Luke (9/24)  

1. इस के बाद ईसा ने अपने बारह शागिर्दों को इकट्ठा करके उन्हें बदरूहों को निकालने और मरीज़ों को शिफ़ा देने की क़ुव्वत और इख़तियार दिया।
2. फिर उस ने उन्हें अल्लाह की बादशाही की मुनादी करने और शिफ़ा देने के लिए भेज दिया।
3. उस ने कहा, “सफ़र पर कुछ साथ न लेना। न लाठी, न सामान के लिए बैग, न रोटी, न पैसे और न एक से ज़ियादा सूट।
4. जिस घर में भी तुम जाते हो उस में उस मक़ाम से चले जाने तक ठहरो।
5. और अगर मक़ामी लोग तुम को क़बूल न करें तो फिर उस शहर से निकलते वक़्त उस की गर्द अपने पाँओ से झाड़ दो। यूँ तुम उन के ख़िलाफ़ गवाही दोगे।”
6. चुनाँचे वह निकल कर गाँओ गाँओ जा कर अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाने और मरीज़ों को शिफ़ा देने लगे।
7. जब गलील के हुक्मरान हेरोदेस अनतिपास ने सब कुछ सुना जो ईसा कर रहा था तो वह उलझन में पड़ गया। बाज़ तो कह रहे थे कि यहया बपतिस्मा देने वाला जी उठा है।
8. औरों का ख़याल था कि इल्यास नबी ईसा में ज़ाहिर हुआ है या कि क़दीम ज़माने का कोई और नबी जी उठा है।
9. लेकिन हेरोदेस ने कहा, “मैं ने ख़ुद यहया का सर क़लम करवाया था। तो फिर यह कौन है जिस के बारे में मैं इस क़िस्म की बातें सुनता हूँ?” और वह उस से मिलने की कोशिश करने लगा।
10. रसूल वापस आए तो उन्हों ने ईसा को सब कुछ सुनाया जो उन्हों ने किया था। फिर वह उन्हें अलग ले जा कर बैत-सैदा नामी शहर में आया।
11. लेकिन जब लोगों को पता चला तो वह उन के पीछे वहाँ पहुँच गए। ईसा ने उन्हें आने दिया और अल्लाह की बादशाही के बारे में तालीम दी। साथ साथ उस ने मरीज़ों को शिफ़ा भी दी।
12. जब दिन ढलने लगा तो बारह शागिर्दों ने पास आ कर उस से कहा, “लोगों को रुख़्सत कर दें ताकि वह इर्दगिर्द के दीहातों और बस्तियों में जा कर रात ठहरने और खाने का बन्द-ओ-बस्त कर सकें, क्यूँकि इस वीरान जगह में कुछ नहीं मिलेगा।”
13. लेकिन ईसा ने उन्हें कहा, “तुम ख़ुद इन्हें कुछ खाने को दो।” उन्हों ने जवाब दिया, “हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। या क्या हम जा कर इन तमाम लोगों के लिए खाना ख़रीद लाएँ?”
14. (वहाँ तक़्रीबन 5,000 मर्द थे।) ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “तमाम लोगों को गुरोहों में तक़्सीम करके बिठा दो। हर गुरोह पचास अफ़राद पर मुश्तमिल हो।”
15. शागिर्दों ने ऐसा ही किया और सब को बिठा दिया।
16. इस पर ईसा ने उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को ले कर आस्मान की तरफ़ नज़र उठाई और उन के लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उस ने उन्हें तोड़ तोड़ कर शागिर्दों को दिया ताकि वह लोगों में तक़्सीम करें।
17. और सब ने जी भर कर खाया। इस के बाद जब बचे हुए टुकड़े जमा किए गए तो बारह टोकरे भर गए।
18. एक दिन ईसा अकेला दुआ कर रहा था। सिर्फ़ शागिर्द उस के साथ थे। उस ने उन से पूछा, “मैं आम लोगों के नज़्दीक कौन हूँ?”
19. उन्हों ने जवाब दिया, “कुछ कहते हैं यहया बपतिस्मा देने वाला, कुछ यह कि आप इल्यास नबी हैं। कुछ यह भी कहते हैं कि क़दीम ज़माने का कोई नबी जी उठा है।”
20. उस ने पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो? तुम्हारे नज़्दीक मैं कौन हूँ?” पत्रस ने जवाब दिया, “आप अल्लाह के मसीह हैं।”
21. यह सुन कर ईसा ने उन्हें यह बात किसी को भी बताने से मना किया।
22. उस ने कहा, “लाज़िम है कि इब्न-ए-आदम बहुत दुख उठा कर बुज़ुर्गों, राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा से रद्द किया जाए। उसे क़त्ल भी किया जाएगा, लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।”
23. फिर उस ने सब से कहा, “जो मेरे पीछे आना चाहे वह अपने आप का इन्कार करे और हर रोज़ अपनी सलीब उठा कर मेरे पीछे हो ले।
24. क्यूँकि जो अपनी जान को बचाए रखना चाहे वह उसे खो देगा। लेकिन जो मेरी ख़ातिर अपनी जान खो दे वही उसे बचाएगा।
25. क्या फ़ाइदा है अगर किसी को पूरी दुनिया हासिल हो जाए मगर वह अपनी जान से महरूम हो जाए या उसे इस का नुक़्सान उठाना पड़े?
26. जो भी मेरे और मेरी बातों के सबब से शरमाए उस से इब्न-ए-आदम भी उस वक़्त शरमाएगा जब वह अपने और अपने बाप के और मुक़द्दस फ़रिश्तों के जलाल में आएगा।
27. मैं तुम को सच्च बताता हूँ, यहाँ कुछ ऐसे लोग खड़े हैं जो मरने से पहले ही अल्लाह की बादशाही को देखेंगे।”
28. तक़्रीबन आठ दिन गुज़र गए। फिर ईसा पत्रस, याक़ूब और यूहन्ना को साथ ले कर दुआ करने के लिए पहाड़ पर चढ़ गया।
29. वहाँ दुआ करते करते उस के चिहरे की सूरत बदल गई और उस के कपड़े सफ़ेद हो कर बिजली की तरह चमकने लगे।
30. अचानक दो मर्द ज़ाहिर हो कर उस से मुख़ातिब हुए। एक मूसा और दूसरा इल्यास था।
31. उन की शक्ल-ओ-सूरत पुरजलाल थी। वह ईसा से इस के बारे में बात करने लगे कि वह किस तरह अल्लाह का मक़्सद पूरा करके यरूशलम में इस दुनिया से कूच कर जाएगा।
32. पत्रस और उस के साथियों को गहरी नींद आ गई थी, लेकिन जब वह जाग उठे तो ईसा का जलाल देखा और यह कि दो आदमी उस के साथ खड़े हैं।
33. जब वह मर्द ईसा को छोड़ कर रवाना होने लगे तो पत्रस ने कहा, “उस्ताद, कितनी अच्छी बात है कि हम यहाँ हैं। आएँ, हम तीन झोंपड़ियाँ बनाएँ, एक आप के लिए, एक मूसा के लिए और एक इल्यास के लिए।” लेकिन वह नहीं जानता था कि क्या कह रहा है।
34. यह कहते ही एक बादल आ कर उन पर छा गया। जब वह उस में दाख़िल हुए तो दह्शतज़दा हो गए।
35. फिर बादल से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा चुना हुआ फ़र्ज़न्द है, इस की सुनो।”
36. आवाज़ ख़त्म हुई तो ईसा अकेला ही था। और उन दिनों में शागिर्दों ने किसी को भी इस वाकिए के बारे में न बताया बल्कि ख़ामोश रहे।
37. अगले दिन वह पहाड़ से उतर आए तो एक बड़ा हुजूम ईसा से मिलने आया।
38. हुजूम में से एक आदमी ने ऊँची आवाज़ से कहा, “उस्ताद, मेहरबानी करके मेरे बेटे पर नज़र करें। वह मेरा इक्लौता बेटा है।
39. एक बदरुह उसे बार बार अपनी गिरिफ़्त में ले लेती है। फिर वह अचानक चीख़ें मारने लगता है। बदरुह उसे झंझोड़ कर इतना तंग करती है कि उस के मुँह से झाग निकलने लगता है। वह उसे कुचल कुचल कर मुश्किल से छोड़ती है।
40. मैं ने आप के शागिर्दों से दरख़्वास्त की थी कि वह उसे निकालें, लेकिन वह नाकाम रहे।”
41. ईसा ने कहा, “ईमान से ख़ाली और टेढ़ी नसल! मैं कब तक तुम्हारे पास रहूँ, कब तक तुम्हें बर्दाश्त करूँ?” फिर उस ने आदमी से कहा, “अपने बेटे को ले आ।”
42. बेटा ईसा के पास आ रहा था तो बदरुह उसे ज़मीन पर पटख़ कर झंझोड़ने लगी। लेकिन ईसा ने नापाक रूह को डाँट कर बच्चे को शिफ़ा दी। फिर उस ने उसे वापस बाप के सपुर्द कर दिया।
43. तमाम लोग अल्लाह की अज़ीम क़ुद्रत को देख कर हक्का-बक्का रह गए। अभी सब उन तमाम कामों पर ताज्जुब कर रहे थे जो ईसा ने हाल ही में किए थे कि उस ने अपने शागिर्दों से कहा,
44. “मेरी इस बात पर ख़ूब ध्यान दो, इब्न-ए-आदम को आदमियों के हवाले कर दिया जाएगा।”
45. लेकिन शागिर्द इस का मतलब न समझे। यह बात उन से पोशीदा रही और वह इसे समझ न सके। नीज़, वह ईसा से इस के बारे में पूछने से डरते भी थे।
46. फिर शागिर्द बह्स करने लगे कि हम में से कौन सब से बड़ा है।
47. लेकिन ईसा जानता था कि वह क्या सोच रहे हैं। उस ने एक छोटे बच्चे को ले कर अपने पास खड़ा किया
48. और उन से कहा, “जो मेरे नाम में इस बच्चे को क़बूल करता है वह मुझे ही क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह उसे क़बूल करता है जिस ने मुझे भेजा है। चुनाँचे तुम में से जो सब से छोटा है वही बड़ा है।”
49. यूहन्ना बोल उठा, “उस्ताद, हम ने किसी को देखा जो आप का नाम ले कर बदरुहें निकाल रहा था। हम ने उसे मना किया, क्यूँकि वह हमारे साथ मिल कर आप की पैरवी नहीं करता।”
50. लेकिन ईसा ने कहा, “उसे मना न करना, क्यूँकि जो तुम्हारे ख़िलाफ़ नहीं वह तुम्हारे हक़ में है।”
51. जब वह वक़्त क़रीब आया कि ईसा को आस्मान पर उठा लिया जाए तो वह बड़े अज़म के साथ यरूशलम की तरफ़ सफ़र करने लगा।
52. इस मक़्सद के तहत उस ने अपने आगे क़ासिद भेज दिए। चलते चलते वह सामरियों के एक गाँओ में पहुँचे जहाँ वह उस के लिए ठहरने की जगह तय्यार करना चाहते थे।
53. लेकिन गाँओ के लोगों ने ईसा को टिकने न दिया, क्यूँकि उस की मन्ज़िल-ए-मक़सूद यरूशलम थी।
54. यह देख कर उस के शागिर्द याक़ूब और यूहन्ना ने कहा, “ख़ुदावन्द, क्या [इल्यास की तरह] हम कहें कि आस्मान पर से आग नाज़िल हो कर इन को भस्म कर दे?”
55. लेकिन ईसा ने मुड़ कर उन्हें डाँटा [और कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम किस क़िस्म की रूह के हो। इब्न-ए-आदम इस लिए नहीं आया कि लोगों को हलाक करे बल्कि इस लिए कि उन्हें बचाए।”]
56. चुनाँचे वह किसी और गाँओ में चले गए।
57. सफ़र करते करते किसी ने रास्ते में ईसा से कहा, “जहाँ भी आप जाएँ मैं आप के पीछे चलता रहूँगा।”
58. ईसा ने जवाब दिया, “लोमड़ियाँ अपने भटों में और परिन्दे अपने घोंसलों में आराम कर सकते हैं, लेकिन इब्न-ए-आदम के पास सर रख कर आराम करने की कोई जगह नहीं।”
59. किसी और से उस ने कहा, “मेरे पीछे हो ले।” लेकिन उस आदमी ने कहा, “ख़ुदावन्द, मुझे पहले जा कर अपने बाप को दफ़न करने की इजाज़त दें।”
60. लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “मुर्दों को अपने मुर्दे दफ़नाने दे। तू जा कर अल्लाह की बादशाही की मुनादी कर।”
61. एक और आदमी ने यह माज़रत चाही, “ख़ुदावन्द, मैं ज़रूर आप के पीछे हो लूँगा। लेकिन पहले मुझे अपने घर वालों को ख़ैरबाद कहने दें।”
62. लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “जो भी हल चलाते हुए पीछे की तरफ़ देखे वह अल्लाह की बादशाही के लाइक़ नहीं है।”

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