Luke (13/24)  

1. उस वक़्त कुछ लोग ईसा के पास पहुँचे। उन्हों ने उसे गलील के कुछ लोगों के बारे में बताया जिन्हें पीलातुस ने उस वक़्त क़त्ल करवाया था जब वह बैत-उल-मुक़द्दस में क़ुर्बानियाँ पेश कर रहे थे। यूँ उन का ख़ून क़ुर्बानियों के ख़ून के साथ मिलाया गया था।
2. ईसा ने यह सुन कर पूछा, “क्या तुम्हारे ख़याल में यह लोग गलील के बाक़ी लोगों से ज़ियादा गुनाहगार थे कि इन्हें इतना दुख उठाना पड़ा?
3. हरगिज़ नहीं! बल्कि मैं तुम को बताता हूँ कि अगर तुम तौबा न करो तो तुम भी इसी तरह तबाह हो जाओगे।
4. या उन 18 अफ़राद के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है जो मर गए जब शिलोख़ का बुर्ज उन पर गिरा? क्या वह यरूशलम के बाक़ी बाशिन्दों की निस्बत ज़ियादा गुनाहगार थे?
5. हरगिज़ नहीं! मैं तुम को बताता हूँ कि अगर तुम तौबा न करो तो तुम भी तबाह हो जाओगे।”
6. फिर ईसा ने उन्हें यह तम्सील सुनाई, “किसी ने अपने बाग़ में अन्जीर का दरख़्त लगाया। जब वह उस का फल तोड़ने के लिए आया तो कोई फल नहीं था।
7. यह देख कर उस ने माली से कहा, ‘मैं तीन साल से इस का फल तोड़ने आता हूँ, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं मिला। इसे काट डाल। यह ज़मीन की ताक़त क्यूँ ख़त्म करे?’
8. लेकिन माली ने कहा, ‘जनाब, इसे एक साल और रहने दें। मैं इस के इर्दगिर्द गोडी करके खाद डालूँगा।
9. फिर अगर यह अगले साल फल लाया तो ठीक, वर्ना इसे कटवा डालना’।”
10. सबत के दिन ईसा किसी इबादतख़ाने में तालीम दे रहा था।
11. वहाँ एक औरत थी जो 18 साल से बदरुह के बाइस बीमार थी। वह कुबड़ी हो गई थी और सीधी खड़ी होने के बिलकुल क़ाबिल न थी।
12. जब ईसा ने उसे देखा तो पुकार कर कहा, “ऐ औरत, तू अपनी बीमारी से छूट गई है!”
13. उस ने अपने हाथ उस पर रखे तो वह फ़ौरन सीधी खड़ी हो कर अल्लाह की तम्जीद करने लगी।
14. लेकिन इबादतख़ाने का राहनुमा नाराज़ हुआ क्यूँकि ईसा ने सबत के दिन शिफ़ा दी थी। उस ने लोगों से कहा, “हफ़्ते के छः दिन काम करने के लिए होते हैं। इस लिए इत्वार से ले कर जुमए तक शिफ़ा पाने के लिए आओ, न कि सबत के दिन।”
15. ख़ुदावन्द ने जवाब में उस से कहा, “तुम कितने रियाकार हो! क्या तुम में से हर कोई सबत के दिन अपने बैल या गधे को खोल कर उसे थान से बाहर नहीं ले जाता ताकि उसे पानी पिलाए?
16. अब इस औरत को देखो जो इब्राहीम की बेटी है और जो 18 साल से इब्लीस के बंधन में थी। जब तुम सबत के दिन अपने जानवरों की मदद करते हो तो क्या यह ठीक नहीं कि औरत को इस बंधन से रिहाई दिलाई जाती, चाहे यह काम सबत के दिन ही क्यूँ न किया जाए?”
17. ईसा के इस जवाब से उस के मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा हो गए। लेकिन आम लोग उस के इन तमाम शानदार कामों से ख़ुश हुए।
18. ईसा ने कहा, “अल्लाह की बादशाही किस चीज़ की मानिन्द है? मैं इस का मुवाज़ना किस से करूँ?
19. वह राई के एक दाने की मानिन्द है जो किसी ने अपने बाग़ में बो दिया। बढ़ते बढ़ते वह दरख़्त सा बन गया और परिन्दों ने उस की शाख़ों में अपने घोंसले बना लिए।”
20. उस ने दुबारा पूछा, “अल्लाह की बादशाही का किस चीज़ से मुवाज़ना करूँ?
21. वह उस ख़मीर की मानिन्द है जो किसी औरत ने ले कर तक़्रीबन 27 किलोग्राम आटे में मिला दिया। गो वह उस में छुप गया तो भी होते होते पूरे गुंधे हुए आटे को ख़मीर कर गया।”
22. ईसा तालीम देते देते मुख़्तलिफ़ शहरों और दीहातों में से गुज़रा। अब उस का रुख़ यरूशलम ही की तरफ़ था।
23. इतने में किसी ने उस से पूछा, “ख़ुदावन्द, क्या कम लोगों को नजात मिलेगी?” उस ने जवाब दिया,
24. “तंग दरवाज़े में से दाख़िल होने की सिरतोड़ कोशिश करो। क्यूँकि मैं तुम को बताता हूँ कि बहुत से लोग अन्दर जाने की कोशिश करेंगे, लेकिन बेफ़ाइदा।
25. एक वक़्त आएगा कि घर का मालिक उठ कर दरवाज़ा बन्द कर देगा। फिर तुम बाहर खड़े रहोगे और खटखटाते खटखटाते इलतिमास करोगे, ‘ख़ुदावन्द, हमारे लिए दरवाज़ा खोल दें।’ लेकिन वह जवाब देगा, ‘न मैं तुम को जानता हूँ, न यह कि तुम कहाँ के हो।’
26. फिर तुम कहोगे, ‘हम ने तो आप के सामने ही खाया और पिया और आप ही हमारी सड़कों पर तालीम देते रहे।’
27. लेकिन वह जवाब देगा, ‘न मैं तुम को जानता हूँ, न यह कि तुम कहाँ के हो। ऐ तमाम बदकारो, मुझ से दूर हो जाओ!’
28. वहाँ तुम रोते और दाँत पीसते रहोगे। क्यूँकि तुम देखोगे कि इब्राहीम, इस्हाक़, याक़ूब और तमाम नबी अल्लाह की बादशाही में हैं जबकि तुम को निकाल दिया गया है।
29. और लोग मशरिक़, मग़रिब, शिमाल और जुनूब से आ कर अल्लाह की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे।
30. उस वक़्त कुछ ऐसे होंगे जो पहले आख़िर थे, लेकिन अब अव्वल होंगे। और कुछ ऐसे भी होंगे जो पहले अव्वल थे, लेकिन अब आख़िर होंगे।”
31. उस वक़्त कुछ फ़रीसी ईसा के पास आ कर उस से कहने लगे, “इस मक़ाम को छोड़ कर कहीं और चले जाएँ, क्यूँकि हेरोदेस आप को क़त्ल करने का इरादा रखता है।”
32. ईसा ने जवाब दिया, “जाओ, उस लोमड़ी को बता दो, ‘आज और कल मैं बदरुहें निकालता और मरीज़ों को शिफ़ा देता रहूँगा। फिर तीसरे दिन मैं पाया-ए-तक्मील को पहुँचूँगा।’
33. इस लिए लाज़िम है कि मैं आज, कल और परसों आगे चलता रहूँ। क्यूँकि मुम्किन नहीं कि कोई नबी यरूशलम से बाहर हलाक हो।
34. हाय यरूशलम, यरूशलम! तू जो नबियों को क़त्ल करती और अपने पास भेजे हुए पैग़म्बरों को संगसार करती है। मैं ने कितनी ही बार तेरी औलाद को जमा करना चाहा, बिलकुल उसी तरह जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने परों तले जमा करके मह्फ़ूज़ कर लेती है। लेकिन तू ने न चाहा।
35. अब तेरे घर को वीरान-ओ-सुन्सान छोड़ा जाएगा। और मैं तुम को बताता हूँ, तुम मुझे उस वक़्त तक दुबारा नहीं देखोगे जब तक तुम न कहो कि मुबारक है वह जो रब्ब के नाम से आता है।”

  Luke (13/24)