Luke (8/24)  

1. इस के कुछ देर बाद ईसा मुख़्तलिफ़ शहरों और दीहातों में से गुज़र कर सफ़र करने लगा। हर जगह उस ने अल्लाह की बादशाही के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाई। उस के बारह शागिर्द उस के साथ थे,
2. नीज़ कुछ ख़वातीन भी जिन्हें उस ने बदरूहों से रिहाई और बीमारियों से शिफ़ा दी थी। इन में से एक मरियम थी जो मग्दलीनी कहलाती थी जिस में से सात बदरुहें निकाली गई थीं।
3. फिर यूअन्ना जो ख़ूज़ा की बीवी थी (ख़ूज़ा हेरोदेस बादशाह का एक अफ़्सर था)। सूसन्ना और दीगर कई ख़वातीन भी थीं जो अपने माली वसाइल से उन की ख़िदमत करती थीं।
4. एक दिन ईसा ने एक बड़े हुजूम को एक तम्सील सुनाई। लोग मुख़्तलिफ़ शहरों से उसे सुनने के लिए जमा हो गए थे।
5. “एक किसान बीज बोने के लिए निकला। जब बीज इधर उधर बिखर गया तो कुछ दाने रास्ते पर गिरे। वहाँ उन्हें पाँओ तले कुचला गया और परिन्दों ने उन्हें चुग लिया।
6. कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन नमी की कमी थी, इस लिए पौदे कुछ देर के बाद सूख गए।
7. कुछ दाने ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दर्मियान भी गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन ख़ुदरौ पौदों ने साथ साथ बढ़ कर उन्हें फलने फूलने की जगह न दी। चुनाँचे वह भी ख़त्म हो गए।
8. लेकिन ऐसे दाने भी थे जो ज़रख़ेज़ ज़मीन पर गिरे। वहाँ वह उग सके और जब फ़सल पक गई तो सौ गुना ज़ियादा फल पैदा हुआ।” यह कह कर ईसा पुकार उठा, “जो सुन सकता है वह सुन ले!”
9. उस के शागिर्दों ने उस से पूछा कि इस तम्सील का क्या मतलब है?
10. जवाब में उस ने कहा, “तुम को तो अल्लाह की बादशाही के भेद समझने की लियाक़त दी गई है। लेकिन मैं दूसरों को समझाने के लिए तम्सीलें इस्तेमाल करता हूँ ताकि पाक कलाम पूरा हो जाए कि ‘वह अपनी आँखों से देखेंगे मगर कुछ नहीं जानेंगे, वह अपने कानों से सुनेंगे मगर कुछ नहीं समझेंगे।’
11. तम्सील का मतलब यह है : बीज से मुराद अल्लाह का कलाम है।
12. राह पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते तो हैं, लेकिन फिर इब्लीस आ कर उसे उन के दिलों से छीन लेता है, ऐसा न हो कि वह ईमान ला कर नजात पाएँ।
13. पथरीली ज़मीन पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुन कर उसे ख़ुशी से क़बूल तो कर लेते हैं, लेकिन जड़ नहीं पकड़ते। नतीजे में अगरचि वह कुछ देर के लिए ईमान रखते हैं तो भी जब किसी आज़्माइश का सामना करना पड़ता है तो वह बर्गश्ता हो जाते हैं।
14. ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दर्मियान गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो सुनते तो हैं, लेकिन जब वह चले जाते हैं तो रोज़मर्रा की परेशानियाँ, दौलत और ज़िन्दगी की ऐश-ओ-इश्रत उन्हें फलने फूलने नहीं देती। नतीजे में वह फल लाने तक नहीं पहुँचते।
15. इस के मुक़ाबले में ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे हुए दाने वह लोग हैं जिन का दिल दियानतदार और अच्छा है। जब वह कलाम सुनते हैं तो वह उसे अपनाते और साबितक़दमी से तरक़्क़ी करते करते फल लाते हैं।
16. जब कोई चराग़ जलाता है तो वह उसे किसी बर्तन या चारपाई के नीचे नहीं रखता, बल्कि उसे शमादान पर रख देता है ताकि उस की रौशनी अन्दर आने वालों को नज़र आए।
17. जो कुछ भी इस वक़्त पोशीदा है वह आख़िर में ज़ाहिर हो जाएगा, और जो कुछ भी छुपा हुआ है वह मालूम हो जाएगा और रौशनी में लाया जाएगा।
18. चुनाँचे इस पर ध्यान दो कि तुम किस तरह सुनते हो। क्यूँकि जिस के पास कुछ है उसे और दिया जाएगा, जबकि जिस के पास कुछ नहीं है उस से वह भी छीन लिया जाएगा जिस के बारे में वह ख़याल करता है कि उस का है।”
19. एक दिन ईसा की माँ और भाई उस के पास आए, लेकिन वह हुजूम की वजह से उस तक न पहुँच सके।
20. चुनाँचे ईसा को इत्तिला दी गई, “आप की माँ और भाई बाहर खड़े हैं और आप से मिलना चाहते हैं।”
21. उस ने जवाब दिया, “मेरी माँ और भाई वह सब हैं जो अल्लाह का कलाम सुन कर उस पर अमल करते हैं।”
22. एक दिन ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आओ, हम झील को पार करें।” चुनाँचे वह कश्ती पर सवार हो कर रवाना हुए।
23. जब कश्ती चली जा रही थी तो ईसा सो गया। अचानक झील पर आँधी आई। कश्ती पानी से भरने लगी और डूबने का ख़त्रा था।
24. फिर उन्हों ने ईसा के पास जा कर उसे जगा दिया और कहा, “उस्ताद, उस्ताद, हम तबाह हो रहे हैं।” वह जाग उठा और आँधी और मौजों को डाँटा। आँधी थम गई और लहरें बिलकुल साकित हो गईं।
25. फिर उस ने शागिर्दों से पूछा, “तुम्हारा ईमान कहाँ है?” उन पर ख़ौफ़ तारी हो गया और वह सख़्त हैरान हो कर आपस में कहने लगे, “आख़िर यह कौन है? वह हवा और पानी को भी हुक्म देता है, और वह उस की मानते हैं।”
26. फिर वह सफ़र जारी रखते हुए गरासा के इलाक़े के किनारे पर पहुँचे जो झील के पार गलील के मुक़ाबिल है।
27. जब ईसा कश्ती से उतरा तो शहर का एक आदमी ईसा को मिला जो बदरूहों की गिरिफ़्त में था। वह काफ़ी देर से कपड़े पहने बग़ैर चलता फिरता था और अपने घर के बजाय क़ब्रों में रहता था।
28. ईसा को देख कर वह चिल्लाया और उस के सामने गिर गया। ऊँची आवाज़ से उस ने कहा, “ईसा अल्लाह तआला के फ़र्ज़न्द, मेरा आप के साथ क्या वास्ता है? मैं मिन्नत करता हूँ, मुझे अज़ाब में न डालें।”
29. क्यूँकि ईसा ने नापाक रूह को हुक्म दिया था, “आदमी में से निकल जा!” इस बदरुह ने बड़ी देर से उस पर क़ब्ज़ा किया हुआ था, इस लिए लोगों ने उस के हाथ-पाँओ ज़न्जीरों से बाँध कर उस की पहरादारी करने की कोशिश की थी, लेकिन बेफ़ाइदा। वह ज़न्जीरों को तोड़ डालता और बदरुह उसे वीरान इलाक़ों में भगाए फिरती थी।
30. ईसा ने उस से पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उस ने जवाब दिया, “लश्कर।” इस नाम की वजह यह थी कि उस में बहुत सी बदरुहें घुसी हुई थीं।
31. अब यह मिन्नत करने लगीं, “हमें अथाह गढ़े में जाने को न कहें।”
32. उस वक़्त क़रीब की पहाड़ी पर सूअरों का बड़ा ग़ोल चर रहा था। बदरूहों ने ईसा से इलतिमास की, “हमें उन सूअरों में दाख़िल होने दें।” उस ने इजाज़त दे दी।
33. चुनाँचे वह उस आदमी में से निकल कर सूअरों में जा घुसीं। इस पर पूरे ग़ोल के सूअर भाग भाग कर पहाड़ी की ढलान पर से उतरे और झील में झपट कर डूब मरे।
34. यह देख कर सूअरों के गल्लाबान भाग गए। उन्हों ने शहर और दीहात में इस बात का चर्चा किया
35. तो लोग यह मालूम करने के लिए कि क्या हुआ है अपनी जगहों से निकल कर ईसा के पास आए। उस के पास पहुँचे तो वह आदमी मिला जिस से बदरुहें निकल गई थीं। अब वह कपड़े पहने ईसा के पाँओ में बैठा था और उस की ज़हनी हालत ठीक थी। यह देख कर वह डर गए।
36. जिन्हों ने सब कुछ देखा था उन्हों ने लोगों को बताया कि इस बदरुह-गिरिफ़्ता आदमी को किस तरह रिहाई मिली है।
37. फिर उस इलाक़े के तमाम लोगों ने ईसा से दरख़्वास्त की कि वह उन्हें छोड़ कर चला जाए, क्यूँकि उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया था। चुनाँचे ईसा कश्ती पर सवार हो कर वापस चला गया।
38. जिस आदमी से बदरुहें निकल गई थीं उस ने उस से इलतिमास की, “मुझे भी अपने साथ जाने दें।” लेकिन ईसा ने उसे इजाज़त न दी बल्कि कहा,
39. “अपने घर वापस चला जा और दूसरों को वह सब कुछ बता जो अल्लाह ने तेरे लिए किया है।” चुनाँचे वह वापस चला गया और पूरे शहर में लोगों को बताने लगा कि ईसा ने मेरे लिए क्या कुछ किया है।
40. जब ईसा झील के दूसरे किनारे पर वापस पहुँचा तो लोगों ने उस का इस्तिक़्बाल किया, क्यूँकि वह उस के इन्तिज़ार में थे।
41. इतने में एक आदमी ईसा के पास आया जिस का नाम याईर था। वह मक़ामी इबादतख़ाने का राहनुमा था। वह ईसा के पाँओ में गिर कर मिन्नत करने लगा, “मेरे घर चलें।”
42. क्यूँकि उस की इक्लौती बेटी जो तक़्रीबन बारह साल की थी मरने को थी। ईसा चल पड़ा। हुजूम ने उसे यूँ घेरा हुआ था कि साँस लेना भी मुश्किल था।
43. हुजूम में एक ख़ातून थी जो बारह साल से ख़ून बहने के मर्ज़ से रिहाई न पा सकी थी। कोई उसे शिफ़ा न दे सका था।
44. अब उस ने पीछे से आ कर ईसा के लिबास के किनारे को छुआ। ख़ून बहना फ़ौरन बन्द हो गया।
45. लेकिन ईसा ने पूछा, “किस ने मुझे छुआ है?” सब ने इन्कार किया और पत्रस ने कहा, “उस्ताद, यह तमाम लोग तो आप को घेर कर दबा रहे हैं।”
46. लेकिन ईसा ने इस्रार किया, “किसी ने ज़रूर मुझे छुआ है, क्यूँकि मुझे मह्सूस हुआ है कि मुझ में से तवानाई निकली है।”
47. जब उस ख़ातून ने देखा कि भेद खुल गया तो वह लरज़ती हुई आई और उस के सामने गिर गई। पूरे हुजूम की मौजूदगी में उस ने बयान किया कि उस ने ईसा को क्यूँ छुआ था और कि छूते ही उसे शिफ़ा मिल गई थी।
48. ईसा ने कहा, “बेटी, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से चली जा।”
49. ईसा ने यह बात अभी ख़त्म नहीं की थी कि इबादतख़ाने के राहनुमा याईर के घर से कोई शख़्स आ पहुँचा। उस ने कहा, “आप की बेटी फ़ौत हो चुकी है, अब उस्ताद को मज़ीद तक्लीफ़ न दें।”
50. लेकिन ईसा ने यह सुन कर कहा, “मत घबरा। फ़क़त ईमान रख तो वह बच जाएगी।”
51. वह घर पहुँच गए तो ईसा ने किसी को भी सिवा-ए-पत्रस, यूहन्ना, याक़ूब और बेटी के वालिदैन के अन्दर आने की इजाज़त न दी।
52. तमाम लोग रो रहे और छाती पीट पीट कर मातम कर रहे थे। ईसा ने कहा, “ख़ामोश! वह मर नहीं गई बल्कि सो रही है।”
53. लोग हंस कर उस का मज़ाक़ उड़ाने लगे, क्यूँकि वह जानते थे कि लड़की मर गई है।
54. लेकिन ईसा ने लड़की का हाथ पकड़ कर ऊँची आवाज़ से कहा, “बेटी, जाग उठ!”
55. लड़की की जान वापस आ गई और वह फ़ौरन उठ खड़ी हुई। फिर ईसा ने हुक्म दिया कि उसे कुछ खाने को दिया जाए।
56. यह सब कुछ देख कर उस के वालिदैन हैरतज़दा हुए। लेकिन उस ने उन्हें कहा कि इस के बारे में किसी को भी न बताना।

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