Matthew (21/28)  

1. वह यरूशलम के क़रीब बैत-फ़गे पहुँचे। यह गाँओ ज़ैतून के पहाड़ पर वाक़े था। ईसा ने दो शागिर्दों को भेजा
2. और कहा, “सामने वाले गाँओ में जाओ। वहाँ तुम को फ़ौरन एक गधी नज़र आएगी जो अपने बच्चे के साथ बंधी हुई होगी। उन्हें खोल कर यहाँ ले आओ।
3. अगर कोई यह देख कर तुम से कुछ कहे तो उसे बता देना, ‘ख़ुदावन्द को इन की ज़रूरत है।’ यह सुन कर वह फ़ौरन इन्हें भेज देगा।”
4. यूँ नबी की यह पेशगोई पूरी हुई,
5. ‘सिय्यून बेटी को बता देना, देख, तेरा बादशाह तेरे पास आ रहा है। वह हलीम है और गधे पर, हाँ गधी के बच्चे पर सवार है।’
6. दोनों शागिर्द चले गए। उन्हों ने वैसा ही किया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था।
7. वह गधी को बच्चे समेत ले आए और अपने कपड़े उन पर रख दिए। फिर ईसा उन पर बैठ गया।
8. जब वह चल पड़ा तो बहुत ज़ियादा लोगों ने उस के आगे आगे रास्ते में अपने कपड़े बिछा दिए। बाज़ ने शाख़ें भी उस के आगे आगे रास्ते में बिछा दीं जो उन्हों ने दरख़्तों से काट ली थीं।
9. लोग ईसा के आगे और पीछे चल रहे थे और चिल्ला कर यह नारे लगा रहे थे, “इब्न-ए-दाऊद को होशाना ! मुबारक है वह जो रब्ब के नाम से आता है। आस्मान की बुलन्दियों पर होशाना ।”
10. जब ईसा यरूशलम में दाख़िल हुआ तो पूरा शहर हिल गया। सब ने पूछा, “यह कौन है?”
11. हुजूम ने जवाब दिया, “यह ईसा है, वह नबी जो गलील के नासरत से है।”
12. और ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में जा कर उन सब को निकालने लगा जो वहाँ क़ुर्बानियों के लिए दरकार चीज़ों की ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त कर रहे थे। उस ने सिक्कों का तबादला करने वालों की मेज़ें और कबूतर बेचने वालों की कुर्सियाँ उलट दीं
13. और उन से कहा, “कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘मेरा घर दुआ का घर कहलाएगा।’ लेकिन तुम ने उसे डाकुओं के अड्डे में बदल दिया है।”
14. अंधे और लंगड़े बैत-उल-मुक़द्दस में उस के पास आए और उस ने उन्हें शिफ़ा दी।
15. लेकिन राहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा नाराज़ हुए जब उन्हों ने उस के हैरतअंगेज़ काम देखे और यह कि बच्चे बैत-उल-मुक़द्दस में “इब्न-ए-दाऊद को होशाना” चिल्ला रहे हैं।
16. उन्हों ने उस से पूछा, “क्या आप सुन रहे हैं कि यह बच्चे क्या कह रहे हैं?” “जी,” ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुम ने कलाम-ए-मुक़द्दस में कभी नहीं पढ़ा कि ‘तू ने छोटे बच्चों और शीरख़्वारों की ज़बान को तय्यार किया है ताकि वह तेरी तम्जीद करें’?”
17. फिर वह उन्हें छोड़ कर शहर से निकला और बैत-अनियाह पहुँचा जहाँ उस ने रात गुज़ारी।
18. अगले दिन सुब्ह-सवेरे जब वह यरूशलम लौट रहा था तो ईसा को भूक लगी।
19. रास्ते के क़रीब अन्जीर का एक दरख़्त देख कर वह उस के पास गया। लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि फल नहीं लगा बल्कि सिर्फ़ पत्ते ही पत्ते हैं। इस पर उस ने दरख़्त से कहा, “अब से कभी भी तुझ में फल न लगे!” दरख़्त फ़ौरन सूख गया।
20. यह देख कर शागिर्द हैरान हुए और कहा, “अन्जीर का दरख़्त इतनी जल्दी से किस तरह सूख गया?”
21. ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, अगर तुम शक न करो बल्कि ईमान रखो तो फिर तुम न सिर्फ़ ऐसा काम कर सकोगे बल्कि इस से भी बड़ा। तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘उठ, अपने आप को समुन्दर में गिरा दे’ तो यह हो जाएगा।
22. अगर तुम ईमान रखो तो जो कुछ भी तुम दुआ में माँगोगे वह तुम को मिल जाएगा।”
23. ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में दाख़िल हो कर तालीम देने लगा। इतने में राहनुमा इमाम और क़ौम के बुज़ुर्ग उस के पास आए और पूछा, “आप यह सब कुछ किस इख़तियार से कर रहे हैं? किस ने आप को यह इख़तियार दिया है?”
24. ईसा ने जवाब दिया, “मेरा भी तुम से एक सवाल है। इस का जवाब दो तो फिर तुम को बता दूँगा कि मैं यह किस इख़तियार से कर रहा हूँ।
25. मुझे बताओ कि यहया का बपतिस्मा कहाँ से था - क्या वह आस्मानी था या इन्सानी?” वह आपस में बह्स करने लगे, “अगर हम कहें ‘आस्मानी’ तो वह पूछेगा, ‘तो फिर तुम उस पर ईमान क्यूँ न लाए?’
26. लेकिन हम कैसे कह सकते हैं कि वह इन्सानी था? हम तो आम लोगों से डरते हैं, क्यूँकि वह सब मानते हैं कि यहया नबी था।”
27. चुनाँचे उन्हों ने जवाब दिया, “हम नहीं जानते।” ईसा ने कहा, “फिर मैं भी तुम को नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़तियार से कर रहा हूँ।
28. तुम्हारा क्या ख़याल है? एक आदमी के दो बेटे थे। बाप बड़े बेटे के पास गया और कहा, ‘बेटा, आज अंगूर के बाग़ में जा कर काम कर।’
29. बेटे ने जवाब दिया, ‘मैं जाना नहीं चाहता,’ लेकिन बाद में उस ने अपना ख़याल बदल लिया और बाग़ में चला गया।
30. इतने में बाप छोटे बेटे के पास भी गया और उसे बाग़ में जाने को कहा। ‘जी जनाब, मैं जाऊँगा,’ छोटे बेटे ने कहा। लेकिन वह न गया।
31. अब मुझे बताओ कि किस बेटे ने अपने बाप की मर्ज़ी पूरी की?” “पहले बेटे ने,” उन्हों ने जवाब दिया। ईसा ने कहा, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि टैक्स लेने वाले और कस्बियाँ तुम से पहले अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो रहे हैं।
32. क्यूँकि यहया तुम को रास्तबाज़ी की राह दिखाने आया और तुम उस पर ईमान न लाए। लेकिन टैक्स लेने वाले और कस्बियाँ उस पर ईमान लाए। और यह देख कर भी तुम ने अपना ख़याल न बदला और उस पर ईमान न लाए।
33. एक और तम्सील सुनो। एक ज़मीन्दार था जिस ने अंगूर का बाग़ लगाया। उस ने उस की चारदीवारी बनाई, अंगूरों का रस निकालने के लिए एक गढ़े की खुदाई की और पहरेदारों के लिए बुर्ज तामीर किया। फिर वह उसे मुज़ारेओं के सपुर्द करके बैरून-ए-मुल्क चला गया।
34. जब अंगूर को तोड़ने का वक़्त क़रीब आ गया तो उस ने अपने नौकरों को मुज़ारेओं के पास भेज दिया ताकि वह उन से मालिक का हिस्सा वसूल करें।
35. लेकिन मुज़ारेओं ने उस के नौकरों को पकड़ लिया। उन्हों ने एक की पिटाई की, दूसरे को क़त्ल किया और तीसरे को संगसार किया।
36. फिर मालिक ने मज़ीद नौकरों को उन के पास भेज दिया जो पहले की निस्बत ज़ियादा थे। लेकिन मुज़ारेओं ने उन के साथ भी वही सुलूक किया।
37. आख़िरकार ज़मीन्दार ने अपने बेटे को उन के पास भेजा। उस ने कहा, ‘आख़िर मेरे बेटे का तो लिहाज़ करेंगे।’
38. लेकिन बेटे को देख कर मुज़ारे एक दूसरे से कहने लगे, ‘यह ज़मीन का वारिस है। आओ, हम इसे क़त्ल करके उस की मीरास पर क़ब्ज़ा कर लें।’
39. उन्हों ने उसे पकड़ कर बाग़ से बाहर फैंक दिया और क़त्ल किया।”
40. ईसा ने पूछा, “अब बताओ, बाग़ का मालिक जब आएगा तो उन मुज़ारेओं के साथ क्या करेगा?”
41. उन्हों ने जवाब दिया, “वह उन्हें बुरी तरह तबाह करेगा और बाग़ को दूसरों के सपुर्द कर देगा, ऐसे मुज़ारेओं के सपुर्द जो वक़्त पर उसे फ़सल का उस का हिस्सा देंगे।”
42. ईसा ने उन से कहा, “क्या तुम ने कभी कलाम का यह हवाला नहीं पढ़ा, ‘जिस पत्थर को मकान बनाने वालों ने रद्द किया, वह कोने का बुन्यादी पत्थर बन गया। यह रब्ब ने किया और देखने में कितना हैरतअंगेज़ है’?
43. इस लिए मैं तुम्हें बताता हूँ कि अल्लाह की बादशाही तुम से ले ली जाएगी और एक ऐसी क़ौम को दी जाएगी जो इस के मुताबिक़ फल लाएगी।
44. जो इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा, जबकि जिस पर वह ख़ुद गिरेगा उसे वह पीस डालेगा।”
45. ईसा की तम्सीलें सुन कर राहनुमा इमाम और फ़रीसी समझ गए कि वह हमारे बारे में बात कर रहा है।
46. उन्हों ने ईसा को गिरिफ़्तार करने की कोशिश की, लेकिन वह अवाम से डरते थे क्यूँकि वह समझते थे कि ईसा नबी है।

  Matthew (21/28)