Matthew (13/28)  

1. उसी दिन ईसा घर से निकल कर झील के किनारे बैठ गया।
2. इतना बड़ा हुजूम उस के गिर्द जमा हो गया कि आख़िरकार वह एक कश्ती में बैठ गया जबकि लोग किनारे पर खड़े रहे।
3. फिर उस ने उन्हें बहुत सी बातें तम्सीलों में सुनाईं। “एक किसान बीज बोने के लिए निकला।
4. जब बीज इधर उधर बिखर गया तो कुछ दाने रास्ते पर गिरे और परिन्दों ने आ कर उन्हें चुग लिया।
5. कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे जहाँ मिट्टी की कमी थी। वह जल्द उग आए क्यूँकि मिट्टी गहरी नहीं थी।
6. लेकिन जब सूरज निकला तो पौदे झुलस गए और चूँकि वह जड़ न पकड़ सके इस लिए सूख गए।
7. कुछ ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दर्मियान भी गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन ख़ुदरौ पौदों ने साथ साथ बढ़ कर उन्हें फलने फूलने न दिया। चुनाँचे वह भी ख़त्म हो गए।
8. लेकिन ऐसे दाने भी थे जो ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे और बढ़ते बढ़ते तीस गुना, साठ गुना बल्कि सौ गुना तक ज़ियादा फल लाए।
9. जो सुन सकता है वह सुन ले!”
10. शागिर्द उस के पास आ कर पूछने लगे, “आप लोगों से तम्सीलों में बात क्यूँ करते हैं?”
11. उस ने जवाब दिया, “तुम को तो आस्मान की बादशाही के भेद समझने की लियाक़त दी गई है, लेकिन उन्हें यह लियाक़त नहीं दी गई।
12. जिस के पास कुछ है उसे और दिया जाएगा और उस के पास कस्रत की चीज़ें होंगी। लेकिन जिस के पास कुछ नहीं है उस से वह भी छीन लिया जाएगा जो उस के पास है।
13. इस लिए मैं तम्सीलों में उन से बात करता हूँ। क्यूँकि वह देखते हुए कुछ नहीं देखते, वह सुनते हुए कुछ नहीं सुनते और कुछ नहीं समझते।
14. उन में यसायाह नबी की यह पेशगोई पूरी हो रही है : ‘तुम अपने कानों से सुनोगे मगर कुछ नहीं समझोगे, तुम अपनी आँखों से देखोगे मगर कुछ नहीं जानोगे।
15. क्यूँकि इस क़ौम का दिल बेहिस्स हो गया है। वह मुश्किल से अपने कानों से सुनते हैं, उन्हों ने अपनी आँखों को बन्द कर रखा है, ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें, अपने कानों से सुनें, अपने दिल से समझें, मेरी तरफ़ रुजू करें और मैं उन्हें शिफ़ा दूँ।’
16. लेकिन तुम्हारी आँखें मुबारक हैं क्यूँकि वह देख सकती हैं और तुम्हारे कान मुबारक हैं क्यूँकि वह सुन सकते हैं।
17. मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि जो कुछ तुम देख रहे हो बहुत से नबी और रास्तबाज़ इसे देख न पाए अगरचि वह इस के आर्ज़ूमन्द थे। और जो कुछ तुम सुन रहे हो इसे वह सुनने न पाए, अगरचि वह इस के ख़्वाहिशमन्द थे।
18. अब सुनो कि बीज बोने वाले की तम्सील का मतलब क्या है।
19. रास्ते पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो बादशाही का कलाम सुनते तो हैं, लेकिन उसे समझते नहीं। फिर इब्लीस आ कर वह कलाम छीन लेता है जो उन के दिलों में बोया गया है।
20. पथरीली ज़मीन पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते ही उसे ख़ुशी से क़बूल तो कर लेते हैं,
21. लेकिन वह जड़ नहीं पकड़ते और इस लिए ज़ियादा देर तक क़ाइम नहीं रहते। जूँ ही वह कलाम पर ईमान लाने के बाइस किसी मुसीबत या ईज़ारसानी से दोचार हो जाएँ तो वह बर्गश्ता हो जाते हैं।
22. ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दर्मियान गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते तो हैं, लेकिन फिर रोज़मर्रा की परेशानियाँ और दौलत का फ़रेब कलाम को फलने फूलने नहीं देता। नतीजे में वह फल लाने तक नहीं पहुँचता।
23. इस के मुक़ाबले में ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम को सुन कर उसे समझ लेते और बढ़ते बढ़ते तीस गुना, साठ गुना बल्कि सौ गुना तक फल लाते हैं।”
24. ईसा ने उन्हें एक और तम्सील सुनाई। “आस्मान की बादशाही उस किसान से मुताबिक़त रखती है जिस ने अपने खेत में अच्छा बीज बो दिया।
25. लेकिन जब लोग सो रहे थे तो उस के दुश्मन ने आ कर अनाज के पौदों के दर्मियान ख़ुदरौ पौदों का बीज बो दिया। फिर वह चला गया।
26. जब अनाज फूट निकला और फ़सल पकने लगी तो ख़ुदरौ पौदे भी नज़र आए।
27. नौकर मालिक के पास आए और कहने लगे, ‘जनाब, क्या आप ने अपने खेत में अच्छा बीज नहीं बोया था? तो फिर यह ख़ुदरौ पौदे कहाँ से आ गए हैं?’
28. उस ने जवाब दिया, ‘किसी दुश्मन ने यह कर दिया है।’ नौकरों ने पूछा, ‘क्या हम जा कर उन्हें उखाड़ें?’
29. ‘नहीं,’ उस ने कहा। ‘ऐसा न हो कि ख़ुदरौ पौदों के साथ साथ तुम अनाज के पौदे भी उखाड़ डालो।
30. उन्हें फ़सल की कटाई तक मिल कर बढ़ने दो। उस वक़्त मैं फ़सल की कटाई करने वालों से कहूँगा कि पहले ख़ुदरौ पौदों को चुन लो और उन्हें जलाने के लिए गठों में बाँध लो। फिर ही अनाज को जमा करके गोदाम में लाओ’।”
31. ईसा ने उन्हें एक और तम्सील सुनाई। “आस्मान की बादशाही राई के दाने की मानिन्द है जो किसी ने ले कर अपने खेत में बो दिया।
32. गो यह बीजों में सब से छोटा दाना है, लेकिन बढ़ते बढ़ते यह सबज़ियों में सब से बड़ा हो जाता है। बल्कि यह दरख़्त सा बन जाता है और परिन्दे आ कर उस की शाख़ों में घोंसले बना लेते हैं।”
33. उस ने उन्हें एक और तम्सील भी सुनाई। “आस्मान की बादशाही ख़मीर की मानिन्द है जो किसी औरत ने ले कर तक़्रीबन 27 किलोग्राम आटे में मिला दिया। गो वह उस में छुप गया तो भी होते होते पूरे गुंधे हुए आटे को ख़मीर बना दिया।”
34. ईसा ने यह तमाम बातें हुजूम के सामने तम्सीलों की सूरत में कीं। तम्सील के बग़ैर उस ने उन से बात ही नहीं की।
35. यूँ नबी की यह पेशगोई पूरी हुई कि “मैं तम्सीलों में बात करूँगा, मैं दुनिया की तख़्लीक़ से ले कर आज तक छुपी हुई बातें बयान करूँगा।”
36. फिर ईसा हुजूम को रुख़्सत करके घर के अन्दर चला गया। उस के शागिर्द उस के पास आ कर कहने लगे, “खेत में ख़ुदरौ पौदों की तम्सील का मतलब हमें समझाएँ।”
37. उस ने जवाब दिया, “अच्छा बीज बोने वाला इब्न-ए-आदम है।
38. खेत दुनिया है जबकि अच्छे बीज से मुराद बादशाही के फ़र्ज़न्द हैं। ख़ुदरौ पौदे इब्लीस के फ़र्ज़न्द हैं
39. और उन्हें बोने वाला दुश्मन इब्लीस है। फ़सल की कटाई का मतलब दुनिया का इख़तिताम है जबकि फ़सल की कटाई करने वाले फ़रिश्ते हैं।
40. जिस तरह तम्सील में ख़ुदरौ पौदे उखाड़े जाते और आग में जलाए जाते हैं उसी तरह दुनिया के इख़तिताम पर भी किया जाएगा।
41. इब्न-ए-आदम अपने फ़रिश्तों को भेज देगा, और वह उस की बादशाही से बर्गश्तगी का हर सबब और शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी करने वाले हर शख़्स को निकालते जाएँगे।
42. वह उन्हें भड़कती भट्टी में फैंक देंगे जहाँ लोग रोते और दाँत पीसते रहेंगे।
43. फिर रास्तबाज़ अपने बाप की बादशाही में सूरज की तरह चमकेंगे। जो सुन सकता है वह सुन ले!
44. आस्मान की बादशाही खेत में छुपे ख़ज़ाने की मानिन्द है। जब किसी आदमी को उस के बारे में मालूम हुआ तो उस ने उसे दुबारा छुपा दिया। फिर वह ख़ुशी के मारे चला गया, अपनी तमाम मिल्कियत फ़रोख़्त कर दी और उस खेत को ख़रीद लिया।
45. नीज़, आस्मान की बादशाही ऐसे सौदागर की मानिन्द है जो अच्छे मोतियों की तलाश में था।
46. जब उसे एक निहायत क़ीमती मोती के बारे में मालूम हुआ तो वह चला गया, अपनी तमाम मिल्कियत फ़रोख़्त कर दी और उस मोती को ख़रीद लिया।
47. आस्मान की बादशाही जाल की मानिन्द भी है। उसे झील में डाला गया तो हर क़िस्म की मछलियाँ पकड़ी गईं।
48. जब वह भर गया तो मछेरों ने उसे किनारे पर खैंच लिया। फिर उन्हों ने बैठ कर क़ाबिल-ए-इस्तेमाल मछलियाँ चुन कर टोकरियों में डाल दीं और नाक़ाबिल-ए-इस्तेमाल मछलियाँ फैंक दीं।
49. दुनिया के इख़तिताम पर ऐसा ही होगा। फ़रिश्ते आएँगे और बुरे लोगों को रास्तबाज़ों से अलग करके
50. उन्हें भड़कती भट्टी में फैंक देंगे जहाँ लोग रोते और दाँत पीसते रहेंगे।”
51. ईसा ने पूछा, “क्या तुम को इन तमाम बातों की समझ आ गई है?” “जी,” शागिर्दों ने जवाब दिया।
52. उस ने उन से कहा, “इस लिए शरीअत का हर आलिम जो आस्मान की बादशाही में शागिर्द बन गया है ऐसे मालिक-ए-मकान की मानिन्द है जो अपने ख़ज़ाने से नए और पुराने जवाहिर निकालता है।”
53. यह तम्सीलें सुनाने के बाद ईसा वहाँ से चला गया।
54. अपने वतनी शहर नासरत पहुँच कर वह इबादतख़ाने में लोगों को तालीम देने लगा। उस की बातें सुन कर वह हैरतज़दा हुए। उन्हों ने पूछा, “उसे यह हिक्मत और मोजिज़े करने की यह क़ुद्रत कहाँ से हासिल हुई है?
55. क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या उस की माँ का नाम मरियम नहीं है, और क्या उस के भाई याक़ूब, यूसुफ़, शमाऊन और यहूदा नहीं हैं?
56. क्या उस की बहनें हमारे साथ नहीं रहतीं? तो फिर उसे यह सब कुछ कहाँ से मिल गया?”
57. यूँ वह उस से ठोकर खा कर उसे क़बूल करने से क़ासिर रहे। ईसा ने उन से कहा, “नबी की इज़्ज़त हर जगह की जाती है सिवा-ए-उस के वतनी शहर और उस के अपने ख़ान्दान के।”
58. और उन के ईमान की कमी के बाइस उस ने वहाँ ज़ियादा मोजिज़े न किए

  Matthew (13/28)