Lamentations (1/5)  

1. हाय, अफ़्सोस! यरूशलम बेटी कितनी तन्हा बैठी है, गो उस में पहले इतनी रौनक़ थी। जो पहले अक़्वाम में अव्वल दर्जा रखती थी वह बेवा बन गई है, जो पहले ममालिक की रानी थी वह ग़ुलामी में आ गई है।
2. रात को वह रो रो कर गुज़ारती है, उस के गाल आँसूओं से तर रहते हैं। आशिक़ों में से कोई नहीं रहा जो उसे तसल्ली दे। दोस्त सब के सब बेवफ़ा हो कर उस के दुश्मन बन गए हैं।
3. पहले भी यहूदाह बेटी बड़ी मुसीबत में फंसी हुई थी, पहले भी उसे सख़्त मज़्दूरी करनी पड़ी। लेकिन अब वह जिलावतन हो कर दीगर अक़्वाम के बीच में रहती है, अब उसे कहीं भी ऐसी जगह नहीं मिलती जहाँ सुकून से रह सके। क्यूँकि जब वह बड़ी तक्लीफ़ में मुब्तला थी तो दुश्मन ने उस का ताक़्क़ुब करके उसे घेर लिया।
4. सिय्यून की राहें मातमज़दा हैं, क्यूँकि कोई ईद मनाने के लिए नहीं आता। शहर के तमाम दरवाज़े वीरान-ओ-सुन्सान हैं। उस के इमाम आहें भर रहे, उस की कुंवारियाँ ग़म खा रही हैं और उसे ख़ुद शदीद तल्ख़ी मह्सूस हो रही है।
5. उस के मुख़ालिफ़ मालिक बन गए, उस के दुश्मन सुकून से रह रहे हैं। क्यूँकि रब्ब ने शहर को उस के मुतअद्दिद गुनाहों का अज्र दे कर उसे दुख पहुँचाया है। उस के फ़र्ज़न्द दुश्मन के आगे आगे चल कर जिलावतन हो गए हैं।
6. सिय्यून बेटी की तमाम शान-ओ-शौकत जाती रही है। उस के बुज़ुर्ग चरागाह न पाने वाले हिरन हैं जो थकते थकते शिकारियों के आगे आगे भागते हैं।
7. अब जब यरूशलम मुसीबतज़दा और बेवतन है तो उसे वह क़ीमती चीज़ें याद आती हैं जो उसे क़दीम ज़माने से ही हासिल थीं। क्यूँकि जब उस की क़ौम दुश्मन के हाथ में आई तो कोई नहीं था जो उस की मदद करता बल्कि उस के मुख़ालिफ़ तमाशा देखने दौड़े आए, वह उस की तबाही से ख़ुश हो कर हंस पड़े।
8. यरूशलम बेटी से संगीन गुनाह सरज़द हुआ है, इसी लिए वह लान-तान का निशाना बन गई है। जो पहले उस की इज़्ज़त करते थे वह सब उसे हक़ीर जानते हैं, क्यूँकि उन्हों ने उस की बरहनगी देखी है। अब वह आहें भर भर कर अपना मुँह दूसरी तरफ़ फेर लेती है।
9. गो उस के दामन में बहुत गन्दगी थी, तो भी उस ने अपने अन्जाम का ख़याल तक न किया। अब वह धड़ाम से गिर गई है, और कोई नहीं है जो उसे तसल्ली दे। “ऐ रब्ब, मेरी मुसीबत का लिहाज़ कर! क्यूँकि दुश्मन शेख़ी मार रहा है।”
10. जो कुछ भी यरूशलम को पियारा था उस पर दुश्मन ने हाथ डाला है। हत्ता कि उसे देखना पड़ा कि ग़ैरअक़्वाम उस के मक़्दिस में दाख़िल हो रहे हैं, गो तू ने ऐसे लोगों को अपनी जमाअत में शरीक होने से मना किया था।
11. तमाम बाशिन्दे आहें भर भर कर रोटी की तलाश में रहते हैं। हर एक खाने का कोई न कोई टुकड़ा पाने के लिए अपनी बेशक़ीमत चीज़ें बेच रहा है। ज़हन में एक ही ख़याल है कि अपनी जान को किसी न किसी तरह बचाए। “ऐ रब्ब, मुझ पर नज़र डाल कर ध्यान दे कि मेरी कितनी तज़्लील हुई है।
12. ऐ यहाँ से गुज़रने वालो, क्या यह सब कुछ तुम्हारे नज़्दीक बेमानी है? ग़ौर से सोच लो, जो ईज़ा मुझे बर्दाश्त करनी पड़ती है क्या वह कहीं और पाई जाती है? हरगिज़ नहीं! यह रब्ब की तरफ़ से है, उसी का सख़्त ग़ज़ब मुझ पर नाज़िल हुआ है।
13. बुलन्दियों से उस ने मेरी हड्डियों पर आग नाज़िल करके उन्हें कुचल दिया। उस ने मेरे पाँओ के सामने जाल बिछा कर मुझे पीछे हटा दिया। उसी ने मुझे वीरान-ओ-सुन्सान करके हमेशा के लिए बीमार कर दिया।
14. मेरे जराइम का जूआ भारी है। रब्ब के हाथ ने उन्हें एक दूसरे के साथ जोड़ कर मेरी गर्दन पर रख दिया। अब मेरी ताक़त ख़त्म है, रब्ब ने मुझे उन ही के हवाले कर दिया जिन का मुक़ाबला मैं कर ही नहीं सकता।
15. रब्ब ने मेरे दर्मियान के तमाम सूर्माओं को रद्द कर दिया, उस ने मेरे ख़िलाफ़ जुलूस निकलवाया जो मेरे जवानों को पाश पाश करे। हाँ, रब्ब ने कुंवारी यहूदाह बेटी को अंगूर का रस निकालने के हौज़ में फैंक कर कुचल डाला।
16. इस लिए मैं रो रही हूँ, मेरी आँखों से आँसू टपकते रहते हैं। क्यूँकि क़रीब कोई नहीं है जो मुझे तसल्ली दे कर मेरी जान को तर-ओ-ताज़ा करे। मेरे बच्चे तबाह हैं, क्यूँकि दुश्मन ग़ालिब आ गया है।”
17. सिय्यून बेटी अपने हाथ फैलाती है, लेकिन कोई नहीं है जो उसे तसल्ली दे। रब्ब के हुक्म पर याक़ूब के पड़ोसी उस के दुश्मन बन गए हैं। यरूशलम उन के दर्मियान घिनौनी चीज़ बन गई है।
18. “रब्ब हक़-ब-जानिब है, क्यूँकि मैं उस के कलाम से सरकश हुई। ऐ तमाम अक़्वाम, सुनो! मेरी ईज़ा पर ग़ौर करो! मेरे नौजवान और कुंवारियाँ जिलावतन हो गए हैं।
19. मैं ने अपने आशिक़ों को बुलाया, लेकिन उन्हों ने बेवफ़ा हो कर मुझे तर्क कर दिया। अब मेरे इमाम और बुज़ुर्ग अपनी जान बचाने के लिए ख़ुराक ढूँडते ढूँडते शहर में हलाक हो गए हैं।
20. ऐ रब्ब, मेरी तंगदस्ती पर ध्यान दे! बातिन में मैं तड़प रही हूँ, मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा है, इस लिए कि मैं इतनी ज़ियादा सरकश रही हूँ। बाहर गली में तल्वार ने मुझे बच्चों से महरूम कर दिया, घर के अन्दर मौत मेरे पीछे पड़ी है।
21. मेरी आहें तो लोगों तक पहुँचती हैं, लेकिन कोई मुझे तसल्ली देने के लिए नहीं आता। इस के बजाय मेरे तमाम दुश्मन मेरी मुसीबत के बारे में सुन कर बग़लें बजा रहे हैं। वह ख़ुश हैं कि तू ने मेरे साथ ऐसा सुलूक किया है। ऐ रब्ब, वह दिन आने दे जिस का एलान तू ने किया है ताकि वह भी मेरी तरह की मुसीबत में फंस जाएँ।
22. उन की तमाम बुरी हर्कतें तेरे सामने आएँ। उन से यूँ निपट ले जिस तरह तू ने मेरे गुनाहों के जवाब में मुझ से निपट लिया है। क्यूँकि आहें भरते भरते मेरा दिल निढाल हो गया है।”

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