Mark (9/16)  

1. ईसा ने उन्हें यह भी बताया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, यहाँ कुछ ऐसे लोग खड़े हैं जो मरने से पहले ही अल्लाह की बादशाही को क़ुद्रत के साथ आते हुए देखेंगे।”
2. छः दिन के बाद ईसा सिर्फ़ पत्रस, याक़ूब और यूहन्ना को अपने साथ ले कर ऊँचे पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ उस की शक्ल-ओ-सूरत उन के सामने बदल गई।
3. उस के कपड़े चमकने लगे और निहायत सफ़ेद हो गए। दुनिया में कोई भी धोबी कपड़े इतने सफ़ेद नहीं कर सकता।
4. फिर इल्यास और मूसा ज़ाहिर हुए और ईसा से बात करने लगे।
5. पत्रस बोल उठा, “उस्ताद, कितनी अच्छी बात है कि हम यहाँ हैं। आएँ, हम तीन झोंपड़ियाँ बनाएँ, एक आप के लिए, एक मूसा के लिए और एक इल्यास के लिए।”
6. उस ने यह इस लिए कहा कि तीनों शागिर्द सहमे हुए थे और वह नहीं जानता था कि क्या कहे।
7. इस पर एक बादल आ कर उन पर छा गया और बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा पियारा फ़र्ज़न्द है। इस की सुनो।”
8. अचानक मूसा और इल्यास ग़ाइब हो गए। शागिर्दों ने चारों तरफ़ देखा, लेकिन सिर्फ़ ईसा नज़र आया।
9. वह पहाड़ से उतरने लगे तो ईसा ने उन्हें हुक्म दिया, “जो कुछ तुम ने देखा है उसे उस वक़्त तक किसी को न बताना जब तक कि इब्न-ए-आदम मुर्दों में से जी न उठे।”
10. चुनाँचे उन्हों ने यह बात अपने तक मह्दूद रखी। लेकिन वह कई बार आपस में बह्स करने लगे कि मुर्दों में से जी उठने से क्या मुराद हो सकती है।
11. फिर उन्हों ने उस से पूछा, “शरीअत के उलमा क्यूँ कहते हैं कि मसीह की आमद से पहले इल्यास का आना ज़रूरी है?”
12. ईसा ने जवाब दिया, “इल्यास तो ज़रूर पहले सब कुछ बहाल करने के लिए आएगा। लेकिन कलाम-ए-मुक़द्दस में इब्न-ए-आदम के बारे में यह क्यूँ लिखा है कि उसे बहुत दुख उठाना और हक़ीर समझा जाना है?
13. लेकिन मैं तुम को बताता हूँ, इल्यास तो आ चुका है और उन्हों ने उस के साथ जो चाहा किया। यह भी कलाम-ए-मुक़द्दस के मुताबिक़ ही हुआ है।”
14. जब वह बाक़ी शागिर्दों के पास वापस पहुँचे तो उन्हों ने देखा कि उन के गिर्द एक बड़ा हुजूम जमा है और शरीअत के कुछ उलमा उन के साथ बह्स कर रहे हैं।
15. ईसा को देखते ही लोगों ने बड़ी बेचैनी से उस की तरफ़ दौड़ कर उसे सलाम किया।
16. उस ने शागिर्दों से सवाल किया, “तुम उन के साथ किस के बारे में बह्स कर रहे हो?”
17. हुजूम में से एक आदमी ने जवाब दिया, “उस्ताद, मैं अपने बेटे को आप के पास लाया था। वह ऐसी बदरुह के क़ब्ज़े में है जो उसे बोलने नहीं देती।
18. और जब भी वह उस पर ग़ालिब आती है वह उसे ज़मीन पर पटक देती है। बेटे के मुँह से झाग निकलने लगता और वह दाँत पीसने लगता है। फिर उस का जिस्म अकड़ जाता है। मैं ने आप के शागिर्दों से कहा तो था कि वह बदरुह को निकाल दें, लेकिन वह न निकाल सके।”
19. ईसा ने उन से कहा, “ईमान से ख़ाली नसल! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ, कब तक तुम्हें बर्दाश्त करूँ? लड़के को मेरे पास ले आओ।”
20. वह उसे ईसा के पास ले आए। ईसा को देखते ही बदरुह लड़के को झंझोड़ने लगी। वह ज़मीन पर गिर गया और इधर उधर लुढ़कते हुए मुँह से झाग निकालने लगा।
21. ईसा ने बाप से पूछा, “इस के साथ कब से ऐसा हो रहा है?” उस ने जवाब दिया, “बचपन से।
22. बहुत दफ़ा उस ने इसे हलाक करने की ख़ातिर आग या पानी में गिराया है। अगर आप कुछ कर सकते हैं तो तरस खा कर हमारी मदद करें।”
23. ईसा ने पूछा, “क्या मतलब, ‘अगर आप कुछ कर सकते हैं’? जो ईमान रखता है उस के लिए सब कुछ मुम्किन है।”
24. लड़के का बाप फ़ौरन चिल्ला उठा, “मैं ईमान रखता हूँ। मेरी बेएतिक़ादी का इलाज करें।”
25. ईसा ने देखा कि बहुत से लोग दौड़ दौड़ कर देखने आ रहे हैं, इस लिए उस ने नापाक रूह को डाँटा, “ऐ गूँगी और बहरी बदरुह, मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि इस में से निकल जा। कभी भी इस में दुबारा दाख़िल न होना!”
26. इस पर बदरुह चीख़ उठी और लड़के को शिद्दत से झंझोड़ कर निकल गई। लड़का लाश की तरह ज़मीन पर पड़ा रहा, इस लिए सब ने कहा, “वह मर गया है।”
27. लेकिन ईसा ने उस का हाथ पकड़ कर उठने में उस की मदद की और वह खड़ा हो गया।
28. बाद में जब ईसा किसी घर में जा कर अपने शागिर्दों के साथ अकेला था तो उन्हों ने उस से पूछा, “हम बदरुह को क्यूँ न निकाल सके?”
29. उस ने जवाब दिया, “इस क़िस्म की बदरुह सिर्फ़ दुआ से निकाली जा सकती है।”
30. वहाँ से निकल कर वह गलील में से गुज़रे। ईसा नहीं चाहता था कि किसी को पता चले कि वह कहाँ है,
31. क्यूँकि वह अपने शागिर्दों को तालीम दे रहा था। उस ने उन से कहा, “इब्न-ए-आदम को आदमियों के हवाले कर दिया जाएगा। वह उसे क़त्ल करेंगे, लेकिन तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।”
32. लेकिन शागिर्द इस का मतलब न समझे और वह ईसा से इस के बारे में पूछने से डरते भी थे।
33. चलते चलते वह कफ़र्नहूम पहुँचे। जब वह किसी घर में थे तो ईसा ने शागिर्दों से सवाल किया, “रास्ते में तुम किस बात पर बह्स कर रहे थे?”
34. लेकिन वह ख़ामोश रहे, क्यूँकि वह रास्ते में इस पर बह्स कर रहे थे कि हम में से बड़ा कौन है?
35. ईसा बैठ गया और बारह शागिर्दों को बुला कर कहा, “जो अव्वल होना चाहता है वह सब से आख़िर में आए और सब का ख़ादिम हो।”
36. फिर उस ने एक छोटे बच्चे को ले कर उन के दर्मियान खड़ा किया। उसे गले लगा कर उस ने उन से कहा,
37. “जो मेरे नाम में इन बच्चों में से किसी को क़बूल करता है वह मुझे ही क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह मुझे नहीं बल्कि उसे क़बूल करता है जिस ने मुझे भेजा है।”
38. यूहन्ना बोल उठा, “उस्ताद, हम ने एक शख़्स को देखा जो आप का नाम ले कर बदरुहें निकाल रहा था। हम ने उसे मना किया, क्यूँकि वह हमारी पैरवी नहीं करता।”
39. लेकिन ईसा ने कहा, “उसे मना न करना। जो भी मेरे नाम में मोजिज़ा करे वह अगले लम्हे मेरे बारे में बुरी बातें नहीं कह सकेगा।
40. क्यूँकि जो हमारे ख़िलाफ़ नहीं वह हमारे हक़ में है।
41. मैं तुम को सच्च बताता हूँ, जो भी तुम्हें इस वजह से पानी का गलास पिलाए कि तुम मसीह के पैरोकार हो उसे ज़रूर अज्र मिलेगा।
42. और जो कोई मुझ पर ईमान रखने वाले इन छोटों में से किसी को गुनाह करने पर उकसाए उस के लिए बेहतर है कि उस के गले में बड़ी चक्की का पाट बाँध कर उसे समुन्दर में फैंक दिया जाए।
43. अगर तेरा हाथ तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काट डालना। इस से पहले कि तू दो हाथों समेत जहन्नुम की कभी न बुझने वाली आग में चला जाए [यानी वहाँ जहाँ लोगों को खाने वाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक हाथ से महरूम हो कर अबदी ज़िन्दगी में दाख़िल हो।
44. अगर तेरा हाथ तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काट डालना। इस से पहले कि तू दो हाथों समेत जहन्नुम की कभी न बुझने वाली आग में चला जाए [यानी वहाँ जहाँ लोगों को खाने वाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक हाथ से महरूम हो कर अबदी ज़िन्दगी में दाख़िल हो।
45. अगर तेरा पाँओ तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काट डालना। इस से पहले कि तुझे दो पाँओ समेत जहन्नुम में फैंका जाए [जहाँ लोगों को खाने वाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक पाँओ से महरूम हो कर अबदी ज़िन्दगी में दाख़िल हो।
46. अगर तेरा पाँओ तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे काट डालना। इस से पहले कि तुझे दो पाँओ समेत जहन्नुम में फैंका जाए [जहाँ लोगों को खाने वाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक पाँओ से महरूम हो कर अबदी ज़िन्दगी में दाख़िल हो।
47. और अगर तेरी आँख तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे निकाल देना। इस से पहले कि तुझे दो आँखों समेत जहन्नुम में फैंका जाए [जहाँ लोगों को खाने वाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक आँख से महरूम हो कर अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो।
48. और अगर तेरी आँख तुझे गुनाह करने पर उकसाए तो उसे निकाल देना। इस से पहले कि तुझे दो आँखों समेत जहन्नुम में फैंका जाए [जहाँ लोगों को खाने वाले कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती] बेहतर यह है कि तू एक आँख से महरूम हो कर अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो।
49. क्यूँकि हर एक को आग से नमकीन किया जाएगा [और हर एक क़ुर्बानी नमक से नमकीन की जाएगी]।
50. नमक अच्छी चीज़ है। लेकिन अगर उस का ज़ाइक़ा जाता रहे तो उसे क्यूँकर दुबारा नमकीन किया जा सकता है? अपने दर्मियान नमक की खूबियाँ बरक़रार रखो और सुलह-सलामती से एक दूसरे के साथ ज़िन्दगी गुज़ारो।”

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