Judges (1/21)  

1. यशूअ की मौत के बाद इस्राईलियों ने रब्ब से पूछा, “कौन सा क़बीला पहले निकल कर कनआनियों पर हम्ला करे?”
2. रब्ब ने जवाब दिया, “यहूदाह का क़बीला शुरू करे। मैं ने मुल्क को उन के क़ब्ज़े में कर दिया है।”
3. तब यहूदाह के क़बीले ने अपने भाइयों शमाऊन के क़बीले से कहा, “आएँ, हमारे साथ निकलें ताकि हम मिल कर कनआनियों को उस इलाक़े से निकाल दें जो क़ुरआ ने यहूदाह के क़बीले के लिए मुक़र्रर किया है। इस के बदले हम बाद में आप की मदद करेंगे जब आप अपने इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के लिए निकलेंगे।” चुनाँचे शमाऊन के मर्द यहूदाह के साथ निकले।
4. जब यहूदाह ने दुश्मन पर हम्ला किया तो रब्ब ने कनआनियों और फ़रिज़्ज़ियों को उस के क़ाबू में कर दिया। बज़क़ के पास उन्हों ने उन्हें शिकस्त दी, गो उन के कुल 10,000 आदमी थे।
5. वहाँ उन का मुक़ाबला एक बादशाह से हुआ जिस का नाम अदूनी-बज़क़ था। जब उस ने देखा कि कनआनी और फ़रिज़्ज़ी हार गए हैं
6. तो वह फ़रार हुआ। लेकिन इस्राईलियों ने उस का ताक़्क़ुब करके उसे पकड़ लिया और उस के हाथों और पैरों के अंगूठों को काट लिया।
7. तब अदूनी-बज़क़ ने कहा, “मैं ने ख़ुद सत्तर बादशाहों के हाथों और पैरों के अंगूठों को कटवाया, और उन्हें मेरी मेज़ के नीचे गिरे हुए खाने के रद्दी टुकड़े जमा करने पड़े। अब अल्लाह मुझे इस का बदला दे रहा है।” उसे यरूशलम लाया गया जहाँ वह मर गया।
8. यहूदाह के मर्दों ने यरूशलम पर भी हम्ला किया। उस पर फ़त्ह पा कर उन्हों ने उस के बाशिन्दों को तल्वार से मार डाला और शहर को जला दिया।
9. इस के बाद वह आगे बढ़ कर उन कनआनियों से लड़ने लगे जो पहाड़ी इलाक़े, दश्त-ए-नजब और मग़रिब के निशेबी पहाड़ी इलाक़े में रहते थे।
10. उन्हों ने हब्रून शहर पर हम्ला किया जो पहले क़िर्यत-अर्बा कहलाता था। वहाँ उन्हों ने सीसी, अख़ीमान और तल्मी की फ़ौजों को शिकस्त दी।
11. फिर वह आगे दबीर के बाशिन्दों से लड़ने चले गए। दबीर का पुराना नाम क़िर्यत-सिफ़र था।
12. कालिब ने कहा, “जो क़िर्यत-सिफ़र पर फ़त्ह पा कर क़ब्ज़ा करेगा उस के साथ मैं अपनी बेटी अक्सा का रिश्ता बाँधूँगा।”
13. कालिब के छोटे भाई ग़ुतनीएल बिन क़नज़ ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। चुनाँचे कालिब ने उस के साथ अपनी बेटी अक्सा की शादी कर दी।
14. जब अक्सा ग़ुतनीएल के हाँ जा रही थी तो उस ने उसे उभारा कि वह कालिब से कोई खेत पाने की दरख़्वास्त करे। अचानक वह गधे से उतर गई। कालिब ने पूछा, “क्या बात है?”
15. अक्सा ने जवाब दिया, “जहेज़ के लिए मुझे एक चीज़ से नवाज़ें। आप ने मुझे दश्त-ए-नजब में ज़मीन दे दी है। अब मुझे चश्मे भी दे दीजिए।” चुनाँचे कालिब ने उसे अपनी मिल्कियत में से ऊपर और नीचे वाले चश्मे भी दे दिए।
16. जब यहूदाह का क़बीला खजूरों के शहर से रवाना हुआ था तो क़ीनी भी उन के साथ यहूदाह के रेगिस्तान में आए थे। (क़ीनी मूसा के सुसर यित्रो की औलाद थे)। वहाँ वह दश्त-ए-नजब में अराद शहर के क़रीब दूसरे लोगों के दर्मियान ही आबाद हुए।
17. यहूदाह का क़बीला अपने भाइयों शमाऊन के क़बीले के साथ आगे बढ़ा। उन्हों ने कनआनी शहर सफ़त पर हम्ला किया और उसे अल्लाह के लिए मख़्सूस करके मुकम्मल तौर पर तबाह कर दिया। इस लिए उस का नाम हुर्मा यानी अल्लाह के लिए तबाही पड़ा।
18. फिर यहूदाह के फ़ौजियों ने ग़ज़्ज़ा, अस्क़लून और अक़्रून के शहरों पर उन के गिर्द-ओ-नवाह की आबादियों समेत फ़त्ह पाई।
19. रब्ब उन के साथ था, इस लिए वह पहाड़ी इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर सके। लेकिन वह समुन्दर के साथ के मैदानी इलाक़े में आबाद लोगों को निकाल न सके। वजह यह थी कि इन लोगों के पास लोहे के रथ थे।
20. मूसा के वादे के मुताबिक़ कालिब को हब्रून शहर मिल गया। उस ने उस में से अनाक़ के तीन बेटों को उन के घरानों समेत निकाल दिया।
21. लेकिन बिन्यमीन का क़बीला यरूशलम के रहने वाले यबूसियों को निकाल न सका। आज तक यबूसी वहाँ बिन्यमीनियों के साथ आबाद हैं।
22. इफ़्राईम और मनस्सी के क़बीले बैत-एल पर क़ब्ज़ा करने के लिए निकले (बैत-एल का पुराना नाम लूज़ था)। जब उन्हों ने अपने जासूसों को शहर की तफ़्तीश करने के लिए भेजा तो रब्ब उन के साथ था।
23. इफ़्राईम और मनस्सी के क़बीले बैत-एल पर क़ब्ज़ा करने के लिए निकले (बैत-एल का पुराना नाम लूज़ था)। जब उन्हों ने अपने जासूसों को शहर की तफ़्तीश करने के लिए भेजा तो रब्ब उन के साथ था।
24. उन के जासूसों की मुलाक़ात एक आदमी से हुई जो शहर से निकल रहा था। उन्हों ने उस से कहा, “हमें शहर में दाख़िल होने का रास्ता दिखाएँ तो हम आप पर रहम करेंगे।”
25. उस ने उन्हें अन्दर जाने का रास्ता दिखाया, और उन्हों ने उस में घुस कर तमाम बाशिन्दों को तल्वार से मार डाला सिवा-ए-मज़्कूरा आदमी और उस के ख़ान्दान के।
26. बाद में वह हित्तियों के मुल्क में गया जहाँ उस ने एक शहर तामीर करके उस का नाम लूज़ रखा। यह नाम आज तक राइज है।
27. लेकिन मनस्सी ने हर शहर के बाशिन्दे न निकाले। बैत-शान, तानक, दोर, इब्लीआम, मजिद्दो और उन के गिर्द-ओ-नवाह की आबादियाँ रह गईं। कनआनी पूरे अज़म के साथ उन में टिके रहे।
28. बाद में जब इस्राईल की ताक़त बढ़ गई तो इन कनआनियों को बेगार में काम करना पड़ा। लेकिन इस्राईलियों ने उस वक़्त भी उन्हें मुल्क से न निकाला।
29. इसी तरह इफ़्राईम के क़बीले ने भी जज़र के बाशिन्दों को न निकाला, और यह कनआनी उन के दर्मियान आबाद रहे।
30. ज़बूलून के क़बीले ने भी क़ित्रोन और नहलाल के बाशिन्दों को न निकाला बल्कि यह उन के दर्मियान आबाद रहे, अलबत्ता उन्हें बेगार में काम करना पड़ा।
31. आशर के क़बीले ने न अक्को के बाशिन्दों को निकाला, न सैदा, अहलाब, अक्ज़ीब, हिल्बा, अफ़ीक़ या रहोब के बाशिन्दों को।
32. इस वजह से आशर के लोग कनआनी बाशिन्दों के दर्मियान रहने लगे।
33. नफ़्ताली के क़बीले ने बैत-शम्स और बैत-अनात के बाशिन्दों को न निकाला बल्कि वह भी कनआनियों के दर्मियान रहने लगे। लेकिन बैत-शम्स और बैत-अनात के बाशिन्दों को बेगार में काम करना पड़ा।
34. दान के क़बीले ने मैदानी इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश तो की, लेकिन अमोरियों ने उन्हें आने न दिया बल्कि पहाड़ी इलाक़े तक मह्दूद रखा।
35. अमोरी पूरे अज़म के साथ हरिस पहाड़, अय्यालोन और साल्बीम में टिके रहे। लेकिन जब इफ़्राईम और मनस्सी की ताक़त बढ़ गई तो अमोरियों को बेगार में काम करना पड़ा।
36. अमोरियों की सरहद्द दर्रा-ए-अक़्रब्बीम से ले कर सिला से परे तक थी।

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