Luke (21/24)  

1. ईसा ने नज़र उठा कर देखा कि अमीर लोग अपने हदिए बैत-उल-मुक़द्दस के चन्दे के बक्स में डाल रहे हैं।
2. एक ग़रीब बेवा भी वहाँ से गुज़री जिस ने उस में ताँबे के दो मामूली से सिक्के डाल दिए।
3. ईसा ने कहा, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि इस ग़रीब बेवा ने तमाम लोगों की निस्बत ज़ियादा डाला है।
4. क्यूँकि इन सब ने तो अपनी दौलत की कस्रत से कुछ डाला जबकि इस ने ज़रूरतमन्द होने के बावुजूद भी अपने गुज़ारे के सारे पैसे दे दिए हैं।”
5. उस वक़्त कुछ लोग बैत-उल-मुक़द्दस की तारीफ़ में कहने लगे कि वह कितने ख़ूबसूरत पत्थरों और मन्नत के तुह्फ़ों से सजी हुई है। यह सुन कर ईसा ने कहा,
6. “जो कुछ तुम को यहाँ नज़र आता है उस का पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। आने वाले दिनों में सब कुछ ढा दिया जाएगा।”
7. उन्हों ने पूछा, “उस्ताद, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिस से मालूम हो कि यह अब होने को है?”
8. ईसा ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे। क्यूँकि बहुत से लोग मेरा नाम ले कर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ’ और कि ‘वक़्त क़रीब आ चुका है।’ लेकिन उन के पीछे न लगना।
9. और जब जंगों और फ़ितनों की ख़बरें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना। क्यूँकि लाज़िम है कि यह सब कुछ पहले पेश आए। तो भी अभी आख़िरत न होगी।”
10. उस ने अपनी बात जारी रखी, “एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी, और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़।
11. शदीद ज़ल्ज़ले आएँगे, जगह जगह काल पड़ेंगे और वबाई बीमारियाँ फैल जाएँगी। हैबतनाक वाक़िआत और आस्मान पर बड़े निशान देखने में आएँगे।
12. लेकिन इन तमाम वाक़िआत से पहले लोग तुम को पकड़ कर सताएँगे। वह तुम को यहूदी इबादतख़ानों के हवाले करेंगे, क़ैदख़ानों में डलवाएँगे और बादशाहों और हुक्मरानों के सामने पेश करेंगे। और यह इस लिए होगा कि तुम मेरे पैरोकार हो।
13. नतीजे में तुम्हें मेरी गवाही देने का मौक़ा मिलेगा।
14. लेकिन ठान लो कि तुम पहले से अपना दिफ़ा करने की तय्यारी न करो,
15. क्यूँकि मैं तुम को ऐसे अल्फ़ाज़ और हिक्मत अता करूँगा कि तुम्हारे तमाम मुख़ालिफ़ न उस का मुक़ाबला और न उस की तरदीद कर सकेंगे।
16. तुम्हारे वालिदैन, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी तुम को दुश्मन के हवाले कर देंगे, बल्कि तुम में से बाज़ को क़त्ल किया जाएगा।
17. सब तुम से नफ़रत करेंगे, इस लिए कि तुम मेरे पैरोकार हो।
18. तो भी तुम्हारा एक बाल भी बीका नहीं होगा।
19. साबितक़दम रहने से ही तुम अपनी जान बचा लोगे।
20. जब तुम यरूशलम को फ़ौजों से घिरा हुआ देखो तो जान लो कि उस की तबाही क़रीब आ चुकी है।
21. उस वक़्त यहूदिया के बाशिन्दे भाग कर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें। शहर के रहने वाले उस से निकल जाएँ और दीहात में आबाद लोग शहर में दाख़िल न हों।
22. क्यूँकि यह इलाही ग़ज़ब के दिन होंगे जिन में वह सब कुछ पूरा हो जाएगा जो कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है।
23. उन ख़वातीन पर अफ़्सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों, क्यूँकि मुल्क में बहुत मुसीबत होगी और इस क़ौम पर अल्लाह का ग़ज़ब नाज़िल होगा।
24. लोग उन्हें तल्वार से क़त्ल करेंगे और क़ैद करके तमाम ग़ैरयहूदी ममालिक में ले जाएँगे। ग़ैरयहूदी यरूशलम को पाँओ तले कुचल डालेंगे। यह सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहेगा जब तक ग़ैरयहूदियों का दौर पूरा न हो जाए।
25. सूरज, चाँद और सितारों में अजीब-ओ-ग़रीब निशान ज़ाहिर होंगे। क़ौमें समुन्दर के शोर और ठाठें मारने से हैरान-ओ-परेशान होंगी।
26. लोग इस अन्देशे से कि क्या क्या मुसीबत दुनिया पर आएगी इस क़दर ख़ौफ़ खाएँगे कि उन की जान में जान न रहेगी, क्यूँकि आस्मान की क़ुव्वतें हिलाई जाएँगी।
27. और फिर वह इब्न-ए-आदम को बड़ी क़ुद्रत और जलाल के साथ बादल में आते हुए देखेंगे।
28. चुनाँचे जब यह कुछ पेश आने लगे तो सीधे खड़े हो कर अपनी नज़र उठाओ, क्यूँकि तुम्हारी नजात नज़्दीक होगी।”
29. इस सिलसिले में ईसा ने उन्हें एक तम्सील सुनाई। “अन्जीर के दरख़्त और बाक़ी दरख़्तों पर ग़ौर करो।
30. जूँ ही कोंपलें निकलने लगती हैं तुम जान लेते हो कि गर्मियों का मौसम नज़्दीक है।
31. इसी तरह जब तुम यह वाक़िआत देखोगे तो जान लोगे कि अल्लाह की बादशाही क़रीब ही है।
32. मैं तुम को सच्च बताता हूँ कि इस नसल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा।
33. आस्मान-ओ-ज़मीन तो जाते रहेंगे, लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ाइम रहेंगी।
34. ख़बरदार रहो ताकि तुम्हारे दिल अय्याशी, नशाबाज़ी और रोज़ाना की फ़िक़्रों तले दब न जाएँ। वर्ना यह दिन अचानक तुम पर आन पड़ेगा,
35. और फंदे की तरह तुम्हें जकड़ लेगा। क्यूँकि वह दुनिया के तमाम बाशिन्दों पर आएगा।
36. हर वक़्त चौकस रहो और दुआ करते रहो कि तुम को आने वाली इन सब बातों से बच निकलने की तौफ़ीक़ मिल जाए और तुम इब्न-ए-आदम के सामने खड़े हो सको।”
37. हर रोज़ ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा और हर शाम वह निकल कर उस पहाड़ पर रात गुज़ारता था जिस का नाम ज़ैतून का पहाड़ है।
38. और तमाम लोग उस की बातें सुनने के लिए सुब्ह-सवेरे बैत-उल-मुक़द्दस में उस के पास आते थे।

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