← Mark (10/16) → |
1. | फिर ईसा उस जगह को छोड़ कर यहूदिया के इलाक़े में और दरया-ए-यर्दन के पार चला गया। वहाँ भी हुजूम जमा हो गया। उस ने उन्हें मामूल के मुताबिक़ तालीम दी। |
2. | कुछ फ़रीसी आए और उसे फंसाने की ग़रज़ से सवाल किया, “क्या जाइज़ है कि मर्द अपनी बीवी को तलाक़ दे?” |
3. | ईसा ने उन से पूछा, “मूसा ने शरीअत में तुम को क्या हिदायत की है?” |
4. | उन्हों ने कहा, “उस ने इजाज़त दी है कि आदमी तलाक़नामा लिख कर बीवी को रुख़्सत कर दे।” |
5. | ईसा ने जवाब दिया, “मूसा ने तुम्हारी सख़्तदिली की वजह से तुम्हारे लिए यह हुक्म लिखा था। |
6. | लेकिन इबतिदा में ऐसा नहीं था। दुनिया की तख़्लीक़ के वक़्त अल्लाह ने उन्हें मर्द और औरत बनाया। |
7. | ‘इस लिए मर्द अपने माँ-बाप को छोड़ कर अपनी बीवी के साथ पैवस्त हो जाता है। |
8. | वह दोनों एक हो जाते हैं।’ यूँ वह कलाम-ए-मुक़द्दस के मुताबिक़ दो नहीं रहते बल्कि एक हो जाते हैं। |
9. | तो जिसे अल्लाह ने ख़ुद जोड़ा है उसे इन्सान जुदा न करे।” |
10. | किसी घर में आ कर शागिर्दों ने यह बात दुबारा छेड़ कर ईसा से मज़ीद दरयाफ़्त किया। |
11. | उस ने उन्हें बताया, “जो अपनी बीवी को तलाक़ दे कर किसी और से शादी करे वह उस के साथ ज़िना करता है। |
12. | और जो औरत अपने ख़ावन्द को तलाक़ दे कर किसी और से शादी करे वह भी ज़िना करती है।” |
13. | एक दिन लोग अपने छोटे बच्चों को ईसा के पास लाए ताकि वह उन्हें छुए। लेकिन शागिर्दों ने उन को मलामत की। |
14. | यह देख कर ईसा नाराज़ हुआ। उस ने उन से कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें न रोको, क्यूँकि अल्लाह की बादशाही इन जैसे लोगों को हासिल है। |
15. | मैं तुम को सच्च बताता हूँ, जो अल्लाह की बादशाही को बच्चे की तरह क़बूल न करे वह उस में दाख़िल नहीं होगा।” |
16. | यह कह कर उस ने उन्हें गले लगाया और अपने हाथ उन पर रख कर उन्हें बर्कत दी। |
17. | जब ईसा रवाना होने लगा तो एक आदमी दौड़ कर उस के पास आया और उस के सामने घुटने टेक कर पूछा, “नेक उस्ताद, मैं क्या करूँ ताकि अबदी ज़िन्दगी मीरास में पाऊँ?” |
18. | ईसा ने पूछा, “तू मुझे नेक क्यूँ कहता है? कोई नेक नहीं सिवा-ए-एक के और वह है अल्लाह। |
19. | तू शरीअत के अह्काम से तो वाक़िफ़ है। क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, धोका न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।” |
20. | आदमी ने जवाब दिया, “उस्ताद, मैं ने जवानी से आज तक इन तमाम अह्काम की पैरवी की है।” |
21. | ईसा ने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा। उस के दिल में उस के लिए पियार उभर आया। वह बोला, “एक काम रह गया है। जा, अपनी पूरी जायदाद फ़रोख़्त करके पैसे ग़रीबों में तक़्सीम कर दे। फिर तेरे लिए आस्मान पर ख़ज़ाना जमा हो जाएगा। इस के बाद आ कर मेरे पीछे हो ले।” |
22. | यह सुन कर आदमी का मुँह लटक गया और वह मायूस हो कर चला गया, क्यूँकि वह निहायत दौलतमन्द था। |
23. | ईसा ने अपने इर्दगिर्द देख कर शागिर्दों से कहा, “दौलतमन्दों के लिए अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है!” |
24. | शागिर्द उस के यह अल्फ़ाज़ सुन कर हैरान हुए। लेकिन ईसा ने दुबारा कहा, “बच्चो! अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है। |
25. | अमीर के अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होने की निस्बत ज़ियादा आसान यह है कि ऊँट सूई के नाके में से गुज़र जाए।” |
26. | इस पर शागिर्द मज़ीद हैरतज़दा हुए और एक दूसरे से कहने लगे, “फिर किस को नजात मिल सकती है?” |
27. | ईसा ने ग़ौर से उन की तरफ़ देख कर जवाब दिया, “यह इन्सान के लिए तो नामुम्किन है, लेकिन अल्लाह के लिए नहीं। उस के लिए सब कुछ मुम्किन है।” |
28. | फिर पत्रस बोल उठा, “हम तो अपना सब कुछ छोड़ कर आप के पीछे हो लिए हैं।” |
29. | ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, जिस ने भी मेरी और अल्लाह की ख़ुशख़बरी की ख़ातिर अपने घर, भाइयों, बहनों, माँ, बाप, बच्चों या खेतों को छोड़ दिया है |
30. | उसे इस ज़माने में ईज़ारसानी के साथ साथ सौ गुना ज़ियादा घर, भाई, बहनें, माएँ, बच्चे और खेत मिल जाएँगे। और आने वाले ज़माने में उसे अबदी ज़िन्दगी मिलेगी। |
31. | लेकिन बहुत से लोग जो अब अव्वल हैं उस वक़्त आख़िर होंगे और जो अब आख़िर हैं वह अव्वल होंगे।” |
32. | अब वह यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे थे और ईसा उन के आगे आगे चल रहा था। शागिर्द हैरतज़दा थे जबकि उन के पीछे चलने वाले लोग सहमे हुए थे। एक और दफ़ा बारह शागिर्दों को एक तरफ़ ले जा कर ईसा उन्हें वह कुछ बताने लगा जो उस के साथ होने को था। |
33. | उस ने कहा, “हम यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे हैं। वहाँ इब्न-ए-आदम को राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा के हवाले कर दिया जाएगा। वह उस पर सज़ा-ए-मौत का फ़त्वा दे कर उसे ग़ैरयहूदियों के हवाले कर देंगे, |
34. | जो उस का मज़ाक़ उड़ाएँगे, उस पर थूकेंगे, उस को कोड़े मारेंगे और उसे क़त्ल करेंगे। लेकिन तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।” |
35. | फिर ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और यूहन्ना उस के पास आए। वह कहने लगे, “उस्ताद, आप से एक गुज़ारिश है।” |
36. | उस ने पूछा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?” |
37. | उन्हों ने जवाब दिया, “जब आप अपने जलाली तख़्त पर बैठेंगे तो हम में से एक को अपने दाएँ हाथ बैठने दें और दूसरे को बाएँ हाथ।” |
38. | ईसा ने कहा, “तुम को नहीं मालूम कि क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह पियाला पी सकते हो जो मैं पीने को हूँ या वह बपतिस्मा ले सकते हो जो मैं लेने को हूँ?” |
39. | उन्हों ने जवाब दिया, “जी, हम कर सकते हैं।” फिर ईसा ने उन से कहा, “तुम ज़रूर वह पियाला पियोगे जो मैं पीने को हूँ और वह बपतिस्मा लोगे जो मैं लेने को हूँ। |
40. | लेकिन यह फ़ैसला करना मेरा काम नहीं कि कौन मेरे दाएँ हाथ बैठेगा और कौन बाएँ हाथ। अल्लाह ने यह मक़ाम सिर्फ़ उन ही के लिए तय्यार किया है जिन को उस ने ख़ुद मुक़र्रर किया है।” |
41. | जब बाक़ी दस शागिर्दों ने यह सुना तो उन्हें याक़ूब और यूहन्ना पर ग़ुस्सा आया। |
42. | इस पर ईसा ने उन सब को बुला कर कहा, “तुम जानते हो कि क़ौमों के हुक्मरान अपनी रआया पर रोब डालते हैं, और उन के बड़े अफ़्सर उन पर अपने इख़तियार का ग़लत इस्तेमाल करते हैं। |
43. | लेकिन तुम्हारे दर्मियान ऐसा नहीं है। जो तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा ख़ादिम बने |
44. | और जो तुम में अव्वल होना चाहे वह सब का ग़ुलाम बने। |
45. | क्यूँकि इब्न-ए-आदम भी इस लिए नहीं आया कि ख़िदमत ले बल्कि इस लिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान फ़िद्या के तौर पर दे कर बहुतों को छुड़ाए।” |
46. | वह यरीहू पहुँच गए। उस में से गुज़र कर ईसा शागिर्दों और एक बड़े हुजूम के साथ बाहर निकलने लगा। वहाँ एक अंधा भीक माँगने वाला रास्ते के किनारे बैठा था। उस का नाम बरतिमाई (तिमाई का बेटा) था। |
47. | जब उस ने सुना कि ईसा नासरी क़रीब ही है तो वह चिल्लाने लगा, “ईसा इब्न-ए-दाऊद, मुझ पर रहम करें!” |
48. | बहुत से लोगों ने उसे डाँट कर कहा, “ख़ामोश!” लेकिन वह मज़ीद ऊँची आवाज़ से पुकारता रहा, “इब्न-ए-दाऊद, मुझ पर रहम करें!” |
49. | ईसा रुक कर बोला, “उसे बुलाओ।” चुनाँचे उन्हों ने उसे बुला कर कहा, “हौसला रख। उठ, वह तुझे बुला रहा है।” |
50. | बरतिमाई ने अपनी चादर ज़मीन पर फैंक दी और उछल कर ईसा के पास आया। |
51. | ईसा ने पूछा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” उस ने जवाब दिया, “उस्ताद, यह कि मैं देख सकूँ।” |
52. | ईसा ने कहा, “जा, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है।” जूँ ही ईसा ने यह कहा अंधे की आँखें बहाल हो गईं और वह ईसा के पीछे चलने लगा। |
← Mark (10/16) → |