Matthew (24/28)  

1. ईसा बैत-उल-मुक़द्दस को छोड़ कर निकल रहा था कि उस के शागिर्द उस के पास आए और बैत-उल-मुक़द्दस की मुख़्तलिफ़ इमारतों की तरफ़ उस की तवज्जुह दिलाने लगे।
2. लेकिन ईसा ने जवाब में कहा, “क्या तुम को यह सब कुछ नज़र आता है? मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि यहाँ पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा बल्कि सब कुछ ढा दिया जाएगा।”
3. बाद में ईसा ज़ैतून के पहाड़ पर बैठ गया। शागिर्द अकेले उस के पास आए। उन्हों ने कहा, “हमें ज़रा बताएँ, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिस से पता चलेगा कि आप आने वाले हैं और यह दुनिया ख़त्म होने वाली है?”
4. ईसा ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे।
5. क्यूँकि बहुत से लोग मेरा नाम ले कर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ।’ यूँ वह बहुतों को गुमराह कर देंगे।
6. जंगों की ख़बरें और अफ़्वाहें तुम तक पहुँचेंगी, लेकिन मुह्तात रहो ताकि तुम घबरा न जाओ। क्यूँकि लाज़िम है कि यह सब कुछ पेश आए। तो भी अभी आख़िरत नहीं होगी।
7. एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी, और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़। काल पड़ेंगे और जगह जगह ज़ल्ज़ले आएँगे।
8. लेकिन यह सिर्फ़ दर्द-ए-ज़ह की इबतिदा ही होगी।
9. फिर वह तुम को बड़ी मुसीबत में डाल देंगे और तुम को क़त्ल करेंगे। तमाम क़ौमें तुम से इस लिए नफ़रत करेंगी कि तुम मेरे पैरोकार हो।
10. उस वक़्त बहुत से लोग ईमान से बर्गश्ता हो कर एक दूसरे को दुश्मन के हवाले करेंगे और एक दूसरे से नफ़रत करेंगे।
11. बहुत से झूटे नबी खड़े हो कर बहुत से लोगों को गुमराह कर देंगे।
12. बेदीनी के बढ़ जाने की वजह से बेशतर लोगों की मुहब्बत ठंडी पड़ जाएगी।
13. लेकिन जो आख़िर तक क़ाइम रहेगा उसे नजात मिलेगी।
14. और बादशाही की इस ख़ुशख़बरी के पैग़ाम का एलान पूरी दुनिया में किया जाएगा ताकि तमाम क़ौमों के सामने उस की गवाही दी जाए। फिर ही आख़िरत आएगी।
15. एक दिन आएगा जब तुम मुक़द्दस मक़ाम में वह कुछ खड़ा देखोगे जिस का ज़िक्र दान्याल नबी ने किया और जो बेहुरमती और तबाही का बाइस है।” (क़ारी इस पर ध्यान दे!)
16. “उस वक़्त यहूदिया के रहने वाले भाग कर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें।
17. जो अपने घर की छत पर हो वह घर में से कुछ साथ ले जाने के लिए न उतरे।
18. जो खेत में हो वह अपनी चादर साथ ले जाने के लिए वापस न जाए।
19. उन ख़वातीन पर अफ़्सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों।
20. दुआ करो कि तुम को सर्दियों के मौसम में या सबत के दिन हिज्रत न करनी पड़े।
21. क्यूँकि उस वक़्त ऐसी शदीद मुसीबत होगी कि दुनिया की तख़्लीक़ से आज तक देखने में न आई होगी। इस क़िस्म की मुसीबत बाद में भी कभी नहीं आएगी।
22. और अगर इस मुसीबत का दौरानिया मुख़्तसर न किया जाता तो कोई न बचता। लेकिन अल्लाह के चुने हुओं की ख़ातिर इस का दौरानिया मुख़्तसर कर दिया जाएगा।
23. उस वक़्त अगर कोई तुम को बताए, ‘देखो, मसीह यहाँ है’ या ‘वह वहाँ है’ तो उस की बात न मानना।
24. क्यूँकि झूटे मसीह और झूटे नबी उठ खड़े होंगे जो बड़े अजीब-ओ-ग़रीब निशान और मोजिज़े दिखाएँगे ताकि अल्लाह के चुने हुए लोगों को भी ग़लत रास्ते पर डाल दें - अगर यह मुम्किन होता।
25. देखो, मैं ने तुम्हें पहले से इस से आगाह कर दिया है।
26. चुनाँचे अगर कोई तुम को बताए, ‘देखो, वह रेगिस्तान में है’ तो वहाँ जाने के लिए न निकलना। और अगर कोई कहे, ‘देखो, वह अन्दरूनी कमरों में है’ तो उस का यक़ीन न करना।
27. क्यूँकि जिस तरह बादल की बिजली मशरिक़ में कड़क कर मग़रिब तक चमकती है उसी तरह इब्न-ए-आदम की आमद भी होगी।
28. जहाँ भी लाश पड़ी हो वहाँ गिद्ध जमा हो जाएँगे।
29. मुसीबत के उन दिनों के ऐन बाद सूरज तारीक हो जाएगा और चाँद की रौशनी ख़त्म हो जाएगी। सितारे आस्मान पर से गिर पड़ेंगे और आस्मान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी।
30. उस वक़्त इब्न-ए-आदम का निशान आस्मान पर नज़र आएगा। तब दुनिया की तमाम क़ौमें मातम करेंगी। वह इब्न-ए-आदम को बड़ी क़ुद्रत और जलाल के साथ आस्मान के बादलों पर आते हुए देखेंगी।
31. और वह अपने फ़रिश्तों को बिगल की ऊँची आवाज़ के साथ भेज देगा ताकि उस के चुने हुओं को चारों तरफ़ से जमा करें, आस्मान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक इकट्ठा करें।
32. अन्जीर के दरख़्त से सबक़ सीखो। जूँ ही उस की शाख़ें नर्म और लचकदार हो जाती हैं और उन से कोंपलें फूट निकलती हैं तो तुम को मालूम हो जाता है कि गर्मियों का मौसम क़रीब आ गया है।
33. इसी तरह जब तुम यह वाक़िआत देखोगे तो जान लोगे कि इब्न-ए-आदम की आमद क़रीब बल्कि दरवाज़े पर है।
34. मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि इस नसल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा।
35. आस्मान-ओ-ज़मीन तो जाते रहेंगे, लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ाइम रहेंगी।
36. लेकिन किसी को भी इल्म नहीं कि यह किस दिन या कौन सी घड़ी रूनुमा होगा। आस्मान के फ़रिश्तों और फ़र्ज़न्द को भी इल्म नहीं बल्कि सिर्फ़ बाप को।
37. जब इब्न-ए-आदम आएगा तो हालात नूह के दिनों जैसे होंगे।
38. क्यूँकि सैलाब से पहले के दिनों में लोग उस वक़्त तक खाते-पीते और शादियाँ करते कराते रहे जब तक नूह कश्ती में दाख़िल न हो गया।
39. वह उस वक़्त तक आने वाली मुसीबत के बारे में लाइल्म रहे जब तक सैलाब आ कर उन सब को बहा न ले गया। जब इब्न-ए-आदम आएगा तो इसी क़िस्म के हालात होंगे।
40. उस वक़्त दो अफ़राद खेत में होंगे, एक को साथ ले लिया जाएगा जबकि दूसरे को पीछे छोड़ दिया जाएगा।
41. दो ख़वातीन चक्की पर गन्दुम पीस रही होंगी, एक को साथ ले लिया जाएगा जबकि दूसरी को पीछे छोड़ दिया जाएगा।
42. इस लिए चौकस रहो, क्यूँकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा ख़ुदावन्द किस दिन आ जाएगा।
43. यक़ीन जानो, अगर किसी घर के मालिक को मालूम होता कि चोर कब आएगा तो वह ज़रूर चौकस रहता और उसे अपने घर में नक़ब लगाने न देता।
44. तुम भी तय्यार रहो, क्यूँकि इब्न-ए-आदम ऐसे वक़्त आएगा जब तुम उस की तवक़्क़ो नहीं करोगे।
45. चुनाँचे कौन सा नौकर वफ़ादार और समझदार है? फ़र्ज़ करो कि घर के मालिक ने किसी नौकर को बाक़ी नौकरों पर मुक़र्रर किया हो। उस की एक ज़िम्मादारी यह भी है कि उन्हें वक़्त पर खाना खिलाए।
46. वह नौकर मुबारक होगा जो मालिक की वापसी पर यह सब कुछ कर रहा होगा।
47. मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि यह देख कर मालिक उसे अपनी पूरी जायदाद पर मुक़र्रर करेगा।
48. लेकिन फ़र्ज़ करो कि नौकर अपने दिल में सोचे, ‘मालिक की वापसी में अभी देर है।’
49. वह अपने साथी नौकरों को पीटने और शराबियों के साथ खाने-पीने लगे।
50. अगर वह ऐसा करे तो मालिक ऐसे दिन और वक़्त आएगा जिस की तवक़्क़ो नौकर को नहीं होगी।
51. इन हालात को देख कर वह नौकर को टुकड़े टुकड़े कर डालेगा और उसे रियाकारों में शामिल करेगा, वहाँ जहाँ लोग रोते और दाँत पीसते रहेंगे।

  Matthew (24/28)