पर एक क़ैदी को आज़ाद कर देता था। यह क़ैदी हुजूम से मुन्तख़ब किया जाता था।
16. उस वक़्त जेल में एक बदनाम क़ैदी था। उस का नाम बर-अब्बा था।
17. चुनाँचे जब हुजूम जमा हुआ तो पीलातुस ने उस से पूछा, “तुम क्या चाहते हो? मैं बर-अब्बा को आज़ाद करूँ या ईसा को जो मसीह कहलाता है?”
18. वह तो जानता था कि उन्हों ने ईसा को सिर्फ़ हसद की बिना पर उस के हवाले किया है।
19. जब पीलातुस यूँ अदालत के तख़्त पर बैठा था तो उस की बीवी ने उसे पैग़ाम भेजा, “इस बेक़ुसूर आदमी को हाथ न लगाएँ, क्यूँकि मुझे पिछली रात इस के बाइस ख़्वाब में शदीद तक्लीफ़ हुई।”
20. लेकिन राहनुमा इमामों और क़ौम के बुज़ुर्गों ने हुजूम को उकसाया कि वह बर-अब्बा को माँगें और ईसा की मौत तलब करें। गवर्नर ने दुबारा पूछा,
21. “मैं इन दोनों में से किस को तुम्हारे लिए आज़ाद करूँ?” वह चिल्लाए, “बर-अब्बा को।”
22. पीलातुस ने पूछा, “फिर मैं ईसा के साथ क्या करूँ जो मसीह कहलाता है?” वह चीख़े, “उसे मस्लूब करें।”
23. पीलातुस ने पूछा, “क्यूँ? उस ने क्या जुर्म किया है?” लेकिन लोग मज़ीद शोर मचा कर चीख़ते रहे, “उसे मस्लूब करें!”
24. पीलातुस ने देखा कि वह किसी नतीजे तक नहीं पहुँच रहा बल्कि हंगामा बरपा हो रहा है। इस लिए उस ने पानी ले कर हुजूम के सामने अपने हाथ धोए। उस ने कहा, “अगर इस आदमी को क़त्ल किया जाए तो मैं बेक़ुसूर हूँ, तुम ही उस के लिए जवाबदिह ठहरो।”
25. तमाम लोगों ने जवाब दिया, “हम और हमारी औलाद उस के ख़ून के जवाबदिह हैं।”
26. फिर उस ने बर-अब्बा को आज़ाद करके उन्हें दे दिया। लेकिन ईसा को उस ने कोड़े लगाने का हुक्म दिया, फिर उसे मस्लूब करने के लिए फ़ौजियों के हवाले कर दिया।
27. गवर्नर के फ़ौजी ईसा को महल बनाम प्रैटोरियुम के सहन में ले गए और पूरी पलटन को उस के इर्दगिर्द इकट्ठा किया।
28. उस के कपड़े उतार कर उन्हों ने उसे अर्ग़वानी रंग का लिबास पहनाया,
29. फिर काँटेदार टहनियों का एक ताज बना कर उस के सर पर रख दिया। उस के दहने हाथ में छड़ी पकड़ा कर उन्हों ने उस के सामने घुटने टेक कर उस का मज़ाक़ उड़ाया, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!”
30. वह उस पर थूकते रहे, छड़ी ले कर बार बार उस के सर को मारा।
31. फिर उस का मज़ाक़ उड़ाने से थक कर उन्हों ने अर्ग़वानी लिबास उतार कर उसे दुबारा उस के अपने कपड़े पहनाए और उसे मस्लूब करने के लिए ले गए।
32. शहर से निकलते वक़्त उन्हों ने एक आदमी को देखा जो लिबिया के शहर कुरेन का रहने वाला था। उस का नाम शमाऊन था। उसे उन्हों ने सलीब उठा कर ले जाने पर मज्बूर किया।
33. यूँ चलते चलते वह एक मक़ाम तक पहुँच गए जिस का नाम गुल्गुता (यानी खोपड़ी का मक़ाम) था।
34. वहाँ उन्हों ने उसे मै पेश की जिस में कोई कड़वी चीज़ मिलाई गई थी। लेकिन चख कर ईसा ने उसे पीने से इन्कार कर दिया।
35. फिर फ़ौजियों ने उसे मस्लूब किया और उस के कपड़े आपस में बाँट लिए। यह फ़ैसला करने के लिए कि किस को क्या क्या मिले उन्हों ने क़ुरआ डाला।
36. यूँ वह वहाँ बैठ कर उस की पहरादारी करते रहे।
37. सलीब पर ईसा के सर के ऊपर एक तख़्ती लगा दी गई जिस पर यह इल्ज़ाम लिखा था, “यह यहूदियों का बादशाह ईसा है।”
38. दो डाकुओं को भी ईसा के साथ मस्लूब किया गया, एक को उस के दहने हाथ और दूसरे को उस के बाएँ हाथ।
39. जो वहाँ से गुज़रे उन्हों ने कुफ़्र बक कर उस की तज़्लील की और सर हिला हिला कर अपनी हिक़ारत का इज़्हार किया।
40. उन्हों ने कहा, “तू ने तो कहा था कि मैं बैत-उल-मुक़द्दस को ढा कर उसे तीन दिन के अन्दर अन्दर दुबारा तामीर कर दूँगा। अब अपने आप को बचा! अगर तू वाक़ई अल्लाह का फ़र्ज़न्द है तो सलीब पर से उतर आ।”
41. राहनुमा इमामों, शरीअत के उलमा और क़ौम के बुज़ुर्गों ने भी ईसा का मज़ाक़ उड़ाया,
42. “इस ने औरों को बचाया, लेकिन अपने आप को नहीं बचा सकता। यह इस्राईल का बादशाह है! अभी यह सलीब पर से उतर आए तो हम इस पर ईमान ले आएँगे।
43. इस ने अल्लाह पर भरोसा रखा है। अब अल्लाह इसे बचाए अगर वह इसे चाहता है, क्यूँकि इस ने कहा, ‘मैं अल्लाह का फ़र्ज़न्द हूँ’।”
44. और जिन डाकुओं को उस के साथ मस्लूब किया गया था उन्हों ने भी उसे लान-तान की।
45. दोपहर बारह बजे पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। यह तारीकी तीन घंटों तक रही।
46. फिर तीन बजे ईसा ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “एली, एली, लमा शबक़तनी” जिस का मतलब है, “ऐ मेरे ख़ुदा, ऐ मेरे ख़ुदा, तू ने मुझे क्यूँ तर्क कर दिया है?”
47. यह सुन कर पास खड़े कुछ लोग कहने लगे, “वह इल्यास नबी को बुला रहा है।”
48. उन में से एक ने फ़ौरन दौड़ कर एक इस्फ़ंज को मै के सिरके में डुबोया और उसे डंडे पर लगा कर ईसा को चुसाने की कोशिश की।
49. दूसरों ने कहा, “आओ, हम देखें, शायद इल्यास आ कर उसे बचाए।”
50. लेकिन ईसा ने दुबारा बड़े ज़ोर से चिल्ला कर दम छोड़ दिया।
51. उसी वक़्त बैत-उल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने लटका हुआ पर्दा ऊपर से ले कर नीचे तक दो हिस्सों में फट गया। ज़ल्ज़ला आया, चटानें फट गईं
52. और क़ब्रें खुल गईं। कई मर्हूम मुक़द्दसीन के जिस्मों को ज़िन्दा कर दिया गया।
53. वह ईसा के जी उठने के बाद क़ब्रों में से निकल कर मुक़द्दस शहर में दाख़िल हुए और बहुतों को नज़र आए।
54. जब पास खड़े रोमी अफ़्सर और ईसा की पहरादारी करने वाले फ़ौजियों ने ज़ल्ज़ला और यह तमाम वाक़िआत देखे तो वह निहायत दह्शतज़दा हो गए। उन्हों ने कहा, “यह वाक़ई अल्लाह का फ़र्ज़न्द था।”
55. बहुत सी ख़वातीन भी वहाँ थीं जो कुछ फ़ासिले पर इस का मुशाहदा कर रही थीं। वह गलील में ईसा के पीछे चल कर यहाँ तक उस की ख़िदमत करती आई थीं।
56. उन में मरियम मग्दलीनी, याक़ूब और यूसुफ़ की माँ मरियम और ज़ब्दी के बेटों याक़ूब और यूहन्ना की माँ भी थीं।
57. जब शाम होने को थी तो अरिमतियाह का एक दौलतमन्द आदमी बनाम यूसुफ़ आया। वह भी ईसा का शागिर्द था।
58. उस ने पीलातुस के पास जा कर ईसा की लाश माँगी, और पीलातुस ने हुक्म दिया कि वह उसे दे दी जाए।
59. यूसुफ़ ने लाश को ले कर उसे कतान के एक साफ़ कफ़न में लपेटा
60. और अपनी ज़ाती ग़ैरइस्तेमालशुदा क़ब्र में रख दिया जो चटान में तराशी गई थी। आख़िर में उस ने एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर क़ब्र का मुँह बन्द कर दिया और चला गया।
61. उस वक़्त मरियम मग्दलीनी और दूसरी मरियम क़ब्र के मुक़ाबिल बैठी थीं।
62. अगले दिन, जो सबत का दिन था, राहनुमा इमाम और फ़रीसी पीलातुस के पास आए।
63. “जनाब,” उन्हों ने कहा, “हमें याद आया कि जब वह धोकेबाज़ अभी ज़िन्दा था तो उस ने कहा था, ‘तीन दिन के बाद मैं जी उठूँगा।’
64. इस लिए हुक्म दें कि क़ब्र को तीसरे दिन तक मह्फ़ूज़ रखा जाए। ऐसा न हो कि उस के शागिर्द आ कर उस की लाश को चुरा ले जाएँ और लोगों को बताएँ कि वह मुर्दों में से जी उठा है। अगर ऐसा हुआ तो यह आख़िरी धोका पहले धोके से भी ज़ियादा बड़ा होगा।”
65. पीलातुस ने जवाब दिया, “पहरेदारों को ले कर क़ब्र को इतना मह्फ़ूज़ कर दो जितना तुम कर सकते हो।”
66. चुनाँचे उन्हों ने जा कर क़ब्र को मह्फ़ूज़ कर लिया। क़ब्र के मुँह पर पड़े पत्थर पर मुहर लगा कर उन्हों ने उस पर पहरेदार मुक़र्रर कर दिए।

  Matthew (27/28)