Judges (16/21)  

1. एक दिन सम्सून फ़िलिस्ती शहर ग़ज़्ज़ा में आया। वहाँ वह एक कस्बी को देख कर उस के घर में दाख़िल हुआ।
2. जब शहर के बाशिन्दों को इत्तिला मिली कि सम्सून शहर में है तो उन्हों ने कस्बी के घर को घेर लिया। साथ साथ वह रात के वक़्त शहर के दरवाज़े पर ताक में रहे। फ़ैसला यह हुआ, “रात के वक़्त हम कुछ नहीं करेंगे, जब पौ फटेगी तब उसे मार डालेंगे।”
3. सम्सून अब तक कस्बी के घर में सो रहा था। लेकिन आधी रात को वह उठ कर शहर के दरवाज़े के पास गया और दोनों किवाड़ों को कुंडे और दरवाज़े के दोनों बाज़ूओं समेत उखाड़ कर अपने कंधों पर रख लिया। यूँ चलते चलते वह सब कुछ उस पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो हब्रून के मुक़ाबिल है।
4. कुछ देर के बाद सम्सून एक औरत की मुहब्बत में गिरिफ़्तार हो गया जो वादी-ए-सूरिक़ में रहती थी। उस का नाम दलीला था।
5. यह सुन कर फ़िलिस्ती सरदार उस के पास आए और कहने लगे, “सम्सून को उकसाएँ कि वह आप को अपनी बड़ी ताक़त का भेद बताए। हम जानना चाहते हैं कि हम किस तरह उस पर ग़ालिब आ कर उसे यूँ बाँध सकें कि वह हमारे क़ब्ज़े में रहे। अगर आप यह मालूम कर सकें तो हम में से हर एक आप को चाँदी के 1,100 सिक्के देगा।”
6. चुनाँचे दलीला ने सम्सून से सवाल किया, “मुझे अपनी बड़ी ताक़त का भेद बताएँ। क्या आप को किसी ऐसी चीज़ से बाँधा जा सकता है जिसे आप तोड़ नहीं सकते?”
7. सम्सून ने जवाब दिया, “अगर मुझे जानवरों की सात ताज़ा नसों से बाँधा जाए तो फिर मैं आम आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।”
8. फ़िलिस्ती सरदारों ने दलीला को सात ताज़ा नसें मुहय्या कर दीं, और उस ने सम्सून को उन से बाँध लिया।
9. कुछ फ़िलिस्ती आदमी साथ वाले कमरे में छुप गए। फिर दलीला चिल्ला उठी, “सम्सून, फ़िलिस्ती आप को पकड़ने आए हैं!” यह सुन कर सम्सून ने नसों को यूँ तोड़ दिया जिस तरह डोरी टूट जाती है जब आग में से गुज़रती है। चुनाँचे उस की ताक़त का पोल न खुला।
10. दलीला का मुँह लटक गया। “आप ने झूट बोल कर मुझे बेवुक़ूफ़ बनाया है। अब आएँ, मेहरबानी करके मुझे बताएँ कि आप को किस तरह बाँधा जा सकता है।”
11. सम्सून ने जवाब दिया, “अगर मुझे ग़ैरइस्तेमालशुदा रस्सों से बाँधा जाए तो फिर ही मैं आम आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।”
12. दलीला ने नए रस्से ले कर उसे उन से बाँध लिया। इस मर्तबा भी फ़िलिस्ती साथ वाले कमरे में छुप गए थे। फिर दलीला चिल्ला उठी, “सम्सून, फ़िलिस्ती आप को पकड़ने आए हैं!” लेकिन इस बार भी सम्सून ने रस्सों को यूँ तोड़ लिया जिस तरह आम आदमी डोरी को तोड़ लेता है।
13. दलीला ने शिकायत की, “आप बार बार झूट बोल कर मेरा मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। अब मुझे बताएँ कि आप को किस तरह बाँधा जा सकता है।” सम्सून ने जवाब दिया, “लाज़िम है कि आप मेरी सात ज़ुल्फ़ों को खड्डी के ताने के साथ बुनें। फिर ही आम आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।”
14. जब सम्सून सो रहा था तो दलीला ने ऐसा ही किया। उस की सात ज़ुल्फ़ों को ताने के साथ बुन कर उस ने उसे शटल के ज़रीए खड्डी के साथ लगाया। फिर वह चिल्ला उठी, “सम्सून, फ़िलिस्ती आप को पकड़ने आए हैं!” सम्सून जाग उठा और अपने बालों को शटल समेत खड्डी से निकाल लिया।
15. यह देख कर दलीला ने मुँह फुला कर मलामत की, “आप किस तरह दावा कर सकते हैं कि मुझ से मुहब्बत रखते हैं? अब आप ने तीन मर्तबा मेरा मज़ाक़ उड़ा कर मुझे अपनी बड़ी ताक़त का भेद नहीं बताया।”
16. रोज़-ब-रोज़ वह अपनी बातों से उस की नाक में दम करती रही। आख़िरकार सम्सून इतना तंग आ गया कि उस का जीना दूभर हो गया।
17. फिर उस ने उसे खुल कर बात बताई, “मैं पैदाइश ही से अल्लाह के लिए मख़्सूस हूँ, इस लिए मेरे बालों को कभी नहीं काटा गया। अगर सर को मुंडवाया जाए तो मेरी ताक़त जाती रहेगी और मैं हर दूसरे आदमी जैसा कमज़ोर हो जाऊँगा।”
18. दलीला ने जान लिया कि अब सम्सून ने मुझे पूरी हक़ीक़त बताई है। उस ने फ़िलिस्ती सरदारों को इत्तिला दी, “आओ, क्यूँकि इस मर्तबा उस ने मुझे अपने दिल की हर बात बताई है।” यह सुन कर वह मुक़र्ररा चाँदी अपने साथ ले कर दलीला के पास आए।
19. दलीला ने सम्सून का सर अपनी गोद में रख कर उसे सुला दिया। फिर उस ने एक आदमी को बुला कर सम्सून की सात ज़ुल्फ़ों को मुंडवाया। यूँ वह उसे पस्त करने लगी, और उस की ताक़त जाती रही।
20. फिर वह चिल्ला उठी, “सम्सून, फ़िलिस्ती आप को पकड़ने आए हैं!” सम्सून जाग उठा और सोचा, “मैं पहले की तरह अब भी अपने आप को बचा कर बंधन को तोड़ दूँगा।” अफ़्सोस, उसे मालूम नहीं था कि रब्ब ने उसे छोड़ दिया है।
21. फ़िलिस्तियों ने उसे पकड़ कर उस की आँखें निकाल दीं। फिर वह उसे ग़ज़्ज़ा ले गए जहाँ उसे पीतल की ज़न्जीरों से बाँधा गया। वहाँ वह क़ैदख़ाने की चक्की पीसा करता था।
22. लेकिन होते होते उस के बाल दुबारा बढ़ने लगे।
23. एक दिन फ़िलिस्ती सरदार बड़ा जश्न मनाने के लिए जमा हुए। उन्हों ने अपने देवता दजून को जानवरों की बहुत सी क़ुर्बानियाँ पेश करके अपनी फ़त्ह की ख़ुशी मनाई। वह बोले, “हमारे देवता ने हमारे दुश्मन सम्सून को हमारे हवाले कर दिया है।”
24. सम्सून को देख कर अवाम ने दजून की तम्जीद करके कहा, “हमारे देवता ने हमारे दुश्मन को हमारे हवाले कर दिया है! जिस ने हमारे मुल्क को तबाह किया और हम में से इतने लोगों को मार डाला वह अब हमारे क़ाबू में आ गया है!”
25. इस क़िस्म की बातें करते करते उन की ख़ुशी की इन्तिहा न रही। तब वह चिल्लाने लगे, “सम्सून को बुलाओ ताकि वह हमारे दिलों को बहलाए।” चुनाँचे उसे उन की तफ़रीह के लिए जेल से लाया गया और दो सतूनों के दर्मियान खड़ा कर दिया गया।
26. सम्सून उस लड़के से मुख़ातिब हुआ जो उस का हाथ पकड़ कर उस की राहनुमाई कर रहा था, “मुझे छत को उठाने वाले सतूनों के पास ले जाओ ताकि मैं उन का सहारा लूँ।”
27. इमारत मर्दों और औरतों से भरी थी। फ़िलिस्ती सरदार भी सब आए हुए थे। सिर्फ़ छत पर सम्सून का तमाशा देखने वाले तक़्रीबन 3,000 अफ़राद थे।
28. फिर सम्सून ने दुआ की, “ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, मुझे याद कर। बस एक दफ़ा और मुझे पहले की तरह क़ुव्वत अता फ़रमा ताकि मैं एक ही वार से फ़िलिस्तियों से अपनी आँखों का बदला ले सकूँ।”
29. यह कह कर सम्सून ने उन दो मर्कज़ी सतूनों को पकड़ लिया जिन पर छत का पूरा वज़न था। उन के दर्मियान खड़े हो कर उस ने पूरी ताक़त से ज़ोर लगाया
30. और दुआ की, “मुझे फ़िलिस्तियों के साथ मरने दे!” अचानक सतून हिल गए और छत धड़ाम से फ़िलिस्तियों के तमाम सरदारों और बाक़ी लोगों पर गिर गई। इस तरह सम्सून ने पहले की निस्बत मरते वक़्त कहीं ज़ियादा फ़िलिस्तियों को मार डाला।
31. सम्सून के भाई और बाक़ी घर वाले आए और उस की लाश को उठा कर उस के बाप मनोहा की क़ब्र के पास ले गए। वहाँ यानी सुरआ और इस्ताल के दर्मियान उन्हों ने उसे दफ़नाया। सम्सून 20 साल इस्राईल का क़ाज़ी रहा।

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