Matthew (17/28)  

1. छः दिन के बाद ईसा सिर्फ़ पत्रस, याक़ूब और यूहन्ना को अपने साथ ले कर ऊँचे पहाड़ पर चढ़ गया।
2. वहाँ उस की शक्ल-ओ-सूरत उन के सामने बदल गई। उस का चिहरा सूरज की तरह चमकने लगा, और उस के कपड़े नूर की मानिन्द सफ़ेद हो गए।
3. अचानक इल्यास और मूसा ज़ाहिर हुए और ईसा से बातें करने लगे।
4. पत्रस बोल उठा, “ख़ुदावन्द, कितनी अच्छी बात है कि हम यहाँ हैं। अगर आप चाहें तो मैं तीन झोंपड़ियाँ बनाऊँगा, एक आप के लिए, एक मूसा के लिए और एक इल्यास के लिए।”
5. वह अभी बात कर ही रहा था कि एक चमकदार बादल आ कर उन पर छा गया और बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा पियारा फ़र्ज़न्द है, जिस से मैं ख़ुश हूँ। इस की सुनो।”
6. यह सुन कर शागिर्द दह्शत खा कर औंधे मुँह गिर गए।
7. लेकिन ईसा ने आ कर उन्हें छुआ। उस ने कहा, “उठो, मत डरो।”
8. जब उन्हों ने नज़र उठाई तो ईसा के सिवा किसी को न देखा।
9. वह पहाड़ से उतरने लगे तो ईसा ने उन्हें हुक्म दिया, “जो कुछ तुम ने देखा है उसे उस वक़्त तक किसी को न बताना जब तक कि इब्न-ए-आदम मुर्दों में से जी न उठे।”
10. शागिर्दों ने उस से पूछा, “शरीअत के उलमा क्यूँ कहते हैं कि मसीह की आमद से पहले इल्यास का आना ज़रूरी है?”
11. ईसा ने जवाब दिया, “इल्यास तो ज़रूर सब कुछ बहाल करने के लिए आएगा।
12. लेकिन मैं तुम को बताता हूँ कि इल्यास तो आ चुका है और उन्हों ने उसे नहीं पहचाना बल्कि उस के साथ जो चाहा किया। इसी तरह इब्न-ए-आदम भी उन के हाथों दुख उठाएगा।”
13. फिर शागिर्दों को समझ आई कि वह उन के साथ यहया बपतिस्मा देने वाले की बात कर रहा था।
14. जब वह नीचे हुजूम के पास पहुँचे तो एक आदमी ने ईसा के सामने आ कर घुटने टेके
15. और कहा, “ख़ुदावन्द, मेरे बेटे पर रहम करें, उसे मिर्गी के दौरे पड़ते हैं और उसे शदीद तक्लीफ़ उठानी पड़ती है। कई बार वह आग या पानी में गिर जाता है।
16. मैं उसे आप के शागिर्दों के पास लाया था, लेकिन वह उसे शिफ़ा न दे सके।”
17. ईसा ने जवाब दिया, “ईमान से ख़ाली और टेढ़ी नसल! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ, कब तक तुम्हें बर्दाश्त करूँ? लड़के को मेरे पास ले आओ।”
18. ईसा ने बदरुह को डाँटा, तो वह लड़के में से निकल गई। उसी लम्हे उसे शिफ़ा मिल गई।
19. बाद में शागिर्दों ने अलाहिदगी में ईसा के पास आ कर पूछा, “हम बदरुह को क्यूँ न निकाल सके?”
20. उस ने जवाब दिया, “अपने ईमान की कमी के सबब से। मैं तुम्हें सच्च बताता हूँ, अगर तुम्हारा ईमान राई के दाने के बराबर भी हो तो फिर तुम इस पहाड़ को कह सकोगे, ‘इधर से उधर खिसक जा,’ तो वह खिसक जाएगा। और तुम्हारे लिए कुछ भी नामुम्किन नहीं होगा।
21. [लेकिन इस क़िस्म की बदरुह दुआ और रोज़े के बग़ैर नहीं निकलती।]”
22. जब वह गलील में जमा हुए तो ईसा ने उन्हें बताया, “इब्न-ए-आदम को आदमियों के हवाले कर दिया जाएगा।
23. वह उसे क़त्ल करेंगे, लेकिन तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।” यह सुन कर शागिर्द निहायत ग़मगीन हुए।
24. वह कफ़र्नहूम पहुँचे तो बैत-उल-मुक़द्दस का टैक्स जमा करने वाले पत्रस के पास आ कर पूछने लगे, “क्या आप का उस्ताद बैत-उल-मुक़द्दस का टैक्स अदा नहीं करता?”
25. “जी, वह करता है,” पत्रस ने जवाब दिया। वह घर में आया तो ईसा पहले ही बोलने लगा, “क्या ख़याल है शमाऊन, दुनिया के बादशाह किन से ड्यूटी और टैक्स लेते हैं, अपने फ़र्ज़न्दों से या अजनबियों से?”
26. पत्रस ने जवाब दिया, “अजनबियों से।” ईसा बोला “तो फिर उन के फ़र्ज़न्द टैक्स देने से बरी हुए।
27. लेकिन हम उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहते। इस लिए झील पर जा कर उस में डोरी डाल देना। जो मछली तू पहले पकड़ेगा उस का मुँह खोलना तो उस में से चाँदी का सिक्का निकलेगा। उसे ले कर उन्हें मेरे और अपने लिए अदा कर दे।”

  Matthew (17/28)