Matthew (15/28)  

1. फिर कुछ फ़रीसी और शरीअत के आलिम यरूशलम से आ कर ईसा से पूछने लगे,
2. “आप के शागिर्द बापदादा की रिवायत क्यूँ तोड़ते हैं? क्यूँकि वह हाथ धोए बग़ैर रोटी खाते हैं।”
3. ईसा ने जवाब दिया, “और तुम अपनी रिवायात की ख़ातिर अल्लाह का हुक्म क्यूँ तोड़ते हो?
4. क्यूँकि अल्लाह ने फ़रमाया, ‘अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना’ और ‘जो अपने बाप या माँ पर लानत करे उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए।’
5. लेकिन जब कोई अपने वालिदैन से कहे, ‘मैं आप की मदद नहीं कर सकता, क्यूँकि मैं ने मन्नत मानी है कि जो कुछ मुझे आप को देना था वह अल्लाह के लिए वक़्फ़ है’ तो तुम इसे जाइज़ क़रार देते हो।
6. यूँ तुम कहते हो कि उसे अपने माँ-बाप की इज़्ज़त करने की ज़रूरत नहीं है। और इसी तरह तुम अल्लाह के कलाम को अपनी रिवायत की ख़ातिर मन्सूख़ कर लेते हो।
7. रियाकारो! यसायाह नबी ने तुम्हारे बारे में क्या ख़ूब नुबुव्वत की है,
8. ‘यह क़ौम अपने होंटों से तो मेरा एहतिराम करती है लेकिन उस का दिल मुझ से दूर है।
9. वह मेरी परस्तिश करते तो हैं, लेकिन बेफ़ाइदा। क्यूँकि वह सिर्फ़ इन्सान ही के अह्काम सिखाते हैं’।”
10. फिर ईसा ने हुजूम को अपने पास बुला कर कहा, “सब मेरी बात सुनो और इसे समझने की कोशिश करो।
11. कोई ऐसी चीज़ है नहीं जो इन्सान के मुँह में दाख़िल हो कर उसे नापाक कर सके, बल्कि जो कुछ इन्सान के मुँह से निकलता है वही उसे नापाक कर देता है।”
12. इस पर शागिर्दों ने उस के पास आ कर पूछा, “क्या आप को मालूम है कि फ़रीसी यह बात सुन कर नाराज़ हुए हैं?”
13. उस ने जवाब दिया, “जो भी पौदा मेरे आस्मानी बाप ने नहीं लगाया उसे जड़ से उखाड़ा जाएगा।
14. उन्हें छोड़ दो, वह अंधे राह दिखाने वाले हैं। अगर एक अंधा दूसरे अंधे की राहनुमाई करे तो दोनों गढ़े में गिर जाएँगे।”
15. पत्रस बोल उठा, “इस तम्सील का मतलब हमें बताएँ।”
16. ईसा ने कहा, “क्या तुम अभी तक इतने नासमझ हो?
17. क्या तुम नहीं समझ सकते कि जो कुछ इन्सान के मुँह में दाख़िल हो जाता है वह उस के मेदे में जाता है और वहाँ से निकल कर जा-ए-ज़रूरत में?
18. लेकिन जो कुछ इन्सान के मुँह से निकलता है वह दिल से आता है। वही इन्सान को नापाक करता है।
19. दिल ही से बुरे ख़यालात, क़त्ल-ओ-ग़ारत, ज़िनाकारी, हरामकारी, चोरी, झूटी गवाही और बुह्तान निकलते हैं।
20. यही कुछ इन्सान को नापाक कर देता है, लेकिन हाथ धोए बग़ैर खाना खाने से वह नापाक नहीं होता।”
21. फिर ईसा गलील से रवाना हो कर शिमाल में सूर और सैदा के इलाक़े में आया।
22. इस इलाक़े की एक कनआनी ख़ातून उस के पास आ कर चिल्लाने लगी, “ख़ुदावन्द, इब्न-ए-दाऊद, मुझ पर रहम करें। एक बदरुह मेरी बेटी को बहुत सताती है।”
23. लेकिन ईसा ने जवाब में एक लफ़्ज़ भी न कहा। इस पर उस के शागिर्द उस के पास आ कर उस से गुज़ारिश करने लगे, “उसे फ़ारिग़ कर दें, क्यूँकि वह हमारे पीछे पीछे चीख़ती चिल्लाती है।”
24. ईसा ने जवाब दिया, “मुझे सिर्फ़ इस्राईल की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया है।”
25. औरत उस के पास आ कर मुँह के बल झुक गई और कहा, “ख़ुदावन्द, मेरी मदद करें!”
26. उस ने उसे बताया, “यह मुनासिब नहीं कि बच्चों से खाना ले कर कुत्तों के सामने फैंक दिया जाए।”
27. उस ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, लेकिन कुत्ते भी वह टुकड़े खाते हैं जो उन के मालिक की मेज़ पर से फ़र्श पर गिर जाते हैं।”
28. ईसा ने कहा, “ऐ औरत, तेरा ईमान बड़ा है। तेरी दरख़्वास्त पूरी हो जाए।” उसी लम्हे औरत की बेटी को शिफ़ा मिल गई।
29. फिर ईसा वहाँ से रवाना हो कर गलील की झील के किनारे पहुँच गया। वहाँ वह पहाड़ पर चढ़ कर बैठ गया।
30. लोगों की बड़ी तादाद उस के पास आई। वह अपने लंगड़े, अंधे, मफ़्लूज, गूँगे और कई और क़िस्म के मरीज़ भी साथ ले आए। उन्हों ने उन्हें ईसा के सामने रखा तो उस ने उन्हें शिफ़ा दी।
31. हुजूम हैरतज़दा हो गया। क्यूँकि गूँगे बोल रहे थे, अपाहजों के आज़ा बहाल हो गए, लंगड़े चलने और अंधे देखने लगे थे। यह देख कर भीड़ ने इस्राईल के ख़ुदा की तम्जीद की।
32. फिर ईसा ने अपने शागिर्दों को बुला कर उन से कहा, “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। इन्हें मेरे साथ ठहरे तीन दिन हो चुके हैं और इन के पास खाने की कोई चीज़ नहीं है। लेकिन मैं इन्हें इस भूकी हालत में रुख़्सत नहीं करना चाहता। ऐसा न हो कि वह रास्ते में थक कर चूर हो जाएँ।”
33. उस के शागिर्दों ने जवाब दिया, “इस वीरान इलाक़े में कहाँ से इतना खाना मिल सकेगा कि यह लोग खा कर सेर हो जाएँ?”
34. ईसा ने पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्हों ने जवाब दिया, “सात, और चन्द एक छोटी मछलियाँ।”
35. ईसा ने हुजूम को ज़मीन पर बैठने को कहा।
36. फिर सात रोटियों और मछलियों को ले कर उस ने शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उन्हें तोड़ तोड़ कर अपने शागिर्दों को तक़्सीम करने के लिए दे दिया।
37. सब ने जी भर कर खाया। बाद में जब खाने के बचे हुए टुकड़े जमा किए गए तो सात बड़े टोकरे भर गए।
38. ख़वातीन और बच्चों के इलावा खाने वाले 4,000 मर्द थे।
39. फिर ईसा लोगों को रुख़्सत करके कश्ती पर सवार हुआ और मगदन के इलाक़े में चला गया।

  Matthew (15/28)