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1. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
2. | “हो सकता है किसी ने गुनाह करके बेईमानी की है, मसलन उस ने अपने पड़ोसी की कोई चीज़ वापस नहीं की जो उस के सपुर्द की गई थी या जो उसे गिरवी के तौर पर मिली थी, या उस ने उस की कोई चीज़ चोरी की, या उस ने किसी से कोई चीज़ छीन ली, |
3. | या उस ने किसी की गुमशुदा चीज़ के बारे में झूट बोला जब उसे मिल गई, या उस ने क़सम खा कर झूट बोला है, या इस तरह का कोई और गुनाह किया है। |
4. | अगर वह इस तरह का गुनाह करके क़ुसूरवार ठहरे तो लाज़िम है कि वह वही चीज़ वापस करे जो उस ने चोरी की या छीन ली या जो उस के सपुर्द की गई या जो गुमशुदा हो कर उस के पास आ गई है |
5. | या जिस के बारे में उस ने क़सम खा कर झूट बोला है। वह उस का उतना ही वापस करके 20 फ़ीसद ज़ियादा दे। और वह यह सब कुछ उस दिन वापस करे जब वह अपनी क़ुसूर की क़ुर्बानी पेश करता है। |
6. | क़ुसूर की क़ुर्बानी के तौर पर वह एक बेऐब और क़ीमत के लिहाज़ से मुनासिब मेंढा इमाम के पास ले आए और रब्ब को पेश करे। उस की क़ीमत मक़्दिस की शरह के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए। |
7. | फिर इमाम रब्ब के सामने उस का कफ़्फ़ारा देगा तो उसे मुआफ़ी मिल जाएगी।” |
8. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
9. | “हारून और उस के बेटों को भस्म होने वाली क़ुर्बानियों के बारे में ज़ैल की हिदायात देना : भस्म होने वाली क़ुर्बानी पूरी रात सुब्ह तक क़ुर्बानगाह की उस जगह पर रहे जहाँ आग जलती है। आग को बुझने न देना। |
10. | सुब्ह को इमाम कतान का लिबास और कतान का पाजामा पहन कर क़ुर्बानी से बची हुई राख क़ुर्बानगाह के पास ज़मीन पर डाले। |
11. | फिर वह अपने कपड़े बदल कर राख को ख़ैमागाह के बाहर किसी पाक जगह पर छोड़ आए। |
12. | क़ुर्बानगाह पर आग जलती रहे। वह कभी भी न बुझे। हर सुब्ह इमाम लकड़ियाँ चुन कर उस पर भस्म होने वाली क़ुर्बानी तर्तीब से रखे और उस पर सलामती की क़ुर्बानी की चर्बी जला दे। |
13. | आग हमेशा जलती रहे। वह कभी न बुझने पाए। |
14. | ग़ल्ला की नज़र के बारे में हिदायात यह हैं : हारून के बेटे उसे क़ुर्बानगाह के सामने रब्ब को पेश करें। |
15. | फिर इमाम यादगार का हिस्सा यानी तेल से मिलाया गया मुट्ठी भर बेहतरीन मैदा और क़ुर्बानी का तमाम लुबान ले कर क़ुर्बानगाह पर जला दे। इस की ख़ुश्बू रब्ब को पसन्द है। |
16. | हारून और उस के बेटे क़ुर्बानी का बाक़ी हिस्सा खा लें। लेकिन वह उसे मुक़द्दस जगह पर यानी मुलाक़ात के ख़ैमे की चारदीवारी के अन्दर खाएँ, और उस में ख़मीर न हो। |
17. | उसे पकाने के लिए उस में ख़मीर न डाला जाए। मैं ने जलने वाली क़ुर्बानियों में से यह हिस्सा उन के लिए मुक़र्रर किया है। यह गुनाह की क़ुर्बानी और क़ुसूर की क़ुर्बानी की तरह निहायत मुक़द्दस है। |
18. | हारून की औलाद के तमाम मर्द उसे खाएँ। यह उसूल अबद तक क़ाइम रहे। जो भी उसे छुएगा वह मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हो जाएगा।” |
19. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
20. | “जब हारून और उस के बेटों को इमाम की ज़िम्मादारी उठाने के लिए मख़्सूस करके तेल से मसह किया जाएगा तो वह डेढ़ किलोग्राम बेहतरीन मैदा पेश करें। उस का आधा हिस्सा सुब्ह को और आधा हिस्सा शाम के वक़्त पेश किया जाए। वह ग़ल्ला की यह नज़र रोज़ाना पेश करें। |
21. | उसे तेल के साथ मिला कर तवे पर पकाना है। फिर उसे टुकड़े टुकड़े करके ग़ल्ला की नज़र के तौर पर पेश करना। उस की ख़ुश्बू रब्ब को पसन्द है। |
22. | यह क़ुर्बानी हमेशा हारून की नसल का वह आदमी पेश करे जिसे मसह करके इमाम-ए-आज़म का उह्दा दिया गया है, और वह उसे पूरे तौर पर रब्ब के लिए जला दे। |
23. | इमाम की ग़ल्ला की नज़र हमेशा पूरे तौर पर जलाना। उसे न खाना।” |
24. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
25. | “हारून और उस के बेटों को गुनाह की क़ुर्बानी के बारे में ज़ैल की हिदायात देना : गुनाह की क़ुर्बानी को रब्ब के सामने वहीं ज़बह करना है जहाँ भस्म होने वाली क़ुर्बानी ज़बह की जाती है। वह निहायत मुक़द्दस है। |
26. | उसे पेश करने वाला इमाम उसे मुक़द्दस जगह पर यानी मुलाक़ात के ख़ैमे की चारदीवारी के अन्दर खाए। |
27. | जो भी इस क़ुर्बानी के गोश्त को छू लेता है वह मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हो जाता है। अगर क़ुर्बानी के ख़ून के छींटे किसी लिबास पर पड़ जाएँ तो उसे मुक़द्दस जगह पर धोना है। |
28. | अगर गोश्त को हंडिया में पकाया गया हो तो उस बर्तन को बाद में तोड़ देना है। अगर उस के लिए पीतल का बर्तन इस्तेमाल किया गया हो तो उसे ख़ूब माँझ कर पानी से साफ़ करना। |
29. | इमामों के ख़ान्दानों में से तमाम मर्द उसे खा सकते हैं। यह खाना निहायत मुक़द्दस है। |
30. | लेकिन गुनाह की हर वह क़ुर्बानी खाई न जाए जिस का ख़ून मुलाक़ात के ख़ैमे में इस लिए लाया गया है कि मक़्दिस में किसी का कफ़्फ़ारा दिया जाए। उसे जलाना है। |
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