Mark (8/16)  

1. उन दिनों में एक और मर्तबा ऐसा हुआ कि बहुत से लोग जमा हुए जिन के पास खाने का बन्द-ओ-बस्त नहीं था। चुनाँचे ईसा ने अपने शागिर्दों को बुला कर उन से कहा,
2. “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। इन्हें मेरे साथ ठहरे तीन दिन हो चुके हैं और इन के पास खाने की कोई चीज़ नहीं है।
3. लेकिन अगर मैं इन्हें रुख़्सत कर दूँ और वह इस भूकी हालत में अपने अपने घर चले जाएँ तो वह रास्ते में थक कर चूर हो जाएँगे। और इन में से कई दूरदराज़ से आए हैं।”
4. उस के शागिर्दों ने जवाब दिया, “इस वीरान इलाक़े में कहाँ से इतना खाना मिल सकेगा कि यह खा कर सेर हो जाएँ?”
5. ईसा ने पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्हों ने जवाब दिया, “सात।”
6. ईसा ने हुजूम को ज़मीन पर बैठने को कहा। फिर सात रोटियों को ले कर उस ने शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उन्हें तोड़ तोड़ कर अपने शागिर्दों को तक़्सीम करने के लिए दे दिया।
7. उन के पास दो चार छोटी मछलियाँ भी थीं। ईसा ने उन पर भी शुक्रगुज़ारी की दुआ की और शागिर्दों को उन्हें बाँटने को कहा।
8. लोगों ने जी भर कर खाया। बाद में जब खाने के बचे हुए टुकड़े जमा किए गए तो सात बड़े टोकरे भर गए।
9. तक़्रीबन 4,000 आदमी हाज़िर थे। खाने के बाद ईसा ने उन्हें रुख़्सत कर दिया
10. और फ़ौरन कश्ती पर सवार हो कर अपने शागिर्दों के साथ दल्मनूता के इलाक़े में पहुँच गया।
11. इस पर फ़रीसी निकल कर ईसा के पास आए और उस से बह्स करने लगे। उसे आज़्माने के लिए उन्हों ने मुतालबा किया कि वह उन्हें आस्मान की तरफ़ से कोई इलाही निशान दिखाए ताकि उस का इख़तियार साबित हो जाए।
12. लेकिन उस ने ठंडी आह भर कर कहा, “यह नसल क्यूँ इलाही निशान का मुतालबा करती है? मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि इसे कोई निशान नहीं दिया जाएगा।”
13. और उन्हें छोड़ कर वह दुबारा कश्ती में बैठ गया और झील को पार करने लगा।
14. लेकिन शागिर्द अपने साथ खाना लाना भूल गए थे। कश्ती में उन के पास सिर्फ़ एक रोटी थी।
15. ईसा ने उन्हें हिदायत की, “ख़बरदार, फ़रीसियों और हेरोदेस के ख़मीर से होश्यार रहना।”
16. शागिर्द आपस में बह्स करने लगे, “वह इस लिए कह रहे होंगे कि हमारे पास रोटी नहीं है।”
17. ईसा को मालूम हुआ कि वह क्या सोच रहे हैं। उस ने कहा, “तुम आपस में क्यूँ बह्स कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं है? क्या तुम अब तक न जानते, न समझते हो? क्या तुम्हारे दिल इतने बेहिस्स हो गए हैं?
18. तुम्हारी आँखें तो हैं, क्या तुम देख नहीं सकते? तुम्हारे कान तो हैं, क्या तुम सुन नहीं सकते? और क्या तुम्हें याद नहीं
19. जब मैं ने 5,000 आदमियों को पाँच रोटियों से सेर कर दिया तो तुम ने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे?” उन्हों ने जवाब दिया, “बारह”।
20. “और जब मैं ने 4,000 आदमियों को सात रोटियों से सेर कर दिया तो तुम ने बचे हुए टुकड़ों के कितने टोकरे उठाए थे?” उन्हों ने जवाब दिया, “सात।”
21. उस ने पूछा, “क्या तुम अभी तक नहीं समझते?”
22. वह बैत-सैदा पहुँचे तो लोग ईसा के पास एक अंधे आदमी को लाए। उन्हों ने इलतिमास की कि वह उसे छुए।
23. ईसा अंधे का हाथ पकड़ कर उसे गाँओ से बाहर ले गया। वहाँ उस ने उस की आँखों पर थूक कर अपने हाथ उस पर रख दिए और पूछा, “क्या तू कुछ देख सकता है?”
24. आदमी ने नज़र उठा कर कहा, “हाँ, मैं लोगों को देख सकता हूँ। वह फिरते हुए दरख़्तों की मानिन्द दिखाई दे रहे हैं।”
25. ईसा ने दुबारा अपने हाथ उस की आँखों पर रखे। इस पर आदमी की आँखें पूरे तौर पर खुल गईं, उस की नज़र बहाल हो गई और वह सब कुछ साफ़ साफ़ देख सकता था।
26. ईसा ने उसे रुख़्सत करके कहा, “इस गाँओ में वापस न जाना बल्कि सीधा अपने घर चला जा।”
27. फिर ईसा वहाँ से निकल कर अपने शागिर्दों के साथ क़ैसरिया-फ़िलिप्पी के क़रीब के दीहातों में गया। चलते चलते उस ने उन से पूछा, “मैं लोगों के नज़्दीक कौन हूँ?”
28. उन्हों ने जवाब दिया, “कुछ कहते हैं यहया बपतिस्मा देने वाला, कुछ यह कि आप इल्यास नबी हैं। कुछ यह भी कहते हैं कि नबियों में से एक।”
29. उस ने पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो? तुम्हारे नज़्दीक मैं कौन हूँ?” पत्रस ने जवाब दिया, “आप मसीह हैं।”
30. यह सुन कर ईसा ने उन्हें किसी को भी यह बात बताने से मना किया।
31. फिर ईसा उन्हें तालीम देने लगा, “लाज़िम है कि इब्न-ए-आदम बहुत दुख उठा कर बुज़ुर्गों, राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा से रद्द किया जाए। उसे क़त्ल भी किया जाएगा, लेकिन वह तीसरे दिन जी उठेगा।”
32. उस ने उन्हें यह बात साफ़ साफ़ बताई। इस पर पत्रस उसे एक तरफ़ ले जा कर समझाने लगा।
33. ईसा मुड़ कर शागिर्दों की तरफ़ देखने लगा। उस ने पत्रस को डाँटा, “शैतान, मेरे सामने से हट जा! तू अल्लाह की सोच नहीं रखता बल्कि इन्सान की।”
34. फिर उस ने शागिर्दों के इलावा हुजूम को भी अपने पास बुलाया। उस ने कहा, “जो मेरे पीछे आना चाहे वह अपने आप का इनकार करे और अपनी सलीब उठा कर मेरे पीछे हो ले।
35. क्यूँकि जो अपनी जान को बचाए रखना चाहे वह उसे खो देगा। लेकिन जो मेरी और अल्लाह की ख़ुशख़बरी की ख़ातिर अपनी जान खो दे वही उसे बचाएगा।
36. क्या फ़ाइदा है अगर किसी को पूरी दुनिया हासिल हो जाए, लेकिन वह अपनी जान से महरूम हो जाए?
37. इन्सान अपनी जान के बदले क्या दे सकता है?
38. जो भी इस ज़िनाकार और गुनाहआलूदा नसल के सामने मेरे और मेरी बातों के सबब से शरमाए उस से इब्न-ए-आदम भी उस वक़्त शरमाएगा जब वह अपने बाप के जलाल में मुक़द्दस फ़रिश्तों के साथ आएगा।”

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