Luke (7/24)  

1. यह सब कुछ लोगों को सुनाने के बाद ईसा कफ़र्नहूम चला गया।
2. वहाँ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर एक अफ़्सर रहता था। उन दिनों में उस का एक ग़ुलाम जो उसे बहुत अज़ीज़ था बीमार पड़ गया। अब वह मरने को था।
3. चूँकि अफ़्सर ने ईसा के बारे में सुना था इस लिए उस ने यहूदियों के कुछ बुज़ुर्ग यह दरख़्वास्त करने के लिए उस के पास भेज दिए कि वह आ कर ग़ुलाम को शिफ़ा दे।
4. वह ईसा के पास पहुँच कर बड़े ज़ोर से इल्तिजा करने लगे, “यह आदमी इस लाइक़ है कि आप उस की दरख़्वास्त पूरी करें,
5. क्यूँकि वह हमारी क़ौम से पियार करता है, यहाँ तक कि उस ने हमारे लिए इबादतखाना भी तामीर करवाया है।”
6. चुनाँचे ईसा उन के साथ चल पड़ा। लेकिन जब वह घर के क़रीब पहुँच गया तो अफ़्सर ने अपने कुछ दोस्त यह कह कर उस के पास भेज दिए कि “ख़ुदावन्द, मेरे घर में आने की तक्लीफ़ न करें, क्यूँकि मैं इस लाइक़ नहीं हूँ।
7. इस लिए मैं ने ख़ुद को आप के पास आने के लाइक़ भी न समझा। बस वहीं से कह दें तो मेरा ग़ुलाम शिफ़ा पा जाएगा।
8. क्यूँकि मुझे ख़ुद आला अफ़्सरों के हुक्म पर चलना पड़ता है और मेरे मा-तहत भी फ़ौजी हैं। एक को कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे को ‘आ!’ तो वह आता है। इसी तरह मैं अपने नौकर को हुक्म देता हूँ, ‘यह कर!’ तो वह करता है।”
9. यह सुन कर ईसा निहायत हैरान हुआ। उस ने मुड़ कर अपने पीछे आने वाले हुजूम से कहा, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, मैं ने इस्राईल में भी इस क़िस्म का ईमान नहीं पाया।”
10. जब अफ़्सर का पैग़ाम पहुँचाने वाले घर वापस आए तो उन्हों ने देखा कि ग़ुलाम की सेहत बहाल हो चुकी है।
11. कुछ देर के बाद ईसा अपने शागिर्दों के साथ नाइन शहर के लिए रवाना हुआ। एक बड़ा हुजूम भी साथ चल रहा था।
12. जब वह शहर के दरवाज़े के क़रीब पहुँचा तो एक जनाज़ा निकला। जो नौजवान फ़ौत हुआ था उस की माँ बेवा थी और वह उस का इक्लौता बेटा था। माँ के साथ शहर के बहुत से लोग चल रहे थे।
13. उसे देख कर ख़ुदावन्द को उस पर बड़ा तरस आया। उस ने उस से कहा, “मत रो।”
14. फिर वह जनाज़े के पास गया और उसे छुआ। उसे उठाने वाले रुक गए तो ईसा ने कहा, “ऐ नौजवान, मैं तुझे कहता हूँ कि उठ!”
15. मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा। ईसा ने उसे उस की माँ के सपुर्द कर दिया।
16. यह देख कर तमाम लोगों पर ख़ौफ़ तारी हो गया और वह अल्लाह की तम्जीद करके कहने लगे, “हमारे दर्मियान एक बड़ा नबी बरपा हुआ है। अल्लाह ने अपनी क़ौम पर नज़र की है।”
17. और ईसा के बारे में यह ख़बर पूरे यहूदिया और इर्दगिर्द के इलाक़े में फैल गई।
18. यहया को भी अपने शागिर्दों की मारिफ़त इन तमाम वाक़िआत के बारे में पता चला। इस पर उस ने दो शागिर्दों को बुला कर
19. उन्हें यह पूछने के लिए ख़ुदावन्द के पास भेजा, “क्या आप वही हैं जिसे आना है या हम किसी और के इन्तिज़ार में रहें?”
20. चुनाँचे यह शागिर्द ईसा के पास पहुँच कर कहने लगे, “यहया बपतिस्मा देने वाले ने हमें यह पूछने के लिए भेजा है कि क्या आप वही हैं जिसे आना है या हम किसी और का इन्तिज़ार करें?”
21. ईसा ने उसी वक़्त बहुत से लोगों को शिफ़ा दी थी जो मुख़्तलिफ़ क़िस्म की बीमारियों, मुसीबतों और बदरूहों की गिरिफ़्त में थे। अंधों की आँखें भी बहाल हो गई थीं।
22. इस लिए उस ने जवाब में यहया के क़ासिदों से कहा, “यहया के पास वापस जा कर उसे सब कुछ बता देना जो तुम ने देखा और सुना है। ‘अंधे देखते, लंगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ियों को पाक-साफ़ किया जाता है, बहरे सुनते हैं, मुर्दों को ज़िन्दा किया जाता है और ग़रीबों को अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है।’
23. यहया को बताओ, ‘मुबारक है वह जो मेरे सबब से ठोकर खा कर बर्गश्ता नहीं होता’।”
24. यहया के यह क़ासिद चले गए तो ईसा हुजूम से यहया के बारे में बात करने लगा, “तुम रेगिस्तान में क्या देखने गए थे? एक सरकंडा जो हवा के हर झोंके से हिलता है? बेशक नहीं।
25. या क्या वहाँ जा कर ऐसे आदमी की तवक़्क़ो कर रहे थे जो नफ़ीस और मुलाइम लिबास पहने हुए है? नहीं, जो शानदार कपड़े पहनते और ऐश-ओ-इश्रत में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं वह शाही महलों में पाए जाते हैं।
26. तो फिर तुम क्या देखने गए थे? एक नबी को? बिलकुल सहीह, बल्कि मैं तुम को बताता हूँ कि वह नबी से भी बड़ा है।
27. उसी के बारे में कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘देख मैं अपने पैग़म्बर को तेरे आगे आगे भेज देता हूँ जो तेरे सामने रास्ता तय्यार करेगा।’
28. मैं तुम को बताता हूँ कि इस दुनिया में पैदा होने वाला कोई भी शख़्स यहया से बड़ा नहीं है। तो भी अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होने वाला सब से छोटा शख़्स उस से बड़ा है।”
29. बात यह थी कि तमाम क़ौम बशमूल टैक्स लेने वालों ने यहया का पैग़ाम सुन कर अल्लाह का इन्साफ़ मान लिया और यहया से बपतिस्मा लिया था।
30. सिर्फ़ फ़रीसी और शरीअत के उलमा ने अपने बारे में अल्लाह की मर्ज़ी को रद्द करके यहया का बपतिस्मा लेने से इन्कार किया था।
31. ईसा ने बात जारी रखी, “चुनाँचे मैं इस नसल के लोगों को किस से तश्बीह दूँ? वह किस से मुताबिक़त रखते हैं?
32. वह उन बच्चों की मानिन्द हैं जो बाज़ार में बैठे खेल रहे हैं। उन में से कुछ ऊँची आवाज़ से दूसरे बच्चों से शिकायत कर रहे हैं, ‘हम ने बाँसरी बजाई तो तुम न नाचे। फिर हम ने नोहा के गीत गाए, लेकिन तुम न रोए।’
33. देखो, यहया बपतिस्मा देने वाला आया और न रोटी खाई, न मै पी। यह देख कर तुम कहते हो कि उस में बदरुह है।
34. फिर इब्न-ए-आदम खाता और पीता हुआ आया। अब तुम कहते हो, ‘देखो यह कैसा पेटू और शराबी है। और वह टैक्स लेने वालों और गुनाहगारों का दोस्त भी है।’
35. लेकिन हिक्मत अपने तमाम बच्चों से ही सहीह साबित हुई है।”
36. एक फ़रीसी ने ईसा को खाना खाने की दावत दी। ईसा उस के घर जा कर खाना खाने के लिए बैठ गया।
37. उस शहर में एक बदचलन औरत रहती थी। जब उसे पता चला कि ईसा उस फ़रीसी के घर में खाना खा रहा है तो वह इत्रदान में बेशक़ीमत इत्र ला कर
38. पीछे से उस के पाँओ के पास खड़ी हो गई। वह रो पड़ी और उस के आँसू टपक टपक कर ईसा के पाँओ को तर करने लगे। फिर उस ने उस के पाँओ को अपने बालों से पोंछ कर उन्हें चूमा और उन पर इत्र डाला।
39. जब ईसा के फ़रीसी मेज़्बान ने यह देखा तो उस ने दिल में कहा, “अगर यह आदमी नबी होता तो उसे मालूम होता कि यह किस क़िस्म की औरत है जो उसे छू रही है, कि यह गुनाहगार है।”
40. ईसा ने इन ख़यालात के जवाब में उस से कहा, “शमाऊन, मैं तुझे कुछ बताना चाहता हूँ।” उस ने कहा, “जी उस्ताद, बताएँ।”
41. ईसा ने कहा, “एक साहूकार के दो क़र्ज़दार थे। एक को उस ने चाँदी के 500 सिक्के दिए थे और दूसरे को 50 सिक्के।
42. लेकिन दोनों अपना क़र्ज़ अदा न कर सके। यह देख कर उस ने दोनों का क़र्ज़ मुआफ़ कर दिया। अब मुझे बता, दोनों क़र्ज़दारों में से कौन उसे ज़ियादा अज़ीज़ रखेगा?”
43. शमाऊन ने जवाब दिया, “मेरे ख़याल में वह जिसे ज़ियादा मुआफ़ किया गया।” ईसा ने कहा, “तू ने ठीक अन्दाज़ा लगाया है।”
44. और औरत की तरफ़ मुड़ कर उस ने शमाऊन से बात जारी रखी, “क्या तू इस औरत को देखता है?
45. जब मैं इस घर में आया तो तू ने मुझे पाँओ धोने के लिए पानी न दिया। लेकिन इस ने मेरे पाँओ को अपने आँसूओं से तर करके अपने बालों से पोंछ कर ख़ुश्क कर दिया है। तू ने मुझे बोसा न दिया, लेकिन यह मेरे अन्दर आने से ले कर अब तक मेरे पाँओ को चूमने से बाज़ नहीं रही।
46. तू ने मेरे सर पर ज़ैतून का तेल न डाला, लेकिन इस ने मेरे पाँओ पर इत्र डाला।
47. इस लिए मैं तुझे बताता हूँ कि इस के गुनाहों को गो वह बहुत हैं मुआफ़ कर दिया गया है, क्यूँकि इस ने बहुत मुहब्बत का इज़्हार किया है। लेकिन जिसे कम मुआफ़ किया गया हो वह कम मुहब्बत रखता है।”
48. फिर ईसा ने औरत से कहा, “तेरे गुनाहों को मुआफ़ कर दिया गया है।”
49. यह सुन कर जो साथ बैठे थे आपस में कहने लगे, “यह किस क़िस्म का शख़्स है जो गुनाहों को भी मुआफ़ करता है?”
50. लेकिन ईसा ने ख़ातून से कहा, “तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से चली जा।”

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