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1. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
2. | “इस्राईलियों को हुक्म दे कि वह तेरे पास कूटे हुए ज़ैतूनों का ख़ालिस तेल ले आएँ ताकि मुक़द्दस कमरे के शमादान के चराग़ मुतवातिर जलते रहें। |
3. | हारून उन्हें मुसल्सल, शाम से ले कर सुब्ह तक रब्ब के हुज़ूर सँभाले यानी वहाँ जहाँ वह मुक़द्दसतरीन कमरे के पर्दे के सामने पड़े हैं, उस पर्दे के सामने जिस के पीछे अह्द का सन्दूक़ है। यह उसूल अबद तक क़ाइम रहे। |
4. | वह ख़ालिस सोने के शमादान पर लगे चराग़ों की देख-भाल यूँ करे कि यह हमेशा रब्ब के सामने जलते रहें। |
5. | बारह रोटियाँ पकाना। हर रोटी के लिए 3 किलोग्राम बेहतरीन मैदा इस्तेमाल किया जाए। |
6. | उन्हें दो क़तारों में रब्ब के सामने ख़ालिस सोने की मेज़ पर रखना। |
7. | हर क़तार पर ख़ालिस लुबान डालना। यह लुबान रोटी के लिए यादगारी की क़ुर्बानी है जिसे बाद में रब्ब के लिए जलाना है। |
8. | हर हफ़्ते को रब्ब के सामने ताज़ा रोटियाँ इसी तर्तीब से मेज़ पर रखनी हैं। यह इस्राईलियों के लिए अबदी अह्द की लाज़िमी शर्त है। |
9. | मेज़ की रोटियाँ हारून और उस के बेटों का हिस्सा हैं, और वह उन्हें मुक़द्दस जगह पर खाएँ, क्यूँकि वह जलने वाली क़ुर्बानियों का मुक़द्दसतरीन हिस्सा हैं। यह अबद तक उन का हक़ रहेगा।” |
10. | ख़ैमागाह में एक आदमी था जिस का बाप मिस्री और माँ इस्राईली थी। माँ का नाम सलूमीत था। वह दिब्री की बेटी और दान के क़बीला की थी। एक दिन यह आदमी ख़ैमागाह में किसी इस्राईली से झगड़ने लगा। लड़ते लड़ते उस ने रब्ब के नाम पर कुफ़्र बक कर उस पर लानत भेजी। यह सुन कर लोग उसे मूसा के पास ले आए। |
11. | ख़ैमागाह में एक आदमी था जिस का बाप मिस्री और माँ इस्राईली थी। माँ का नाम सलूमीत था। वह दिब्री की बेटी और दान के क़बीला की थी। एक दिन यह आदमी ख़ैमागाह में किसी इस्राईली से झगड़ने लगा। लड़ते लड़ते उस ने रब्ब के नाम पर कुफ़्र बक कर उस पर लानत भेजी। यह सुन कर लोग उसे मूसा के पास ले आए। |
12. | वहाँ उन्हों ने उसे पहरे में बिठा कर रब्ब की हिदायत का इन्तिज़ार किया। |
13. | तब रब्ब ने मूसा से कहा, |
14. | “लानत करने वाले को ख़ैमागाह के बाहर ले जाओ। जिन्हों ने उस की यह बातें सुनी हैं वह सब अपने हाथ उस के सर पर रखें। फिर पूरी जमाअत उसे संगसार करे। |
15. | इस्राईलियों से कहना कि जो भी अपने ख़ुदा पर लानत भेजे उसे अपने क़ुसूर के नतीजे बर्दाश्त करने पड़ेंगे। |
16. | जो भी रब्ब के नाम पर कुफ़्र बके उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए। पूरी जमाअत उसे संगसार करे। जिस ने रब्ब के नाम पर कुफ़्र बका हो उसे ज़रूर सज़ा-ए-मौत देनी है, ख़्वाह देसी हो या परदेसी। |
17. | जिस ने किसी को मार डाला है उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए। |
18. | जिस ने किसी के जानवर को मार डाला है वह उस का मुआवज़ा दे। जान के बदले जान दी जाए। |
19. | अगर किसी ने किसी को ज़ख़्मी कर दिया है तो वही कुछ उस के साथ किया जाए जो उस ने दूसरे के साथ किया है। |
20. | अगर दूसरे की कोई हड्डी टूट जाए तो उस की वही हड्डी तोड़ी जाए। अगर दूसरे की आँख ज़ाए हो जाए तो उस की आँख ज़ाए कर दी जाए। अगर दूसरे का दाँत टूट जाए तो उस का वही दाँत तोड़ा जाए। जो भी ज़ख़्म उस ने दूसरे को पहुँचाया वही ज़ख़्म उसे पहुँचाया जाए। |
21. | जिस ने किसी जानवर को मार डाला है वह उस का मुआवज़ा दे, लेकिन जिस ने किसी इन्सान को मार दिया है उसे सज़ा-ए-मौत देनी है। |
22. | देसी और परदेसी के लिए तुम्हारा एक ही क़ानून हो। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।” |
23. | फिर मूसा ने इस्राईलियों से बात की, और उन्हों ने रब्ब पर लानत भेजने वाले को ख़ैमागाह से बाहर ले जा कर उसे संगसार किया। उन्हों ने वैसा ही किया जैसा रब्ब ने मूसा को हुक्म दिया था। |
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