Judges (6/21)  

1. फिर इस्राईली दुबारा वह कुछ करने लगे जो रब्ब को बुरा लगा, और उस ने उन्हें सात साल तक मिदियानियों के हवाले कर दिया।
2. मिदियानियों का दबाओ इतना ज़ियादा बढ़ गया कि इस्राईलियों ने उन से पनाह लेने के लिए पहाड़ी इलाक़े में शिगाफ़, ग़ार और गढ़ियाँ बना लीं।
3. क्यूँकि जब भी वह अपनी फ़सलें लगाते तो मिदियानी, अमालीक़ी और मशरिक़ के दीगर फ़ौजी उन पर हम्ला करके
4. मुल्क को घेर लेते और फ़सलों को ग़ज़्ज़ा शहर तक तबाह करते। वह खाने वाली कोई भी चीज़ नहीं छोड़ते थे, न कोई भेड़, न कोई बैल, और न कोई गधा।
5. और जब वह अपने मवेशियों और ख़ैमों के साथ पहुँचते तो टिड्डियों के दलों की मानिन्द थे। इतने मर्द और ऊँट थे कि उन को गिना नहीं जा सकता था। यूँ वह मुल्क पर चढ़ आते थे ताकि उसे तबाह करें।
6. इस्राईली मिदियान के सबब से इतने पस्तहाल हुए कि आख़िरकार मदद के लिए रब्ब को पुकारने लगे।
7. तब उस ने उन में एक नबी भेज दिया जिस ने कहा, “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि मैं ही तुम्हें मिस्र की ग़ुलामी से निकाल लाया।
8. तब उस ने उन में एक नबी भेज दिया जिस ने कहा, “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि मैं ही तुम्हें मिस्र की ग़ुलामी से निकाल लाया।
9. मैं ने तुम्हें मिस्र के हाथ से और उन तमाम ज़ालिमों के हाथ से बचा लिया जो तुम्हें दबा रहे थे। मैं उन्हें तुम्हारे आगे आगे निकालता गया और उन की ज़मीन तुम्हें दे दी।
10. उस वक़्त मैं ने तुम्हें बताया, ‘मैं रब्ब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। जिन अमोरियों के मुल्क में तुम रह रहे हो उन के देवताओं का ख़ौफ़ मत मानना। लेकिन तुम ने मेरी न सुनी’।”
11. एक दिन रब्ब का फ़रिश्ता आया और उफ़्रा में बलूत के एक दरख़्त के साय में बैठ गया। यह दरख़्त अबीअज़र के ख़ान्दान के एक आदमी का था जिस का नाम यूआस था। वहाँ अंगूर का रस निकालने का हौज़ था, और उस में यूआस का बेटा जिदाऊन छुप कर गन्दुम झाड़ रहा था, हौज़ में इस लिए कि गन्दुम मिदियानियों से मह्फ़ूज़ रहे।
12. रब्ब का फ़रिश्ता जिदाऊन पर ज़ाहिर हुआ और कहा, “ऐ ज़बरदस्त सूर्मे, रब्ब तेरे साथ है!”
13. जिदाऊन ने जवाब दिया, “नहीं जनाब, अगर रब्ब हमारे साथ हो तो यह सब कुछ हमारे साथ क्यूँ हो रहा है? उस के वह तमाम मोजिज़े आज कहाँ नज़र आते हैं जिन के बारे में हमारे बापदादा हमें बताते रहे हैं? क्या वह नहीं कहते थे कि रब्ब हमें मिस्र से निकाल लाया? नहीं, जनाब। अब ऐसा नहीं है। अब रब्ब ने हमें तर्क करके मिदियान के हवाले कर दिया है।”
14. रब्ब ने उस की तरफ़ मुड़ कर कहा, “अपनी इस ताक़त में जा और इस्राईल को मिदियान के हाथ से बचा। मैं ही तुझे भेज रहा हूँ।”
15. लेकिन जिदाऊन ने एतिराज़ किया, “ऐ रब्ब, मैं इस्राईल को किस तरह बचाऊँ? मेरा ख़ान्दान मनस्सी के क़बीले का सब से कमज़ोर ख़ान्दान है, और मैं अपने बाप के घर में सब से छोटा हूँ।”
16. रब्ब ने जवाब दिया, “मैं तेरे साथ हूँगा, और तू मिदियानियों को यूँ मारेगा जैसे एक ही आदमी को।”
17. तब जिदाऊन ने कहा, “अगर मुझ पर तेरे करम की नज़र हो तो मुझे कोई इलाही निशान दिखा ताकि साबित हो जाए कि वाक़ई रब्ब ही मेरे साथ बात कर रहा है।
18. मैं अभी जा कर क़ुर्बानी तय्यार करता हूँ और फिर वापस आ कर उसे तुझे पेश करूँगा। उस वक़्त तक रवाना न हो जाना।” रब्ब ने कहा, “ठीक है, मैं तेरी वापसी का इन्तिज़ार करके ही जाऊँगा।”
19. जिदाऊन चला गया। उस ने बक्री का बच्चा ज़बह करके तय्यार किया और पूरे 16 किलोग्राम मैदे से बेख़मीरी रोटी बनाई। फिर गोश्त को टोकरी में रख कर और उस का शोरबा अलग बर्तन में डाल कर वह सब कुछ रब्ब के फ़रिश्ते के पास लाया और उसे बलूत के साय में पेश किया।
20. रब्ब के फ़रिश्ते ने कहा, “गोश्त और बेख़मीरी रोटी को ले कर इस पत्थर पर रख दे, फिर शोरबा उस पर उंडेल दे।” जिदाऊन ने ऐसा ही किया।
21. रब्ब के फ़रिश्ते के हाथ में लाठी थी। अब उस ने लाठी के सिरे से गोश्त और बेख़मीरी रोटी को छू दिया। अचानक पत्थर से आग भड़क उठी और ख़ुराक भस्म हो गई। साथ साथ रब्ब का फ़रिश्ता ओझल हो गया।
22. फिर जिदाऊन को यक़ीन आया कि यह वाक़ई रब्ब का फ़रिश्ता था, और वह बोल उठा, “हाय रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़! मुझ पर अफ़्सोस, क्यूँकि मैं ने रब्ब के फ़रिश्ते को रू-ब-रू देखा है।”
23. लेकिन रब्ब उस से हमकलाम हुआ और कहा, “तेरी सलामती हो। मत डर, तू नहीं मरेगा।”
24. वहीं जिदाऊन ने रब्ब के लिए क़ुर्बानगाह बनाई और उस का नाम ‘रब्ब सलामत है’ रखा। यह आज तक अबीअज़र के ख़ान्दान के शहर उफ़्रा में मौजूद है।
25. उसी रात रब्ब जिदाऊन से हमकलाम हुआ, “अपने बाप के बैलों में से दूसरे बैल को जो सात साल का है चुन ले। फिर अपने बाप की वह क़ुर्बानगाह गिरा दे जिस पर बाल देवता को क़ुर्बानियाँ चढ़ाई जाती हैं, और यसीरत देवी का वह खम्बा काट डाल जो साथ खड़ा है।
26. इस के बाद उसी पहाड़ी क़िलए की चोटी पर रब्ब अपने ख़ुदा के लिए सहीह क़ुर्बानगाह बना दे। यसीरत के खम्बे की कटी हुई लकड़ी और बैल को उस पर रख कर मुझे भस्म होने वाली क़ुर्बानी पेश कर।”
27. चुनाँचे जिदाऊन ने अपने दस नौकरों को साथ ले कर वह कुछ किया जिस का हुक्म रब्ब ने उसे दिया था। लेकिन वह अपने ख़ान्दान और शहर के लोगों से डरता था, इस लिए उस ने यह काम दिन के बजाय रात के वक़्त किया।
28. सुब्ह के वक़्त जब शहर के लोग उठे तो देखा कि बाल की क़ुर्बानगाह ढा दी गई है और यसीरत देवी का साथ वाला खम्बा काट दिया गया है। इन की जगह एक नई क़ुर्बानगाह बनाई गई है जिस पर बैल को चढ़ाया गया है।
29. उन्हों ने एक दूसरे से पूछा, “किस ने यह किया?” जब वह इस बात की तफ़्तीश करने लगे तो किसी ने उन्हें बताया कि जिदाऊन बिन यूआस ने यह सब कुछ किया है।
30. तब वह यूआस के घर गए और तक़ाज़ा किया, “अपने बेटे को घर से निकाल लाएँ। लाज़िम है कि वह मर जाए, क्यूँकि उस ने बाल की क़ुर्बानगाह को गिरा कर साथ वाला यसीरत देवी का खम्बा भी काट डाला है।”
31. लेकिन यूआस ने उन से जो उस के सामने खड़े थे कहा, “क्या आप बाल के दिफ़ा में लड़ना चाहते हैं? जो भी बाल के लिए लड़ेगा उसे कल सुब्ह तक मार दिया जाएगा। अगर बाल वाक़ई ख़ुदा है तो वह ख़ुद अपने दिफ़ा में लड़े जब कोई उस की क़ुर्बानगाह को ढा दे।”
32. चूँकि जिदाऊन ने बाल की क़ुर्बानगाह गिरा दी थी इस लिए उस का नाम यरुब्बाल यानी ‘बाल उस से लड़े’ पड़ गया।
33. कुछ देर के बाद तमाम मिदियानी, अमालीक़ी और दूसरी मशरिक़ी क़ौमें जमा हुईं और दरया-ए-यर्दन को पार करके अपने डेरे मैदान-ए-यज़्रएल में लगाए।
34. फिर रब्ब का रूह जिदाऊन पर नाज़िल हुआ। उस ने नरसिंगा फूँक कर अबीअज़र के ख़ान्दान के मर्दों को अपने पीछे हो लेने के लिए बुलाया।
35. साथ साथ उस ने अपने क़ासिदों को मनस्सी के क़बीले और आशर, ज़बूलून और नफ़्ताली के क़बीलों के पास भी भेज दिया। तब वह भी आए और जिदाऊन के मर्दों के साथ मिल कर उस के पीछे हो लिए।
36. जिदाऊन ने अल्लाह से दुआ की, “अगर तू वाक़ई इस्राईल को अपने वादे के मुताबिक़ मेरे ज़रीए बचाना चाहता है
37. तो मुझे यक़ीन दिला। मैं रात को ताज़ा कतरी हुई ऊन गन्दुम गाहने के फ़र्श पर रख दूँगा। कल सुब्ह अगर सिर्फ़ ऊन पर ओस पड़ी हो और इर्दगिर्द का सारा फ़र्श ख़ुश्क हो तो मैं जान लूँगा कि वाक़ई तू अपने वादे के मुताबिक़ इस्राईल को मेरे ज़रीए बचाएगा।”
38. वही कुछ हुआ जिस की दरख़्वास्त जिदाऊन ने की थी। अगले दिन जब वह सुब्ह-सवेरे उठा तो ऊन ओस से तर थी। जब उस ने उसे निचोड़ा तो इतना पानी था कि बर्तन भर गया।
39. फिर जिदाऊन ने अल्लाह से कहा, “मुझ से ग़ुस्से न हो जाना अगर मैं तुझ से एक बार फिर दरख़्वास्त करूँ। मुझे एक आख़िरी दफ़ा ऊन के ज़रीए तेरी मर्ज़ी जाँचने की इजाज़त दे। इस दफ़ा ऊन ख़ुश्क रहे और इर्दगिर्द के सारे फ़र्श पर ओस पड़ी हो।”
40. उस रात अल्लाह ने ऐसा ही किया। सिर्फ़ ऊन ख़ुश्क रही जबकि इर्दगिर्द के सारे फ़र्श पर ओस पड़ी थी।

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