Matthew (16/28)  

1. एक दिन फ़रीसी और सदूक़ी ईसा के पास आए। उसे परखने के लिए उन्हों ने मुतालबा किया कि वह उन्हें आस्मान की तरफ़ से कोई इलाही निशान दिखाए ताकि उस का इख़तियार साबित हो जाए।
2. लेकिन उस ने जवाब दिया, “शाम को तुम कहते हो, ‘कल मौसम साफ़ होगा क्यूँकि आस्मान सुर्ख़ नज़र आता है।’
3. और सुब्ह के वक़्त कहते हो, ‘आज तूफ़ान होगा क्यूँकि आस्मान सुर्ख़ है और बादल छाए हुए हैं।’ ग़रज़ तुम आस्मान की हालत पर ग़ौर करके सहीह नतीजा निकाल लेते हो, लेकिन ज़मानों की अलामतों पर ग़ौर करके सहीह नतीजे तक पहुँचना तुम्हारे बस की बात नहीं है।
4. सिर्फ़ शरीर और ज़िनाकार नसल इलाही निशान का तक़ाज़ा करती है। लेकिन उसे कोई भी इलाही निशान पेश नहीं किया जाएगा सिवा-ए-यूनुस नबी के निशान के।” यह कह कर ईसा उन्हें छोड़ कर चला गया।
5. झील को पार करते वक़्त शागिर्द अपने साथ खाना लाना भूल गए थे।
6. ईसा ने उन से कहा, “ख़बरदार, फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होश्यार रहना।”
7. शागिर्द आपस में बह्स करने लगे, “वह इस लिए कह रहे होंगे कि हम खाना साथ नहीं लाए।”
8. ईसा को मालूम हुआ कि वह क्या सोच रहे हैं। उस ने कहा, “तुम आपस में क्यूँ बह्स कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं है?
9. क्या तुम अभी तक नहीं समझते? क्या तुम्हें याद नहीं कि मैं ने पाँच रोटियाँ ले कर 5,000 आदमियों को खाना खिला दिया और कि तुम ने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे?
10. या क्या तुम भूल गए हो कि मैं ने सात रोटियाँ ले कर 4,000 आदमियों को खाना खिलाया और कि तुम ने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे?
11. तुम क्यूँ नहीं समझते कि मैं तुम से खाने की बात नहीं कर रहा? सुनो मेरी बात! फ़रीसियों और सदूक़ियों के ख़मीर से होश्यार रहो!”
12. फिर उन्हें समझ आई कि ईसा उन्हें रोटी के ख़मीर से आगाह नहीं कर रहा था बल्कि फ़रीसियों और सदूक़ियों की तालीम से।
13. जब ईसा क़ैसरिया-फ़िलिप्पी के इलाक़े में पहुँचा तो उस ने शागिर्दों से पूछा, “इब्न-ए-आदम लोगों के नज़्दीक कौन है?”
14. उन्हों ने जवाब दिया, “कुछ कहते हैं यहया बपतिस्मा देने वाला, कुछ यह कि आप इल्यास नबी हैं। कुछ यह भी कहते हैं कि यरमियाह या नबियों में से एक।”
15. उस ने पूछा, “लेकिन तुम्हारे नज़्दीक मैं कौन हूँ?”
16. पत्रस ने जवाब दिया, “आप ज़िन्दा ख़ुदा के फ़र्ज़न्द मसीह हैं।”
17. ईसा ने कहा, “शमाऊन बिन यूनुस, तू मुबारक है, क्यूँकि किसी इन्सान ने तुझ पर यह ज़ाहिर नहीं किया बल्कि मेरे आस्मानी बाप ने।
18. मैं तुझे यह भी बताता हूँ कि तू पत्रस यानी पत्थर है, और इसी पत्थर पर मैं अपनी जमाअत को तामीर करूँगा, ऐसी जमाअत जिस पर पाताल के दरवाज़े भी ग़ालिब नहीं आएँगे।
19. मैं तुझे आस्मान की बादशाही की कुंजियाँ दे दूँगा। जो कुछ तू ज़मीन पर बाँधेगा वह आस्मान पर भी बंधेगा। और जो कुछ तू ज़मीन पर खोलेगा वह आस्मान पर भी खुलेगा।”
20. फिर ईसा ने अपने शागिर्दों को हुक्म दिया, “किसी को भी न बताओ कि मैं मसीह हूँ।”
21. उस वक़्त से ईसा अपने शागिर्दों पर वाज़िह करने लगा, “लाज़िम है कि मैं यरूशलम जा कर क़ौम के बुज़ुर्गों, राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा के हाथों बहुत दुख उठाऊँ। मुझे क़त्ल किया जाएगा, लेकिन तीसरे दिन मैं जी उठूँगा।”
22. इस पर पत्रस उसे एक तरफ़ ले जा कर समझाने लगा। “ऐ ख़ुदावन्द, अल्लाह न करे कि यह कभी भी आप के साथ हो।”
23. ईसा ने मुड़ कर पत्रस से कहा, “शैतान, मेरे सामने से हट जा! तू मेरे लिए ठोकर का बाइस है, क्यूँकि तू अल्लाह की सोच नहीं रखता बल्कि इन्सान की।”
24. फिर ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “जो मेरे पीछे आना चाहे वह अपने आप का इन्कार करे और अपनी सलीब उठा कर मेरे पीछे हो ले।
25. क्यूँकि जो अपनी जान को बचाए रखना चाहे वह उसे खो देगा। लेकिन जो मेरी ख़ातिर अपनी जान खो दे वही उसे पा लेगा।
26. क्या फ़ाइदा है अगर किसी को पूरी दुनिया हासिल हो जाए, लेकिन वह अपनी जान से महरूम हो जाए? इन्सान अपनी जान के बदले क्या दे सकता है?
27. क्यूँकि इब्न-ए-आदम अपने बाप के जलाल में अपने फ़रिश्तों के साथ आएगा, और उस वक़्त वह हर एक को उस के काम का बदला देगा।
28. मैं तुम्हें सच्च बताता हूँ, यहाँ कुछ ऐसे लोग खड़े हैं जो मरने से पहले ही इब्न-ए-आदम को उस की बादशाही में आते हुए देखेंगे।”

  Matthew (16/28)