Matthew (22/28)  

1. ईसा ने एक बार फिर तम्सीलों में उन से बात की।
2. “आस्मान की बादशाही एक बादशाह से मुताबिक़त रखती है जिस ने अपने बेटे की शादी की ज़ियाफ़त की तय्यारियाँ करवाईं।
3. जब ज़ियाफ़त का वक़्त आ गया तो उस ने अपने नौकरों को मेहमानों के पास यह इत्तिला देने के लिए भेजा कि वह आएँ, लेकिन वह आना नहीं चाहते थे।
4. फिर उस ने मज़ीद कुछ नौकरों को भेज कर कहा, ‘मेहमानों को बताना कि मैं ने अपना खाना तय्यार कर रखा है। बैलों और मोटे-ताज़े बछड़ों को ज़बह किया गया है,
5. सब कुछ तय्यार है। आएँ, ज़ियाफ़त में शरीक हो जाएँ।’ लेकिन मेहमानों ने पर्वा न की बल्कि अपने मुख़्तलिफ़ कामों में लग गए। एक अपने खेत को चला गया, दूसरा अपने कारोबार में मसरूफ़ हो गया।
6. बाक़ियों ने बादशाह के नौकरों को पकड़ लिया और उन से बुरा सुलूक करके उन्हें क़त्ल किया।
7. बादशाह बड़े तैश में आ गया। उस ने अपनी फ़ौज को भेज कर क़ातिलों को तबाह कर दिया और उन का शहर जला दिया।
8. फिर उस ने अपने नौकरों से कहा, ‘शादी की ज़ियाफ़त तो तय्यार है, लेकिन जिन मेहमानों को मैं ने दावत दी थी वह आने के लाइक़ नहीं थे।
9. अब वहाँ जाओ जहाँ सड़कें शहर से निकलती हैं और जिस से भी मुलाक़ात हो जाए उसे ज़ियाफ़त के लिए दावत दे देना।’
10. चुनाँचे नौकर सड़कों पर निकले और जिस से भी मुलाक़ात हुई उसे लाए, ख़्वाह वह अच्छा था या बुरा। यूँ शादी हाल मेहमानों से भर गया।
11. लेकिन जब बादशाह मेहमानों से मिलने के लिए अन्दर आया तो उसे एक आदमी नज़र आया जिस ने शादी के लिए मुनासिब कपड़े नहीं पहने थे।
12. बादशाह ने पूछा, ‘दोस्त, तुम शादी का लिबास पहने बग़ैर अन्दर किस तरह आए?’ वह आदमी कोई जवाब न दे सका।
13. फिर बादशाह ने अपने दरबारियों को हुक्म दिया, ‘इस के हाथ और पाँओ बाँध कर इसे बाहर तारीकी में फैंक दो, वहाँ जहाँ लोग रोते और दाँत पीसते रहेंगे।’
14. क्यूँकि बुलाए हुए तो बहुत हैं, लेकिन चुने हुए कम।”
15. फिर फ़रीसियों ने जा कर आपस में मश्वरा किया कि हम ईसा को किस तरह ऐसी बात करने के लिए उभारें जिस से उसे पकड़ा जा सके।
16. इस मक़्सद के तहत उन्हों ने अपने शागिर्दों को हेरोदेस के पैरोकारों समेत ईसा के पास भेजा। उन्हों ने कहा, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप सच्चे हैं और दियानतदारी से अल्लाह की राह की तालीम देते हैं। आप किसी की पर्वा नहीं करते क्यूँकि आप ग़ैरजानिबदार हैं।
17. अब हमें अपनी राय बताएँ। क्या रोमी शहनशाह को टैक्स देना जाइज़ है या नाजाइज़?”
18. लेकिन ईसा ने उन की बुरी नीयत पहचान ली। उस ने कहा, “रियाकारो, तुम मुझे क्यूँ फंसाना चाहते हो?
19. मुझे वह सिक्का दिखाओ जो टैक्स अदा करने के लिए इस्तेमाल होता है।” वह उस के पास चाँदी का एक रोमी सिक्का ले आए
20. तो उस ने पूछा, “किस की सूरत और नाम इस पर कन्दा है?”
21. उन्हों ने जवाब दिया, “शहनशाह का।” उस ने कहा, “तो जो शहनशाह का है शहनशाह को दो और जो अल्लाह का है अल्लाह को।”
22. उस का यह जवाब सुन कर वह हक्का-बक्का रह गए और उसे छोड़ कर चले गए।
23. उस दिन सदूक़ी ईसा के पास आए। सदूक़ी नहीं मानते कि रोज़-ए-क़ियामत मुर्दे जी उठेंगे। उन्हों ने ईसा से एक सवाल किया।
24. “उस्ताद, मूसा ने हमें हुक्म दिया कि अगर कोई शादीशुदा आदमी बेऔलाद मर जाए और उस का भाई हो तो भाई का फ़र्ज़ है कि वह बेवा से शादी करके अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे।
25. अब फ़र्ज़ करें कि हमारे दर्मियान सात भाई थे। पहले ने शादी की, लेकिन बेऔलाद फ़ौत हुआ। इस लिए दूसरे भाई ने बेवा से शादी की।
26. लेकिन वह भी बेऔलाद मर गया। फिर तीसरे भाई ने उस से शादी की। यह सिलसिला सातवें भाई तक जारी रहा। यके बाद दीगरे हर भाई बेवा से शादी करने के बाद मर गया।
27. आख़िर में बेवा भी फ़ौत हो गई।
28. अब बताएँ कि क़ियामत के दिन वह किस की बीवी होगी? क्यूँकि सात के सात भाइयों ने उस से शादी की थी।”
29. ईसा ने जवाब दिया, “तुम इस लिए ग़लती पर हो कि न तुम कलाम-ए-मुक़द्दस से वाक़िफ़ हो, न अल्लाह की क़ुद्रत से।
30. क्यूँकि क़ियामत के दिन लोग न शादी करेंगे न उन की शादी कराई जाएगी बल्कि वह आस्मान पर फ़रिश्तों की मानिन्द होंगे।
31. रही यह बात कि मुर्दे जी उठेंगे, क्या तुम ने वह बात नहीं पढ़ी जो अल्लाह ने तुम से कही?
32. उस ने फ़रमाया, ‘मैं इब्राहीम का ख़ुदा, इस्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हूँ,’ हालाँकि उस वक़्त तीनों काफ़ी अर्से से मर चुके थे। इस का मतलब है कि यह हक़ीक़त में ज़िन्दा हैं। क्यूँकि अल्लाह मुर्दों का नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है।”
33. यह सुन कर हुजूम उस की तालीम के बाइस हैरान रह गया।
34. जब फ़रीसियों ने सुना कि ईसा ने सदूक़ियों को लाजवाब कर दिया है तो वह जमा हुए।
35. उन में से एक ने जो शरीअत का आलिम था उसे फंसाने के लिए सवाल किया,
36. “उस्ताद, शरीअत में सब से बड़ा हुक्म कौन सा है?”
37. ईसा ने जवाब दिया, “‘रब्ब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे ज़हन से पियार करना।’
38. यह अव्वल और सब से बड़ा हुक्म है।
39. और दूसरा हुक्म इस के बराबर यह है, ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आप से रखता है।’
40. तमाम शरीअत और नबियों की तालीमात इन दो अह्काम पर मब्नी हैं।”
41. जब फ़रीसी इकट्ठे थे तो ईसा ने उन से पूछा,
42. “तुम्हारा मसीह के बारे में क्या ख़याल है? वह किस का फ़र्ज़न्द है?” उन्हों ने जवाब दिया, “वह दाऊद का फ़र्ज़न्द है।”
43. ईसा ने कहा, “तो फिर दाऊद रूह-उल-क़ुद्स की मारिफ़त उसे किस तरह ‘रब’ कहता है? क्यूँकि वह फ़रमाता है,
44. ‘रब्ब ने मेरे रब्ब से कहा, मेरे दहने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँओ के नीचे न कर दूँ।’
45. दाऊद तो ख़ुद मसीह को रब्ब कहता है। तो फिर वह किस तरह उस का फ़र्ज़न्द हो सकता है?”
46. कोई भी जवाब न दे सका, और उस दिन से किसी ने भी उस से मज़ीद कुछ पूछने की जुरअत न की।

  Matthew (22/28)