← Luke (15/24) → |
1. | अब ऐसा था कि तमाम टैक्स लेने वाले और गुनाहगार ईसा की बातें सुनने के लिए उस के पास आते थे। |
2. | यह देख कर फ़रीसी और शरीअत के आलिम बुड़बुड़ाने लगे, “यह आदमी गुनाहगारों को ख़ुशआमदीद कह कर उन के साथ खाना खाता है।” |
3. | इस पर ईसा ने उन्हें यह तम्सील सुनाई, |
4. | “फ़र्ज़ करो कि तुम में से किसी की सौ भेड़ें हैं। लेकिन एक गुम हो जाती है। अब मालिक क्या करेगा? क्या वह बाक़ी 99 भेड़ें खुले मैदान में छोड़ कर गुमशुदा भेड़ को ढूँडने नहीं जाएगा? ज़रूर जाएगा, बल्कि जब तक उसे वह भेड़ मिल न जाए वह उस की तलाश में रहेगा। |
5. | फिर वह ख़ुश हो कर उसे अपने कंधों पर उठा लेगा। |
6. | यूँ चलते चलते वह अपने घर पहुँच जाएगा और वहाँ अपने दोस्तों और हमसाइयों को बुला कर उन से कहेगा, ‘मेरे साथ ख़ुशी मनाओ! क्यूँकि मुझे अपनी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ |
7. | मैं तुम को बताता हूँ कि आस्मान पर बिलकुल इसी तरह ख़ुशी मनाई जाएगी जब एक ही गुनाहगार तौबा करेगा। और यह ख़ुशी उस ख़ुशी की निस्बत ज़ियादा होगी जो उन 99 अफ़राद के बाइस मनाई जाएगी जिन्हें तौबा करने की ज़रूरत ही नहीं थी। |
8. | या फ़र्ज़ करो कि किसी औरत के पास दस सिक्के हों लेकिन एक सिक्का गुम हो जाए। अब औरत क्या करेगी? क्या वह चराग़ जला कर और घर में झाड़ू दे दे कर बड़ी एहतियात से सिक्के को तलाश नहीं करेगी? ज़रूर करेगी, बल्कि वह उस वक़्त तक ढूँडती रहेगी जब तक उसे सिक्का मिल न जाए। |
9. | जब उसे सिक्का मिल जाएगा तो वह अपनी सहेलियों और हमसाइयों को बुला कर उन से कहेगी, ‘मेरे साथ ख़ुशी मनाओ! क्यूँकि मुझे अपना गुमशुदा सिक्का मिल गया है।’ |
10. | मैं तुम को बताता हूँ कि बिलकुल इसी तरह अल्लाह के फ़रिश्तों के सामने ख़ुशी मनाई जाती है जब एक भी गुनाहगार तौबा करता है।” |
11. | ईसा ने अपनी बात जारी रखी। “किसी आदमी के दो बेटे थे। |
12. | इन में से छोटे ने बाप से कहा, ‘ऐ बाप, मीरास का मेरा हिस्सा दे दें।’ इस पर बाप ने दोनों में अपनी मिल्कियत तक़्सीम कर दी। |
13. | थोड़े दिनों के बाद छोटा बेटा अपना सारा सामान समेट कर अपने साथ किसी दूरदराज़ मुल्क में ले गया। वहाँ उस ने अय्याशी में अपना पूरा माल-ओ-मता उड़ा दिया। |
14. | सब कुछ ज़ाए हो गया तो उस मुल्क में सख़्त काल पड़ा। अब वह ज़रूरतमन्द होने लगा। |
15. | नतीजे में वह उस मुल्क के किसी बाशिन्दे के हाँ जा पड़ा जिस ने उसे सूअरों को चराने के लिए अपने खेतों में भेज दिया। |
16. | वहाँ वह अपना पेट उन फलियों से भरने की शदीद ख़्वाहिश रखता था जो सूअर खाते थे, लेकिन उसे इस की भी इजाज़त न मिली। |
17. | फिर वह होश में आया। वह कहने लगा, मेरे बाप के कितने मज़्दूरों को कस्रत से खाना मिलता है जबकि मैं यहाँ भूका मर रहा हूँ। |
18. | मैं उठ कर अपने बाप के पास वापस चला जाऊँगा और उस से कहूँगा, ‘ऐ बाप, मैं ने आस्मान का और आप का गुनाह किया है। |
19. | अब मैं इस लाइक़ नहीं रहा कि आप का बेटा कहलाऊँ। मेहरबानी करके मुझे अपने मज़्दूरों में रख लें।’ |
20. | फिर वह उठ कर अपने बाप के पास वापस चला गया। लेकिन वह घर से अभी दूर ही था कि उस के बाप ने उसे देख लिया। उसे तरस आया और वह भाग कर बेटे के पास आया और गले लगा कर उसे बोसा दिया। |
21. | बेटे ने कहा, ‘ऐ बाप, मैं ने आस्मान का और आप का गुनाह किया है। अब मैं इस लाइक़ नहीं रहा कि आप का बेटा कहलाऊँ।’ |
22. | लेकिन बाप ने अपने नौकरों को बुलाया और कहा, ‘जल्दी करो, बेहतरीन सूट ला कर इसे पहनाओ। इस के हाथ में अंगूठी और पाँओ में जूते पहना दो। |
23. | फिर मोटा-ताज़ा बछड़ा ला कर उसे ज़बह करो ताकि हम खाएँ और ख़ुशी मनाएँ, |
24. | क्यूँकि यह मेरा बेटा मुर्दा था अब ज़िन्दा हो गया है, गुम हो गया था अब मिल गया है।’ इस पर वह ख़ुशी मनाने लगे। |
25. | इस दौरान बाप का बड़ा बेटा खेत में था। अब वह घर लौटा। जब वह घर के क़रीब पहुँचा तो अन्दर से मूसीक़ी और नाचने की आवाज़ें सुनाई दीं। |
26. | उस ने किसी नौकर को बुला कर पूछा, ‘यह क्या हो रहा है?’ |
27. | नौकर ने जवाब दिया, ‘आप का भाई आ गया है और आप के बाप ने मोटा-ताज़ा बछड़ा ज़बह करवाया है, क्यूँकि उसे अपना बेटा सहीह-सलामत वापस मिल गया है।’ |
28. | यह सुन कर बड़ा बेटा ग़ुस्से हुआ और अन्दर जाने से इन्कार कर दिया। फिर बाप घर से निकल कर उसे समझाने लगा। |
29. | लेकिन उस ने जवाब में अपने बाप से कहा, ‘देखें, मैं ने इतने साल आप की ख़िदमत में सख़्त मेहनत-मशक़्क़त की है और एक दफ़ा भी आप की मर्ज़ी की ख़िलाफ़वरज़ी नहीं की। तो भी आप ने मुझे इस पूरे अर्से में एक छोटा बक्रा भी नहीं दिया कि उसे ज़बह करके अपने दोस्तों के साथ ज़ियाफ़त करता। |
30. | लेकिन जूँ ही आप का यह बेटा आया जिस ने आप की दौलत कस्बियों में उड़ा दी, आप ने उस के लिए मोटा-ताज़ा बछड़ा ज़बह करवाया।’ |
31. | बाप ने जवाब दिया, ‘बेटा, आप तो हर वक़्त मेरे पास रहे हैं, और जो कुछ मेरा है वह आप ही का है। |
32. | लेकिन अब ज़रूरी था कि हम जश्न मनाएँ और ख़ुश हों। क्यूँकि आप का यह भाई जो मुर्दा था अब ज़िन्दा हो गया है, जो गुम हो गया था अब मिल गया है’।” |
← Luke (15/24) → |