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1. | रब्ब ने मूसा से कहा, |
2. | “इस्राईलियों की पूरी जमाअत को बताना कि मुक़द्दस रहो, क्यूँकि मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा क़ुद्दूस हूँ। |
3. | तुम में से हर एक अपने माँ-बाप की इज़्ज़त करे। हफ़्ते के दिन काम न करना। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। |
4. | न बुतों की तरफ़ रुजू करना, न अपने लिए देवता ढालना। मैं ही रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। |
5. | जब तुम रब्ब को सलामती की क़ुर्बानी पेश करते हो तो उसे यूँ चढ़ाओ कि तुम मन्ज़ूर हो जाओ। |
6. | उस का गोश्त उसी दिन या अगले दिन खाया जाए। जो भी तीसरे दिन तक बच जाता है उसे जलाना है। |
7. | अगर कोई उसे तीसरे दिन खाए तो उसे इल्म होना चाहिए कि यह क़ुर्बानी नापाक है और रब्ब को पसन्द नहीं है। |
8. | ऐसे शख़्स को अपने क़ुसूर की सज़ा उठानी पड़ेगी, क्यूँकि उस ने उस चीज़ की मुक़द्दस हालत ख़त्म की है जो रब्ब के लिए मख़्सूस की गई थी। उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए। |
9. | कटाई के वक़्त अपनी फ़सल पूरे तौर पर न काटना बल्कि खेत के किनारों पर कुछ छोड़ देना। इस तरह जो कुछ कटाई करते वक़्त खेत में बच जाए उसे छोड़ना। |
10. | अंगूर के बाग़ों में भी जो कुछ अंगूर तोड़ते वक़्त बच जाए उसे छोड़ देना। जो अंगूर ज़मीन पर गिर जाएँ उन्हें उठा कर न ले जाना। उन्हें ग़रीबों और परदेसियों के लिए छोड़ देना। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। |
11. | चोरी न करना, झूट न बोलना, एक दूसरे को धोका न देना। |
12. | मेरे नाम की क़सम खा कर धोका न देना, वर्ना तुम मेरे नाम को दाग़ लगाओगे। मैं रब्ब हूँ। |
13. | एक दूसरे को न दबाना और न लूटना। किसी की मज़्दूरी उसी दिन की शाम तक दे देना और उसे अगली सुब्ह तक रोके न रखना। |
14. | बहरे को न कोसना, न अंधे के रास्ते में कोई चीज़ रखना जिस से वह ठोकर खाए। इस में भी अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना। मैं रब्ब हूँ। |
15. | अदालत में किसी की हक़तल्फ़ी न करना। फ़ैसला करते वक़्त किसी की भी जानिबदारी न करना, चाहे वह ग़रीब या असर-ओ-रसूख़ वाला हो। इन्साफ़ से अपने पड़ोसी की अदालत कर। |
16. | अपनी क़ौम में इधर उधर फिरते हुए किसी पर बुह्तान न लगाना। कोई भी ऐसा काम न करना जिस से किसी की जान ख़त्रे में पड़ जाए। मैं रब्ब हूँ। |
17. | दिल में अपने भाई से नफ़रत न करना। अगर किसी की सरज़निश करनी है तो रू-ब-रू करना, वर्ना तू उस के सबब से क़ुसूरवार ठहरेगा। |
18. | इन्तिक़ाम न लेना। अपनी क़ौम के किसी शख़्स पर देर तक तेरा ग़ुस्सा न रहे बल्कि अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आप से रखता है। मैं रब्ब हूँ। |
19. | मेरी हिदायात पर अमल करो। दो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवरों को मिलाप न करने देना। अपने खेत में दो क़िस्म के बीज न बोना। ऐसा कपड़ा न पहनना जो दो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के धागों का बुना हुआ हो। |
20. | अगर कोई आदमी किसी लौंडी से जिस की मंगनी किसी और से हो चुकी हो हमबिसतर हो जाए और लौंडी को अब तक न पैसों से न वैसे ही आज़ाद किया गया हो तो मुनासिब सज़ा दी जाए। लेकिन उन्हें सज़ा-ए-मौत न दी जाए, क्यूँकि उसे अब तक आज़ाद नहीं किया गया। |
21. | क़ुसूरवार आदमी मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर एक मेंढा ले आए ताकि वह रब्ब को क़ुसूर की क़ुर्बानी के तौर पर पेश किया जाए। |
22. | इमाम इस क़ुर्बानी से रब्ब के सामने उस के गुनाह का कफ़्फ़ारा दे। यूँ उस का गुनाह मुआफ़ किया जाएगा। |
23. | जब मुल्क-ए-कनआन में दाख़िल होने के बाद तुम फलदार दरख़्त लगाओगे तो पहले तीन साल उन का फल न खाना बल्कि उसे मम्नू समझना। |
24. | चौथे साल उन का तमाम फल ख़ुशी के मुक़द्दस नज़राने के तौर पर रब्ब के लिए मख़्सूस किया जाए। |
25. | पाँचवें साल तुम उन का फल खा सकते हो। यूँ तुम्हारी फ़सल बढ़ाई जाएगी। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। |
26. | ऐसा गोश्त न खाना जिस में ख़ून हो। फ़ाल या शुगून न निकालना। |
27. | अपने सर के बाल गोल शक्ल में न कटवाना, न अपनी दाढ़ी को तराशना। |
28. | अपने आप को मुर्दों के सबब से काट कर ज़ख़्मी न करना, न अपनी जिल्द पर नुक़ूश गुदवाना। मैं रब्ब हूँ। |
29. | अपनी बेटी को कस्बी न बनाना, वर्ना उस की मुक़द्दस हालत जाती रहेगी और मुल्क ज़िनाकारी के बाइस हरामकारी से भर जाएगा। |
30. | हफ़्ते के दिन आराम करना और मेरे मक़्दिस का एहतिराम करना। मैं रब्ब हूँ। |
31. | ऐसे लोगों के पास न जाना जो मुर्दों से राबिता करते हैं, न ग़ैबदानों की तरफ़ रुजू करना, वर्ना तुम उन से नापाक हो जाओगे। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। |
32. | बूढ़े लोगों के सामने उठ कर खड़ा हो जाना, बुज़ुर्गों की इज़्ज़त करना और अपने ख़ुदा का एहतिराम करना। मैं रब्ब हूँ। |
33. | जो परदेसी तुम्हारे मुल्क में तुम्हारे दर्मियान रहता है उसे न दबाना। |
34. | उस के साथ ऐसा सुलूक कर जैसा अपने हमवतनों के साथ करता है। जिस तरह तू अपने आप से मुहब्बत रखता है उसी तरह उस से भी मुहब्बत रखना। याद रहे कि तुम ख़ुद मिस्र में परदेसी थे। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। |
35. | नाइन्साफ़ी न करना। न अदालत में, न लम्बाई नापते वक़्त, न तोलते वक़्त और न किसी चीज़ की मिक़्दार नापते वक़्त। |
36. | सहीह तराज़ू, सहीह बाट और सहीह पैमाना इस्तेमाल करना। मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिस्र से निकाल लाया हूँ। |
37. | मेरी तमाम हिदायात और तमाम अह्काम मानो और उन पर अमल करो। मैं रब्ब हूँ।” |
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