Mark (3/16)  

1. किसी और वक़्त जब ईसा इबादतख़ाने में गया तो वहाँ एक आदमी था जिस का हाथ सूखा हुआ था।
2. सबत का दिन था और लोग बड़े ग़ौर से देख रहे थे कि क्या ईसा उस आदमी को आज भी शिफ़ा देगा। क्यूँकि वह इस पर इल्ज़ाम लगाने का कोई बहाना तलाश कर रहे थे।
3. ईसा ने सूखे हाथ वाले आदमी से कहा, “उठ, दर्मियान में खड़ा हो।”
4. फिर ईसा ने उन से पूछा, “मुझे बताओ, शरीअत हमें सबत के दिन क्या करने की इजाज़त देती है, नेक काम करने की या ग़लत काम करने की, किसी की जान बचाने की या उसे तबाह करने की?” सब ख़ामोश रहे।
5. वह ग़ुस्से से अपने इर्दगिर्द के लोगों की तरफ़ देखने लगा। उन की सख़्तदिली उस के लिए बड़े दुख का बाइस बन रही थी। फिर उस ने आदमी से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उस ने ऐसा किया तो उस का हाथ बहाल हो गया।
6. इस पर फ़रीसी बाहर निकल कर सीधे हेरोदेस की पार्टी के अफ़राद के साथ मिल कर ईसा को क़त्ल करने की साज़िशें करने लगे।
7. लेकिन ईसा वहाँ से हट कर अपने शागिर्दों के साथ झील के पास गया। एक बड़ा हुजूम उस के पीछे हो लिया। लोग न सिर्फ़ गलील के इलाक़े से आए बल्कि बहुत सी और जगहों यानी यहूदिया,
8. यरूशलम, इदूमया, दरया-ए-यर्दन के पार और सूर और सैदा के इलाक़े से भी। वजह यह थी कि ईसा के काम की ख़बर उन इलाक़ों तक भी पहुँच चुकी थी और नतीजे में बहुत से लोग वहाँ से भी आए।
9. ईसा ने शागिर्दों से कहा, “एहतियातन एक कश्ती उस वक़्त के लिए तय्यार कर रखो जब हुजूम मुझे हद्द से ज़ियादा दबाने लगेगा।”
10. क्यूँकि उस दिन उस ने बहुतों को शिफ़ा दी थी, इस लिए जिसे भी कोई तक्लीफ़ थी वह धक्के दे दे कर उस के पास आया ताकि उसे छू सके।
11. और जब भी नापाक रूहों ने ईसा को देखा तो वह उस के सामने गिर कर चीख़ें मारने लगीं, “आप अल्लाह के फ़र्ज़न्द हैं।”
12. लेकिन ईसा ने उन्हें सख़्ती से डाँट कर कहा कि वह उसे ज़ाहिर न करें।
13. इस के बाद ईसा ने पहाड़ पर चढ़ कर जिन्हें वह चाहता था उन्हें अपने पास बुला लिया। और वह उस के पास आए।
14. उस ने उन में से बारह को चुन लिया। उन्हें उस ने अपने रसूल मुक़र्रर कर लिया ताकि वह उस के साथ चलें और वह उन्हें मुनादी करने के लिए भेज सके।
15. उस ने उन्हें बदरुहें निकालने का इख़तियार भी दिया।
16. जिन बारह को उस ने मुक़र्रर किया उन के नाम यह हैं : शमाऊन जिस का लक़ब उस ने पत्रस रखा,
17. ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और यूहन्ना जिन का लक़ब ईसा ने ‘बादल की गरज के बेटे’ रखा,
18. अन्द्रियास, फ़िलिप्पुस, बरतुल्माई, मत्ती, तोमा, याक़ूब बिन हल्फ़ई, तद्दी, शमाऊन मुजाहिद
19. और यहूदाह इस्करियोती जिस ने बाद में उसे दुश्मन के हवाले कर दिया।
20. फिर ईसा किसी घर में दाख़िल हुआ। इस बार भी इतना हुजूम जमा हो गया कि ईसा को अपने शागिर्दों समेत खाना खाने का मौक़ा भी न मिला।
21. जब उस के ख़ान्दान के अफ़राद ने यह सुना तो वह उसे पकड़ कर ले जाने के लिए आए, क्यूँकि उन्हों ने कहा, “वह होश में नहीं है।”
22. लेकिन शरीअत के जो आलिम यरूशलम से आए थे उन्हों ने कहा, “यह बदरूहों के सरदार बाल-ज़बूल के क़ब्ज़े में है। उसी की मदद से बदरूहों को निकाल रहा है।”
23. फिर ईसा ने उन्हें अपने पास बुला कर तम्सीलों में जवाब दिया। “इब्लीस किस तरह इब्लीस को निकाल सकता है?
24. जिस बादशाही में फूट पड़ जाए वह क़ाइम नहीं रह सकती।
25. और जिस घराने की ऐसी हालत हो वह भी क़ाइम नहीं रह सकता।
26. इसी तरह अगर इब्लीस अपने आप की मुख़ालफ़त करे और यूँ उस में फूट पड़ जाए तो वह क़ाइम नहीं रह सकता बल्कि ख़त्म हो चुका है।
27. किसी ज़ोरावर आदमी के घर में घुस कर उस का माल-ओ-अस्बाब लूटना उस वक़्त तक मुम्किन नहीं है जब तक उस आदमी को बाँधा न जाए। फिर ही उसे लूटा जा सकता है।
28. मैं तुम से सच्च कहता हूँ कि लोगों के तमाम गुनाह और कुफ़्र की बातें मुआफ़ की जा सकेंगी, ख़्वाह वह कितना ही कुफ़्र क्यूँ न बकें।
29. लेकिन जो रूह-उल-क़ुद्स के ख़िलाफ़ कुफ़्र बके उसे अबद तक मुआफ़ी नहीं मिलेगी। वह एक अबदी गुनाह का क़ुसूरवार ठहरेगा।”
30. ईसा ने यह इस लिए कहा क्यूँकि आलिम कह रहे थे कि वह किसी बदरुह की गिरिफ़्त में है।
31. फिर ईसा की माँ और भाई पहुँच गए। बाहर खड़े हो कर उन्हों ने किसी को उसे बुलाने को भेज दिया।
32. उस के इर्दगिर्द हुजूम बैठा था। उन्हों ने कहा, “आप की माँ और भाई बाहर आप को बुला रहे हैं।”
33. ईसा ने पूछा, “कौन मेरी माँ और कौन मेरे भाई हैं?”
34. और अपने गिर्द बैठे लोगों पर नज़र डाल कर उस ने कहा, “देखो, यह मेरी माँ और मेरे भाई हैं।
35. जो भी अल्लाह की मर्ज़ी पूरी करता है वह मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माँ है।”

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