Judges (14/21)  

1. एक दिन सम्सून तिम्नत में फ़िलिस्तियों के पास ठहरा हुआ था। वहाँ उस ने एक फ़िलिस्ती औरत देखी जो उसे पसन्द आई।
2. अपने घर लौट कर उस ने अपने वालिदैन को बताया, “मुझे तिम्नत की एक फ़िलिस्ती औरत पसन्द आई है। उस के साथ मेरा रिश्ता बाँधने की कोशिश करें।”
3. उस के वालिदैन ने जवाब दिया, “क्या आप के रिश्तेदारों और क़ौम में कोई क़ाबिल-ए-क़बूल औरत नहीं है? आप को नामख़्तून और बेदीन फ़िलिस्तियों के पास जा कर उन में से कोई औरत ढूँडने की क्या ज़रूरत थी?” लेकिन सम्सून बज़िद रहा, “उसी के साथ मेरी शादी कराएँ! वही मुझे ठीक लगती है।”
4. उस के माँ-बाप को मालूम नहीं था कि यह सब कुछ रब्ब की तरफ़ से है जो फ़िलिस्तियों से लड़ने का मौक़ा तलाश कर रहा था। क्यूँकि उस वक़्त फ़िलिस्ती इस्राईल पर हुकूमत कर रहे थे।
5. चुनाँचे सम्सून अपने माँ-बाप समेत तिम्नत के लिए रवाना हुआ। जब वह तिम्नत के अंगूर के बाग़ों के क़रीब पहुँचे तो सम्सून अपने माँ-बाप से अलग हो गया। अचानक एक जवान शेरबबर दहाड़ता हुआ उस पर टूट पड़ा।
6. तब अल्लाह का रूह इतने ज़ोर से सम्सून पर नाज़िल हुआ कि उस ने अपने हाथों से शेर को यूँ फाड़ डाला, जिस तरह आम आदमी बक्री के छोटे बच्चे को फाड़ डालता है। लेकिन उस ने अपने वालिदैन को इस के बारे में कुछ न बताया।
7. आगे निकल कर वह तिम्नत पहुँच गया। मज़्कूरा फ़िलिस्ती औरत से बात हुई और वह उसे ठीक लगी।
8. कुछ देर के बाद वह शादी करने के लिए दुबारा तिम्नत गए। शहर पहुँचने से पहले सम्सून रास्ते से हट कर शेरबबर की लाश को देखने गया। वहाँ क्या देखता है कि शहद की मक्खियों ने शेर के पिंजर में अपना छत्ता बना लिया है।
9. सम्सून ने उस में हाथ डाल कर शहद को निकाल लिया और उसे खाते हुए चला। जब वह अपने माँ-बाप के पास पहुँचा तो उस ने उन्हें भी कुछ दिया, मगर यह न बताया कि कहाँ से मिल गया है।
10. तिम्नत पहुँच कर सम्सून का बाप दुल्हन के ख़ान्दान से मिला जबकि सम्सून ने दूल्हे की हैसियत से ऐसी ज़ियाफ़त की जिस तरह उस ज़माने में दस्तूर था।
11. जब दुल्हन के घर वालों को पता चला कि सम्सून तिम्नत पहुँच गया है तो उन्हों ने उस के पास 30 जवान आदमी भेज दिए कि उस के साथ ख़ुशी मनाएँ।
12. सम्सून ने उन से कहा, “मैं आप से पहेली पूछता हूँ। अगर आप ज़ियाफ़त के सात दिनों के दौरान इस का हल बता सकें तो मैं आप को कतान के 30 क़ीमती कुरते और 30 शानदार सूट दे दूँगा।
13. लेकिन अगर आप मुझे इस का सहीह मतलब न बता सकें तो आप को मुझे 30 क़ीमती कुरते और 30 शानदार सूट देने पड़ेंगे।” उन्हों ने जवाब दिया, “अपनी पहेली सुनाएँ।”
14. सम्सून ने कहा, “खाने वाले में से खाना निकला और ज़ोरावर में से मिठास।” तीन दिन गुज़र गए। जवान पहेली का मतलब न बता सके।
15. चौथे दिन उन्हों ने दुल्हन के पास जा कर उसे धमकी दी, “अपने शौहर को हमें पहेली का मतलब बताने पर उकसाओ, वर्ना हम तुम्हें तुम्हारे ख़ान्दान समेत जला देंगे। क्या तुम लोगों ने हमें सिर्फ़ इस लिए दावत दी कि हमें लूट लो?”
16. दुल्हन सम्सून के पास गई और आँसू बहा बहा कर कहने लगी, “तू मुझे पियार नहीं करता! हक़ीक़त में तू मुझ से नफ़रत करता है। तू ने मेरी क़ौम के लोगों से पहेली पूछी है लेकिन मुझे इस का मतलब नहीं बताया।” सम्सून ने जवाब दिया, “मैं ने अपने माँ-बाप को भी इस का मतलब नहीं बताया तो तुझे क्यूँ बताऊँ?”
17. ज़ियाफ़त के पूरे हफ़्ते के दौरान दुल्हन उस के सामने रोती रही। सातवें दिन सम्सून दुल्हन की इल्तिजाओं से इतना तंग आ गया कि उस ने उसे पहेली का हल बता दिया। तब दुल्हन ने फुरती से सब कुछ फ़िलिस्तियों को सुना दिया।
18. सूरज के ग़ुरूब होने से पहले पहले शहर के मर्दों ने सम्सून को पहेली का मतलब बताया, “क्या कोई चीज़ शहद से ज़ियादा मीठी और शेरबबर से ज़ियादा ज़ोरावर होती है?” सम्सून ने यह सुन कर कहा, “आप ने मेरी जवान गाय ले कर हल चलाया है, वर्ना आप कभी भी पहेली का हल न निकाल सकते।”
19. फिर रब्ब का रूह उस पर नाज़िल हुआ। उस ने अस्क़लून शहर में जा कर 30 फ़िलिस्तियों को मार डाला और उन के लिबास ले कर उन आदमियों को दे दिए जिन्हों ने उसे पहेली का मतलब बता दिया था। इस के बाद वह बड़े ग़ुस्से में अपने माँ-बाप के घर चला गया।
20. लेकिन उस की बीवी की शादी सम्सून के शहबाले से कराई गई जो 30 जवान फ़िलिस्तियों में से एक था।

  Judges (14/21)