Judges (11/21)  

1. उस वक़्त जिलिआद में एक ज़बरदस्त सूर्मा बनाम इफ़्ताह था। बाप का नाम जिलिआद था जबकि माँ कस्बी थी।
2. लेकिन बाप की बीवी के बेटे भी थे। जब बालिग़ हुए तो उन्हों ने इफ़्ताह से कहा, “हम मीरास तेरे साथ नहीं बाँटेंगे, क्यूँकि तू हमारा सगा भाई नहीं है।” उन्हों ने उसे भगा दिया,
3. और वह वहाँ से हिज्रत करके मुल्क-ए-तोब में जा बसा। वहाँ कुछ आवारा लोग उस के पीछे हो लिए जो उस के साथ इधर उधर घूमते फिरते रहे।
4. जब कुछ देर के बाद अम्मोनी फ़ौज इस्राईल से लड़ने आई
5. तो जिलिआद के बुज़ुर्ग इफ़्ताह को वापस लाने के लिए मुल्क-ए-तोब में आए।
6. उन्हों ने गुज़ारिश की, “आएँ, अम्मोनियों से लड़ने में हमारी राहनुमाई करें।”
7. लेकिन इफ़्ताह ने एतिराज़ किया, “आप इस वक़्त मेरे पास क्यूँ आए हैं जब मुसीबत में हैं? आप ही ने मुझ से नफ़रत करके मुझे बाप के घर से निकाल दिया था।”
8. बुज़ुर्गों ने जवाब दिया, “हम इस लिए आप के पास वापस आए हैं कि आप अम्मोनियों के साथ जंग में हमारी मदद करें। अगर आप ऐसा करें तो हम आप को पूरे जिलिआद का हुक्मरान बना लेंगे।”
9. इफ़्ताह ने पूछा, “अगर मैं आप के साथ अम्मोनियों के ख़िलाफ़ लड़ों और रब्ब मुझे उन पर फ़त्ह दे तो क्या आप वाक़ई मुझे अपना हुक्मरान बना लेंगे?”
10. उन्हों ने जवाब दिया, “रब्ब हमारा गवाह है! वही हमें सज़ा दे अगर हम अपना वादा पूरा न करें।”
11. यह सुन कर इफ़्ताह जिलिआद के बुज़ुर्गों के साथ मिस्फ़ाह गया। वहाँ लोगों ने उसे अपना सरदार और फ़ौज का कमाँडर बना लिया। मिस्फ़ाह में उस ने रब्ब के हुज़ूर वह तमाम बातें दुहराईं जिन का फ़ैसला उस ने बुज़ुर्गों के साथ किया था।
12. फिर इफ़्ताह ने अम्मोनी बादशाह के पास अपने क़ासिदों को भेज कर पूछा, “हमारा आप से क्या वास्ता कि आप हम से लड़ने आए हैं?”
13. बादशाह ने जवाब दिया, “जब इस्राईली मिस्र से निकले तो उन्हों ने अर्नोन, यब्बोक़ और यर्दन के दरयाओं के दर्मियान का इलाक़ा मुझ से छीन लिया। अब उसे झगड़ा किए बग़ैर मुझे वापस कर दो।”
14. फिर इफ़्ताह ने अपने क़ासिदों को दुबारा अम्मोनी बादशाह के पास भेज कर
15. कहा, “इस्राईल ने न तो मोआबियों से और न अम्मोनियों से ज़मीन छीनी।
16. हक़ीक़त यह है कि जब हमारी क़ौम मिस्र से निकली तो वह रेगिस्तान में से गुज़र कर बहर-ए-क़ुल्ज़ुम और वहाँ से हो कर क़ादिस पहुँच गई।
17. क़ादिस से उन्हों ने अदोम के बादशाह के पास क़ासिद भेज कर गुज़ारिश की, ‘हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें।’ लेकिन उस ने इन्कार किया। फिर इस्राईलियों ने मोआब के बादशाह से दरख़्वास्त की, लेकिन उस ने भी अपने मुल्क में से गुज़रने की इजाज़त न दी। इस पर हमारी क़ौम कुछ देर के लिए क़ादिस में रही।
18. आख़िरकार वह रेगिस्तान में वापस जा कर अदोम और मोआब के जुनूब में चलते चलते मोआब के मशरिक़ी किनारे पर पहुँची, वहाँ जहाँ दरया-ए-अर्नोन उस की सरहद्द है। लेकिन वह मोआब के इलाक़े में दाख़िल न हुए बल्कि दरया के मशरिक़ में ख़ैमाज़न हुए।
19. वहाँ से इस्राईलियों ने हस्बोन के रहने वाले अमोरी बादशाह सीहोन को पैग़ाम भिजवाया, ‘हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें ताकि हम अपने मुल्क में दाख़िल हो सकें।’
20. लेकिन सीहोन को शक हुआ। उसे यक़ीन नहीं था कि वह मुल्क में से गुज़र कर आगे बढ़ेंगे। उस ने न सिर्फ़ इन्कार किया बल्कि अपने फ़ौजियों को जमा करके यहज़ शहर में ख़ैमाज़न हुआ और इस्राईलियों के साथ लड़ने लगा।
21. लेकिन रब्ब इस्राईल के ख़ुदा ने सीहोन और उस के तमाम फ़ौजियों को इस्राईल के हवाले कर दिया। उन्हों ने उन्हें शिकस्त दे कर अमोरियों के पूरे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया।
22. यह तमाम इलाक़ा जुनूब में दरया-ए-अर्नोन से ले कर शिमाल में दरया-ए-यब्बोक़ तक और मशरिक़ के रेगिस्तान से ले कर मग़रिब में दरया-ए-यर्दन तक हमारे क़ब्ज़े में आ गया।
23. देखें, रब्ब इस्राईल के ख़ुदा ने अपनी क़ौम के आगे आगे अमोरियों को निकाल दिया है। तो फिर आप का इस मुल्क पर क़ब्ज़ा करने का क्या हक़ है?
24. आप भी समझते हैं कि जिसे आप के देवता कमोस ने आप के आगे से निकाल दिया है उस के मुल्क पर क़ब्ज़ा करने का आप का हक़ है। इसी तरह जिसे रब्ब हमारे ख़ुदा ने हमारे आगे आगे निकाल दिया है उस के मुल्क पर क़ब्ज़ा करने का हक़ हमारा है।
25. क्या आप अपने आप को मोआबी बादशाह बलक़ बिन सफ़ोर से बेहतर समझते हैं? उस ने तो इस्राईल से लड़ने बल्कि झगड़ने तक की हिम्मत न की।
26. अब इस्राईली 300 साल से हस्बोन और अरोईर के शहरों में उन के गिर्द-ओ-नवाह की आबादियों समेत आबाद हैं और इसी तरह दरया-ए-अर्नोन के किनारे पर के शहरों में। आप ने इस दौरान इन जगहों पर क़ब्ज़ा क्यूँ न किया?
27. चुनाँचे मैं ने आप से ग़लत सुलूक नहीं किया बल्कि आप ही मेरे साथ ग़लत सुलूक कर रहे हैं। क्यूँकि मुझ से जंग छेड़ना ग़लत है। रब्ब जो मुन्सिफ़ है वही आज इस्राईल और अम्मोन के झगड़े का फ़ैसला करे!”
28. लेकिन अम्मोनी बादशाह ने इफ़्ताह के पैग़ाम पर ध्यान न दिया।
29. फिर रब्ब का रूह इफ़्ताह पर नाज़िल हुआ, और वह जिलिआद और मनस्सी में से गुज़र गया, फिर जिलिआद के मिस्फ़ाह के पास वापस आया। वहाँ से वह अपनी फ़ौज ले कर अम्मोनियों से लड़ने निकला।
30. पहले उस ने रब्ब के सामने क़सम खाई, “अगर तू मुझे अम्मोनियों पर फ़त्ह दे
31. और मैं सहीह-सलामत लौटऊं तो जो कुछ भी पहले मेरे घर के दरवाज़े से निकल कर मुझ से मिले वह तेरे लिए मख़्सूस किया जाएगा। मैं उसे भस्म होने वाली क़ुर्बानी के तौर पर पेश करूँगा।”
32. फिर इफ़्ताह अम्मोनियों से लड़ने गया, और रब्ब ने उसे उन पर फ़त्ह दी।
33. इफ़्ताह ने अरोईर में दुश्मन को शिकस्त दी और इसी तरह मिन्नीत और अबील-करामीम तक मज़ीद बीस शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया। यूँ इस्राईल ने अम्मोन को ज़ेर कर दिया।
34. इस के बाद इफ़्ताह मिस्फ़ाह वापस चला गया। वह अभी घर के क़रीब था कि उस की इक्लौती बेटी दफ़ बजाती और नाचती हुई घर से निकल आई। इफ़्ताह का कोई और बेटा या बेटी नहीं थी।
35. अपनी बेटी को देख कर वह रंज के मारे अपने कपड़े फाड़ कर चीख़ उठा, “हाय मेरी बेटी! तू ने मुझे ख़ाक में दबा कर तबाह कर दिया है, क्यूँकि मैं ने रब्ब के सामने ऐसी क़सम खाई है जो बदली नहीं जा सकती।”
36. बेटी ने कहा, “अब्बू, आप ने क़सम खा कर रब्ब से वादा किया है, इस लिए लाज़िम है कि मेरे साथ वह कुछ करें जिस की क़सम आप ने खाई है। आख़िर उसी ने आप को दुश्मन से बदला लेने की काम्याबी बख़्श दी है।
37. लेकिन मेरी एक गुज़ारिश है। मुझे दो माह की मुहलत दें ताकि मैं अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों में जा कर अपनी ग़ैरशादीशुदा हालत पर मातम करूँ।”
38. इफ़्ताह ने इजाज़त दी। फिर बेटी दो माह के लिए अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों में चली गई और अपनी ग़ैरशादीशुदा हालत पर मातम किया।
39. फिर वह अपने बाप के पास वापस आई, और उस ने अपनी क़सम का वादा पूरा किया। बेटी ग़ैरशादीशुदा थी। उस वक़्त से इस्राईल में दस्तूर राइज है
40. कि इस्राईल की जवान औरतें सालाना चार दिन के लिए अपने घरों से निकल कर इफ़्ताह की बेटी की याद में जश्न मनाती हैं।

  Judges (11/21)