Judges (9/21)  

1. एक दिन यरुब्बाल यानी जिदाऊन का बेटा अबीमलिक अपने मामूओं और माँ के बाक़ी रिश्तेदारों से मिलने के लिए सिकम गया। उस ने उन से कहा,
2. “सिकम शहर के तमाम बाशिन्दों से पूछें, क्या आप अपने आप पर जिदाऊन के 70 बेटों की हुकूमत ज़ियादा पसन्द करेंगे या एक ही शख़्स की? याद रहे कि मैं आप का ख़ूनी रिश्तेदार हूँ!”
3. अबीमलिक के मामूओं ने सिकम के तमाम बाशिन्दों के सामने यह बातें दुहराईं। सिकम के लोगों ने सोचा, “अबीमलिक हमारा भाई है” इस लिए वह उस के पीछे लग गए।
4. उन्हों ने उसे बाल-बरीत देवता के मन्दिर से चाँदी के 70 सिक्के भी दे दिए। इन पैसों से अबीमलिक ने अपने इर्दगिर्द आवारा और बदमआश आदमियों का गुरोह जमा किया।
5. उन्हें अपने साथ ले कर वह उफ़्रा पहुँचा जहाँ बाप का ख़ान्दान रहता था। वहाँ उस ने अपने तमाम भाइयों यानी जिदाऊन के 70 बेटों को एक ही पत्थर पर क़त्ल कर दिया। सिर्फ़ यूताम जो जिदाऊन का सब से छोटा बेटा था कहीं छुप कर बच निकला।
6. इस के बाद सिकम और बैत-मिल्लो के तमाम लोग उस बलूत के साय में जमा हुए जो सिकम के सतून के पास था। वहाँ उन्हों ने अबीमलिक को अपना बादशाह मुक़र्रर किया।
7. जब यूताम को इस की इत्तिला मिली तो वह गरिज़ीम पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया और ऊँची आवाज़ से चिल्लाया, “ऐ सिकम के बाशिन्दो, सुनें मेरी बात! सुनें अगर आप चाहते हैं कि अल्लाह आप की भी सुने।
8. एक दिन दरख़्तों ने फ़ैसला किया कि हम पर कोई बादशाह होना चाहिए। वह उसे चुनने और मसह करने के लिए निकले। पहले उन्हों ने ज़ैतून के दरख़्त से बात की, ‘हमारे बादशाह बन जाएँ!’
9. लेकिन ज़ैतून के दरख़्त ने जवाब दिया, ‘क्या मैं अपना तेल पैदा करने से बाज़ आऊँ जिस की अल्लाह और इन्सान इतनी क़दर करते हैं ताकि दरख़्तों पर हुकूमत करूँ? हरगिज़ नहीं!’
10. इस के बाद दरख़्तों ने अन्जीर के दरख़्त से बात की, ‘आएँ, हमारे बादशाह बन जाएँ!’
11. लेकिन अन्जीर के दरख़्त ने जवाब दिया, ‘क्या मैं अपना मीठा और अच्छा फल लाने से बाज़ आऊँ ताकि दरख़्तों पर हुकूमत करूँ? हरगिज़ नहीं!’
12. फिर दरख़्तों ने अंगूर की बेल से बात की, ‘आएँ, हमारे बादशाह बन जाएँ!’
13. लेकिन अंगूर की बेल ने जवाब दिया, ‘क्या मैं अपना रस पैदा करने से बाज़ आऊँ जिस से अल्लाह और इन्सान ख़ुश हो जाते हैं ताकि दरख़्तों पर हुकूमत करूँ? हरगिज़ नहीं!’
14. आख़िरकार दरख़्त काँटेदार झाड़ी के पास आए और कहा, ‘आएँ और हमारे बादशाह बन जाएँ!’
15. काँटेदार झाड़ी ने जवाब दिया, ‘अगर तुम वाक़ई मुझे मसह करके अपना बादशाह बनाना चाहते हो तो आओ और मेरे साय में पनाह लो। अगर तुम ऐसा नहीं करना चाहते तो झाड़ी से आग निकल कर लुब्नान के देओदार के दरख़्तों को भस्म कर दे’।”
16. यूताम ने बात जारी रख कर कहा, “अब मुझे बताएँ, क्या आप ने वफ़ादारी और सच्चाई का इज़्हार किया जब आप ने अबीमलिक को अपना बादशाह बना लिया? क्या आप ने जिदाऊन और उस के ख़ान्दान के साथ अच्छा सुलूक किया? क्या आप ने उस पर शुक्रगुज़ारी का वह इज़्हार किया जिस के लाइक़ वह था?
17. मेरे बाप ने आप की ख़ातिर जंग की। आप को मिदियानियों से बचाने के लिए उस ने अपनी जान ख़त्रे में डाल दी।
18. लेकिन आज आप जिदाऊन के घराने के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए हैं। आप ने उस के 70 बेटों को एक ही पत्थर पर ज़बह करके उस की लौंडी के बेटे अबीमलिक को सिकम का बादशाह बना लिया है, और यह सिर्फ़ इस लिए कि वह आप का रिश्तेदार है।
19. अब सुनें! अगर आप ने जिदाऊन और उस के ख़ान्दान के साथ वफ़ादारी और सच्चाई का इज़्हार किया है तो फिर अल्लाह करे कि अबीमलिक आप के लिए ख़ुशी का बाइस हो और आप उस के लिए।
20. लेकिन अगर ऐसा नहीं था तो अल्लाह करे कि अबीमलिक से आग निकल कर आप सब को भस्म कर दे जो सिकम और बैत-मिल्लो में रहते हैं! और आग आप से निकल कर अबीमलिक को भी भस्म कर दे!”
21. यह कह कर यूताम ने भाग कर बैर में पनाह ली, क्यूँकि वह अपने भाई अबीमलिक से डरता था।
22. अबीमलिक की इस्राईल पर हुकूमत तीन साल तक रही।
23. लेकिन फिर अल्लाह ने एक बुरी रूह भेज दी जिस ने अबीमलिक और सिकम के बाशिन्दों में नाइत्तिफ़ाक़ी पैदा कर दी। नतीजे में सिकम के लोगों ने बग़ावत की।
24. यूँ अल्लाह ने उसे इस की सज़ा दी कि उस ने अपने भाइयों यानी जिदाऊन के 70 बेटों को क़त्ल किया था। सिकम के बाशिन्दों को भी सज़ा मिली, क्यूँकि उन्हों ने इस में अबीमलिक की मदद की थी।
25. उस वक़्त सिकम के लोग इर्दगिर्द की चोटियों पर चढ़ कर अबीमलिक की ताक में बैठ गए। जो भी वहाँ से गुज़रा उसे उन्हों ने लूट लिया। इस बात की ख़बर अबीमलिक तक पहुँच गई।
26. उन दिनों में एक आदमी अपने भाइयों के साथ सिकम आया जिस का नाम जाल बिन अबद था। सिकम के लोगों से उस का अच्छा-ख़ासा ताल्लुक़ बन गया, और वह उस पर एतिबार करने लगे।
27. अंगूर की फ़सल पक गई थी। लोग शहर से निकले और अपने बाग़ों में अंगूर तोड़ कर उन से रस निकालने लगे। फिर उन्हों ने अपने देवता के मन्दिर में जश्न मनाया। जब वह ख़ूब खा पी रहे थे तो अबीमलिक पर लानत करने लगे।
28. जाल बिन अबद ने कहा, “सिकम का अबीमलिक के साथ क्या वास्ता कि हम उस के ताबे रहें? वह तो सिर्फ़ यरुब्बाल का बेटा है, जिस का नुमाइन्दा ज़बूल है। उस की ख़िदमत मत करना बल्कि सिकम के बानी हमोर के लोगों की! हम अबीमलिक की ख़िदमत क्यूँ करें?
29. काश शहर का इन्तिज़ाम मेरे हाथ में होता! फिर मैं अबीमलिक को जल्द ही निकाल देता। मैं उसे चैलेंज देता कि आओ, अपने फ़ौजियों को जमा करके हम से लड़ो!”
30. जाल बिन अबद की बात सुन कर सिकम का सरदार ज़बूल बड़े ग़ुस्से में आ गया।
31. अपने क़ासिदों की मारिफ़त उस ने अबीमलिक को चुपके से इत्तिला दी, “जाल बिन अबद अपने भाइयों के साथ सिकम आ गया है जहाँ वह पूरे शहर को आप के ख़िलाफ़ खड़े हो जाने के लिए उकसा रहा है।
32. अब ऐसा करें कि रात के वक़्त अपने फ़ौजियों समेत इधर आएँ और खेतों में ताक में रहें।
33. सुब्ह-सवेरे जब सूरज तुलू होगा तो शहर पर हम्ला करें। जब जाल अपने आदमियों के साथ आप के ख़िलाफ़ लड़ने आएगा तो उस के साथ वह कुछ करें जो आप मुनासिब समझते हैं।”
34. यह सुन कर अबीमलिक रात के वक़्त अपने फ़ौजियों समेत रवाना हुआ। उस ने उन्हें चार गुरोहों में तक़्सीम किया जो सिकम को घेर कर ताक में बैठ गए।
35. सुब्ह के वक़्त जब जाल घर से निकल कर शहर के दरवाज़े में खड़ा हुआ तो अबीमलिक और उस के फ़ौजी अपनी छुपने की जगहों से निकल आए।
36. उन्हें देख कर जाल ने ज़बूल से कहा, “देखो, लोग पहाड़ों की चोटियों से उतर रहे हैं!” ज़बूल ने जवाब दिया, “नहीं, नहीं, जो आप को आदमी लग रहे हैं वह सिर्फ़ पहाड़ों के साय हैं।”
37. लेकिन जाल को तसल्ली न हुई। वह दुबारा बोल उठा, “देखो, लोग दुनिया की नाफ़ से उतर रहे हैं। और एक और गुरोह रम्मालों के बलूत से हो कर आ रहा है।”
38. फिर ज़बूल ने उस से कहा, “अब तेरी बड़ी बड़ी बातें कहाँ रहीं? क्या तू ने नहीं कहा था, ‘अबीमलिक कौन है कि हम उस के ताबे रहें?’ अब यह लोग आ गए हैं जिन का मज़ाक़ तू ने उड़ाया। जा, शहर से निकल कर उन से लड़!”
39. तब जाल सिकम के मर्दों के साथ शहर से निकला और अबीमलिक से लड़ने लगा।
40. लेकिन वह हार गया, और अबीमलिक ने शहर के दरवाज़े तक उस का ताक़्क़ुब किया। भागते भागते सिकम के बहुत से अफ़राद रास्ते में गिर कर हलाक हो गए।
41. फिर अबीमलिक अरूमा चला गया जबकि ज़बूल ने पीछे रह कर जाल और उस के भाइयों को शहर से निकाल दिया।
42. अगले दिन सिकम के लोग शहर से निकल कर मैदान में आना चाहते थे। जब अबीमलिक को यह ख़बर मिली
43. तो उस ने अपनी फ़ौज को तीन गुरोहों में तक़्सीम किया। यह गुरोह दुबारा सिकम को घेर कर घात में बैठ गए। जब लोग शहर से निकले तो अबीमलिक अपने गुरोह के साथ छुपने की जगह से निकल आया और शहर के दरवाज़े में खड़ा हो गया। बाक़ी दो गुरोह मैदान में मौजूद अफ़राद पर टूट पड़े और सब को हलाक कर दिया।
44. तो उस ने अपनी फ़ौज को तीन गुरोहों में तक़्सीम किया। यह गुरोह दुबारा सिकम को घेर कर घात में बैठ गए। जब लोग शहर से निकले तो अबीमलिक अपने गुरोह के साथ छुपने की जगह से निकल आया और शहर के दरवाज़े में खड़ा हो गया। बाक़ी दो गुरोह मैदान में मौजूद अफ़राद पर टूट पड़े और सब को हलाक कर दिया।
45. फिर अबीमलिक ने शहर पर हम्ला किया। लोग पूरा दिन लड़ते रहे, लेकिन आख़िरकार अबीमलिक ने शहर पर क़ब्ज़ा करके तमाम बाशिन्दों को मौत के घाट उतार दिया। उस ने शहर को तबाह किया और खंडरात पर नमक बिखेर कर उस की हत्मी तबाही ज़ाहिर कर दी।
46. जब सिकम के बुर्ज के रहने वालों को यह इत्तिला मिली तो वह एल-बरीत देवता के मन्दिर के तहख़ाने में छुप गए।
47. जब अबीमलिक को पता चला
48. तो वह अपने फ़ौजियों समेत ज़ल्मोन पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ उस ने कुल्हाड़ी से शाख़ काट कर अपने कंधों पर रख ली और अपने फ़ौजियों को हुक्म दिया, “जल्दी करो! सब ऐसा ही करो।”
49. फ़ौजियों ने भी शाख़ें काटीं और फिर अबीमलिक के पीछे लग कर मन्दिर के पास वापस आए। वहाँ उन्हों ने तमाम लकड़ी तहख़ाने की छत पर जमा करके उसे जला दिया। यूँ सिकम के बुर्ज के तक़्रीबन 1,000 मर्द-ओ-ख़वातीन सब भस्म हो गए।
50. वहाँ से अबीमलिक तैबिज़ के ख़िलाफ़ बढ़ गया। उस ने शहर का मुहासरा करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया।
51. लेकिन शहर के बीच में एक मज़्बूत बुर्ज था। तमाम मर्द-ओ-ख़वातीन उस में फ़रार हुए और बुर्ज के दरवाज़ों पर कुंडी लगा कर छत पर चढ़ गए।
52. अबीमलिक लड़ते लड़ते बुर्ज के दरवाज़े के क़रीब पहुँच गया। वह उसे जलाने की कोशिश करने लगा
53. तो एक औरत ने चक्की का ऊपर का पाट उस के सर पर फैंक दिया, और वह फट गया।
54. जल्दी से अबीमलिक ने अपने सिलाहबर्दार को बुलाया। उस ने कहा, “अपनी तल्वार खैंच कर मुझे मार दो! वर्ना लोग कहेंगे कि एक औरत ने मुझे मार डाला।” चुनाँचे नौजवान ने अपनी तल्वार उस के बदन में से गुज़ार दी और वह मर गया।
55. जब फ़ौजियों ने देखा कि अबीमलिक मर गया है तो वह अपने अपने घर चले गए।
56. यूँ अल्लाह ने अबीमलिक को उस बदी का बदला दिया जो उस ने अपने 70 भाइयों को क़त्ल करके अपने बाप के ख़िलाफ़ की थी।
57. और अल्लाह ने सिकम के बाशिन्दों को भी उन की शरीर हर्कतों की मुनासिब सज़ा दी। यूताम बिन यरुब्बाल की लानत पूरी हुई।

  Judges (9/21)